चेहरे पर मुस्कान जरूरी है यारो- श्याम श्रीवास्तव ramgopal bhavuk द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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चेहरे पर मुस्कान जरूरी है यारो- श्याम श्रीवास्तव

श्याम  श्रीवास्तव का कृतित्व और व्यक्तित्व

                    रामगोपाल भावुक

              मो0- 8770554097

चेहरे पर मुस्कान  जरूरी है यारो श्याम  श्रीवास्तव का पहला काव्य संग्रह है। इस डबरा नगर की साहित्यिक गोष्ठियों में वड़े ही तरुन्नुम में गाते हुए श्याम जी को देख जा सकता है। पहला गीत अपने पिता की स्मृति को अर्पित किया है।

            तलवार के मानिंद धारदार थी कलम

                 सच्चाई की इवारत लिखती रही हर दम।

            पंक्तियाँ पढ़कर आपके पिता श्री की रचनायें पढ़ने को उत्सुक हो उठा हूँ। निश्चय ही वे मेरी इस इच्छा को अवश्य  ही पूर्ण करेंगे।

      संकलन में बावन गीत चौदह गजलें पांच कवितायें, बारह विभिन्न छन्द तथा अठारह बुन्देली रचनायें सम्म्लिित की गई है।  संग्रह में सभी तरह की रचनाओं के ताने- वाने से एक घोंषला तैयार किया गया है। जिसे परिवार के साथ इसे पढ़ने का आनन्द लिया जा सकता है।

             कवि नहीं चाहता कि यहां न पनपे आतंकवाद यहाँ । आपकी कविताओं में आपके कृतित्व और व्यक्तित्व की पूरी झलक देखने को मिलती है।

            सनम कदम से कदम मिलाने आया हूँ

            देश प्रेम का दीप जलाने आया हूँ।

            कवि का आत्मविष्वास है-

      बाधायें संकट तो आते जाते हैं,

      चेहरे पर मुस्कान  जरूरी है यारो।

मुझे उनका यह द्रष्टिकोण बहुत प्यारा लगता है-

उगते सूरज का बंदन सब करते हैं

ढलते सूरज का भी मान जरूरी है।

 आपने पंचमहल क्षेत्र को साहित्य के क्षेत्र में बुन्देली के रंग में डाला है- जन्म  भूमि दतिया होने से आप बुन्देली के एक अच्छे हस्ताक्षर है। आपने ‘महक बुन्देली  की ’में बुन्देली माटी का गौरव  गान किया है। आपकी बुन्देली की रचना में आलसी नारी का चित्रण देखें-

            मोरेपैजना गिरवी धराय दइयो।

            समाज की कुरीतियों पर भी कलम चली है-

कर दो युवा दहेज बिन, शादी का तुम आगाज

ये युवतियां करेंगी,हमेशा सनम पे नाज।

तोडो कुरीति यों को और नई मिशाल  दो,

कमजोर न समझो इन्हें, इनसे बने समाज।।

  आप हिन्दी और बुन्देली का अन्तर इस प्रकार रेखाकिंत करते हैं-

            बुन्देली हिन्दी में कोनउ जादा अंतर नइयाँ।

        हरे- हरे हिन्दी चढ़ बैठी बुन्देली की कइंयाँ।।

            आपके गीत बिना प्रतिकों का सहज सरल चेहरा लिये दर्पण में झाँकते दिखे-    

      भारत की शान  बढ़े हरदम,

      जग में लहराए सदा परचम।

      न पनपे आतंकवाद यहाँ,

      न जातिवाद पर हो मातम।

      यह ज्ञान की ज्योति जलाना है......

 

                                              इसी तरह कविताओं में भी आपका डंडा बोलता है -

 ये आदमी, फर्ज को नहीं,

सिर्फ नोटों पहचानता है।

ये रोज जुगाड़ में दौड़ता है,

न्ये नये पत्ते खोलता है, डंडा बोलता है।

                                     अब हम आपके मुक्तक पर भी दृष्टि डालें-

प्रायवेट स्कूल में, नहीं पढ़ाई होत।

टीचर घर ट्यूसन करे, यह इनकम का स्त्रोत।।

यह इनकम का स्त्रोत, मजे में गुजरे जीवन।

फूल खलें खुषियों के महके घर - आँगन।

कहें सनम कविराय, वसूलें मोटे पैसे।

अभिभावक की खाल उधेडें टीचर ऐसे।।

                                         इसी तरह आसपके दोहों पर भी एक दृष्टि डालें-

अब अपनों का भी मिलन, लगता हमको भार।

बढ़ती जाती दूरियाँ, रहा नहीं बारे प्यार।।

                                    नगर के प्रसिद्ध कवि धीरेन्द्र धीर ने उनका मूल्यांकन इस तरह किया है-

      भीड़ में सबसे अलग साथी हमारा,

      चतुर अलबेला सजग साथी हमारा।

      नयन  हँसते होंठ हरदम मुस्कुरायें,

      ‘धीर’ सोने सा सुभग साथी हमारा।।

            डॉ. भगवान स्वरूप चैतन्य जी लिखते हैं-भविष्य की संभावनाओं के इस मधुर गीतकार के छंदों में कलात्मक दृष्टि से भले ही अभी कसावट कुछ कम है, लेकिन रचनाओं का कथ्य और मौलिक सोच उसे साहित्य की उत्कृष्टता प्रदान करता है।

              आप साहित्य की सेबा में सतत् लगे रहें निश्चय  ही लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे। इसी आशा  में-भावुक

कृति का नाम- चेहरे पर मुस्कान  जरूरी है यारो

रचनाकार- ’श्याम  श्रीवास्तव‘सनम’

प्रकाषक-  बुन्देली साहित्य एवं संस्कृति परिषद डबरा म.प्र.

मूल्य-200रु मात्र

 वर्ष-2019

समीक्षक- रामगोपाल भावुक मो0- 9425715707, 8770554097