दो बूंद जिंदगी Suresh Chaudhary द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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दो बूंद जिंदगी

न जाने कब से मैं पत्थर की एक बड़ी सी शिलापट पर लेटा हुआ आसमान की ओर देखता रहा, थकन की वजह से सारा शरीर खुद भी एक पत्थर के समान हों गया। कब नींद आ गई और कब आधी रात हो गई, ठीक आधी रात को आंख खुलने पर मैने लेटे लेटे अपने आस पास देखा किसी को भी अपने पास न देख, कुछ शब्द बदाबदाहट मे बदल गए,,, आखिर कौन होगा मेरे पास, क्या लगता हूं मैं किसी का,,,। और मैने किसी तरह से अपने थके हुए शरीर को समेटा। धीरे धीरे खुद को शिलापट से उतारा, आधी रात के गहरे अंधेरे में ही अपने कदम एक अनजानी दिशा को धकेल दिए, लगभग दस मिनट बाद एक झुग्गी झोपड़ी में दीया टिमटिमाता सा दिखाई दिया। मेरे कदम अनायास ही उस ओर बढ़ गए।
,,, क्या चाहिए बाबा,,। झुग्गी झोपड़ी में बैठे एक युवक ने धीमी आवाज में कहा
,, आपने मुझ से कुछ कहा,,,।
,, हां शायद,,,।
,, क्या,,,।
,,, आपको कुछ चाहिए क्या,,,।
,,, क्या मिलेगा,,।
,, जो भी आपको चाहिए,,,।
,, दो बूंद जिंदगी मिलेगी क्या,,।
,, हां शायद, लेकिन किस भाव खरीदोगे,,।
,,मै कुछ समझा नहीं,,,।
,, बैठो, बताता हूं,,। और मैं उस युवक के सामने ही एक पुरानी सी बैंच पर बैठ गया।
कुछ देर तक मेरे बुझे हुए चेहरे को देखते हुए उस युवक ने कहना शुरू किया,, आप की उम्र लगभग सत्तर साल हो गई होगी,,,।
,, हां,,,।
,, इसका मतलब आप अपनी जिंदगी जी चुके,,
,, तुम क्या जानो कि मैं जिंदगी जी चुका या नहीं,,।
,, फिर भी,,।
,,, जानना चाहते हो कि मैंने जिंदगी जी या नहीं,,।
,, अगर उचित समझो तो,,,।मैने एक लंबा सांस छोड़ा,, एक समय था जब मै सोलह साल का हुआ था, तब ही मेरे पिताजी की मौत हो गई, घर में मेरे से बड़ा कोई नहीं था, पढ़ाई के साथ साथ घर की जिम्मेदारी, न चाहते हुए मेरी शादी एक ऐसी लड़की के साथ करा दी गई, जो मेरे प्यार को समझ ही नहीं पाईं,मै किसी और लडकी से शादी करना चाहता था, लेकिन वक्त को शायद यही मंजूर था , जिन्दगी का कुछ हिस्सा ठीक ठाक कटा, लेकिन मुझे शादी जैसे रिश्ते में कभी सकून नहि मिला, देखते ही देखते कब उम्र की सफेदी ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया, कह नही सकता, उम्र के आखरी पड़ाव से पहले जिन्दगी में एक भूचाल आ गया, पत्नी भी छोड़ कर चली गई, पत्नी के रहते जब तक आपस में गाली गलौच नही होती थीं दीन नही निकलता था, एक आदत सी लग गई थी, एक लड़का जो मुझे सब कुछ मानता, पत्नी के जाते ही मेरे पास जमा पूंजी ले कर आंखे दिखाने लगा, वह ही क्या करता, उसकी पत्नी ने उसका उत्पीड़न हद से ज्यादा किया। आज मै अपना सब कुछ छोड़ कर यहां ऋषिकेश में यह सोच कर आया था कि कुछ दिल को सकून मिले, लेकिन यहां आ कर भी मेरा अतीत मेरे वर्तमान को कचोट रहा है, अब मैं कहां जाऊं,,,,। यह कह कर मै चुप हो गया, वह युवक मेरी ओर देख कर अनायास ही मुस्करा दिया। मुझे दिए की हल्की रोशनी में भी उसकी रहस्य मई मुस्कान दिखाई देने लगी।
,, अगर कुछ सब्र हो तो मैं कुछ कहूं,,,,।
मै चुपचाप उसके चेहरे को देखने लगा।
,,, मैं नही जानता मैं किस की औलाद हूं, जब आंख खुली तो मैंने अपने आपको लावारिश होम में पाया, जब चार साल का था एक सज्जन आए और मुझे गोद नामा भर कर ले गए, रोज रोज मारना पीटना, कई कई दिन तक भूखे पेट रक्खा गया, आखिर एक दिन मैं घर छोड़ कर मेहनत मजदूरी की जिन्दगी बसर करने लगा और आज जो भी मै हूं, आपके सामने,,,। युवक की बात सुन कर न जाने क्यों मुझे उससे हमदर्दी होने लगीं।
,,, बेटे क्या तुम मेरे आखरी सांस तक मेरे साथ रहना चाहोगे,,। कहते कहते मैने दोनों बाहों को फैला दिया और सोचने लगा कि शायद इस युवक को दो बूंद जिन्दगी की आवश्यकता है।