वह भी तुम्हे याद करती है इशरत हिदायत ख़ान द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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वह भी तुम्हे याद करती है

नमस्ते, गुलाबो!
'कौन गुलाबो...? आज फिर एक नया नाम।'
'जी आदत से मजबूर हूँ, दोस्त! '
'लेकिन इस गुलाबो को असलियत में देखोगे तो, सुनहरी कल्पनाओं के शीश महल भुरभुरा कर ढह जायेंगे।
"हाँ... ऐसा क्या? "
"चेहरे पर इतने पिम्पल हैं।"
"झूठी कहीं की। मुझे धुधंली सी शक्ल याद है। जब तुमने डरते- डरते अपनी पिक सेंड की थी। फिर तुरंत हटा ली थी। उसमें तो चन्द्रमुखी लग रही थीं।वह क्या किसी दूसरे की थी? "
"उफ्फ..! फिर एक नया नाम? हद कर दी। "
"आदत है, जानती ही हो। वह छोड़ो। तस्वीर वाली बात बताओ? "
" वह फोटो तो, मेरी ही थी। दूसरे की क्यों दिखाऊंगी? वास्तव में वह कुछ वर्ष पहले की थी। तब सचमुच मैं स्वयं आत्ममुग्ध हो खुद को शीशे में निहारा करती थी।"
" तब तो सहपाठी भी निहारा करते होंगे? "
"हाँ, सो तो करते थे। पर मैं जिसकी ओर आँखे घूर देती थी। उसकी सिट्टी- पिट्टी गुम हो जाती थी। फिर हवा नही मिलती दोबारा। एक बार तो एक मनचले का संदेशा ही आ गया जो अक्सर मेरे घर के आस- पास मंडराता आंहे भरता था। "
"अच्छा...! फिर क्या हुआ? "
" होना क्या था। बोल दिया, अपनी शक्ल आईने में देखी है। मगर वो ऐसा बुरा नही था। जैसा बे-रूखी से झिड़क दिया था। "
" ओह.. बड़ा जुल्म ढाया! "
"क्या ब्लॉक होना चाहते हो, कर दूँ..?
" अरे बाप रे! पर साहब, यह दूसरी बार किसी पर सितम होगा। चलो जी, इस टॉपिक को यहीं क्लोज करते हैं।
" हाहा हा ह ह! ओके।"
" तुम अभी कर क्या रही हो? "
" चैटिंग आपसे। "
"अरे यार, मेरा वह मतलब नही है। "
"तब क्या मतलब है? "
"मेरा आशय यह था कि बैठी हो या लेटी हो?
" दो घंटे से तो बैठी पढ़ती ही रही थी। अधलेटी हूँ।नींद नही आ रही थी तो हिटवी पर आनलाइन आ गई।"
"मैं आ जाऊँ, तुम्हारे पास?"
" कैसे आओगे और किस लिए?"
" कल्पना की बुलबुल पर बैठ कर। तुमको लोरी सुना कर सुलाने के लिए।"
" ओहो..! तो यह वीर सावरकर की सिद्धी कब प्राप्त कर ली!? अपनी वाइफ को पप्पी लेकर झप्पी दो जा कर। यहाँ हास्टल के पतले से बेड पर इतनी जगह नही है।"
" वह ही ऐसी होती तो मानसिक कुशाग्रता को बनाए रखने के लिए तुम सी दोस्त से मिलना क्यों कर होता। उसे शायद मेरी आवश्यकता ही नही है। रिश्तेदार भी विचित्र हैं। मुझे वैवाहिक ज़िन्दगी ऐसे है जैसे पत्थरों से लदे ट्रक पर यात्रा कर रहा हूँ। पत्थरों के साथ की सफर!"
"सब भाग्य की बात है। सब कुछ किसी को कहाँ मिलता है,यार!"
" सच कहा तुमने। कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नही मिलता।"
" आज बहुत दिनों बाद आनलाइन आयी हो?"
" एग्जाम चल रहा था।"
" अच्छा, मैं इन दिनों सोचता रहा, ख़ुदांख़ास्ता तुम अस्वस्थ तो नही हो गई ं।"
"अब इतनी भी चिंता करने की आवश्यकता नही मेरी।"
" फ़िक्र तो होती ही है।"
"किस लिए, क्या लगती हूँ...?"
"हम ख़्याल। एक बात कहूँ?"
"बोलो।"
"आज एक बार फिर से दर्शन करा दीजिए अपने?"
" नहीं, कदापि नही। वो बात कहो ही न जो हो नही सकती।"
"मुझे तुम्हारी धुंधली धुंधली प्यारी शक्ल याद है। तुम सच में प्यार के काबिल हो।"
"अगर यही तुम्हारा नाम है तो मुझे सीमा नाम भी बहुत पसंद है।"
"हो सकता है यह तुम्हारा छदम नाम हो हिटवी पर।"
"मेरा नाम सचमुच ही सीमा नही है। वास्तव में मेरा नाम सिमरन ह।"
"सिमरन, राशि तो वही रही न।"
" अच्छा सिमरन, तुम हो कहाँ से? आज तक तुमने यह भी न बताया।"नाम से तो पंजाबी लगत
हो।"
"हाँ, मैं पंजाबी ही हूँ। पता जानकर क्या ही करना तुम्हें। नौकरी दे रहे हो कि सब वॉयोडाटा बताऊँ?"
