मशरूफियत SARWAT FATMI द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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मशरूफियत

मशरूफियत 

मशरूफियत इस कदर होगयी हैँ 
जैसे कभी मैं वो थी ही नहीं 

अपनों के बिच रह कर 
खुद को तन्हा पाया 

अकेलेपन को अपना दोस्त बना लिया 
खुद को मशरूफ रख 
खुद मे खुशियां ढूंढ़ने लगी 

पास सब थे, फिर भी एक खालीपन सा था 
बात करने के लिए मेरा एक आईना था 

क्यों सुनु किसी की, क्यों करू किसी की परवा 
दिखावाये की जिंदगी क्यू हैँ जीनी 
एक ख्वाहिश थी, जो कभी पूरी हुयी ही नहीं 
एक साथ ही तो माँगा था 
पर यह बोल कर दूर कर दिया गया 
मेरे पास वक़्त नहीं 

आज मेरे पास वक़्त नहीं तो क्या गलत किया 
तुम्हे सही करते करते खुद को भूलती गईं 
खुद मे जब कुछ बन गए 
तो मशरूफ हूँ का ताना सुनने लगी 

कभी हाथ थामे चलने को तैयार थे 
अब पास आने से भी हिचकिचाते हो 
सपने तुमने दिखाए 
पूरा करने का वक़्त आया तो मशरूफियत का बहाना सुनने को मिल गया 
इतने के बाद भी अगर मैंने तुम्हे मशरूफ हु कह दिया 
तो छोड़ने का ताना सुनने को मिल गया 

नहीं जीनी मुझे ये तुम्हारी शर्तो वाली जिंदगी 
जिसमे मुझे सब कुछ खोनी पड़े 
तुम्हारी हमसफर बनने को थी 
पर तुमने तो मुझे एक टुटा गिलास समझ लिया 
जनाब, इश्क़ किया हैँ मैंने तुमसे 
जो शायद तुम समझ ना सको 

लिखने बैठु अगर खुद की कहानी 
तो शायद शब्द कम पड़ जाए 

मेरे अश्क़ तुम्हे अब पानी सा लगता हैँ 
कभी इन आँखों में आंशू आने नहीं देते थे 

दिल भारी भारी सा लगता हैँ 
काश..... कोई सुनने को मेरे पास हो 

किस्से कहु अपने दिल की बात 
तुमने तो दूर ही कर दिया  मुझे अपनों से 

रोती हूँ भीलगती हूँ 
पर मेरी आवाज़ सुनने वाला कोई नहीं 

लोगो का क्या? बातें बस बनवालो 
जिंदगी जी रही हूँ या काट रही हूँ 
कहाँ किसी को ये खबर हैँ 
अब छोड़ो, क्या शिकायत करू 
 अजीब लोग हैं दुनिया में
मैं यह अक्सर सुना करती थी
एहसास तो तब हुआ
जब मोहब्बत और इजाजत देने पर
उसी की नजर में खुद को ज़लील होता हुआ देखा 
नहीं करनी ऐसी मोहब्बत
जहाँ अक्सर मुझे खुद क़ो साबित करनी पड़े 
तो कभी....
खुद के नज़रो में गिरता हुआ देखूँ 

पहले खुद के लिए कहती थी 
कभी तुम पर गुरुर था 
अब हो नहीं 
सही कहाँ हैँ लोगो ने गुरुर एक दिन टूट ही जाता हैँ 


हमारे दरमयान कोई नहीं 
फिर भी तुम्हारी मशरूफियत ने मुझे 
अकेला कर दिया 

तुमने सही कहाँ था
मैं तुम्हे बहुत कुछ सिखाऊंगा 
तुम्हे हर चीज कैसे पता होती थी??

खुद क़ो इतना मशरूफ कर दिया 
के तुम्हारी यादें मुझे परेशान ना करें 
पर कम्बखत याद आयी ही जाती हैँ 

तुमने कितने प्यार से मुझे 
अपने लोगो से ही अलग कर दिया 

एक उलझी हुई इंसान बना दिया तुमने
खुद की ही नजरों में गुनहगार बना दिया तुमने
एक हंसता हुआ इंसान को जिंदगी भर का गम दे दिया तूमने
बस यूं ही जिंदगी के सफर में चली जा रही हूं मैं
खुद के लोगों के नज़रो में गुनेहगार बना दिया तुमने  
बस......

 अपने ही ख्यालों में खोई रहती हूं
मंजिल कहां है?? पता नहीं
और तुमने मुझे मसरूफियत का बहाना देदिया 
 जैसी भी हो जिंदगी मेरी
खुद को अपना लिया मैंने

 अपनी खूबियां अपने कर्मियों को
अपनी ताकत बनाकर आगे खुद को कर लिया मैंने
जो गुजर गया उसे भूल कर अपने आज को अपना लिया मैंने अपने आंसुओं अपने दुख को अपनी ताकत बना लिया मैंने खुद को मसरूफ कर जिंदगी को जीना सीख लिया मैंने 

फिर क्यों तुम मेरी जिंदगी में वापस हवा की तरह आ रहे हो
नहीं चाहिए तुम्हारी मशरूफियत भरी जिंदगी
जहां बात -बात पर ताने मिले
मसरूफियत का बहाना मिले
खुद क़ो संभाल लिया है मैंने
नहीं चाहिए मुझे तुम्हारा साथ 
तुम्हारी जिंदगी और तुम्हारी मशरूफियत भरी जिंदगी तुम्हे मुबारक 
क्यों की आज भी कही ना कही 
तुम्हारी
मशरूफियत का बहाना जो हैँ