में और मेरे अहसास - 104 Darshita Babubhai Shah द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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में और मेरे अहसास - 104

दिल की बातेँ होंठों पर आ गई तो क़यामत आ जाएंगीं l

राज़ की बातेँ होंठों पर आ गई तो क़यामत आ जाएंगीं ll

 

ग़र जाहिर हो गये जज़्बात ओ दिल तो कहाँ छुपोगे l

रात की बातेँ होंठों पर आ गई तो क़यामत आ जाएंगीं ll

 

पिछले दिनों मुलाक़ात में बहुत रंगीन वक्त गुज़रा l

साथ की बातेँ होंठों पर आ गई तो क़यामत आ जाएंगीं ll

 

महफ़िल में आमने सामने बैठकर निगाहों से पीए हुए l

जाम की बातेँ होंठों पर आ गई तो क़यामत आ जाएंगीं ll

 

मोहब्बत की आगोश में घिर कर कारवाँ के संग  की हुई l

मन की बातेँ होंठों पर आ गई तो क़यामत आ जाएंगीं ll

१-६-२०२४ 

 

पैग़ाम आया है चलो कहीं दूर चले l

दिल में सो तरह के अरमान है पलें ll

 

मन मस्त पंछी बनके उड़ चला है l

पहुँचे पास सजना के शाम ढले ll

 

दूर तक साथ चलने का वादा  l

दुआ करते हैं फ़िर से ना छलें ll

 

गुलिस्तां में जाकर गीत गुनगुनाए l

प्यार से एकदूसरे के मिले गले ll

 

खों जाए आसमान की रवानी में l

जल्द मंजिल की ओर निकले ll

२-६-२०२४ 

 

पहेले प्यार की पहली बारिश में भीग जाना हैं l

दिल में सुलगती हुई तेज़ तपिश को बुझाना हैं ll

 

वक़्त की सोच का भरोसा नहीं क्या क्या दिखा दे l

जीतना ज्यादा मिले उतना ज्यादा प्यार पाना हैं ll

 

घने बादलों के साथ मौसम के रूहानी मिजाज़ में l

प्यार मोहब्बत से ही हरा भरा ये आशियाना हैं ll

 

एक छतरी के नीचे बारीश से बचने की कोशिश में l

आधे बचते, आधे अधूरे भीगना लगे सुहाना हैं ll

 

कुछ पल के लिए वक़्त वहीं ठहर सा गया है कि l

अनजाने अचानक हाथ में हाथ होना ख़ज़ाना हैं ll

३-६-२०२४ 

 

मोहब्बत की रस्मे निभाने वाले जांबाज होते हैं l

दिलों दिमाग का चैन के साथ सुकून भी खोते हैं ll

 

प्यार मिलने की चाहत और उम्मीद में दिल के l

ख्बाब, अरमान, ख्वाइशे, जज्बातों को बोते हैं ll

 

इकरार भी है मुश्किल, इनकार भी है मुश्किल अब l

इश्क़ की दुनिया में जीने वाले ना जागे,ना सोते हैं ll

 

दिवाने, आवरा, पागल, मजनू, बेपनाह इश्क़ में l

वो दो लम्हों की ख़ुशी पाकर ढ़ेर सारा रोते हैं ll

 

चाहत की क़ायनात बड़ी अजीबोगरीब होती है l

ताउम्र के लिए वो आंसू, बेचेंनी का बोझ ढोते हैं ll

४-६-२०२४ 

खुदा की क़ायनात में सब जोकर हैं l

इस रंगमंच में एकदूसरे के नोकर हैं ll

 

वहीं पाया है जो आजतक बोया है l

यहाँ कुछ भी मिलता कुछ खोकर हैं ll

 

जब तक साँसें चलती दुनिया छलती l

सुन मिलता चैन कबर में सोकर हैं ll

 

यहाँ कोई किसीका नहीं है जान जा l

मुकम्मल तो दर-ब-दर का होकर हैं ll

 

लम्हा भर खुशी ओ ढेर सारे ग़म है l

संभलना क़दम क़दम पर ढोकर हैं ll

५-६-२०२४ 

 

ताउम्र दर-ब-दर भटकता रहा l

बदलते रिश्तों में अटकता रहा ll

 

मुकम्मल चैन ओर सुकूं की l

तलाश में शहर बदलता रहा ll

 

एक दिन न्याय जरूर मिलेगा l

इसी भरोसे पर छटकता रहा ll

 

महफिल में हुस्न को देख l

बिन पीये ही बहकता रहा ll

 

इंतज़ार करते करते जाने कब l

हाथों से वक्त सरकता रहा ll

६-६-२०२४ 

 

बदलते रिश्ते के साथ बदलता इंसान हैं l

गधा पहलवान ग़र ख़ुदा महेरबान हैं ll

 

चाहें कितना भी बड़ा तिश्मार खां हो l

किसीकी नहीं चलती वक्त महान हैं ll

 

राह देखो तो क्या कुछ नहीं मिलता l

आम की मिठास पर जहां कुर्बान हैं l

 

जिगर का खून करने वाली गोली l

बंदूक से छूटने के बाद पशेमान हैं ll

 

