उधार Suresh Chaudhary द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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उधार

,, अरे भाई जल्दी जल्दी से करो, यह क्या तमाशा लगा रखा है, कब तक आप,,। भिन्नाते हुए कहा मोहन ने
,, बाबू जी बस हो गया, सारा सामान बांध दिया है ट्रक आने की देर है,,,।
,, कितनी देर लगेगी अभी और,,,।
,, मुश्किल से आधा घंटा,,। मजदूरों में सीनियर से लगने वाले आदमी ने कहा।
तभी एक बड़ी सी गाड़ी में से शक्ल सूरत से अमीर लगने वाला आदमी उतर कर मकान के बाहरी कमरे में आया।
,, आईए त्यागी जी,,।
,, यह क्या मोहन बाबू अब तक मकान खाली नहीं हुआ,,। त्यागी जी ने हल्का क्रोध जाहिर करते हुए कहा
,, बस त्यागी जी थोड़ी देर और सामान बंध गया है, इन लोगों का ट्रक आ ही रहा है,,।
,, मैंने तो आपको पहले ही कहा था कि सामान सहित ही, लेकीन आप माने नही,,,।
,, जी आपने कहा तो था, लेकीन आपने सारे सामान के अस्सी हजार रूपए ही लगाए थे और अब यह सारा सामान दो लाख रुपए का जा रहा है,,।
,, हमने आपको आपके मकान के मुंह मांगे पैसे दिलवा दिए हैं, और सामान के भी करीब करीब ठीक पैसे ही थे, खैर अब जल्दी से मकान खाली कराओ,,
तभी मकान के बाहर सड़क पर एक ट्रक आ कर रुका।
,, लो बाबू जी आ गया हमारा ट्रक अब मकान खाली किया समझो,,। और मजदूरों ने पहले बड़े बड़े सामान को उठाना शुरू कर दिया।
तभी एक बुजुर्ग महिला ने आ कर बाहरी दरवाजा खटखटाया।
,, आप कौन हैं,,। मोहन ने पास आ कर पुछा
,, मैं मास्टर जी से मिलना चाहती हूं,,।
,, आप मास्टर रामेश्वर जी से मिलना चाहती है,,।
,, जी,,।
,, आप मास्टर जी से,,। दोबारा कंफर्म किया मोहन ने
,, जी हां,,। इस बीच मोहन ने देखा कि बुजुर्ग महिला को कुष्ठ रोग है।
,, लेकीन आप को मास्टर जी से क्या काम है,,।
,, आप केवल यह बताने का अहसान करें कि मास्टर जी कहां है,,। इस बार थोड़े सक्त शब्दों में पूछा महिला ने।
,, मास्टर जी तो दो साल पहले,,। आधे अधूरे शब्दों में कहा मोहन ने।
,, यह कैसे हो सकता है, अभी डेढ़ साल पहले मैंने मास्टर जी को कहीं हां याद आया दिल्ली में देखा था,,। कुछ सोचते हुए महिला ने कहा
,, शायद आप को कोई गलत फहमी हो गई होगी, लेकीन आप क्यों मिलना चाहती है मास्टर जी से,,।
यह सुन कर बुजुर्ग महिला नीचे ज़मीन पर ही बैठ गई
,, आप ने बताया नही,,।
,, क्या करोगे जान कर,,। बुजुर्ग महिला ने उदास स्वर में कहा।
,, वैसे ही,,।
,, बात करीब पच्चीस वर्ष पहले की है, मैं शादी से पहले एक शक्स से धोखा खा कर मां बन गई थी, बच्चे के पैदा होते ही मैं उस बच्चे को मंदिर की सीढ़ियों पर रखने के लिए गई थी तभी वहां मास्टर जी मिल गए, और मुझसे कहने लगे, यह बच्चा मुझे दे दो, मेरे कोई संतान नहीं है,,। और मास्टर जी की बात सुन कर मैंने अपना बच्चा मास्टर जी को दे दिया था। यह सुनते ही मोहन को अचानक से क्या हुआ, मोहन अपनी गाड़ी की ओर भागा, भागने से पहले,, त्यागी जी आप मजदूरों को हटा कर फिलहाल मकान को लॉक कर दो, मैं कल आ कर बात करता हूं,. और कहते कहते अपनी गाड़ी में बैठ कर गाड़ी को स्टार्ट कर दिया।
कई घंटे का सफर करने के बाद गाड़ी एक वृद्ध आश्रम के ठीक सामने रुकी
गाड़ी से उतर कर लगभग दौड़ते हुए मोहन आश्रम के प्रबंधक के पास,, सर मैं करीब दो वर्ष पहले अपने पिता जी श्री रामेश्वर जी को आपके आश्रम में छोड़कर गया था, वें अब कहां है, मैं उनसे मिलना चाहता हूं,,।
,, सॉरी मिस्टर रामेश्वर जी तो अभी एक सप्ताह पहले ही हम सबको छोड़ कर भगवान जी के पास,,।
,, नही,,। चीखते हुए जमीन पर गिर गया मोहन।।।