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सर्कस - 1

                                                                                                  मन की बात  

हम लोग हमेशा सर्कस से जुडे हुए लोगों के जीवन के बारे में, जानने के लिए बहुत उत्सुक रहते है। उनका खानाबदोशजीवन, मंच पर अभिनय, साहसिक खेल, जानवरों की दुनिया, रोज की तालियाँ, लेकिन जिंदगी उतनी ही खतरों और कठिनाइयों से भरी।  वैसे देखा जाए तो दुनिया के हर आदमी के उपर किताब बन सकती है।  लेकिन सर्कस का अनोखा जीवन सबको लुभाता है।  सर्कस के बारे में जो कुछ लिखा है वह जानकारी इंटरनेट से संकलित की है।  इस किताब के सभी पात्र और घटनाएँ काल्पनिक है।  सिर्फ भोपाल वायु दुर्घटना हादसे का सबके उपर क्या असर हुआ होगा इसका थोडा जिक्र किया है।   

 

                                                                                               सर्कस : १ 

 

       मैं खिडकी से बाहर के हलके अँधेरे की ओर देख रहा था।  भोर की ठंडी हवाँए एक अनोखा आनंद दे रही थी।  अबुज शांती के लहरों से, विचारों में बीती हुई जिंदगी के खयाल आ रहे थे।  मैंने अपना बचपन अल्मोडा के प्राकृतिक वातावरण में बिताया।  परंपरागत रितीरिवाज, त्योहारों के अनुपम उत्साह आनंद को जीते हुए अपना बचपन जिया था।  पाठशाला और खेलकुद की प्रतियोगिता, ये मेरे जीवन का हिस्सा था।  अब शालेय जीवन समापन के दिन नजदीक आ गए।  दसवी कक्षा का  परिणाम आने के बाद, मेरे जीवन में नया मोड आएगा।   

        घर पर, पारंपरिक बांस शिल्पकला और लोह निर्माण का व्यवसाय था।  एक निश्चित उम्र तक पहुंचने के बाद घर के लडके- लडकियों कों बांस काटने से लेकर उनकी कलात्मक वस्तुएं बनाने तक का प्रशिक्षण लेना पड़ता था।  तभी से बिना जाने समझे छोटी उम्र में ही हर चीज परिपूर्ण करने की आदत हो जाती थी।  खाने-पीने और प्यार करने वालोंकी कमी नही थी।  इसलिये, बिना किसी मानसिक कष्ट से काम करते हुए, मेरे पिता और दादाजी हमेशा अपनी आँखे खुली रखने और आसपास का निरीक्षण करने पर जोर देते थे।  तभी से वो लोगों के स्वभाव अनुसार उनके के साथ अलग अलग व्यवहार कैसे करना चाहिए, इसके नियम कायदे समझाते रहते थे।  उन्होंने सबके साथ मिलजुल कर रहने की मानसिकता सिखाई थी।  अपने कडी मेहनत से और चुनौतियों से न घबराकर अपने लक्ष को कैसे हासिल करे यह बात हम बच्चों को अच्छी तर समझाते थे।  अगर परिवार में कोई अलग रास्ता अपनाने का फैसला करता था तो उसे पूरी आजादी थी।  दुसरे व्यवसाय में अच्छी तरह से स्थापित होने तक पुरा परिवार उनके साथ खडा रहता था।  यदि, गलती से उसका दुसरे काम में मन नही लगा, और वह वापस अपने पुराने व्यवसाय में लौटना चाहे तो बिना किसी झिझक के उसे स्वीकारा जाता था।  इस पद्धती के कारण, हर कोई नए व्यावसायिक उद्यमों में अपनी सफलता का प्रयास करने के लिए युवावस्था में घर से बाहर जाता था।  तब तक घर का कामकाज बुढे आदमी ही संभालते थे।  जब जीवन ऐसे सुरक्षित अपनापन के वातावरण में चल रहा था, तो मन में ऐसा कोई भय नही था।  

