उपन्यास रत्नावली में रोचकता भरपूर” :
समीक्षक सुरेंद्रपाल सिंह कुशवाहा
1998 में लिखा गया लेखक रामगोपाल भावुक का ऐतिहासिक उपन्यास “रत्नावली” गोस्वामी तुलसीदास की धर्मपत्नी रत्नावली पर आधारित है| हाल ही में पवाया भ्रमण के दौरान आदरणीय श्री रामगोपाल तिवारी “भावुक” जी का सानिध्य प्राप्त हुआ| वो लम्बे समय से सार्थक लेखन कर रहे है और अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर लेखनी चलाई है | उनके साथ पवाया भ्रमण के दौरान यह जानकारी मिली|लौटते समय उन्होने दो पुस्तकें भेंट की थी जिनमें एक थी “रत्नावली “जिसे पढ़कर अभी –अभी निवृत्त हुआ हूँ |
आदरणीय “भावुक” जी ने उपन्यास को 19 खंडों में बांटा है| प्रथम खंड का प्रारम्भ तुलसीदास जी का ससुराल में रत्नावली द्वारा ताने सुनने के बाद घर छोडकर जाने से होता है | सुबह होने पर तुलसीदास जी के ससुर दीनबंधु पाठक को पता चलता है कि रात में तुलसीदास जी चोरी छुपे आए थे और नाराज होकर चुपचाप चले भी गए| बस फिर उनके वापिस लौटने का इंतजार और ढूंढाई ही चलती रहती है | प्रथम खंड के समाप्त होते –होते पता चलता है कि तुलसीदास जी साधू बन गए है | अब रत्नावली और उनके पुत्र तारापति के जीवन यापन और भविष्य कि चिंता पाठक जी के सिर पर आ खड़ी थी| उपन्यास में कबीर की विचारधारा और रामभक्तों के बीच का संघर्ष भी सामने आता है | पहेवा गाँव में यह विचार धारा कबीर भजन मण्डल के रूप में फल फूल रही है| सातवे खंड में आते–आते रत्नावली अपनी ससुराल आ जाती है| गाँव वालों की सहायता से बच्चों को पढ़ाने का काम प्रारम्भ कर जीविका चलाने का उपक्रम करती है| अब उपन्यास में हरको नामकी महिला पात्र का प्रवेश होता जो रतनावली की छाया बनकर पूरे समय खड़ी रहती है|उपन्यास में भावुक जी ने इसी पात्र के माध्यम में समाज में स्त्री की दशा पर प्रकाश डालते हुए समाज में स्त्री अधिकारों में सुधार होने की आवश्यकता की ओर संकेत किया है| उपन्यास में दो प्रसंग ह्रदय विदारक है, पहला रत्नावली का एकमात्र पुत्र तारापति का चेचक की भेंट चढ़ जाना|दूसरा तुलसीदास से रत्नावली के अंतिम समय में राजापुर में भेंट होना | रामगोपाल भावुक जी ने उपन्यास में ग्रामीण परिवेश को भी खूब उकेरा है | इस तरह मात्र 96 पृष्ठ का यह लघु उपन्यास भावुक जी का ग्रामीण जीवन पर मजबूत पकड़ और उसका पैना विश्लेषण पाठक को उत्सुकता से भर देता है| उपन्यास में रोचकता भरपूर है इसीलिए पढ़ने की ललक आखिर तक बनी रहती है | अपने समय के युग प्रवर्तक गोस्वामी तुलसीदास जिन्होने रामचरित मानस की रचना कर देश को सनातनी समाज में गौरव प्रदान किया है | सभी मूल ग्रन्थों के सार को इसमें कुशलता से भर दिया है | आज यह देश को नई दिशा प्रदान कर रही है | ऐसे वंदनीय तुलसीदास के जीवन को भावुक जी ने अलग तरह से प्रस्तुत किया है | सुधी पाठकों को इसे अवश्य पढ़ना चाहिए |
कृति का नाम- रत्नावली
कृतिकार- रामगोपाल भावुक, कमलेश्वर
कोलोली डबरा भवभूति नगर
जिला- ग्वालियर मप्र -475110
प्रकाशन वर्ष’-1998
मूल्य- 80 रु
प्रकाशक- भोपाल
समीक्षक- सुरेन्द्रपाल सिंह कुशवाह