में और मेरे अहसास - 105 Darshita Babubhai Shah द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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में और मेरे अहसास - 105

मुस्कान होंठों पे सजाए रखना l

जिगर में हौसला बनाए रखना ll

 

एकतरफ़ा ही सही सिद्दत से l

प्यार के रिसते निभाए रखना ll

 

ग़मों से भरी जिंदगी में हर पल l

मुहब्बत का जाम पिलाए रखना ll

१६-६-२०२४ 

 

मौसम की पहली बारिस गिरते ही बिखर जाता हूँ l

फिर यादों की बौछार आते ही संभल जाता हूँ ll

 

आशिक बनकर बदनाम हो गया हूँ फ़िर भी आज l

ख़्यालों में उनके एक तबस्सुम से निखर जाता हूँ ll

 

पवन की लहरकी उनकी मदमाती अह्सास ले आई l

फ़िज़ाओं में खुशबु की महक से सँवर जाता हूँ ll

 

लम्बी जुदाई के दिनों में फूलों ओ सौगात के साथ l

ख़त में बस याद भेजते हैं तो भी बहल जाता हूँ ll

 

एक उम्र गुजर गई है जी भर के बरसे नहीं है तो l

बरसने को तैयार बादल के जैसे मचल जाता हूँ ll

१७-७-२०२४ 

 

सोचा ना था ज़िंदगी ये दिन भी दिखाएंगी l

महबूब किसी और का नाम भी लिखाएंगी ll 

 

प्यार में जीने मरने की कसमें खाने वाली l

जुदाई के दिन रात हसी खुशी से बिताएंगी ll

 

साथ साथ बिताएं हुए लम्हों को भुलाकर l

आज किसी और से साथ शादी रचाएंगी ll

 

नई ज़िंदगी नया यार नया रिश्ता मिला तो l

घर आँगन को महकते फ़ूलों से सजाएंगी ll

 

दिल का रिश्ता एक ही पल में दफ़ना दिया l

चाहते हैं नया रिश्ता सिद्दत से निभाएंगी ll

१८-६-२०२४ 

 

सोचा ना था अपने यूँ बदल जाएंगे ll

खून के रिश्ते हाथों से फिसल जाएंगे ll

 

साथ जीने मरने को आये थे क्या हुआ ?

कि जल्द ही जिन्दगी से निकल जाएंगे ll

 

एक दौर एसा आएगा, ऐसे भी जीना होगा l

दर्द छुपाकर यूँही दिन रात ढल जाएंगे ll

 

नाज़ था जिन रिश्तों पर आज उड़ गया l

मिरी शौहरत देख मेरे अपने जल जाएंगे ll

 

जरा सा भी इल्म ना था कलियुग आएगा l

अपनापन दिखाकर अपने ही छल जाएंगे ll

१९-६-२०२४ 

 

 

मोबाईल की लत बुरी बला हैं l

इन्सां बेकार सा हो चला हैं ll

 

इस की आभासी कायनात बड़ी l

फेंक अकाउंट बना के छला हैं ll

 

ग़र सही तरीके से इस्तेमाल हो l

कार्यक्षमता बढ़ाने की कला हैं ll

 

खेल ने का टाइम चुरा लिया है कि l

आज बचपन साथ उसके पला हैं ll

 

अब हमारे दिन रात वो चलाता है l

रिश्तों का नेटवर्क ढीला ढला हैं ll

१९-६-२०२४ 

 

सीने में मनचाहा मुरव्वत दर्द सुलगता रहा l

जड़ों तक ज़ख्म लगे तो ताउम्र तड़पता रहा ll

 

रिश्तो की दुहाई ना देना जज़्बात मर गये हैं l

बेवफाओं से दिली ताल्लुक़ से मचलता रहा ll

 

जिंदा रहने के लिए गलतफहमी पाल रखी थी l

दिलमें उठते यादों के बवंडर से छलकता रहा ll

 

भीगी पलकों से सहला लेते हैं बीते लम्हों को l

जुल्मी के वादे याद कर करके बहकता रहा ll

 

पागल इतने है कि फ़िर से विश्वास कर लिया l

सखी मुलाकात की गुंजाईश से बहलता रहा ll

२०-६-२०२४ 

 

सुख दुख में हसते रहना पापा ने सिखलाया l

हिम्मत से आगे बढ़ना पापा ने सिखलाया ll

 