          मैं अपने खयाल छोडकर वर्तमान में आ गया।  माँ नीचे से आवाज दे रही थी, “ श्रवण, जल्दी आ जा। ” दो दिन के बाद चाचा के पास दिल्ली जाना था।  उसकी तयारी चल रही थी।  दादा दादी के साथ, की हुई वह यात्रा मैं आजतक नही भुला।  चाचा के घर छुट्टी में सभी मौसी, बुआ के बच्चे, भाई-बहन एक साथ आकर रहते थे।  चुंकि उम्र में जादा अंतर नही था इसलिये हम सब साथ खाते पीते, मौज-मस्ती करते और उस उम्र के राज साझा करते, ताश, कॅरम, खेलते मौज मस्ती करते थे।  मैंने पहिली पिक्चर देखी वो चाचाजी के यहाँ। उस रंगीन दुनिया की नजाकत वहाँ महसुस की।  उसके साथ, दुनिया में अपने समझ के बाहर कितनी नई चीजे है इसका भी पता चला।  जिज्ञासापुर्ण और नवविचारोंका एहसास हो गया।  

          एक दिन चाचा, सभी बच्चों को सर्कस दिखाने के लिए लेके गए।  मुझे ऐसा महसुस हुआ, जैसे में किसी अद्भुत चीजों की किताब में प्रवेश कर रहा हूं।  इसमें क्या नही था ? परियों जैसे दिखनेवाली लडकियाँ, जानवरों के साथ निकटता, बॅटमॅन, सुपरमॅन जैसे दिखनेवाले लडके, जोकर सब उस उम्र में अद्भुतही लग रहे थे।  मैं इन सबसे बहुत रोमांचित हुआ और मेरे मन में एक नया सपना बसने लगा।  मुझे नही पता था यह पुरा होगा की नही।  सिर्फ मन में विचार मंडरा रहा था।  हालाँकि हमारा परिवार एक उद्योगपती घराना था, लेकिन किसी ने भी इतने विश्वस्तरीय उद्योग में कदम नही रखा था और इसका दायरा भी बहुत बडा था।  इसके लिए पुंजी के रुप में धनराशि भी बहुत बडी थी।  मेरी उम्र तो अभी सोलह सालही थी।  अगर मैंने अपने भाई-बहनों से कहाँ होता कि मैं सर्कस का मालिक बनना चाहता हूं, तो उन्हे हँसने का बहुत अच्छा मौका मिलता।  पर मेरे मन में अखंडता से विचारधारा बह रही थी।  यह कैसे किया जा सकता है, यह मेरी अल्पबुद्धि नही समझ पा रही थी।  लेकिन मैंने किसी को कुछ नही कहा, भलेही मेरा, विचार में खोया हुआ चेहेरा सब पढ पा रहे थे।

      आखिर चाचा ने मुझे बगीचे में बुलाया।  हम लोग घुमते हुए बातें करने लगे।  अलग-अलग विषयों पर बाते करते-करते उन्होंने बहुत खुबीसे मेरे मन की बात निकाल ली।  जब उन्होंने सर्कस शुरू करने का मेरा सपना सुना, तो वह पहले चौंक गए।  सोलह साल का बच्चा, ना उसे बाहरी दुनिया के बारे में पता है, ना अपने अंदर की शारीरिक मानसिक ताकद से वह वाकिब है।  फिर भी इतना बडा सपना देखने का वह साहस कर रहा है।  सिर्फ सोचना, यह बात फिर भी समझ सकते है, लेकिन उसके आंखों में जो जुनून दिख रहा है उससे साफ पता चलता है की वह सपना उसके अंतर्मन तक समाया हुआ है।  सदमे से जरा बाहर आने के बाद चाचा ने मेरी बहोत सराहना की।  क्या मेरे अनुभवहीन शब्द सच में सार्थक हो सकते है ? हम दोनों एक तरह की खामोशी में कुछ पल के लिये डूब गए।  फिर बाद में उन्हों ने मेरे विचारों को टटोलना शुरू किया।  दृढता, मन की महत्वाकांक्षा, पैसा, लोगों से बात करने का तरीका इन सब चीजों के बारे में, मेरे विचार जान लिए।  मेरे छोटे उम्र के बावजूद दुनिया से निपटने की प्रतिभा उन्हे सराहनीय लगी।  जब इस अद्भुत बात का एहसास हुआ तो जगत के बारे में कुछ बताना चालू किया।  कोई भी पेशा हो, बुनियादी मूल्य वही रहते है।  ऐसी बात समझायी।  घर के लोगों से इस बारे में बात करने की जिम्मेदारी उन्होंने ली।  इस के साथ मुझे सर्कस में शामिल होकर कैसे रहना है, वहाँ के हर विभाग के बारे में सीखना है,  इसलिए घर के बाहर रहने की मन की तयारी रखने का सुझाव दिया।  सर्कस में, मैदान से लेकर मॅनेजमेंट के काम तक वो सारी चीजे सीखनी पडती है।  इस बात का एहसास होते ही मेरा तनमन, पसीना-पसीना हो गया।  दुनिया अच्छे ओर बुरे दोनों तरह के लोगों से भरी है, ऐसे माँ हमेशा कहाँ करती थी यह बात मुझे याद आने लगी।  घर की सुरक्षित सीमा से बाहर, अनिश्चित और असुरक्षित दुनिया में कुदने का विचार कठीण लग रहा था।  

