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सर्कस - 2

                                                                                                 सर्कस : २

 

               शाम का वक्त था। सभी काम से घर लौट आ गए। घर में बच्चों का शोर, पुरुष वर्गों की आपस में बातचित, दादा-दादी के भजन कीर्तन, रसोई से महिलाओं की आवाज, बर्तनों के आवाज, वातावरण में फैली भोजन की खुशबू, यह देखते देखते मुझे मजा आने लगा। मानों घर में भी एक तरह का सर्कस चल रहा हो. दऱ्असल ये दुनियाँ एक सर्कस है, हम अपना काम ठीक से नही करेंगे तो समय का रिंगमास्टर हमे भी कोडे मारेगा। अब यह बात समझ आने लगी थी। जैसे बुआ का ध्यान मेरी तरफ गया वैसे पलटकर वह बोली

“ श्रवण, इतनी देर कहाँ थे ? कितना ढुँढा तुम्हे।” यह बात सुनकर सबका ध्यान मेरी तरफ गया । 

“ अरे, अभी श्रवण इतना छोटा है क्या ? गया होगा आसपास घुमने.” चाचाजी ने मेरा पक्ष लिया । 

क्योंकि अगर मैं कहता कि मैं सर्कस देखने गया था तो सब हल्ला मचाते, दिल्ली शहर में अकेला घुम रहा है इस बात पर बडे बुढे नाराज हो जाते। चाचाजी की बात ने मुझे आश्वस्त किया। खाना लगने में थोडा समय है, आओ कुछ खा लो कहते हुए बुआ अंदर लेकर गई। सभी फिर अपनी अपनी दुनिया में लैाट गए। फिर मुझे भी सोचने के लिए थोडा समय मिला। चाचा से क्या बात करनी है, कैसे बात करनी चाहिए इस बात का मुआयना करने लगा। 

        रात का भोजन खत्म होने के बाद चाचाजी ने कहाँ “ चलो जरा बाहर टहलने चलते है।” हम दोनों बाहर गए. आसमान में पुर्णिमा का चाँद अपने आलोक से दमक रहा था। ठंडी हवाँए लहराती आ रही थी। पहले दिल्ली, हरेभरे वृक्षों के कारण आल्हादित हवों से प्रफुल्लित रहती थी। माहोल की खुशी दोनों के मन में समा गई। “आज दोपहर कहा गए थे ?” चाचाजी ने पुछा।

 “ मैं सर्कस देखने गया था। फिर एक बार अलग नजरिए से सब देखना चाहता था. केवल एकबार सर्कस देखने के बाद अति उत्साह में, तो मैं यह निर्णय तो नही ले रहा हूँ, यह पहचानना था। सच में यह जीवन जीना चाहता हूँ, इस बात पर गौर् करना चाहता था।”

 “ तुम बिलकुल सही रास्ते पर हो। मैं तुम्हारी विचारधारा की प्रशंसा करता हूँ। उम्र और विचार इसका मेल देखते हुए मैं अचरज में पड जाता हूँ। दसवी कक्षा के छात्र कॉलेज के रंगीन जीवन के बारे में सोचते है और अपनी भविष्य की शिक्षा की योजनाएँ बनाते है। पर आप तो युवावस्था में ही इस चीजों से बाहर निकलकर  बडे लक्ष की योजना बना रहे हो।”

  “ ऐसा नही है चाचाजी, मैं भी पढना नही छोडूंगा।” फिर उनको दोपहर में मिले, मित्र के बारें में सब कुछ बताया। बाहर से अडमिशन लेकर मैं भी कॉलेज जॉइन कर सकता हूं। इस पेशे के लिए जो आवश्यक है वह विषय लेकर पढना जारी रखूंगा। यह बात सुनकर चाचाजी बोले “ यह तो बहुत अच्छा निर्णय है। आपकी सोच सही है। जल्दी ही तुम्हारा दसवी का रिझल्ट आ जाएगा और आगे की पढाई के बारे में घर में चर्चा शुरू हो जाएगी। मैं कल ही सर्कस के मालिक अरुण वर्मा से मिलूंगा। उनको मैं अच्छी तरह से जानता हूँ। वह इस विषय में क्या सलाह देते है, यह सुनकर परिवार वालों से बात करेंगे।” ऐसी बाते करते हम इधर-उधर घुमते रहे। फिर काफी देर के बाद घर लौट गए। रात को काफी देर तक नीन्द नही आई। मेरे मन में दिनभर की घटनाओं के विचार घुम रहे थे। समय बताएगा कि फैसला सही था या गलत। कल वर्माजी क्या कहेंगे? परिवार वाले क्या सोचेंगे? कुछ भी समझ नही आ रहा था। खयालों में कब आँख लग गई। पता नही चला।

