में और मेरे अहसास - 113 Darshita Babubhai Shah द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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में और मेरे अहसास - 113

जीवन के कोरे काग़ज़ को पढ़ सको तो पढ़ो l

चंद लम्हों की मीठी यादे भर सको तो भरो ll

 

घटों लगाएं हुए हैं सजने सवरने में साजना l

खूबसूरती की तारीफ़ कर सको तो करो ll

 

कोई किसी के संग उम्र भर साथ नहीं रहता l

खुद पर खुद की तरह मिट सको तो मिटो ll

 

बहुत कठिन है किसी को अपना बनाना तो l

खुद की परछाईं को जित सको तो जितो ll

 

दुनिया को जिस बेश में चाहिये उस तरह l

आज दिखावे के लिए दिख सको तो दिखो ll

 

अब कभी भी सतायेंगे नहीं वादा करते हैं l

जाते जाते भी वापिस फ़िर सको तो फिरो ll

 

कभी भी ख़त्म न हो एसी निशानी चाहिए l

और प्यार भरा ख़त लिख सको तो लिखो ll

१६-१०-२०२४ 

 

उम्मीद की कश्ती में बैठकर जिंदगी का सागर पार करने निकले हैं ll

मंज़िल तक पहुंचने के लिए आती जाती लहरों से दिन रात उलझे हैं ll

 

यार दोस्तों की महफिल सजी-संवरी हैं ज़ामे सुराही लिए हाथों में l

आज रोम रोम से साहिल से मधुर मुलाकात की आशा छलके हैं ll 

 

एक अलग ही दुनिया होती है समुद्र के भीतर आज ये जाना औ l

विविध रंगबिरंगी सागर सृष्टि को देखकर जज़्बात मलके हैं ll

 

सपना सा लगता है ये हसीन खूबसूरत जहाँ का नज़ारा की l

जिंदगी के दामन को खुशियों से भरने को अरमान मचले हैं ll

 

अकेले नहीं काटा जाता जिन्दगी का सफ़र जान गये है कि l

दरिया पार करने को हम सफ़र मिलने से हर लम्हा महके हैं ll

१७-१०-२०२४ 

 

दो दिलों की है खूबसूरत कहानी बड़ी ही रूहानी l

प्यार की मासूमियत की थोड़ी सी बातेँ है सुहानी ll

 

सिद्दत से निभाया है दिल का रिसता बखुबी से तो l

अब युगों युगों तक दुहरायेगी दुनिया ये कहानी ll

 

बहुत देर तक खामोश रहे मन की मन ही रखीं तो l

दिल में जो है वो हर बात एक एक करके है बतानी ll

 

लोग कहते, जिंदगी लम्बी होती है तन्हा नहीं कटती l

उम्र अकेले कैसे कटती है आज दास्तान है सुनानी ll

 

ख़ुदा के दर में शायद वर्जित है प्रेम की रसम l

नफ़रत भरी क़ायनात में प्यार की लौ को है जलानी ll

१८-१०-२०२४ 

 

हर मुलाकात के बाद लगता है कुछ कहना बाकी हैं l

जज़्बातों के बहाव में बहाना और ख़ुद बहना बाकी हैं ll

 

सब कुछ लूटा दिया पागलपन की हद से गुज़र के l

बेइंतिहा बेपनाह चाहने के बाद भी चहना  बाकी हैं ll

 

आँखों के ख़ामोश इशारों को समझ सको तो समझो l

मस्ती में झूमने के वास्ते बाहों का गहना बाकी हैं ll

 

पूनम की शीतल चांदनी रात में सितारों के रुबरु l

इश्क़ के गहरे दरिया में निगाहों से नहना बाकी हैं ll

 

राहगुज़र- ए-जीस्त में मसर्रतों से दामन भरने को l

मोहब्बत में प्यार का खूबसूरती चोला पहना बाकी हैं ll

१९-१०-२०२४ 

 

मनचाहे ख़्वाबों की क़ायनात हसीन होती हैं l

मनघड़त आभासी दुनिया बेह्तरीन होती हैं ll

 

दिल से कुबूल कर लिया है य़ह सोचकर तो l

मिलन के वक्त की सुबह शाम रंगीन होती हैं ll

 

मुद्दतों के बाद तो आते हैं सुहाने रसीले लम्हें l

पलभर की जुदा होने की बातेँ संगीन होती हैं ll

 

कैद कर लेना चाहते हैं हर एक लम्हातों को l

पुरानी तस्वीरों से यादें ताजातरीन होती हैं ll

 

गीतों ग़ज़लों का दौर चल रहा होता है साथ l

महफ़िल में नशीली सुरीली बीन होती हैं ll

 