       चाचा ने मेरी स्थिति को पहचाना और कहाँ “ श्रवण, परिस्थिती कभी इतनी बुरी नही होती है, जितनी हम सोचते है।  लेकिन यह आसान भी नही है।  अगर हम कुछ अलग करना चाहते है, तो हमें हर चीज का सामना करने के लिए तयार मन के साथ इस में उतरते हुए प्रयास करना होगा।  कडी मेहनत से पीछे न हटे।  भूख लगने पर जो खाना मिलता है वह खाने की आदत डालनी पडेगी और दो कौर कम खाना यह सेहत के लिये भी अच्छा रहता है।  इससे अन्न का महत्व समझ आता है।  धीरे धीरे धन के व्यवहार समझ आने लगते है।  कहाँ और कैसे पैसे बचाने है, कहाँ उचित तरीके से खर्च करने है।  लोगों के अपमानजनक व्यवहार को कैसे अनदेखा करना है या कहाँ उनको जबाब दे कर उनकी औकात दिखानी है, यह सब धीरे धीरे समझ में आ जाएगा।  कल्पना और वास्तव में हमेशा बहोत बडा फासला होता है।  और एक बात बतानी थी कि इस में तुम्हारी शिक्षा छूट जाएगी।  आगे चलकर शिक्षा प्राप्त करके तुम ने क्या बनने का सपना देखा था ?”

        चाचा की इन बातों से मेरा बालविश्व पुरा हिल गया।  पर फटी जमीन में कोई नया अंकुर फूट रहा है,  इसका भी एहसास होने लगा।  मैंने चाचाजी से इस सब के बारे में सोचने के लिए समय माँग लिया।  उन्होंने भी मेरी बात का मान रखते हुए, मेरे विचारों की सराहना की और नए अंकुर को मजबूत बनाया।  

       “ श्रवण, तू जो भी निर्णय लेगा, उसकी मैं हमेशा सराहना और समर्थन करूंगा।  अपने घर में हमेशा नए विचारों का स्वागत किया जाता है यह बात तुम्हे भी पता है।  अगर बाद में ऐसा लगे की यह मुझसे नही होगा, तो तुम घर का व्यवसाय संभाल सकते हो ।  व्यर्थ बात की चिंता ना करते हुए आगे कदम बढाओ। ” ऐसी बाते करते हुए घर में दाखिल हुए।  

