सर्कस - 20 (अंतिम भाग) Madhavi Marathe द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सर्कस - 20 (अंतिम भाग)

                                                                                                 सर्कस:२०

 

          दुसरे दिन सुबह छह बजे के बाद भोपाल गॅस दुर्घटना की खबर चारों ओर फैल गई। ३ डिसेंबर १९८४, मध्य प्रदेश, भोपाल के युनियन कार्बाइड फॅक्टरी सी प्लान्ट से, रात को जहरिले वायु का रिसाव हुआ ओैर हवा के बहाव के कारण पुरे शहर में फैल गया। गहरी नींद में खोए लोग साँस लेने के लिए अचानक तडपने लगे। सरकारी अहवाल के अनुसार कुछ घंटो में तीन हजार लोगों की मौत हो गई, पर बिगर सरकारी यंत्रणा इसके तीन गुना मौत की संख्या बता रही थी। कुछ लोग हॉस्पिटल तक तो पहुँचे, लेकिन डॉक्टरों को भी यह पता नही चल रहा था की इन लोगों का इलाज कैसे करे? उस गॅस की वजह से डॉक्टर लोगों की भी मौत हो रही थी। जहरिली गॅस दुर्घटना के कुछ ही क्षणों में रास्ते, गली, घरों में मृतदेह के ढेर लग गए। खुन की उलटिया, चक्कर, तीव्र खाँसी, ऐसे तीव्र परीणामों के बावजुद जो भी लोग बच गए उसके परिणाम, कितने सालों तक उन्हे भुगतने पडे। अपाहिजता, अंधत्व, त्वचारोग, जलन, ऐसे कई परिणाम कितने सालों तक लोग सहन करते रहे।

       जॉनभाई बेहोशी से बाहर आ गए, तब उन्हे एहसास हुआ की डॉक्टरी इलाज चल रहे है ओैर मौत का खतरा उनके उपर से हट गया है। दो दिन तक कभी होश, कभी बेहोश अवस्था से वह गुजरते रहे। चौथे दिन जब हॉस्पिटल से बाहर आ गए तब उन्हे क्या दुर्घटना हुई है इस बात की खबर मिली। ट्रक भर-भरकर मृतदेह आ रहे थे, किसी तरह से उनका पोस्टमार्टम करने के बाद सामुहिक अंत्यसंस्कार अभी भी चल रहे थे। डॉक्टरों के पास किसी व्यक्ती का रेकॉर्ड ना होने के कारण कौन मरा? कौन जिंदा है यह कहना मुश्किल था। अपने सर्कस के लोग कैसे है? उनका क्या हुआ? यहाँ हॉस्पिटल में कोई जिवीत है क्या? उनका सक्षम दिमाग अब काम करने लगा। कितनी स्वयंसेवी संघटना ने अपना काम शुरू किया है यह दिख रहा था। देश-विदेश से मदद आ रही थी। वॉरन अंडरसन के खिलाफ आवाज उठाकर उसे बंदी बनाने की माँग पुरे देशभर से आ रही थी। अभी तो बाह्य जगत से उन्हे कुछ लेना-देना नही था, अपने लोगों को ढुंढना था। वह वापिस हॉस्पिटल में आ गए। गाडी में कितने लोग डालकर यहाँ लाए थे, याद नही आ रहा था लेकिन उसमें से कोई तो जिवीत होगा। अचानक से उन्हे याद आया श्रवण साथ में था, वह कहाँ है? उसकी याद आते ही उनके हृदय में पीडा उत्पन्न हुई। उनका लाडला श्रवण हमेशा उनके नजर के सामने रहता था। कुछ देर वह नजर नही आता तो जॉनभाई मन से अस्थिर हो जाते। अब उनके पैर दौडने लगे। थोडा ढुंढने पर एक कोने में उन्हे धीरज दिखाई दिया। धीरज यहाँ है मतलब श्रवण भी यही कही आस-पास होगा, दोनों की जोडी कभी दुर नही होगी। उन्हे अब थोडा अच्छा लगने लगा। धीरज के पास जाकर उन्होने उसे आवाज लगाई। जॉनभाई की आवाज सूनते ही धीरज ने   टटोलकर उनकी बाहें पकडी ओैर जोर से रोने लगा। बाजू खडी नर्स ने कहा जहरिले गॅस की वजह से धीरज की आँखे चली गई है। जॉनभाई को सदमा पहुँच गया, उसे किसी तरह से शांत करने के बाद उन्होने नर्स से पुछा “ अब इसकी तबियत ठीक है क्या? घर ले जा सकता हूं?” नर्स ने हाँ कहते हुए, आँखों में डालने के लिए ड्रॉप्स लिख दिए ओैर कुछ दिनों के बाद एकबार चेकप के लिए लाने के लिए कहा। कमरे में बाकी तो कोई पहचानवाला दिखा नही, फिर उसे उठाकर वह बाहर ले आए। नसीब अच्छा था जीप अपनी जगह पर खडी थी ओैर चाबी जेब में। उसे जीप में बिठाकर कोई ओैर लोग ढुंढकर आता हूँ ऐसा कहते हुए फिरसे जॉनभाई अंदर चले गए। हॉस्पिटल में घुमते-घुमते कुछ देर के बाद उनका धैर्य जबाब देने लगा। उनकी आशा बंधी हुई थी की धीरज है तो श्रवण भी कही ना कही मिल ही जाएगा। वहाँ काम करनेवाले आदमी ने कहा हॉस्पिटल के पिछले विभाग में बहुत सारी बॉडी पडी हुई है, किसी की पहचान करना है तो वहाँ जाकर देख लो, लेकिन जॉनभाई ने जो लोग जिंदा है उसी में ढुंढना पसंद किया क्युँ की अब जो चले गए उन्हे वह वापिस तो नही ला सकते थे।