हमेशा अपने कलेजेसे लगाएं रखना चाहता है l

बागबां की नज़रमें हर कलीं कमसीन होती हैं ll

 

बड़े नाजो अंदाज के नखरे उठाने पड़ते है l

मोहब्बत में हुस्न की अदा हमनशीं होती हैं ll

२०-१०-२०२४ 

 

 

 

जिंदगी के बाग में खूबसूरत फूल खिला हैं l

बाद मुद्दतों के प्यारा अनमोल रतन मिला हैं ll

 

ख़ुदा की तहज़ीब में भी एक अदा होती है l

जन्मों की क़ड़ी तपस्या का यह सिला हैं ll

 

मान गये तकदीर का लिखा होकर रहता है l

तन मन का रोम रोम पुलकित होके हिला हैं ll

 

जो मिला है वहीं सर्व श्रेष्ठ है यहीं सोचकर जी l

जीवन तो आती जाती साँसों का काफ़िला हैं ll

 

भाग्य में लिखी हिस्से की ख़ुशी मिलतीं ही है l

वक्त रहकर सब कुछ छांटकर आज मिला हैं ll

२१-१०-२०२४ 

 

अटूट बंधन के लिए लगातार कोशिशें जारी रखनी पड़ती हैं l

बिना कुछ किए बैठे बैठाएं यूँही नहीं सच्ची दोस्ती पलती हैं ll

 

ना डरना कभी बंधन में होगे तो चर्चे में हमेंशा से रहोगे l

शिद्दत से निभाना चाहोगे तो ही कामयाबी मिलतीं हैं ll

 

सोचते रहने से कुछ हासिल नहीं होता है जिंदगी में l

मेहनत करनेवालों की ही नसीब की गाड़ी चलती हैं ll

 

तोड़ना तो बहुत आसान है मज़ा आते हैं जोड़ने में l

दिल के रिसतों की डोर आसमाँ में ऊपर  चढ़ती हैं ll

 

कभी-कभी अंदर भी झाँक कर देख लेना जरा सा l

क़ायनात में चीज़े बाहिर से खूबसूरत सी दिखती हैं ll

 

ग़र मंज़िल पाने की ठान लो तो करके गुजरना होगा l

इरादा पक्का हो तो हालत की रफ़्तार तेजी से फिरती हैं ll

२२-१०-२०२४ 

 

अटूट बंधन जान से जुड़ा होता हैं l

दिलों में प्यार के बीज को बोता हैं ll

 

ये तो जन्मोजन्म का नाता होता है l

आँखें बंध होकर भी नहीं सोता हैं ll

 

 

 

आसमाँ में चमकते सितारें में ख़ुद का सितारा ढूँढ रहे हैं ll

इतनी बड़ी आकाशगंगा मे कोई तो अपना ढूँढ रहे हैं ll

 

निकल पड़े है हौसलों को के साथ दिल में आश लिए l

बीच सफ़र रास्ता भूल गये हैं और ठिकाना ढूँढ रहे हैं ll

 

आगाज़ तो बेह्तरीन है देखे क्या होता है अंजाम l

जिंदगी के अगाध सागर पार माजी किनारा ढूँढ रहे हैं ll

 

जब कभी आँखों को आईना बनाकर देखा करते थे जो ll

रूहानी सुकून दिया करता था वो ज़माना ढूँढ रहे हैं ll

 

मुलाकात को हसीन और सुरीला बनाने के लिए l

फिझाओ में गूँजा करता वो सुरीला फ़साना ढूँढ रहे हैं ll

२३-१०-२०२४ 

 

ख़ुदा की दी हुईं जिंदगी लावारिस नहीं होती हैं l

हर लम्हा,हर सुबह,शाम और हर रात मोती हैं ll

 

जगाए रखना सूरज को अपनी पलकों में सजाकर l

नई आश के साथ शुरू होकर खुशी से सोती हैं ll

 

जीवन के सफ़र सरल ओ आसानी से काटने को l

रोज हजार बार हजारों जज़्बातों को पिरोती हैं ll

 

थोड़ी सी खट्टी थोड़ी सी मीठी बस दास्ताँ यहीं l

आने वाले कल के लिए अरमानो को बोती हैं ll

 

सखी खुद की खुद से मुलाकात करने के वास्ते l

बारहा हर हसरत हर ख्वाइशों वो संजोती हैं ll

२४-१०-२०२४ 

 

सर का साया छिन जाने से कुंठित मन हो जाता हैं l

किसी एक के न होने से कुछ भी तो नहीं 

भाता हैं ll

 

वो प्यार वो दुलार वो ममता कभी भी न मिलेगी l

बारहा सुहानी प्यारी यादों का बवंडर रुलाता हैं ll

 