      हम दोनों को देखते ही सबको पता चल गया की किसी गंभीर बात पर इनकी चर्चा हुई है।  लेकिन कोई कुछ पुछ्ने के चक्कर में नही पडा।  हमारे घर में यह बहुत अच्छी बात थी की हर एक को अपने विचारों की आझादी थी।  कोई किसी के काम में बिना बात के हस्तक्षेप नही किया करता था।  खाना खाने का समय हो गया।  बुआ के हाथ का आलू पराठा, दही, मशरूम की सब्जी, दाल भात, गाजर का हलवा ऐसा स्वादिष्ट भोजन का आनंद, गप्पे और ठहाकों में बीत गया।  उसके बाद सभी अपने अपने काम पर चले गए।  मैं उठा और अकेला बाहर चला गया।  वैसे देखा जाय तो अभी भी मुझे अकेले घुमने की आदत नही थी।  लेकिन थोडी हिंम्मत करके रिक्शा से उस जगह पहुंच गया जहाँ सर्कस चल रहा था।  मैं अगले शो का तिकीट निकाल कर इधर-उधर घुमता रहा और बडे मैदान पर उस साम्राज्य को देखने लगा।  

      जानवरों के पिंजरे, लोग बाहर से भी देख सकेंगे और लोगों को आकर्षित करेंगे इस प्रकार से उनकी रचना की गई थी।  मैं प्रत्येक पिंजरे के सामने खडा होकर जानवरों की गतिविधियाँ, पिंजरे की संरचना देखने लगा।  पास ही, मेरी उम्र का एक लडका पिंजरे में बंद जानवरों को पानी पिलाने का काम कर रहा था।  मैं उसके पास गया और निरीक्षण करने लगा।  मुझे देखकर पहले तो वह थोडा शरमा गया लेकिन उसने काम जारी रखा।  जैसे ही मैंने उससे बात करने की कोशिश की, वह खुलकर बातें करने और जानकारी साझा करने लगा।  मुझे भी धीरे-धीरे इसमें दिलचसपी होने लगी।  उसके साथ चलने लगा।  पिंजरे के बाहर उसका काम था।  कितना भी छोटा जानवर या पंछी हो, उनके पिंजरे के अंदर जाने की इजाजत उसको नही थी।  सभी जगह पर के बरतन पानी से भरकर रखना, बस वही उसका काम था।  मैंने उसे पुछा कि तुम यहाँ कैसे आ गए ? तो वह कहने लगा “ क्या करू दोस्त, घर में चार भाई-बहन है, माँ काम पर जाती है।  मेरे पिताजी फॅक्टरी में काम करते थे, वहाँ काम करते समय उंचाई से गिर गए, तब उनका कमर के नीचे का हिस्सा जख्मी हो गया और उसकी वजह से अब वो काम नही कर पाते।  घर में ही रहकर छोटे काम करते है।  घर को संभालते है।  उनके दोस्त ने ही मुझे यहाँ पर काम दिलवा दिया।  यहाँ खाना-पीना भी मिल जाता है और पैसे भी।  शो में कसरत करता हूं, बीच के समय में सबको छोटा मोटा काम करना पडता है। ”

     मेरी उत्सुकता बढ गई।  मैंने पुछा “ क्या यहाँ सब गरीब लोग है ?”

     “ नही।  लेकिन कई गरीब वर्ग से है।  कोई-कोई यहाँ कि चमक-दमक से आकर्षित होते है।  कुछ जिम्नॅशियम यहाँ आते है।  कुछ जानवरों के प्रति आसक्त होते है।  जिनका शारीरिक विकास ठीक तरह नही होता है, उनको समाज स्वीकार नही करता।  ऐसे लोगों को यहाँ काम भी मिल जाता है, पैसा भी, और थोडी बहोत इज्जत भी मिल जाती है।  वे इससे घरवालों के उपर बोझ बनने से भी बच जाते है।  जिन्हे बचपन से ही शारीरिक व्यायाम करना पसंद है, वे यहाँ अपने रुचि को व्यवसाय के रुप में स्वीकार करते है। ”

     मेरे ही उम्र का वह लडका जीवन के अलग-अलग रुपों को इतनी गंभीरता से पहचनता है।  उसकी जीवन और व्यवसाय की समझ देखकर मैं तो दंग रह गया।  बिना हिचकीचाते उसे पुछा “ तुम्हे इस सबके बारे में कैसे पता है ?”

