में और मेरे अहसास - 112 Darshita Babubhai Shah द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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में और मेरे अहसास - 112

ख्वाइशों का समंदर बहुत दूर तक फेला हुआ हैं l

एक आरज़ू ने ज़मीं से लेकर अर्श को छुआ हैं ll

 

एक हुस्न है जिसने सबकुछ आज लुटा हुआ है l

देख जज़्बातों का जहाज बीच समंदर में डुबा हैं ll

 

चहरे पर ज़ख्म दिखते नहीं है वर्ना रो देते आप l

कसम से मुकम्मल मोहब्बत के नाम पर लुटा हैं ll

 

नांव किनारों पर ही खिसका करती है सभल जा l

जिस नाविक पर भरोसा था वो यक़ीन टुटा हैं ll

 

जिंदगी का मुक़द्दर सफ़र दर सफ़र करती रहती l

किस तरह कहे कैसे कहा क्यूँ कर कारवाँ छुटा हैं ll

१-१०-२०२४ 

 

खुदा से अकेले में गुफ़्तगू कर ली l

खुशी की जिगर में जुस्तजू कर ली ll

 

कई दिनों से गली से गुज़रे नहीं तो l

एक पल दीदार की आरज़ू कर ली ll

 

किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता l

आज जीने की कोशिश चालू कर ली ll

 

इश्क़ ए हकीकी को शेरों शायरी में l

पढ़कर महफिल अपने बाजू कर ली ll

 

जुगनुओं के साथ रात रोशन कर ली l 

सखी बाकी बची उम्र बसर यू कर ली ll

२-१०-२०२४ 

 

हौसलों का फेसला ग़लत नहीं हो सकता l

सदा ही जोश के साथ जुनून को है भरता ll

 

ख्वाइशों और तमन्ना की पूरी गुंजाइश हो l

जहां पर कोई उम्मीद हो वहाँ पर सरता ll

 

खुद के भीतर सकारात्मकता के भाव से l

जीस्त से नींद ओ आलस को भी हरता ll

 

ध्येय कार्य मुकम्मल पूरा करने के लिए l

समय के बहाव के साथ साथ तरता ll

 

जीते जी अरमानो को पाने के वास्ते तो l

चाहे शरीर से खून और पसीना झरता ll

३-१०-२०२४ 

 

 

सर्द सर्द सा दर्द सीने में उठ रहा हैं l

इश्क़ के होशो हवास को लुट रहा हैं ll

 

हुस्न का महफिल में नजरें चुराना l

जिगर में खंजर की तरह चुभ रहा हैं ll

 

ख़ामोशी कुछ ज़्यादा ही लम्बी चली l

लगता है हाथों से कुछ छुट रहा हैं ll

 

निगाहें मिलाने का हौसला ही नहीं l

दिल में चोर है इस लिए छुप रहा हैं ll

 

वरक़ दर वरक़ दास्तान छोड़ गये l

राझ की बातों से पर्दा खुल रहा हैं ll

४-१०-२०२४ 

 

मैं शर्मिंदा हूँ कि हाल ए दिल बता न सका l

अपनी सची मोहब्बत को भी जता न सका ll 

 

राह ए जिंदगी में हम कदंब बनने के सखी l

जो जो वादे किये थे वो भी निभा न सका ll

 

जब सब से ज्यादा जरूरत थी उस वक्त l

दो घड़ी के लिए साथ भी बिता न सका ll 

 

खुद सहते रहे जुदाई के लम्हों की कसक l

जिगर के नासूर ज़ख्म भी दिखा न सका ll

 

एक तरफ़ा मोहब्बत की रोशनी में जीते रहे l

हुस्न में प्यार की लौ को भी जगा न सका ll

५-१०-२०२४ 

 

खुद ही खुद के बनाये हुए बंधन में बंधा नहीं होता l

तो जिन्दगी में शायद इतना सारा भी नहीं बुरा होता ll

 

में औ मेरा कारवाँ युही धुन में जीते रहे ताउम्र नहीं तो l

इतनी बड़ी क़ायनात में कहने को कोई तो सगा होता ll

 

ख़ुद की बनाई हुई दुनिया में उलझे रहे रात ओ 

दिन l

ग़र किसीको अपनाया होता तो गुलशन हरा होता ll

 

परिवर्तन ओ बदलाव संसार का नियम है तो सुनो l

वक्त के साथ चलते रहते तो हर लम्हा नया होता ll

 

न जिन्दगी का लुफ्त उठा सके ना चैन से जी सके l

गर खुद को खुद ही से आज़ाद रखते तो क्या 

होता?