       अब एक आखरी हॉल बचा था। वहाँ संथाळ, जयंती, छोटू जोकर मिल गए। जयंती को जिंदा देखकर जॉनभाई की भावनाए अनावर हो गई। उन लोगों के पास वह दौडकर ही गए ओैर सब एकदुसरे के गले में बाहे डालकर रोने लगे। फिर डॉक्टर के परमिशन के बाद उन्हे बाहर लाया ओैर जीप में बिठा दिया। वहाँ धीरज को देखकर विकास पहुँच गया था।

     “ जॉनभाई, श्रव्या है ना तुम्हारे साथ? वह बात क्युं नही कर रहा है? अभी तक उसकी तबियत ठीक नही है क्या?” यह सुनकर सब के आँखों से पानी बहने लगा। हसता-खेलता श्रवण अब कभी दिखेगा नही इस बात को कोई सहन नही कर पा रहा था। जॉनभाई धीरज को गले लगाते सांत्वना देते रहे। खुद के अपाहिज होने का गम ओैर उसपर अपना जी जान से प्यारा दोस्त नही, यह पहाडों जैसा दुःख उसके बरदाश्त के बाहर हो गया। अपने मन पर काबू पाकर जॉनभाई गाडी चलाने लगे। सर्कस के मैदान पहुँचते ही उनकी जीप देखकर जो भी बचे थे वह इकठ्ठा हो गए। उसमे गोदाक्का, देसाईसर, ओैर चार-पाँच लडके थे। हॉस्पिटल में जाने के लिए अपना नंबर नही लगेगा यह देखते हुए इन लोगों ने चादर, स्कार्फ जो भी हाथ लगा वह गिला करते हुए अपने मुँह पर लपेट लिया था। इसी वजह से उन लोगों को तकलिफ कम हो गई। सर्कस में जितने भी लोग मर गए उन लोगों को एक ट्रक आकर ले गई थी। कोई ना कोई तो यहाँ आ जाएगा इसी आशा पर यह लोग रुक गए थे, जॉनभाई के साथ बाकी लोगों को देखकर सब आनंदित हो गए। इन लोगों में अपना श्रवण नही है देखकर गोदाक्का फिर से दुःख से बिलबीला उठी। भगवान ने अपना ओैर एक पुत्र छिन लिया इस विचार से दुखित हो गई, जयंती ने उन्हे संभाला। देसाईसर को ऑफिस में बार-बार फोन आ रहे थे। यहाँ काम करनेवालों के रिश्तेदार सिर्फ फोन ही कर पा रहे थे, अभी तक भोपाल शहर में बाहर से किसी को भी आने की मनाई थी। कही कोई जिवीत होगा, दो-चार दिन के बाद सर्कस में वापिस आ जाएगा इसी आशा पर वह फोन करते रहते। एक हफ्ते बाद अब सबने मान लिया की दोसौ लोगों में से हम पच्चीस लोग ही जिंदा है। उसमें से चार लोगों की दृष्टी गई थी। मानसिक आघात, साँस का फुलना, त्वचा की जलन ऐसे तकलिफों से गुजरना पड रहा था। आखिर मृत व्यक्तियों की लिस्ट बनाकर रिश्तेदारों को फोन किए