घर की सजावट इशरत हिदायत ख़ान द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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घर की सजावट

घर की सजावट

- इशरत हिदायत ख़ान

हम लोग मण्डी कुछ ज़्यादा ही जल्दी पहुँच गए थे, जहाँ से पोलिंग-पार्टी प्रस्थान करने वाली थीं। अभी हमारी पार्टी के दूसरे तीन मतदान अधिकारी भी नही पहुँचे थे। पिछली मीटिंग में तय तो यह हुआ था कि दस बजे तक प्रत्येक दशा में मण्डी पहुँच जायेंगे, जो पोलिंग पार्टी प्रस्थान स्थल था।यही स्थिति जाहिद बाबू की पार्टी की थी।उनकी पीर्टी के तो पीठासीन अधिकारी ही अभी तक नदारत थे। पूरे मण्डी में कहीं भी कोई ऐसी जगह नही जहाँ पर कुछ समय आराम से बैठ कर पार्टी के दूसरे सदस्यों की प्रतीक्षा की जा सकती।मई के महीने की चिलचिलाती धूप और शिद्दत की गर्मी ने हाल बेहाल किया हुआ था। ऊपर से पीठ पर लदा बैग और हाथ में पकड़ा गया लिफाफों और दूसरे प्रारूप, पोलिंग बूथ पर काम आने वाले फार्म तथा अन्य सामग्री का थैला।  पीठासीन अधिकारी की हस्त पुस्तिका, इवीएम मैनुअल  भी उसी थैले में था,जो सभी पीठासीन को अंतिम निर्वाचन प्रशिक्षण में थमा दिया जाता है ताकि पीठासीन महोदय  महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर नज़र ए शानी कर सकें, पर अमूमन ऐसा होता नही है। बहुत ज़्यादा कुछ हुआ तो सांविधिक और असांविधिक आवरणों को लिख कर तैयार कर लिया जाता है कि किस लिफाफे में क्या सामग्री भरी जानी है। गर्मी की वजह से यदि शरीर में कहीं खुजली भी होने लगे तो खुजाने के लिए भी कोई हाथ फ्री नही था। मुझे सचमुच बड़ी उलझन और ऊब हो रही थी। तबियत झुंझला रही थी। ऊपर से पार्टी के मतदान अधिकारी प्रथम,द्वितीय, और तृतीय सब नदारद जो एक अलग खीज पैदा कर रहे थे। कई बार फोन लगाया लेकिन पाँच हजार से भी ज्यादा की भीड़-भाड़ के कारण मण्डी स्थल में फोन नेटवर्क बिजी जा रहा था। हताश हो कर यह सोंच कर जी को तसल्ली दे लेता कि बेचारों को दूर से आना है।संभव है समय पर परिवहन का कोई साधन न मिल पाया हो।

अभी मैं यह सोच ही रहा था कि सहसा मेरे फोन की बेल बज उठी। पल्लवी का फोन था, जो मतदान अधिकारी प्रथम पर लगी थीं। पल्लवी जी एक दूरस्थ ब्लॉक में प्राथमिक विद्यालय में सहायक शिक्षिका थीं। मैंने फोन रिसीव किया। पूछा, "अभी आप कहाँ पर हो?"

" सर,अभी हम चालीस किलोमीटर दूर हैं। सर, अपने वाहन से हैं,जल्दी ही पहुँच जायेंगे।"

"आपने बहुत देर कर दी अध्यापिका जी। ख़ैर आईए। हम यहीं काउंटर पर प्रतीक्षा कर रहे हैं, जहाँ पर संबंधित बूथ की इवीएम और बैलेट पेपर मिल रहे हैं।"

" जी सर, ठीक है। दरअसल मेरे बच्चे को फीवर आ गया था। इस लिए उसकी दवा दिलाने के बाद ही निकल सके,सर।"

"कोई बात नही, आओ,आराम से। अभी हमने सामग्री नही ली है। जब सभी आ जायेंगे। तब ही लेंगे।" मैंने कहा और फोन बंद कर दिया।

मैं फोन पर बात कर ही रहा था कि पार्टी में तृतीय नंबर पर लगा अनुचर ईश्वराधीन आ पहुँचा था। उसको मीटिंग में ही मिलने का स्थान बता दिया था। इस लिए वह सीधा हमारे पास पहुँच गया था।

बाबू जी कहने लगे, "बारह बजे से पहले कोई भी वाहन रवाना होने वाला नही। यहीं पास में मेरे फुफ्फा का मकान है, वहाँ चलते हैं। मुँह-हाथ धुल लेंगे। चाय-वाय पियेंगे और थोड़ा सुस्ता भी लेंगे।" चूँकि बाबू जी की पार्टी के दो सदस्य आ चुके थे और उन्होंने काउंटर से सारी सामग्री प्राप्त कर ली थी। अब उन्हें हराहटी सूझ रही थी। 