    उसपर हँसते हुए वो बोला “ घर पर रहते हुए दुनिया का ज्ञान नही मिलता, उसके लिए घर के बाहर कदम रखना पडता है।  फिर धीरे-धीरे संसार में सफलता, असफलता, अपमान, प्रशंसा, धोखा, का अनुभव होने लगता है।  उससे पता चलता है कि कोन सच्चा है और कौन झुठा।  कौनसा आदमी कौनसी चाल चलता है, और हम उस पर कैसे मात करे इसका अंदाजा आने लगता है।  फिर जिंदगी एक खेल बनकर रह जाती है।  जिंदगी हमपर हावी नही बनती हम जीना सीख जाते है।  लोगों के सुख दुःख देखकर अपना गम छोटा लगने लगता है।  इन सबके पार जाता है वो ही आदमी दुनिया में कुछ कर के दिखाता है। ”

     उसके विचारों से मैं बहोत ही प्रभावित हो गया।  “ तुम जीवन में बहुत बडा बनना चाहते हो ना ?” मैंने पुछा।  “ जिस व्यक्ति ने गरीबी देखी है वह हमेशा उससे उपर उठने की कोशिश करता है, जबकि जो व्यक्ति अमिर है वह हमेशा पैसे का आनंद लेता रहता है।  या उसे सफलता हासिल करने के लिए हमसे कम मेहनत करनी पडती है।  मैं भी कॉलेज में पढ रहा हूँ।  घरकी जिम्मेदारी है।  कही रुक नही सकता।  मैंने जीवन में बहुत कुछ करने का लक्ष रखा है।  चलो, अब शो का समय हो गया, तुमसे मिलकर अच्छा लगा। ” ऐसा कहकर वह जल्दी से अंदर चला गया।  मैं भी तंबू के प्रवेशद्वार से प्रवेश करते हुए चारों ओर नजर फेरने लगा।  

      वहाँ बहुत लोग थे।  अब मेरा निरीक्षण बढ गया।  विभिन्न उम्र के, समुदाय के लोग प्रसन्न चेहेरे के साथ बैठे थे।  हर किसी की दिलचस्पी अलग-अलग विषयों का चयन कर रही थी।  बच्चे, जोकर और जानवरों को देखने में उत्सुक थे।  युवावर्ग, छोटे कपडे पहने हुए जवान लडकियों को देखने के साथ-साथ रोमांचक खेल देखने का आनंद लेना चाहते थे।  बुढे लोग अपने पोते-पोतियों को सर्कस दिखाने का आनंद देना चाहते थे।  स्टेज के उपर के प्रखर लाइट्स लग गए।  जैसे बँड बजने लगा वैसे हर एक के दिल में एक उमंग की लहर दौडती चली गई।  एक प्रकार का चैतन्य फैल गया।  सामने के बडे से प्रवेशद्वार से रंगिले, चमकीले छोटे कपडे पहने हुए एक लडकी अपनी अदा दिखाते साइकिल पर सवार होते हुए आ गई।  साइकिल चलाते हुए पुरे तंबू में अपने करतब दिखाते चक्कर काटने लगी।  बीच-बीच में अपने हाथ छोडकर अपने में ही गोल-गोल घुमती थी।  साइकिल के उपर चढकर उसने सबको अभिवादन किया।  एक जोकर उसके पिछे मुझे छोडकर मत जा।  ऐसे अविर्भाव करते हुए दौड रहा था।  लडकी अपने करतब दिखाकर अंदर चली गई।  जोकर दुःख से विव्हल हो गया और जमीन पर गिरकर विलाप करने लगा।  इतने में अंदर से छह लडकियाँ साइकिल लेकर आ गई, उसके चारों ओर घुमने लगी।  वह देखकर जोकर खुषी से उछल पडा इसको देखूँ या उसको ऐसे अविर्भाव करते नाचने लगा।  गोरी-गोरी लडकियों व्दारा पहनी गई आकर्षक पोशाख, मेकअप, माहोल में बजता हुआ संगीत, सब कुछ देखने और सुनने लायक था।  लडकियाँ एक-दुसरे के साथ साइकिल पर विभिन्न करतब दिखाकर निकल गई।  

