लाचार Suresh Chaudhary द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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लाचार

,, तुमने आज तक दिया ही क्या है, पूरे साल में केवल एक सूट, कई कई दिन में एक बार सब्जी और दिन चटनी के साथ रोटी वो पेट भराई नही,,। पत्नी अंजुम की आवाज में आज बहुत ही कड़वे अंदाज का एहसास हुआ अखलाक अदम को, सोचने लगा कि बात तो सही कह रही है अंजुम फिर भी थोड़ी हिम्मत जुटा कर कहा,, बेगम मैं जानता हूं कि तुम जो कह रही हो कटु सत्य है, लेकिन यह बात भी सच है कि जिस दिन मेरे उपन्यास छपने शुरु हो जाएंगे, हमारे घर की गरीबी एकदम से दूर हो जायेगी,,।
,, कब आख़िर कब छपेंगी यह किताबे, जो तुमने लिख लिख कर अलमारी में सजा रखी है,,। तुरंत ही फटपड़ी बेगम, मैं कोई जवाब नहीं दे पाया, फिर भी मैं
,, खुदा पर भरोसा रखो बेगम,,।
,, क्या खाक भरोसा रख्खूं, तंग आ चुकी हूं भरोसा रख रख कर आज तक तुमने करीब पचास प्रकाशकों के चक्कर काट लिऐ, क्या वो ही ढाक के तीन पात,,।
,, हां मै मानता हूं कि अब तक कोई भी प्रकाशक मेरे उपन्यास छापने के लिए राजी नहीं हुआ, लेकिन मुझे मेरे खुदा पर पूरा भरोसा है कि एक न एक दिन मेरे उपन्यास छपेंगे जरुर,,। मैं यह कहा जरुर लेकिन सच कहूं तो मैं फिर फिर कर हार गया था
,, पांच साल से यही सब तो सुनती आ रही हूं मैं, अरे तुम्हारी पहली दोनों पत्नियां इन उपन्यासों के चक्कर में तुम्हें छोड़ कर जा चुकी है, एक मैं हूं जो अब तक,,,। आधे अधुरे शब्दों में सब कुछ कह दिया अंजुम ने
,, अगर तुम भी जाना चाहो तो तुम भी जा सकती हो, अब कोई भी प्रकाशक मेरा या मेरे बाप का नौकर तो है नही, अगर मेरे हाथ में होता तो मैं अब तक अपने सभी उपन्यास छपवा चुका होता,,। मैं थोडा तल्ख लहजे में कहा
,, यह बात तुमने इस लिऐ कही कि तुम बखूबी जानते हो कि मेरे पीहर में मेरे मां बाप दोनों अल्लाह को प्यारे हो गए, भाई है शादी के बाद कौन भाई किसका होता है,,। कहते कहते अंजुम की आंखों में आसूं आ गए। अंजुम के आंसू देखते ही मुझे थोडा महसूस हुआ,, कि मुझे यह नहीं कहना चाहिए था,,।
,, बेगम थोडा सब्र करो, अल्लाह सबकी सुनता है देख लेना एक दिन हमारी भी सुनेगा,,। मैं लकड़ी की कुर्सी से उठकर चारपाई पर बैठी अंजुम के पास आ गया।
,, लेकिन कब, हम दाने दाने को मोहताज हो गए हैं, शाम का खाना बनाने के लिए आटा भी नहीं है,,। यह सुनते ही मैंने अपने दोनों हाथ ऊपर करके,, या खुदा यह कैसा इम्तहान ले रहा है तू,,। और कहने के साथ ही मैं घर से बाहर निकल आया और थके हुए कदमों से लाला की दुकान तक आया।
,, लाला जी खुदा हाफ़िज़,,।
,, खुदा हाफ़िज़ अखलाक भाई,,।
,, लाला थोडा सा आटा उधार दे दो,,।
,, अखलाक भाई उधार का तो नाम भी मत लो, तुम पर पहले ही दस हज़ार रुपए उधार है,,। लाला ने उखड़े हुए शब्दों में कहा, मैं लाला के शब्दों को सुनकर थके हुए कदमों से वापस होने लगा, इसी बीच लाला की आवाज ने मुझे रुकने पर मजबूर कर दिया
,, अखलाक भाई तुम्हें आटे की जरूरत है,,।
,, जी,,।
,, शायद तुम नही जानते, मैं हर महीने दस धडी आटा करीबों में दान करता हूं, अगर तुम चाहो तो उसमें से पांच किलो आटा तुम भी ले जाओ,,। लाला के शब्द सीधे मेरे कलेजे में लगे।
,, मुझे खैरात नही चाहिएं लाला, दे सकते हो तो उधार दे दो,,। और मैं यह कहते हुए थके हुए कदमों से वापस घर आ गया।
,, आटा उधार लेने के लिए गए होंगे,।
मै कोई जबाव नहीं दे पाया, आंखो की पलकें भीग गई।
,, मैं अपने खाविंद को रोता हुआ नही देख सकती, लो मेरे कानों के बूंदे ले जाओ और इन्हे बेच कर राशन ले आओ,,। यह सुनते ही मेने आश्चर्य से अंजुम की ओर देखा।
,, अंजुम,,।
,, हां मेरे मालिक, घर के कुछ फर्ज मेरे जिम्मे भी है,,। और मुझे अंजुम की आंखों में एक नई चमक दिखाई दी।