मेरी तो अभी पूरी पार्टी भी नही आ सकी। ऐसे इधर-उधर हो जाऊँगा तो, एफआईआर शर्तिया हो जायेगी।" मैंने अपनी समस्या बताई। 

"ये आ तो गए हैं। सामान ले कर इनको कहीं एक किनारे टीन सेड में बिठा दो।" बाबू जी ने चुटकी बजाते मेरी असमर्थता का हल कर दिया था। फिर मैंने वैसा ही किया।

"कहीं टीन सेड में बिठाने से तो अच्छा है कि पार्टी से संबंधित वाहन में ही सारा सामान पहुँचा दिया जाय।" मैंने कहा। जाहिद साहब की भी इस पर सहमति बन गई। कन्ट्रोल यूनिट, वीवीपेट और वैलेट यूनिट बस तक ले जाने में ही हम दो व्यक्ति पसीना- पसीना हो गए। मेरा पूरा चेहरा तेज धूप और गर्मी की वजह से चिपचिपा हो रहा था। मण्डी में निर्वाचन डयूटी में जो भी लोग लगे थे, सबका बुरा हाल था। अव्यवस्था ऐसी कि अफरातफरी का माहौल बना हुआ था। लोग धूप और गर्मी से बेहाल हो रहे थे। हवा तो मानो सांस खींच कर ही खड़ी हो गई थी। भीड़ में जिसके भी मुंह को देखो, उसका पीतली चेहरा ताँबई हो रहा था। 

सारी सामग्री और अपना बैग बस में रखने के बाद ईश्वरादीन को रखवाली पर मुस्तैद कर दिया और बाबू जी से  उनके फूफा जी के यहाँ चलने का संकेत किया। "ये तो ठीक ही है। यहाँ मण्डी की धूप और सड़ी गर्मी से थोड़ी तो राहत मिलेगी।"
और फिर मैं जाहिद बाबू के पीछे-पीछे हो लिया।
फूफा जी का मकान क्या बल्कि एक आलीशान कोठी थी। मैं तो बस टकटकी बाँधे देखता ही रह गया। बेशकीमती फर्नीचर, सजावट, साफ-सफ्फाफ दीवारों और छतों पर निहायत खूबसूरत पीओपी। दरवाजों-खिड़कियों पर चीड़ और सागवान की बेशकीमती लकड़ी के दिलहेदार पल्ले। घर की हर चीज कुछ इस अंदाज से रखी थी। जैसे उससे मुनासिब दूसरी जगह हो ही नही सकती है। बेड पर बिछी चादरों पर सलवटों का नामोनिशान तक नही।
हम जिस बड़े से हाल में आराम फरमा थे। उसके सामने के कमरे का दरवाजा खुला था। वह शायद बच्चों का कमरा था क्योंकि उसकी दीवारों पर बाल मनोभावों को प्रदर्शित करती बड़ी सुन्दर सी पेंटिंग बनी हुई थी।बड़े से शोकेस में तरह-तरह के खेल-खिलौने सजे थे। पूरे घर में गंदगी और वस्तुओं का बिखराव तो शायद खोजने पर भी मिलना संभव नही था।
मुझे तो घर की साज-सज्जा देख-देख कर घोर आश्चर्य हो रहा था। मेरे मुँह से अनायास ही निकल पड़ा, " फुफ्फा जी के यहाँ चीजें कितने सलीके से रखी हैं। आम तौर पर घरों में जैसे चीजें बिखरी रहती हैं, वह बात तो यहाँ बिलकुल भी नही है।"
मेरी बात सुनकर बाबू जी के बूढ़े फुफ्फा जी अपनी जगह से उठकर मेरे समीप बेड के पैताने आ बैठे और कहने लगे, "मास्टर साहब, मेरा बेटा चार्टेड अकाउन्टेंट है और बहू महारानी चिल्ड्रेन एकेडेमी में प्रिंसिपल है। सुबह दोनो अपने-अपने काम पर निकल जाते हैं। आप यह जो घर की सजावट और कायदा-करीना देख रहे हैं। इसकी वजह यह है कि घर में गंदगी और चीज़ों को फैलाने वाला कोई नही है!" कहते-कहते फुफ्फा जी रूआंसे हो आए और मेरे पैरों पर गर्म-गर्म पानी की दो बूँदें टपक पड़ीं।
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- इशरत हिदायत ख़ान