गए। उनके घर क्या माहोल बना होगा वह भगवान ही जाने। सब से बडी दुखद घटना थी की सब के लाडले अरुणसर जिंदा नही थे। एकाधिकार माया का भंडार खत्म हो चुका था। जानवरों का तो बुरा अंजाम हुआ, सब के सब मर गए। कहाँ जाए? क्या करे? कुछ समझ नही आ रहा था। सर्कस का इतना बडा सामान का क्या करे? सवालों पर सवाल। सर्कस तो बंद हो चुकी थी यह तो निर्विवाद सत्य था, लेकिन ऐसे शारीरिक, मानसिक हालात में कहाँ जाए यह बडा सवाल सताने लगा था। फिर कोई स्वयंसेवी संघटना मदद के लिए आगे आ गई। सर्कस का सब सामान फिलहाल एक गोदाम में रखकर फिर उसका क्या करे यह तय किया जाएगा यह सुचना मान्य हो गई। तंबू, बॅनर, कुर्सिया निकालकर रखते हुए सब भावूक होने लगे, हँसी-मजाक, गाना-मस्ती, खाना-पिना तो कभी छोटे-बडे लडाई-झगडे ऐसा जिता-जागता बीता हुआ कल सबके आँखों में लहरा रहा था। ट्रक भर-भर के सब सामान गोदाम में रख दिया। जिस मालिक ने यह उपकार किया था उनको धन्यवाद देते हुए, रीतसर रसीद लेकर जॉनभाई ओैर देसाईसर सर्कस के मैदान पहुँच गए। कितनी यादे वहाँ जुडी हुई थी।

       जिनके रिश्तेदार थे वह वापिस अपने घर जानेवाले थे। बाकी बचे गोदाक्का, जयंती। देसाईसर ने गोदाक्का को अपने साथ घर चलने के लिए कहा, लेकिन वह खुद बहू-बेटे के घर में रहनेवाले थे तो वहाँ ओैर कोई तिसरा आकर रहे यह उनको पसंद नही आएगा यह बात गोदाक्का को अच्छी तरह से पता थी। जॉनभाई की मालमत्ता तो उनके अक्सिडेन्ट के दौरान इलाज में ही खत्म हो गई थी। माँ-पिताजी अब हयात नही थे। भाई के घर जाके रहना उन्हे मंजुर नही था। जयंती का भी वही हाल था। धीरज भी घर जाने के लिए तैयार नही था। घर के लोगों पर बोझ बनकर रहना उसे ठीक नही लग रहा था। अब किसी के पास कोई पैसा कमाने का जरिया भी नही तो क्या करे? कहाँ जाए यह गुथ्थी सुलझ नही रही थी। देसाईसर के कारण सर्कस की रोख रक्कम ओैर बँक स्टेट्स के बारे में तो पता चला, फिर उसी पैसों का बटवारा करते हुए मृत व्यक्तियों के रिश्तेदारों को नुकसान भरपाई के तौर पर कुछ पैसे भेजे गए। जो जिंदा थे उनको जादा रक्कम दी गई क्युँकी उनके आगे तो जिंदगी पडी थी। थोडे-बहुत पैसे तो हाथ में आ गए, लेकिन यह तो थोडे दिन की चांदी थी।