      उनके बाद सफेद, लाल धारियों वाले चमकीले वस्त्र पहने हृष्ट-पुष्ट कद-काठी के युवक घोडे पर सवाँर होकर दौडते हुए आ रहे थे।  घोडों और सवारों का उत्साह सराहनीय था।  उन्होंने घोडों के उपर खडे रहकर करतब दिखाए।  एक घोडा अपने दो पैरों पर खडा था और घुड्सवार अपनी जांघे मजबूती से जमाकर विजय पताका लहरा रहा था।  यह सर्कस दुसरी बार देख रहा था इसलीये अब उन खिलाडीयों को देखने में मुझे मजा आ रहा था।  उनकी एकचित्त एकाग्रता अद्भुत कार्य कर रही थी।  क्रॉस रोप नामका एक करतब चालू हो गया।  बेशक यह नाम मुझे बाद में समझ आया।  लगभग पचास फीट की उंचाई पर एक रस्सी बांधी गई थी और उसके मध्यभाग में एक युवक, छोटी लडकी को लेकर खडा था।  उसने रस्सी में अपने पैर फँसाकर पकड मजबूत कर ली और लडकी को उलटा लटका कर, उसके पैर पकडकर झुलाने लगा।  गती की सीमा दोनों का इस विषय का अभ्यास दर्शा रही थी।  उनके बाद एक जोडा मैदान में उतरा।  उपर से उनके सामने, एक छोटे झुले के सिरे पर एक लोहे की पट्टी लटक रही थी।  दोनों ने एकदुसरे के सामने मुँह करके वह पट्टी को अपने दातों में कसकर पकड ली।  वह झूला उपर जाकर तेजी से घुमने लगा।  उनके दोनों हाथ बगल में फैले हुए थे।  केवल दातों पर अपना वजन और गति को संभाला हुवा था।  तालियों की गुंज में खेल आगे बढते गए।  इंटरवल हो गई।  आगे के खेल जानवरों के और साहसपूर्ण कलाओं के थे।

