आंखे नम हैँ
ज़ुबान लड़खड़ा रही हैँ
शायद कुछ कहना हैँ ,पर जज़्बातों ने रोक लिया ,क्यों ??? पता नहीं
जिंदगी युही चलती रहेगी और ज़स्बात मेरे दिल के किसी कोने मे दबी रह जाएगी
रातों मे तेरी यादो को याद कर के सिसकियाँ भरती हु
लगता हैँ शायद तुम आओगे,मुझे अपने बाहों मे भरोगे ,मुझे चुम्पते हुए कहोगे ,sorry jaan
पर रात युही गुज़र जाति हैँ ,ना तुम आते हो और ना तुम्हारा एहसास
एक मिट्टी आवाज़ के लिए तरस गयी हूँ
खुद को खो कर तुम से आश लगा बैठी हूँ
जब एहसास टूटा तब मालूम हुआ शायद मुझे सपना देखने का भी हक नहीं
ज़िंदगी रूठ गयी हैँ मुझसे ,क्या करु खुद से भी रूठ गयी मै,
सोचा ये रूठने का किस्सा हि ख़तम कर दू
सोचा ये रूठने का किस्सा हि खतम कर दु
पर मेरे पैर मनो ज़मीन से उठा ही नहीं
मेरे रूठ जाने से किसी को फर्क पड़ता नहीं
तो शायद जंदगी मेरी इन्तहा ले रही हैँ
अपनी respect, अपनी पहचान के लिए खुद से फीक मांगती हूँ पर वो भी नहीं मिलता मुझे
खुशियां ढूंटते ढूंटते थक गयी हूँ में
अब तो बस गहरी नींद मे सोने का मन करता हैँ
पर कोई सुलाने को तैयार नहीं
एक ऐसी चलती फिरती मूरत बन गयी हूँ
जान तो हैँ पर ज़ुबान नहीं
धड़कन तो हैँ पर जस्बत नहीं
अपने तो बहुत हैँ पर कहने को कोई नहीं
कोई नहीं कोई नहीं कहते कहते अब तो आदत सी हो गयी हैँ
अकेले मे बात करने की ,खुश रहने की ,खुद को थपकिया दे देकर सुलाने की
लोगो का सोच सोच कर ,लोगो ने मुझे ही सोच बना दिया
अब तो आलम ये हैँ के लोगो के सामने आने से गबरा जाती हूँ
सवाल तो बहुत हैँ पर जवाब कुछ भी नहीं
ऐसी ज़िंदगी से गुज़र रही हूँ में
जहा सिर्फ में ,और में ही हूँ
तेरे होने का एहसास कभी था ही नहीं मेरा
जिसके पीछे मै भगती थी वो सिर्फ एक अंधेरा था
गलती क्या थी मेरी ज़रा फुरसत से बता देना मुझे
गम इस बात की नहीं के बींच रह मे मुझे रुस्वा किया
अफ़सोस तो ये के मैंने हर बात पर यकीन कैसे किया
प्यार ,प्यार करते करते तो में खुद से प्यार करना भूल गयी
बड़ी आसानी से तुमने अपनी गलती मुझपर रख कर
रास्ता ही बदल दिया
जनाब ,इंसान हू कोई मूरत नहीं जो फर्क नहीं पड़ता
तुमसे उमीद किया रहा कभी ,शयद इसी की गलती भुकत रही हूँ मैं
तुम क्या हो ,क्या नहीं मुझे समझने ,और समझाने की ज़रूरत नहीं
मुझे फर्क नहीं पड़ता तुम्हारी इस माफ़ी की
जो दिन तुमने मुझे दिखाया वो में भूल नहीं सकती
हाँ, एक चीज़ भूल सकती हू वो तुम्हे
मेरे आंशू,मेरी तड़प,मेरा अकेलापन,मेरे जस्बात,मेरे हालत,मेरे रातो की नींद ,मेरा खुद की थप्की
माफ़ नहीं करूंगी तुझे, इन सब चीज़ो के लिए
ज़रूरत थी में तुम्हारी, या तुम्हारी ज़िम्मेदारी
आज भी इन्ही सवालों को ढूंढती हू
तेरा तो सब कुछ था ,मेरा तो सिर्फ अपना कहने को तुम ही थे
तुम थे तो में थी ,पर तुम रिस्ते मे कभी थे ही नही ,सिर्फ मै और मैं थी
माफ़ करना जनाब,अब हिम्मत नहीं के तुम्हे बर्दास्त करु ,
तुमसे बातें करु या
तुमसे कोई रिस्ता रखू
बड़ी कम उम्र मे ज़िंदगी ने बहुत अच्छी और प्यारी सिख दे गयी
जो भूले ही भूली नहीं जाती मुझसे।