लाइन हाजिर लघुकथा संग्रह पर भावुक दृष्टि
समीक्षक रामगोपाल भावुक
किस्सा कोताह पत्रिका ने लधुकथा प्रतियोगिता आयेजित की थी। जिसमें माताप्रसाद शुक्ल जी को एक टिकिट बहादुर गढ़ लघुकथा र द्धितीय पुरस्कार प्रदान किया गया है। यह लघुकथा पढ़कर लगा शुक्ल जी की 2018 में प्रकाशित लघुकथा संग्रह पर दृष्टि डाली जाये। यह कृति शुक्लजी ने मुझे 24.10.23 को प्रदान की थी। उनकी लघुकथा पुरस्कृत होते ही उनके लघुकथा संग्रह के पन्ने पलटने लगा। इसमें पिच्यासी लघुकथायें संग्रहीत है।
इसमें छह विद्धानों के अभिमत प्रकाशित किये गये है। जिस कृति की रचनाये बोलतीं हो उसमें इतने सारे पन्ने अभिमत के खर्च करने की आवष्यकता नहीं हैं। डॉ सुरेस सम्राट लिखते हैं-‘ऐसा कोई अनुभव जो उन्हें काटता है या ऐसी कोई प्रेरणा जो उनमें कुछ रचती है, वे उसे बिना किसी डर भय के लधुकथा में उतार देते हैं
आज की सीता में पति अपनी कमाऊ पत्नी को उसकी पसन्द की पत्रिका नहीं खरीदने देता है, दुकानदार उस पत्रिका को उन्हें इसलिये भेंट में नहीं दे पाता कि पति देव सन्देह करके उसे सीता की तरह घर से निर्वासित न कर दें।
इसी तरह आपकी अधिकांश लधुकथाओं में कामरेड, गिरगिट, अठ्ठनी छाप आदि समाज पर तीखा प्रहार करते हुए समाधान प्रस्तुत करतीं जातीं है।
लाइन हाजिर में टी.आई साहब पान खाने के शौकीन होते है, नये नये ट्रान्सफर होकर आये हवालदार से वे पान मंगा लेते हैं। वह टी.आई साहब से पान के पैसे मांग लेता है ,इस गुस्ताखी की उसे सजा मिलती कि वे उसे लाइन हाजिर कर दिया जाता हैं।
आपका कामरेड राम स्वरूप व्यवस्था का हिस्सा बन जाता है। जब दादागिरी करने वाले राज नेता बन जाते हैं किन्तु जब उनके पुराने कारनामे खुलते हैं तो उन्हें मंत्री पद से हाथ धोना पड़ता है।
वर्दी के रुतवे में ,डी एसपी साहब की माँ के पिंडदान कराने वाला पंडित जब अपनी दीक्षणा के लिये अडता है तो वे उसे अपनी वर्दी का रुतवा दिखाकर दक्षिणा में कटौती कर लेते हैं।
बसूली में भिखारियों से की जाने वाली वसूली है। फर्ज के निर्वाह में पुलिस वाले कुछ भी करें, सब उनके अधिकार में है।
संकलन के पन्ने पलटते समय मुहुर्त लघुकथा पढ़ी। लघुकथा तो अच्छी है लेकिन इसका नामकरण मुहुर्त सार्थक नहीं लगा।
कुछ लघुकथायें अपने तीखेपन के कारण पाठक के जहन में बनी रहतीं है जैसे कामरेड, टेढ़ी उँगुली, मैं पुलिस वाला जेबकतरी आदि
आपकी कुछ लधुकथायें तो सत्य घटना के आधार पर आधारित हैं जैसे डाकूका धन, इस क्षेत्र के प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान डॉ. शुकरत्न उपाध्याय के जीवन पर आधारित हैं। इसी तरह घुटना पेट को नहीं झुकता इस क्षेत्र के प्रसिद्ध उपन्यासकार महेन्द्र कुमार मुकुल जी का जीवन संस्मारण ही है।
इस तरह जाने अनजाने अनेक संस्मरण लधुकथा के माध्यम से इसमें स्थान पा गये हैं।
आपने संग्रह के बीच में डॉ. तारिक असलम ‘तस्नीम की लघुकथा की परिभाषा भी दी है- किसी अन्य विधा की अपेक्षा लघुकथा में मारक क्षमता अधिक है, चाहे उसमें चमत्कार या व्यंग्य समाहित हो या नहीं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
शायद इसी परिभाषा की नब्ज पकड़कर इस संग्रह को अन्तिम रूप दिया होगा। आपकी सारी लघुकथायें सच्चे घटनाओं पर आधरित हैं इसी कारण वे लधुकथाओं की अपेक्षा संस्मरण अधिक लगीं हैं।
इन सब सत्य घटनाओं पर आधारित लघुकथाओं को सामने रखकर माताप्रसाद शुक्ल जी समाज में परिवर्तन लाना चाहते हैं। सच्चे अनुभव प्रमाण का काम करते हुए चलते हैं। इससे पाठक पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है।
आपने इन लधुकथाओं में हिन्दी के अलावा उर्दू तथा अंग्रेजी के शब्दों का आवश्यकता अनुसार प्रयोग किया हैं। आपकी भाषा सहज सरल होने से पाठक आसानी से इन सब लघुकथाओं से रू-ब-रू हो सकेँगे।
इस सफल लघुकथासंग्रह के लिये हार्दिक बधाई।
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लाइन हाजिर
माताप्रसाद शुक्ल
वर्ष 2018
मात्र- 200 रु.
उत्तरायण प्रकाशन लखनऊ-22602
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