६-१०-२०२४ 

 

खुद के हौसलों ने शक्ति का संचार कर दिया है l

जोशो जुनून से जीने के जज़्बे को भर दिया है ll

 

भीतर से सकारात्मक का झरना बहाकर सदा l

उफान में भी क़ायनातके सागर को तर दिया है ll

 

बिना रूककर बिना थककर लगातार कोशिश की l

सालों की मेहनत का रूह अफजा अब दिया है ll

 

खुद के बलबुते पर मंज़िल की और आगे बढ़े कि l

आज कोहिनूर सा बेहद ही अमूल्य पल दिया है ll

 

सत्कर्मो का हमेशा से उपरवाला फ़ल देता है तो l

ये जो साहबीं है अच्छे कर्मों का फल दिया है ll

७-१०-२०२४ 

 

तन्हाई की पतझड़ में चाहत की बहार हो l

निगाहें खुलते ही प्यारे दीदार से सवार हो ll

 

तन्हा रहने के इतने आदि हो चुके के ज़ोर से l

दिल को भीतर से झंझना दे एसी पुकार हो ll

 

मोहब्बत की पुरनुमा बारिश हो चारौ और से l

मन समर्पित कर दे इस तरह की बुहार हो ll

 

इंतजार कल की दास्ताँ आज दीदार चाहिये l

इतने नादाँ हो आहट ना सुने ये कमाल हो ll

 

ख्वाइशे तो बहुत है एक-दूजे से मिलने की l

सखी यार दोस्तों की महफिल में धमाल हो ll

८-१०-२०२४ 

 

इश्क़ का मरीज़ ना ईलाज होता है l

ताउम्र चैन और सुकून को खोता है ll

 

मुकम्मल मोहब्बत में पूरा डूबकर l

कभी हँसता तो कभी बहुत रोता है ll

 

लम्हा भर की ख़ुशी पाने के लिए वो l

नये अरमानो को साथ ले सोता है ll

 

एक दिन इश्क़ का अंजाम मिलेगा यही l

भीतर ही भीतर ख्वाइशों को बोता है ll

 

किसीके कंधों का सहारा नहीं चाहता l

तो खुद के आंसुओं का बोझ ढोता है ll

९-१०-२०२४ 

 

जुल्म पर जुल्म सहते गये चुप कैसे रहें?

समय के साथ बहते गये चुप कैसे रहें?

 

नाइंसाफी के सामने आवाज़ ना उठाई l

भीतर ही भीतर दहते गये चुप कैसे रहें?

 

रोज अपनों के दिये गये ज़ख्म सहकर l

खामोशी से बोझ ढहते गये चुप कैसे रहें?

 

हमेशा चहरे पर मुस्कराहट सजाये रखीं l

मुखौटे का चोला पहते गये चुप कैसे रहें?

 

जो भी मिले अपना मतलब निकाल चले l

संसार सागर में तहते गये चुप कैसे रहें?

 

2

 

लाइलाज दर्द देते ही जाने का शुक्रिया l

घर से शा घर तक लाने का शुक्रिया ll

 

जीते जी तो वक्त ना दिया मुलाकात का l

आखरी दीदार के लिए आने का शुक्रिया ll

 

बिना बात किये चल दिए तो चुप कैसे रहे? 

आँखों से अश्कों के संग गिराने का शुक्रिया ll

 

मौत को गले लगाया तो दौड़कर आए और l

दुनिया के सामने गले से लगाने का शुक्रिया ll

 

दो जज्बातों को सुकून से जीने ना दिया आज l

ताउम्र की जुदाई के लिए जमाने का शुक्रिया ll

१०-१०-२०२४ 

 

जो चाहिए था वो कभी भी मिला नहीं उसका गिला नहीं ll

मोहब्बत के बाग में खूबसूरत हसीन फूल खिला नहीं ll

 

जो मिला है उसका ख़ुदा को शुक्रगुजार करते रहेगे l

शिकायत कैसी जब किस्मत में ना था सो मिला नहीं ll

 

प्यार के सदके का महलम आया है साथ दुआओं के l  

लाख कोशिशों के बावजूद भी गहरा ज़ख्म सिला नहीं ll

 

मंदिर, मस्जिद कोई चौखट नहीं छोड़ी जहाँ माथा ना टेका l

दिनरात एक कर दिये फ़िर भी नसीब का पत्ता हिला नहीं ll

 

