श्री सींवाजी Renu द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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श्री सींवाजी

श्री सींवाजी भगवद्भक्त सद्गृहस्थ थे। आपकी सन्त सेवा में बड़ी निष्ठा थी। आपके दरवाजे पर सन्त मण्डली प्रायः आती रहती थी, इससे समाज में आपका सम्मान भी बहुत था। आपकी यह प्रतिष्ठा अनेक लोगों की ईष्र्या का कारण बनी। उन लोगों ने राजा से आपकी शिकायत कर दी। अविवेकी राजा ने भी बिना कोई विचार किये आपको कारागार में डाल दिया। आपकी सन्त प्रकृति थी, अतः आपके लिये सुख दुःख, मान-अपमान सब समान ही थे; परंतु आपको इस बात का विशेष क्लेश था कि अब मेरी सन्त सेवा छूट गयी है। एक दिन एक सन्त मण्डली आपके घर पर आयी, जब आपको इस बात का पता चला तो आपको बहुत दुःख हुआ। आपने भगवान् से प्रार्थना की कि ‘प्रभो ! यदि मेरे पंख होते तो मैं उड़कर सन्तों के पास चला जाता और उनकी सेवा करता, पर क्या करूँ, यहाँ तो मैं लाचार हूँ।’ सर्व समर्थ प्रभु से अपने भक्त की सच्ची तड़पन और उसकी मानसिक पीड़ा देखी न गयी। उसी समय चमत्कार हुआ और आपकी हथकड़ी-बेड़ी टूट कर जमीन पर गिर पड़ी, जेल के फाटक भी अपने-आप खुल गये। आप सन्तों के पास पहुँच गये और भावपूर्वक उनकी सेवा की। उधर राजकर्मचारियों ने देखा कि जेल का फाटक खुला है और इनके कमरे में हथकड़ी-बेड़ी टूटी हुई जमीन पर पड़ी है तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उन्होंने इस बात की खबर राजा को दी। अविवेकी राजा को इस घटना में भगवत् कृपा के दर्शन होने के स्थान पर जेल से भागने का अपराध ही दृष्टिगोचर हुआ और उसने पुनः आपको पकड़ कर लाने का आदेश दिया। आप कहीं भागे तो थे नहीं, घर जाकर सन्त सेवा ही कर रहे थे। राजा के सिपाही वहाँ पहुँचकर आपको फिर से हथकड़ी-बेड़ी में जकड़ने लगे, परंतु प्रभुकृपा से आपके शरीर का स्पर्श होते ही वे हथकड़ियाँ भी टूटकर जमीन पर गिर पड़ीं। जब राजा को इस बात की सूचना दी गयी तो उस मूर्ख ने कहा कि यह कोई जादूगर है, जो इन्द्रजाल कर रहा है, अतः इसे पकड़कर प्राणदण्ड दे दो। राजा की आज्ञा के अनुसार जल्लादों ने आपको तलवार के घाट उतारना चाहा, परंतु
‘सीम कि चाँपि सकइ कोउ तासू।
बड़ रखवार रमापति जासू॥’

भला, उसको कौन मार सकता है, जिसकी रक्षा स्वयं भगवान् कर रहे हों। जल्लादों के उठे हाथ उठे के उठे रह गये, मानो वे जीवित प्राणी न होकर चित्र लिखित हों। राजा को जब यह वृत्तान्त सुनाया गया तो भगवत् कृपा से उसके ज्ञानचक्षु खुल गये। वह नंगे पैर भाग कर आया और आपके चरणों में गिरकर क्षमा-प्रार्थना करने लगा। आपके मन में कोई विकार भाव तो था ही नहीं, अतः तुरंत ही क्षमा कर दिया। अब राजा को उन ईर्ष्यालु व्यक्तियों का ध्यान आया, जिनकी शिकायत पर राजा ने आपको कारागार में निरुद्ध कराया था। उसने उन लोगों को तुरंत प्राणदण्ड दे देने का आदेश दिया। यह देखकर आपका मन बड़ा दुखी हुआ और हृदय अपार करुणा से भर गया। आपने राजा से कहकर तुरंत उन सबको भी मुक्त करा दिया। इस प्रकार श्रीसींवा जी गृहस्थ में रहते हुए भी आदर्श सन्त थे।