"फिलहाल रहने ही दो। मुझे भी ऐसी जानने की खुलखुली नही। तुम्हें क्या लगता है। पता जान कर मैं दौड़ा दौड़ा चला आऊँग। वैसे भी मेरे पास तो पासपोर्ट भी नही है।"
" तब ऐसी बात क्यों करते हो फिर।"
"वास्तव में पंजाबी बोल कर तुमने मेरा एक पुराना जख़्म कुरेद दिया। मैं लम्हा भर को कुछ वर्ष पहले अपने गाँव की यादों में खो गया था।"
"क्यूँ , क्या हुआ था।"
"एक लड़की थी। जिसे मैं देखा करता था। वह मेरे खेतों के समीप से गुजरने वाले सर्पीले रास्ते से साईकिल से गुज़रती थी। मैं न जाने क्यूँ उसके गुजरने के समय से पहले ही अनचाहे ही खेतों के आस-पास पहुँच जाता था। शायद प्यार हो गया था मुझे उस से।"
" ओह, ऐसा क्या... सुन्दर रही होगी?"
"न नही, कुछ ख़ास भी नही। उसकी रुप रशि
में ऐसा कुछ भी नही था कि वह किसी के ध्यान को अनायास अपनी ओर आकर्षित कर लेती। गेंहुँए रंग, खड़ी नाक, काली आँखों वाली सामान्य सी लड़की थी। पर मुझे न जाने क्यूँ भली लगती थी। मैंने कभी उस से बात की और न उससे कभी मिला।"
"अहा, अच्छा। तब भी ऐसा?"
"पता नही क्यूँ, मैं उसकी ओर खिंचाव सा अनुभव करता था। हर रोज वह अपनी साईकिल से स्कूल जाती थी और मैं अपनी । मैं उसे जाते हुए कनखियों से देखता था। तब तक देखता रहता था। जब तक मेरी चिर खामोश प्रेयसी आँखों से ओझल न हो जाती।"
" कभी उस से बात की होती। हो सकता है, वह तुम्हारे बोलने की राह देखती हो। लड़कियाँ बड़ी संकोची स्वभाव की होती हैं।"
"मैं खुद भी तो बहुत शर्मीला था, यार।"
बहरहाल यह हर दिन का किस्सा था। अक्सर हम साथ साथ पाँच किलोमीटर की यात्रा करते थे। शहर पहुँच कर हमारे रास्ते अलग हो जाते थे। मेरा स्कूल शहर की सीमा शुरू होते ही वन विभाग चौकी पर था। धत् तेरे की, मैं तुम्हें वन विभाग चौकी बोल रहा हूँ। भला तुम क्या जानो मेरे नगर के बारे में।
" वह लड़की शायद सिक्खों वाले स्कूल में जाती होगी?"
"अरे.. तुम को कैसे पता?"
" मैं, मैं तो गेस कर रही हूँ क्योंकि सिक्खों में यूनिटी ज्यादा होती है। कोई सिक्खों का स्कूल रहा होगा न।
"हाँ, है न यार। नानकमत्ता पब्लिक कालेज।"
" फिर क्या हुआहुआ, दोस्त?"
" कुछ नही। वह एक वर्ष तक मेरी सहयात्री थी। फिर वह अचानक दिखना बंद हो गयी। मैं बहुत समय तक उसकी राह निहारता रहा और अंततः मायूस हो गया। मुझे नही पता कि उसके मन में क्या रहा होगा। शायद कुछ नही।
"ऐसा जरूरी भी नही।"
" दोस्त, तुमको पता है। ऐसी बातें कह कर तुम अंजाने में ही मेरे मन को आघात पहुँचा रही हो।"
"और उस लड़की पर क्या बीती होगी, उसका क्या?"
"वह जानती होगी कि मैं भी एक स्कूल जाने वाला लड़का हूँ, जो इसी रास्ते से जाता है।"
" जी, यह भी मुमकिन है।"
"यूँ हम वर्षों चलते रहे। साथ साथ। नदी के दो किनारों की तरह।"
"फिर एक समय ऐसा आया कि उसने आना जाना बंद कर दिया।
"ड्राप आउट हो गयी होगी। या शायद किसी दूसरे शहर चली गई हो। किसी दूसरे कालेज में। पता नही।"
" यार, मैं उसे आज भी नही भूला। यह अलग बात है कि उसे शायद मेरी स्मृति तक न हो।"
"इस लिए तुम्हारे पंजाबी कहने से मुझे याद हो आया।"
" क्या तुम सच में उसे याद करते हो?"
"हाँ, मैं उसे याद करता हूँ। बस याद ही तो करता हूँ!"
"वह भी तुम्हे याद करती है। मेरा विश्वास है।"
"यह तुम इतने यकीन से कैसे कह सकती हो?"
सिमरन ने मेरी बात का उत्तर नही दिया था बल्कि मुझे ब्लॉक कर दिया। आज एक वर्ष से ज्यादा समय बीत गया लेकिन सिमरन हिटवी पर आनलाइन न आयी।
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इशरत हिदायत ख़ान
पोस्ट : मोहम्मदी जिला खीरी उ. प्र.
7905367219
Ishratkhan968@gmail.com