आनेवाला हर लम्हा हर बार एक नई चुनौती लेकर आया l

कोई एक लम्हा नहीं जिस लम्हें पर जिगर छिला नहीं ll

११-१०-२०२४ 

 

जाम ए मुहब्बत चढ़ती जा रही हैं धीरे धीरे l

दिल की धड़कन बढ़ती जा रही हैं धीरे धीरे ll

 

जहाँ जा रहे हो वहाँ दुनिया से छुपाकर l

निगाहें साथ चलती जा रही हैं धीरे धीरे ll

 

कैसे भी हो किस तरह से बस आ जाओ l

सुहानी शाम ढलती जा रही हैं धीरे धीरे ll

 

दिल ने तमन्ना की फ़िर एक बार मिलने की l

दिनबदिन चाहत पलती जा रही हैं धीरे धीरे ll

 

तलब बढ़ती जा रही बारहा बात करने की l

देखने की लत बनती जा रही हैं धीरे धीरे ll

१२-१०-२०२४ 

 

बैठे बैठाएं यू तो कभी भी जहाँ नहीं मिलता l

बिना उड़ान के तो कभी आसमाँ नहीं मिलता ll

 

 

 

 

जबसे खामोश अजनबीसे राबता शुरू हुआ हैं l

बारहा मुलाकातों का सिलसिला शुरू हुआ हैं ll

 

महफिल में इत्तफाक से निगाहें चार हुई है l

रोज ब रोज का आमनासामना शुरू हुआ हैं ll

 

इशारों इशारों में बाते होती रहती है आज़ कल l

जबसे हसीन चहरा देखा लिखना शुरू हुआ हैं ll

 

फूल देखकर दो चार लम्हा मुस्कुरा क्या दिये?

ज़माने का रंगढंग साफ दिखना शुरू हुआ हैं ll

 

नाजुक रिश्ते को ज़माने की नजरों से बचाने l

हर मंदिर मस्जिद पर झुकना शुरू हुआ हैं ll

 

हल्की सी हसीन के पीछे इक़रार दिखा और l

अब उसकी गली से गुजरना शुरू हुआ हैं ll

१४-१०-२०२४ 

 

जिंदगी के सफ़र में खुशियों की पोटली साथ रखने से आसानी होती हैं l

चैन और सुकूं के लिए दिल की बात मुहँ पर कहने से आसानी होती हैं ll

 

सुनो वक्त को ठुकराने वालों को वक्त जल्द ही सम्पूर्ण नष्ट कर देता है l

वक्त का तकाज़ा है कि वक्त की रफ़्तार के संग बहने से आसानी होती हैं ll

 

ज़माना है उसका काम है कहना तो वो कुछ न कुछ कहेगा ही l

ज़माने के कठोर वचन को चुपचाप सहने से आसानी होती हैं ll

 

कई बार हमारी राय से कोई फ़र्क न पड़ने वाला हो वहाँ पर l

बाजी मुकम्मल हाथ में न हो खामोशी पहने से आसानी होती हैं ll

 

जिंदगी के सफ़र के हर मोड़ का एक महत्वपूर्ण अंदाज़ हैं तो बस l

गरिमा और शान से उम्र के साथ तहने से आसानी होती हैं ll

 

खुद की सोच, खुद का अभिमान, खुद के विकास लिए भी l

नये लोग, नये रिवाजों, नया ज़माना ग्रहने से आसानी होती हैं ll

१५-१०-२०२४ 

 

खुशियों की पोटली का तोहफ़ा देते रहना चाहिए l

प्यार हैं तो इजहार ए मोहब्बत करते रहना चाहिए ll

 

ज़माने भर में ढूढ़ने से चंद लम्हें ख़ुशी के मिलते हैं l

खूबसूरत हसीन फूलों से दामन भरते रहना चाहिए ll

 

दिल के दरिया में उठता रहता है उर्मिओं का सैलाब l

हुस्न के प्यार की शीतल सरिता में सरते रहना चाहिए ll

 

बड़ी कठिन होती है जिन्दगी की राहगुज़र तो आगे बढ़ने l

उम्र की सीढ़ियां हमकदम के साथ चढ़ते रहना चाहिए ll

 

तमाम कामयाबी अधूरी रह जाती है ग़र कोई साथ न हो l

एकदूसरे का हाथमें हाथ पकड़कर पलते रहना चाहिए ll

१५-१०-२०२४