      मैदान पर एक कार आकर रुकी यह देखते ही जॉनभाई कौन आया है जानने के लिए आगे बढे। “ मै श्रवण पिता ओैर ये है चाचाजी।” दुःख का पहाड सिर पर लिए वह बात कर रहे थे। फिर से क्या हुआ? कैसे हुआ? दुनिया में उमडे हुए प्रतिसाद, सर्कस की बरबादी, लोगों का पुनर्वसन इस बात पर बातचीत चलती रही। श्रवण के पिताजी बोले “ श्रवण हर बात खत में लिखता था। थोडे ही समय में उसने बहुत बडे दुनिया का अनुभव किया, प्यार पाया। सर्कस के मालिक बनने का सपना दिल में लिए इस ध्येय पर चल पडा। उसके लिए श्रम किए, रिश्ते जोडे। परिवार के उपर तो उसका अपरंपार स्नेह था। घर आता तो पुरा घर आनंद से भर जाता था। लेकिन नियती को किसने पहचाना है? इतनी छोटी उमर में हमारा लाडला हमे छोड गया। वह तो अब वापिस नही आ सकता, लेकिन आप उसके बहुत करीबी लोग थे। अगर आप लोगों को एतराज ना हो तो हमारे साथ अल्मोडा चलो ओैर वही बस जाओ। हमारे फॅक्टरी में काम करो। रहने के लिए मकान का बंदोबस्त भी हम कर देंगे। इससे श्रवण के आत्मा को भी शांती पहुँचेगी। गोदाक्का को तो श्रवण की माँ ने अपनी बहन ही माना था। उनके फोन, खत तो चालू ही रहते थे। उसने गोदाक्का को साथ लेके आने के लिए कहा है। सर्कस के जो बाकी भागीदार है उनसे बाद में बिक्री के बारे में बात करेंगे।” 

    यह सुनकर सबको ऐसा लगा की भगवान ने अपनी पुकार सुन ली। जॉनभाई ओैर देसाईसर को श्रवण का सर्कस के मालिक बनने का सपना अरुणसर ने बता कर रखा था, लेकिन धीरज ने जब इसके बारे में सुना तो आनंद, आश्चर्य, दुःख सब भावना अनावर होने लगी। श्रवण के पिताजी ने जो योजना बतायी उस पर एकमत से हामी भर दी। फिर संथाळ, देसाई ओैर बाकी लोग एक-दुसरे से बिछडते हुए भारी मन से वहाँ से चले गए। धीरज, जॉनभाई, जयंती, गोदाक्का अपने लाडले श्रवण के घर अल्मोडा पहुँच गए। धीरज को श्रवण के जगह मानकर परिवारवालों ने अपना दुःख का भार थोडा हल्का किया। धीरजने भी अपने प्यार से उन्हे बाँध दिया। यथावकाश समय आगे बढता गया। सर्कस का सामान दुसरे सर्कस मालिक ने पैसे देकर ले लिया, उन पैसों को फिर सब में बाटा गया। जॉनभाई जयंतीने शादी की ओैर धीरज, गोदाक्का को भी अपने परिवार का हिस्सा मानकर चारों एकसाथ रहने लगे। वेदना तो अब उनके जीवन का हिस्सा बन चुकी थी। कंपनी ने नुकसान भरपाई तो दी लेकिन अँडर्सन को सजा भी नही मिली। भोपाल वायु दुर्घटना यह पुरे दुनिया में सबसे बडी दुर्घटना मानी जाती है। श्रवण जैसे कितने लोगों के सपने खतम हो गए होंगे। जो लोग बचे उनके लिए तो जीवन एक शाप ही बन गया। कुछ लोगों की गलती, पुरे दुनिया को बुरे हादसे का अनुभव दे गई।

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