अपने पोते को उसके जन्मदिन का तोहफ़ा सौंपकर लियोना अपने काम के लिए ऑफिस की ओर चल पड़ी थी। वही से रात को उन्हें एयरपोर्ट भी जाना था,जहाँ से वह पहले मुंबई और फिर आगे दुबई के लिए निकलने वाली थी।
उनके जाते ही मैनेजर अशोक एक आदमी को लेकर क्रिस के कमरे में पहुँचा। क्रिस अपने नए कमरे में खिड़की के पास खड़ा समुंदर को निहार रहा था।
तभी अशोक ने उसके कमरे के दरवाज़े पर दस्तक दी और आगे आते हुए कहा,"क्रिसबाबा, यह पीटर है। आपके इस नए विला का बटलर! मेरी गैरमौजूदगी में आपको कोई भी काम हो, आप इसे कह सकते हैं।
"क्यूँ अशोक अंकल, क्या आप भी कही जा रहे हैं?", क्रिस ने पूछा।
अशोक ने तुरंत जवाब देते हुए कहा,"नहीं, अभी तो नहीं। लेकिन अगर मैडम का कोई मैसेज आया और मुझे काम से कहीं जाना पड़ा तो, पीटर सब कुछ संभाल लेगा! बस इसीलिए ऐसा कह रहा हूँ।"
क्रिस ने पीटर की ओर देखा, वह कमरे में इधर उधर देख रहा था। मानो कुछ ढूँढ़ रहा हो। वह कुछ घबराया हुआ भी लग रहा था। उसे देखते हुए क्रिस ने पूछा,"क्या हुआ? तुम इतने डरे हुए क्यूँ हो?"
पीटर ने घबराहट में लड़खड़ाती हुई ज़ुबान में कहा,"क...कुछ... कुछ नहीं मैन.. आय मीन.. सर!...विला.. हम आपका नया विला देख रहा था! अच्छा है...बहुत अच्छा!"
"मुझे सर-वर कहने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम सिर्फ़ कहकर क्रिस बुला सकते हो!", क्रिस बड़ी ही सहजता से कहा।
पीटर ने एक नज़र मैनेजर अशोक की ओर देखा और कहा,"मैनेजर साहब, आपको क्रिसबाबा बोलता हैं न? तो हम भी क्रिसबाबा कहकर ही पुकारेगा आपको! लेकिन....", बीच में ही बात रोकते हुए उसने एक बार फिर अशोक की ओर देखा।
उसकी बात को समझते हुए आगे अशोक ने कहा,"हाँ,लेकिन पीटर का एक प्रॉब्लम है। वह रात को इस विला में रुकना नहीं चाहता। रात को नौ बजे वह अपने घर चला जायेगा और सुबह छह बजे वापिस काम पर आ जायेगा!"
क्रिस ने हैरानी से पूछा,"क्यूँ? इसकी कोई ख़ास वजह?"
"नहीं.. वो क्या है न, हम फैमिलीमैन है। हमारा वाइफ हमको कहीं बाहर नहीं रहने देगा और कोई रीजन नहीं है।", पीटर ने जवाब दिया।
"ठीक है, तुम्हारी मर्जी! अशोक अंकल, आज शाम मेरे कुछ फ्रेंड्स आएंगे। ज़्यादा नहीं, वही सब हमेशा वाले, आप तो जानते ही हो सबको! तो उनके लिए खाने-पीने का इंतजाम करना होगा। हो सकता है रातभर सब यही रूक जाएं तो आप एक बार सारे रूम्स चेक कर लेना और सब रेडी कर लेना।", क्रिस ने अपने दोस्तों के बारे में बताया।
अशोक ने आगे कहा,"मैडम ने जाने से पहले मुझे इसके बारे में बता दिया था। सब रेडी रहेगा,आप बिल्कुल टेंशन मत लीजिए।"
इस तरह दोनों बातें करते हुए कमरे से बाहर आए, इस बीच पीटर भी कमरे से बाहर आ गया था और विला में इधर उधर देख रहा था। उसने अपने गले में मौजूद क्रॉस को एक बार छुआ,जैसे चेक कर रहा हो कि गले में है या नहीं और वह क्रिस और अशोक के पीछे पीछे सीढियाँ उतरने लगा,तभी अचानक कही से एक काली बिल्ली आकर पीटर पर झपट पड़ी और पीटर डर की वजह से सीढ़ियों से गिरता हुआ नीचे आ गया।
इस पूरे वाक़िये के समय पूरा विला पीटर की चीखों से गूंज उठा!