हौसलों के साथ जीवन की राह पर चलना l

कभी किसीसे न डरना पापा ने सिखलाया ll

 

कभी भी पीठ पीछे वार ना करना, हमेशा l

जो है मुँह पर कहना पापा ने सिखलाया ll

 

जीस्त है ऊँच नीच तो होती रहती है तो l

दर्द मुस्कराते सहना पापा ने सिखलाया ll

 

कपड़ों से नहीं ख़ुद की करनी है पहचान l

उच्च विचार पहना पापा ने सिखलाया ll

 

जिंदगी की नैया को अपने ख़ुद के बल l

संसार सागर तरना पापा ने सिखलाया ll

 

दुनिया कई तरह के लोग मिलेगे, सुकूं l

किसीका ना हरना पापा ने सिखलाया ll

 

गर जीवन में बड़ा आदमी बनना चाहते हो l

खुब लिखना पढ़ना पापा ने सिखलाया ll

 

शौहरत और इज्जत कमाकर सीडियां l

इंसानियत की चढ़ना पापा ने सिखलाया ll

 

कोई भी ग़लत काम को ना करना कभी l

अन्याय से लडना पापा ने सिखलाया ll

 

जीवन की कश्ती पर लगाने के लिए l

साथ समय सरना पापा ने सिखलाया ll

 

दुनिया में आना जाना लगा रहेगा तो l

दिल में प्यार भरना पापा ने सिखलाया ll

 

भाइचारे और अमन के साथ जीवन जीना l

मानवता ही गहना पापा ने सिखलाया ll

 

खुद ही पढ़ना लिखना सिखाया, जीवन l

समंदर में बहना पापा ने सिखलाया ll

२१-६-२०२४ 

 

बरसती बारिश का मौसम मस्ताना क्या कह रहा हैं l

आसमान से बरसता पानी निगाहों से बह रहा हैं ll

 

शायद फ़िर से ये पल ये लम्हें फ़िर मिले ना मिले l

भीगने भिगोने का ले लो जी भरके मजा कह रहा हैं ll

 

मस्त बहारों का मौसम आया है खिलखिलाता देखो l

चारों ओर खुशी से कायनात हरा दुपट्टा पह रहा हैं ll

 

सख्त तपिश से तपी हुई हेरा परेशान तप्ती प्यासी l

धरती का हर कोना चप्पा चप्पा बूँदों को गह रहा हैं ll

 

संग अपनों के चहचहाने, खुशी से के मुस्कुराने का l

बरखा की बूँदों से प्रेम तृष्णा बुझाने ख़ुद तह रहा हैं ll

२२-६-२०२४ 

 

आषाढ़ में आंखों से सावन भादों बरस रहे हैं l

भीगने भिगोने के लिए जज़्बात मचल रहे हैं ll

 

आषाढ़ की सुहानी मदमाती नशीली बरसात में l

आज रिमझिम मादक मौसम में बहक रहे हैं ll

 

आषाढ़ी बादल नेह की पावन गंगा बहाते l 

प्यार बरसाती मीठी नज़र को तरस रहे हैं ll

 

बागो में कोयल पपीहे मीठे मधुर गीत गाते l

बहका हृदय पीयू मिलन को तड़प रहे हैं ll

 

हवाएं गा उठीं सरगम,मयूरा नाचता छम-छम ।

पानी बरसाने को रेडी दिल फ़रेब गरज़ रहे हैं ll

 

आकाश से मुस्काती बूंदे धरा से मिलने आई l

क़ायनात के छोटे बड़े जीव इसे पनप रहे हैं ll

२३-६-२०२४ 

 

मोर कोयल ने मचाया हैं शोर l

आसमाँ में छाये बादल घनघोर ll

 

मिलन के लिए आतुर मनवा l

कहाँ छुप के बैठा है चितचोर ll

 

बारिश लाई यार का संदेश l

दिले गुलज़ार से बंधी है डोर ll

 

प्रेम प्यार और अमन चैन का l

बरसे बादल छमछम चहुंओर ll 

 

पीयू संग चाँद रात यूं बीती l

आंखों ही आंखों में हुईं भोर ll

२४-६-२०२४ 

 

मृग तृष्णा के पीछे कहाँ तक भागोगे l

प्यास बुझाने के लिए कहां जाओगे ll

 

पूरी शिद्दत से क़ायनात साथ देगी l

ग़र मन में ठान लो सब कुछ पाओगे ll

 

