फर्क पड़ता हैं SARWAT FATMI द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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फर्क पड़ता हैं

  फर्क पड़ता हैं मुझे 

मुझे तेरी ख़ामोशी से फर्क पड़ता हैं
ये बात कैसे बताऊं तुम्हे 

तेरी छोटी छोटी हरकतो से फर्क पड़ता हैं मुझे 
तेरी आँखों में जों सवालों क समुद्र देखती हूँ तब मुझे फर्क पड़ता हैं 

जब मेरी आँखों में आंसू देख कर भी तुम्हारा कोई सवाल नही होता तब फर्क पड़ता हैं मुझे 

जब अपनी खुशियाँ तुमसे बाटने को आती हुँ 
और तुम्हारा मुझे दुर्दरा देना, उससे मुझे फर्क पड़ता हैं 

जब किसी और को मुझसे ज्यादा एहमियत देते हो 
तब मुझे फर्क पड़ता हैँ 😢

एक मैसेज, या फ़ोन को तरश जाती हुँ मै 
सवाल करने पर, जब कहते हो busy था मै 
इस बात से फर्क पड़ता हैँ मुझे 

सवालों के घेरे मे जब तुम ला खड़ा कर देते हो 
फिर कहते हो मेरी गलतफैमि हो गयी, तब 
इस बात से फर्क पड़ता मुझे 😢

शायद मै तेरे काबिल नही, एक बार इस बात को कह हीं डाल, क्यू की अब फर्क पड़ता हीं नही मुझे 

तेरी हो कर भी तेरी ना हुई, 😢😢😢फर्क पड़ता हैँ मुझे 
तेरी चूप्पी मुझे अंदर हीं अंदर खा रही हैँ, शायद तुझे फर्क ना पड़ता हो, पर मुझे फर्क पड़ता हैँ,

दोस्तों के साथ वक़्त गुज़ार लेते हो, मै थोड़ा सा वक़्त मांग लू, तो उठ कर चले जाते हो, तुम्हारा चले जाने से हीं फर्क पड़ता हैँ मुझे 

पर इन सब चीज़ो से तुम्हे कोई फर्क पड़ता नही हैँ, और इन सब बातों से मुझे फर्क पड़ता हैँ 

याद हैँ मुझे तेरा पहली बार मिलना, तूम्हारी फिकरी मुझे तेरी और खींचती गयी, पर मै नादान समझ हीं नही पायी इस फिकरी का मतलब,
अब उन बातों को याद कर के रो लेती हूँ, दिल दुखता हैँ मेरा, पर अगर तुम्हे मेरी इस हालत पर कोई फर्क नही पड़ता तो अच्छा हुआ मेरे साथ 😢😢😢

कहते थे हर कदम पर तेरे साथ हूं  
मूड कर देखा तो सिर्फ राह दिखा मुझे 

अच्छी बातें सुनने को बहुत मन होता हैँ मुझे 
पर तुम्हे इस बात से कोई फर्क पड़ता नही, तो ठीक हीं हुआ मेरे साथ अब इन बातों से भी फर्क पड़ता नही मुझे 

रिस्ता पक्का था मेरा पर 
ये वहम भी टूट गया मेरा, टूटना अच्छा था, इस टूटे वहम को संभालते हुए उम्र गुज़र गयी, फर्क पड़ता हैँ मुझे 
जब लोगो को खुश देखती हूँ तो फर्क पड़ता हैँ हैं मुझे 

अपनी हाले दिल किस किस को सुनाऊँ,सुनने को भी वक़्त नही, और मुझे इस वक़्त से फर्क पड़ता हैँ

तेरी हमसफर बनने को आई थी, सफर मे छोड़ 
दिया,तेरे इस बर्ताओ से फर्क पड़ता हैं मुझे 

मै क्या थी, क्या बना दिआ मुझे, मेरे बदलते रूप से फर्क पड़ता हैँ मुझे 

जिनसे तुम्हारे लिए मुँह फेर लिया मैंने, इनकी नज़रो से फर्क पड़ता हैँ मुझे 

तेरे चेहरे पर, कई सवालों के जवाब से फर्क पड़ता हैं मुझे 
तेरे साथ ये जवाब सुन सुन कर थक चुकी हुँ इन्ही सब जवाबो से फर्क पड़ता हैँ मुझे 

जब मेरी नम आँखे तुम्हारी तरफ देखती हैँ,के काश तुम रुक जाओ, मेरे पास बैठो,मुझे गले लगाते हुए मुझसे मेरे हाले दिल पूछो,पर जब ऐसा नहो होता और अपने को तुम busy करते हुए जब मेरे पास से चले जाते हो, तब मुझे मेरी नम आँखों से मुझे फर्क पड़ता हैँ, हाँ मुझे फर्क पड़ता हैँ