     भोर की बेला की ठंडी हवाओं से नींद हलके से खुल गई। शांत, शीतल ऊर्जा स्त्रोतों से भरी वायु, जीवन को स्फुर्ती प्रदान कर रही थी। हमारे घर में चाहे जवान हो या बुढे, सबका पाँच बजे उठने का रिवाज था। सुबह काम पर जानेवाले लोग तयार होकर, नाश्ता कर के काम पर चले गए। महिलाए अपने काम पे लग गई। हम बच्चे खेल-कुद का माहोल बनाने लगे. कुछ समय खेल में हिस्सा लेने के बाद मैं बगीचे में टहलने गया। पाँच मिनिट में ही राधा और विनीत मुझे ढुंढते हुए बगीचे में आ गए. “ क्या हुआ श्रवण, मैं तुम्हे दो दिन से देख रहा हूँ। चुपचाप रहते हो, चाचाजी से कुछ बाते करते रहते हो। कोई दिक्कत है क्या?”

  “ नही विनीत, ऐसा कुछ भी नही है। मैंने थोडा बात को टालने का प्रयास किया। तब दोनों ने नाराजगी जताते हुए कहाँ “ठीक है, यदि तुम हमें कुछ बताना नही चाहते तो कोई बात नही। लेकिन अगर कोई समस्या है तो तुम हमसे कभी भी बेझिझक कह सकते हो। हम हमेशा तुम्हारे साथ है।”

    यह सुनकर मेरा हृदय पिघलने लगा। इतने अच्छे भाई बहनों से मैं कुछ नही छुपा सकता। अब तो मेरे लिए तो हर कोई महत्वपूर्ण हो गया था। “ ओह ! विनीत, राधा मैं तुम्हे सब बताता हूं। पर उस बात पर हँसने मत लग जाना। अलग अलग विचार मेरे दिमाग में घुम रहे है। चाचाजी ने पुछा इसलिए उनसे बातचीत हो गई।”  राधा ने उत्सुकता से पुछा। गोरी राधा के चेहरे पर उत्सुकता देखकर मुझे भी सब बात बताने की इच्छा हुई। मेरा मन हमेशा राधा के उलझे हुए बालों में अटक जाता था। वैसे देखा जाय तो हम चचेरे भाई बहन थे, लेकिन उसे देखते ही मन में कोमल भाव जागृत हो जाते। हम तीनों एक पेड के नीचे छाया देखकर बैठ गए। “ परसों चाचाजी सबको सर्कस दिखाने लेके गए थे ना, तब से मेरे मन में सर्कस का मालिक बनने का विचार आ रहा है। ये कैसे संभव है ? यह भी मुझे पता नही।” मेरी यह बात सुनकर राधा की विस्फारीत नजर और विनीत को लगा हुआ सदमा देखकर मुझे ही जोर से हँसी आ गई। फिर वो दोनों मेरी हँसी में शामिल हो गए। हँसी शांत होने के बाद मैंने उन दोनों को दो दिन से चल रही सारी हकीकत बता दी। मिनिट दर मिनिट उनके चेहरे पर जिज्ञासा, चिंता, खुशी ओर आश्चर्य के मिश्रित भाव दिखाई दे रहे थे। जब उनको पता चला कि आज चाचाजी वर्मा अंकल से मिलनेवाले है, तो दोनों चौंक गए।

    “ श्रवण, तुम तो बहोत बडा सपना देख रहे हो। इसमें बहुत मेहनत लगेगी। लेकिन मुझे यकीन है कि तुम सफल हो जाओगे। हम हमेशा तुम्हारे साथ रहेंगे।” राधा के चेहरे पर अपने लिए गर्व देखकर मेरा सपना और भी मजबूत हो गया। तीनों के मन की अभिलाषा एक हो गई। इससे पहले कि किसी को कुछ पता चले, हम घर वापस आ गए और खेल में शामिल हो गए।