सुहानी यादों के सहारे जी ही लेगे l

बस एक मुलाकात का अरमान हैं ll

 

औलाद को बेहाल फिरता देख कर l

आज हेरान ओ परेशान बागबान हैं ll

 

किसकी सजा किसको मिल रहीं हैं l

साथ हम दोनों के रोया आसमान हैं ll

६-६-२०२४ 

 

जज़्बात बेहाल हैं l

मुहब्बत बेज़ान हैं ll

 

वक़्त की मार से l

ज़िंन्दगी हेरान हैं ll

 

इन्सानियत देख l

खुदा परेशान हैं ll

 

यार की बेरूखी l

दिल पशेमान हैं ll

 

आज हसरतों का l

डूबता जहान हैं ll

७-६-२०२४ 

 

काली सड़क का सफ़र याद रहेगा l

सुहाने दिनों की दास्तान कहेगा ll

 

लम्हा भर की खुशियां जुटाकर l

ज़िंन्दगी भर दर्दे जुदाई सहेगा ll

 

दिन तो दौड़ेगे घोड़ा रेस जैसे l

दिल में कसक बनकर बढ़ेगा ll

 

हिटलर भी खाली हाथ गया l

वक़्त की मार से कौन बचेगा?

 

ख़ुद के कारनामें का ज़ख्म l

जिगर में साथ लहू के बहेगा ll

८-६-२०२४ 

 

लम्हों में ज़िंन्दगी को जी लो l

यार के साथ का जाम पी लो l

 

जुदाई के पलों की कापकुप l

मुहब्बत के धागों से सी लो ll

 

जो भी है बस यहीं एक पल हैं l

नशीली शाम का लुफ्त भी लो ll

 

कल के भरोसे पर मत रहना l

जो भी मिले आज अभी लो ll

 

कल शायद देनेवाला ना हो l

जीतना जी चाहें वे सभी लो ll

९-६-२०२४ 

 

बेबसी दिल की किसीको बता नहीं सकते l

ज़ख्म ए जिगर किसीको दिखा नहीं सकते ll

 

चाहें कितने ही डोरे मन्नतों के धागे बांधे l

तकदीर में लिखा हुआ मिटा नहीं सकते ll

 

शाख से गिरते पतखड़ में मुरझाए हुए l

खिजां के फूल फ़िर से सजा नहीं सकते ll

 

बरसात की रिमझिम में शव्दों से भिगोने को l

अन्तर्मन की आवाज़ को दबा नहीं सकते ll

 

महफिल में आज हुस्न बेनकाब आया है तो l

खूबसूरत चहरे से नज़रे हटा नहीं सकते ll

१०-६-२०२४ 

 

इंतजार की घड़ियाँ कैसे बिताई मत पूछो l

प्यार की कसमें कैसे निभाई मत पूछो ll

 

न चिट्ठी ना कोई संदेश आया फिर भी l

आश की ज्योत कैसे जलाई मत पूछो ll

 

ख्वाबों की क़ायनात से निकलकर आज l

हकीकत में हसीन कैसे बनाई मत पूछो ll

 

उम्मीदों औ अरमानों का गला घोट के l

हाथों में महेंदी कैसे रचाई मत पूछो ll

 

खुद सो बार टूटे पर हुस्न वालों के l

दिल में उम्मीद कैसे जगाई मत पूछो ll

११-६-२०२४ 

 

मासूमियत का नकाब पहन के ना फिरा करो l

भोलापन, ईमानदारी, शुद्धि ओ सफ़ेदी भरो ll

 

जूठी मुहब्बत दिखाके, दिलों दिमाग से खेल l

धोखाधड़ी और बेईमानी से सुकून ना हरो ll

 

इन्सानियत का तकाज़ा तो यहीं कहता है l

बंध दरवाजे खटखटाके मन के अंदर सरो ll

 

कोई किसीका नहीं यहाँ, तू सबको अपनाना l

ब्रह्मांड की अदृश्य ओ अद्भुत शक्ति से डरो ll

 

होठों पर मुस्कान सजाये, नादां बने रहना l

जूठ कितना भी हसी पर सदाकत पर मरो ll

१२-६-२०२४ 

 

मन परिंदा उड़कर जा पहुँचा साजन के पास l

लम्हा दो लम्हा जी हल्का करने बैठे साथ ll

 

बाद मुद्दतों के मुलाकात का पैगाम आया है l

कल फ़िर मिले ना मिले एसी सुहानी रात ll

 

दिल चटपटा रहा कुछ हुस्न को भेजने को l

महकिले लिफ़ाफ़े में आज भेज दी है याद ll

 

बड़ा बैचेन और उखड़ा सा रहेता है दिल l

अरसा हुआ ठीक तरह से नहीं हुई बात ll

 

सुबह से आज एक कौआ बोल रहा है कि l

शायद नामाबर लाए खुशखबरी का तार ll

१३-६-२०२४ 

 

प्यार नहीं है तो फ़िर बता क्यूँ नहीं देते? 

मिरे नशीले ख़त को जला क्यूँ नहीं देते?