क्रिस और अशोक को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि आख़िर अचानक से यह क्या हो रहा था? आख़िर पीटर एक बिल्ली से इतना क्यूँ डर गया और यह काली बिल्ली? यह अचानक से कैसे और कहाँ से आ गई?
पीटर की चीख़-पुकार के बाद बिल्ली जिस तेज़ी से आई थी,उसी तेज़ी से विला के सामने वाले दरवाज़े से होते हुए वहाँ से बाहर निकल गई!
अशोक ने आगे बढ़कर पीटर को उठाया,"तुम ठीक तो हो न? बस एक बिल्ली ही थी और तुम इतना डर गए? कहीं चोट तो नहीं लगी तुम्हें? इतना क्यूँ चिल्ला रहे थे?"
पीटर के चेहरे पर डर साफ़ साफ़ नज़र आ रहा था,लेकिन वह संभलते हुए कहने लगा,"नहीं..हम ठीक है! वो...वो बिल्ली से डर लगता है हमको और कुछ नहीं! चोट-वोट नहीं लगा कोई, सब ठीक है!"
"अच्छा तुम किचन में जाकर कुक को शाम की तैयारी के लिए कह दो और बाकी पार्टी की भी तैयारी कर लो। कुछ भी प्रॉब्लम रहा, तो मुझे पूछ लेना। जाओ अब!", अशोक ने उसके काँधे को थपथपाते हुए कहा।
मैनेजर अशोक की बात सुन पीटर हड़बड़ाता हुआ वहाँ से चला गया।
उसके जाते ही क्रिस ने कहा,"कुछ अजीब है यह पीटर। इसको कोई बात तो परेशान कर रही है। इसे रखने से पहले सब चेक तो कर लिया था न आपने? कहीं ऐसा न हो बाद में हम किसी मुसीबत में पड़ जाए!"
अशोक ने कहा,"हाँ, चेक तो किया था। दरअसल पीटर के पिताजी भी इसी विला में काम करते थे। यह पहले किसी फिशिंग कंपनी में काम करता था। कंपनी में कुछ प्रॉब्लम हुआ और नौकरी चली गई। पिता के नाम पर यहाँ काम माँगने आया था तो दे दिया।"
"ठीक है। अच्छा चलो, मैं अतुल के यहाँ जा रहा हूँ। शाम को हम सब साथ ही विला में आएंगे।"
इतना कहकर क्रिस पैराडाइस विला से बाहर आया और पार्किंग में खड़ी अपनी कार में बैठ गया। जब वह कार को गेट की ओर ले जा रहा था,तो यूँ ही उसकी नज़र साइड में फूलों से सजी छोटी सी बगिया पर पड़ी। उसने देखा,बगिया के चारों ओर के रंगबिरंगी फूल बहुत अच्छे से खिले थे,बस बगिया के बीचों बीच ही कुछ फूलों की पूरी एक कतार मुरझाई सी लग रही थी। शायद उन्हें ठीक से पानी नहीं मिला होगा, यही सोच उसने उस बात को नज़रअंदाज़ कर दिया और वह अपनी कार लेकर गेट से बाहर निकल गया। उसके गेट से बाहर निकलते ही नजाने कहाँ से एक धुँध की चादर ने फिर से गेट को घेर लिया था...
आख़िर क्या था राज़ था उन मुरझाए हुए फूलों का? आख़िर क्या राज़ था उस धुंध का?...जो कहीं भी कभी भी घिर आती थी?...
क्रमशः ..
रश्मि त्रिवेदी