      आज दिनभर चाचाजी के राह में हम आँखे गडाए बैठे थे। विनीत,राधा, और मैं कभी-कभी एक-दुसरे को देखकर संकेतपूर्वक मुस्कुराते थे। आज तो जैसे समय थम गया था। किसी तरह दिन खत्म हो गया। शाम का  सुनहरी सुरज डूब गया और रात का अंधियारा गहराने लगा। मुस्कुराते चेहरे से चाचाजी घर लौटते देख, मन को जैसे राहत मिली। भोजन के पश्चात विनीतने धीरे से मुझे पुछा “ क्या हम आप लोगों की चर्चा में शामिल हो सकते है?” साशंकित मन से मैंने यह बात चाचाजी से की। तो बडे प्रसन्नता से चाचाजी ने कहाँ “ यह अच्छी बात है। अब वो दोनों भी बडे हो रहे है। विभिन्न विचारों से उन्हे भी वाकिब होना चाहिये”। चारों घुमने निकले। हवाँ कल की तरह सुहानी थी।

       चाचाजी ने बात को जादा न घुमाए हुए कहाँ “ आज मेरी अरुण वर्माजी से बात हो गई। इस संबंध में तुम्हारे विचार जानकर वह तो पहले चौंक गए। सर्कस से तुम्हारा दूर तक कोई संबंध नही, फिर भी ऐसी इच्छा एक पन्द्रह-सोला साल का लडका मन में ठान लेता है, तो कुछ तो बात होगी उसमें।“ थोडी देर सोचने के बाद शायद विचारों में कुछ स्पष्टता आ गई। उन्हों ने कहाँ “ इस उम्र में नौजवान मन में किसी बात की महत्वाकांक्षा रखता है तो वह जरूर उसे पुरा करता है। मुझे भी आगे चलकर इसे संभालने वाला कोई व्यक्ती ढुंढना ही है। मेरी उम्र अब चालीस साल की है। इतना बडा काम अब पांच-छह साल ही मैं संभाल सकूंगा। इस के बाद किसी योग्य व्यक्ती के हाँथ तो यह व्यवसाय सोंपना ही पडेगा। मेरे बच्चों को इस व्यवसाय में कोई रुचि नही है। वह पढ लिखकर अच्छे पद पर काम कर रहे है। कोई सर्कस में काम करने वाले व्यक्ति को ही मैं सब काम सीखा के तयार करनेवाला था, लेकिन सिखकर तयार होना और अपने मजबुत इरादों को हासिल करने के लिए पूरी लगन के साथ काम करना इसमें बहोत फर्क होता हैं। अपने सपनों को हवाँ देकर छ्लांग लगाना यह दोनों अलग बात है। विचारों में जमिन आसमान का फर्क होता है। आप लोग पहचान के हो, कौटुंबिक वातावरण से मैं परिचित हूं, इसलिए यह प्रस्ताव पर मैं भी गोर करूंगा। आपको अगर तकलिफ नही होगी तो कल श्रवण को लेकर आना, मैं उससे बात करना चाहूँगा। उससे बात करके हम आगे के बारे में सोचेंगे।”

      चाचाजी की बात सुनकर हम तीनों अवाक रह गए। विनीत ने कहा “ पिताजी, लेकिन यह सब श्रवण कर पाएगा ?”

     “ अरे, अभी कहाँ वह सब सोंपने वाले है। छह-सात साल का कालावधी बहोत बडा होता है। तुम लोग भी तो कॉलेज की शिक्षा प्राप्त करने के बाद नोकरी प्राप्त करते हो। काम का अनुभव ना होते हुए नोकरी हासिल करते हो। आपका अर्जित जीवन केवल किताबी ज्ञान पर ही शुरू होता है। श्रवण का तो क्षेत्र भी पता है और पहले दिन से वह अपने काम का अनुभव चालू करेगा तो सोचो उसका कितना विकास होगा, और हम तो हमेशा उस के पीछे साथ देने के लिए खडे रहेंगे।”

      गपशप करते हुए हम घर लौट आए। सबको अभी कल की चिंता सता रही थी. चाचाजी ने बताया कल का कल देखेंगे, चिंता करने से कुछ बदल तो नही जाएगा। अभी आराम से सो जाओ। खयालों में ही कब आंख लग गई पता ही नही चला।  

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