चाँद सितारे क़दमों में बिछा देगे तभी l

चहेरे पर हसी मुस्कुराहट लाओगे ll

 

तिरे नाम इक खूबसूरत शाम हो जाए तो l

महफ़िल में दिल का सौदा करने आओगे ll

 

मोहब्बत की हवेली नीलाम कर दो आज l

दिल से ग़र महसूस करोगे तो भाओगे ll 

२५-६-२०२४ 

 

बात दिल की लिखने में वक्त तो लगता है l

तुम्हें अपना कहने में वक्त तो लगता है ll

 

ख्वाइशे खूबसूरत साथ ढूँढती रहती कि l

मुहब्बत को जितने में वक्त तो लगता है ll

 

हँसने के लिए दोस्तों की जरूरत होती l

चाक जिगर सिलने में वक्त तो लगता है ll

 

उम्मीद का दामन ना छोड़ना कभी भी l

पहली बार सिखने में वक्त तो लगता है ll

 

उतार चढ़ाव ज़िंदगी में आते जाते रहते l

हार जीत झिलने में वक्त तो लगता है ll

 

भरी महफ़िल में नशीले गीत सुनते ही l

खुशमिजाज दिखने में वक्त तो लगता है ll

 

कभी कभी एक उम्र भी कम पड़ जाती है l

ज़हन से याद मिटने में वक्त तो लगता है ll

२६-६-२०२४ 

 

यादों के बादल छाने लगे हैं l 

पुराने तरन्नुम गाने लगे हैं ll 

 

मुलाकात की बात सोच के l

जुदाई के दिन भाने लगे हैं l

 

कई दिनों के बाद होश आया l

चैन और सुकून पाने लगे हैं ll 

 

अब्र का अंदाज़ दिखा रहा है l

तड़पने के दिन जाने लगे हैं ll 

 

गुज़रे सुहाने लम्हों की याद l

होठों पे हसी लाने लगे हैं ll 

 

बचपन के दोस्त मिले तो l

मुकम्मल पल आने लगे हैं ll 

२७-६-२०२४ 

 

भीगी भीगी चाँदनी रात में मुलाकात करे l

जीवन की नये तरीके से शुरुआत करे ll

 

काटेंगे तो उम्र ओ ' जिये तो जिन्दगी है l

तो हसी खुशी जीने के पैदा हालात करे ll

 

नटखट हवाएँ चल रहीं हैं तो आओ बेठे l

इस मनचली शाम में दिल की बात करे ll

 

मौसम का तकाज़ा है आज महफिल में l

नज़रे मिलाके इज़हार ए जज़्बात करे ll

 

हर पल सुकून की तलाश में रहते हैं l

खुद के अह्सास का खयालात करे ll

२८-६-२०२४ 

 

बात अधर तक आते आते रह गई l

फ़िर निगाहें इशारों में ही कह गई ll

 

दर्द फ़ूलों की तरह महकते रहे और l

आजमाइश में सारी उम्मीद बह गई ll

 

सहमी हुईं साँस, कांपते है पाव फिर भी l

सखी जुदाई के पल हस्ते हस्ते सह गई ll

 

औरों के हाथ थाम मंजिल की ओर चले l

थोड़ी सी खुशी थी साथ उसके वह गई ll

 

खता मत गिन किसने क्या गुनाह किया l

मोहब्बत में दोनों की अच्छाई गह गई ll

२९-६-२०२४ 

 

जीत का जश्न मनाने के लिए सकारात्मक योगदान देना चाहिए l

जिन्दगी में खेल हो या कुछ और पूरी सिद्दत

से भाग लेना चाहिए ll

 

जंग हो या खेल एक अकेला ही काफ़ी होता है 

मंजिल तक पहुंचाने को l

हार जीत लगी रहती है दिल में जीत ने का जज्बा होना चाहिए ll

 

जीतने का जुनून जब सिर पर चढ़कर जीत ही लक्ष्य बन जाये तब l

मनचाहा फल पाने के लिए दिलों दिमाग में हौसला बोना चाहिए ll

 

खुद की कश्ती खुद ही के समन्दर में समा 

जाती एक दिन l

जीवन जीतना भी मिले हसतें मुस्कराते जी भरके जी लेना चाहिए ll

 

जो भी करो पूरी तरह से तैयार होके दिली लगाव के साथ करो l 

जहा हो वहा अपना पूरा तन मन धन और ध्यान देना चाहिए ll

३०-६-२०२४