         बच्चों का आइसक्रीम, पॉपकॉर्न के लिये रुठना, लोगों का बाहर आना जाना, गपशप, हँसी के ठहाके इन सबसे एक उल्हासित माहोल बन गया था।  स्टेज और दर्शकों के बीच लोहे की जाली लगाने का काम चालू था।  यह सतर्कता इसलिये थी ताकि कोई जानवर दर्शकों पर हमला ना कर दे।  जल्द ही इंटरवल खत्म हो गई।  बॅन्डवालोंने अपनी धून चालू की।  फिर से तंबू में जान आ गई।  रिंगमास्टर अपना चाबूक लहराते हुए मंच पर आए।  उनके पीछे से जानवरों के पिंजरे आने लगे।  बाघ दहाडते हुए इधर-उधर घुमने लगे।  रिंगमास्टर के चाबूक के डर से कभी पीछे मुड जाते तो कभी उनपर गुर्राते।  एक के पीछे एक, ऐसे शृंखला में बैठने के बाद रिंगमास्टरने एक बडीवाली रिंग को आग लगाकर वह स्टँड में रख दी।  बाघ इस जलते चक्र के अंदर से कुदकर अपने खेल का प्रदर्शन कर के दिखाने लगे।  सब दर्शकों ने जोर से तालियाँ बजाई।  फिर शेर के पिंजरे आ गए।  उनमें से एक शेर अजीब तरह का बर्ताव कर रहा था।  वहाँ के आदमी को अपने मुँह में पकडने की कोशिश कर रहा था।  ऐसे करने से दर्शक घबराकर जोर से चिल्लाने लगते थे।  मंच, चाबूक की फटकार और शेर की गर्जना से गुंज उठा।  बाकी शेर अपना काम खत्म कर के रिंगमास्टर के इशारे पर पिंजरे में जा बैठे।  संतुलन बिगडा हुआ शेर पिंजरे में जाने के लिए भी तयार नही था।  कई कोशिशों के बाद उसे पिंजरे में सफलतापूर्वक कैद कर लिया।  तब खेल की शुरआत ऊंचे स्तरों वाले झूलों से हुई।  उस करतब में मुझे वह मित्र भी दिखाई दिया, जिससे मैंने कुछ देर पहले ही बातें की थी।  शुरू में, मैं उसे पहचान ही नही पाया।  चमकीले कपडे, मेकअप के कारण उसका रुप पुरी तरह से बदल गया था।  लयबध्द गति से चलने वाली वह झुले की कसरत सब अपनी साँस रोककर देख रहे थे।  उसमें भी जोकर की अपनी शरारत चालू थी।  झुले से एक स्थान से लेकर दुसरे स्थान तक जाते जाते बीच में गिरते हुए, वे लोगों की हँसी ओर तालियाँ ले रहे थे।  वह भी खेल खत्म हुआ।  अंततः हाथियों का दल आया।  एक हट्टे-कट्टे युवक के निर्देशानुसार हाथी दो पैरों पर खडे होना और क्रिकेट खेलना जैसे खेल करके दिखाने लगे।  इसके बाद युवक कील की तक्ती पर लेट गया और एक हाथी उसके छाती पे पैर रखकर गुजरा।  यह दृश्य देखकर सब दर्शकों का दिल दहल गया।  लेकिन उस युवक को कुछ नही हुआ।  अंत में एक गणेशजी की बडी प्रतिमा स्थापित की गई।  सामने बडे से टब में पानी, फुलों का हार, गुलाल की थाली, नारियल रखकर दिप जलाकर आरती स्टँड रख दिया।  दो हाथियों ने गणेशजी की परिक्रमा की।  फिर टब से पानी अपनी सुंड में भरकर गणेशजी पर छिडका।  दुसरे हाथी ने गुलाल उडाया।  फुलों का हार गले में पहनाया।  अपने सुंड में नारियल लेकर भगवान को चढाया।  उसके बाद एक ने अपने सुंड में पंचारती ली ओर दुसरा घंटी बजाने लगा।  बँडवाले ने आरती शुरू की।  वह दृश्य दिल को छुने वाला था।  कार्यक्रम खत्म हो गया।  सभी कलाकरों ने मंच पर आकर दर्शकों का अभिवादन किया।  दर्शकों की ओर से तालियाँ बजती रही।  उससे कलाकारों का हौसला बढ रहा था।  यह उनकी कडी मेहनत का फल था।  

         मैं सबके साथ तंबू से बाहर आ गया।  पुनःश्च मेरा विचारचक्र चालू हो गया।  यह सब टीम वर्क का खेल था।  एक की भी गलती हर किसी पे भारी पड सकती थी।  छोटे से लेकर बडे से बडे कलाकार तक सभी का एक-दुसरे के साथ अच्छी तरह तालमेल था।  दोपहर में नए मित्र के साथ जो वार्तालाप हुआ वह मेरे लिए बहुत ही मददगार रहा।  सर्कस का काम तो बहुत मेहनत वाला काम था।  मुझे इस बात की चिंता नही थी की इस प्रयत्न में अगर नाकामयाब हो गया तो सब मेरा मजाक उडाएंगे।  क्यों की घर का माहोल सबको समाने वाला था।  किसी को नीचा दिखाने का स्वभाव किसी का नही था।  परंपरागत व्यवसाय में, कभी भी मेरे जीवन की शुरवात फिरसे कर सकता था।  आखिरकार, मैंने इसे एक बार आजमाने का फैसला ले लिया।  अगर हमारे पास मदद के लिए कई हाथ हों तो हमे कष्ट नही सहना पडेगा।  जहाँ तक शिक्षा का सवाल है, तो मैं भी बाहर से इम्तहान दे सकता हुँ।  आर्ट्स साइड में अकाउंट्स, व्यवस्थापन, सायकॉलॉजी जैसे विषय लेकर एडमिशन ले सकता हुँ।  घर पर आते-आते मन में पुरी योजनाएँ तयार हो गई।  ये सिर्फ मेरे तरफ से था।  वास्तव में चाचाजीही इसके बारे में बता सकते थे।  आज रात को खाना खाने के बाद फिरसे उनसे बात करने का फैसला मैंने कर लिया और घर में प्रवेश किया।   

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