प्यार में दिल का युद्ध दिमाग से हररोज होता फ़िर भी l

दिलों जान से टूटकर से दिल के रिश्ते को निभाता हैं ll

 

हर एक पहलु में ख़ुद को ढालने की कोशिश की है l

फ़िर भी नया दिन, नई सुबह, नया तमाशा दिखाता हैं ll

 

आँखें अश्कों से भरी हो और दिल पूरी तरह डूबा होकर भी l

सखी शाघर में जाम में हसी को मिलाकर पिलाता हैं ll

शाघर- शराब घर 

२५-१०-२०२४ 

 

कृष्णा के विरह की वेदना किसीने ना जानी l

बिना कृष्ण के फिरती कायनात में दिवानी ll

 

कृष्ण के बेपन्हा बेइंतिहा प्यार में पगली को l

दुनिया की हर रीति हर रस्में लगती है फानी ll

 

जोगन बन के गाँव गाँव गली गली फिरती l

कृष्ण के दर्शन करेगी दिल ने कबकी ठानी ll

 

कैसी लग्न लगाई तनमन में कृष्ण मिलन की l

भूख प्यास सब बिसराई वो न पीए पानी ll

 

वृन्दावन में गोप गोपियों के दिलों के राजा l

कृष्ण के दिल पर राज करती है राधा रानी ll

२६-१०-२०२४ 

 

विरह की वेदना अब तो नहीं जाती सही l

दिल की बातें किसीको नहीं जाती कही ll

 

नीले आसमान की आकाशगंगा के नीचे l

आज फ़िर से वो मुलाकात चहिए वही ll

 

रूख हवाओं का है जहां से आहट आई l

सुखागमन की प्रतीक्षा हर लम्हा रही ll

 

मिल जाए तो अंधेरा खो जाए तो रोशनी l

चैन औ सुकूं का बसेरा हो जाना है तही ll

 

मिट्टी का खिलौना, मिट्टी में मिलना है l

जिंदगी का सफ़र तो यही है बस यही ll

२७-१०-२०२४ 

 

वो अल्फाज़ ही क्या जो समझाना पड़े?

वो ताल्लुक़ ही क्या जो मनवाना पड़े?

 

दुनिया जिसे कहती हैं खूबसूरत धोखा l

वो राह भी क्या चलना सिखलाना पड़े?

 

शीशा टूटे भी ना और बिखरे तो बेहतर l

वो चहेरा ही क्या आईना दिखलना पड़े? 

 

दरारें ना जीने देती है ना मरने देती है l

वो बात ही क्यूँ करे जो पसताना पड़े? 

 

हर इंसान में होते है छुपे कई इंसान l

वो वाकिया ही क्या जो बतलाना पड़े? 

२८-१०-२०२४ 

 

लब्जों की अपनी ही जुबान होती हैं l

कहने का ढ़ंग अहमियत खोती हैं ll

 

सही तरह से बात रखी जाये तो l

दिलों में प्यार के बीज बोती हैं ll

 

प्रियजन को खुश करने के लिये l

मोहब्बत में वो अमूल्य मोती हैं ll

२९-१०-२०२४ 

 

तहखाने से रिश्तों के निशान पुराने निकल आए l

प्रियजन की याद में लिखे हुए गाने निकल आए ll

 

सुनो पत्तों की आहटों पर दरवाज़े न खोला करो  l

अपनों को छोड़कर शहर में कमाने निकल आए ll 

 

शा घर में ख़ाली बैठने का रिवाज नहीं है तो l

हिचकियों से जाम पीने के बहाने निकल आए ll

 

आज इश्क़ को जलाने बड़े सज सँवर के आए हैं l

महफिल में पर्दे में से हुस्न सताने निकल आए ll

 

क्या बात हुई थी जाने किस बात पर नाराज थे कि l

छोटीसी बात पे रूठे हुए को मनाने निकल आए ll

३०-१०-२०२४ 

 

दिल को क़रार मिले उधर अच्छा लगता हैं l

साथ हमसफ़र के सफ़र अच्छा लगता हैं ll

 

चकाचौंध रोशनी में ओ अपने बस्ते हो वहां l

भीड़भाड़ है फ़िर भी मगर अच्छा लगता हैं ll

 

इन्सां भले ही कम हो लेकिन इंसानियत हो l

लोगों को जरूरत हो इधर अच्छा लगता हैं ll

 

रूह होती है चलती फिरती मशीन ना समझ l

महफिलों से हराभरा शहर अच्छा लगता हैं ll

 

कभी भी शाखें गुलों पर झुला डाल देते हैं कि l

फल और फूल वाला शजर अच्छा लगता हैं ll

३१-१०-२०२४