सुनीता पाठक - कोर्नर वाले अंकल ramgopal bhavuk द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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सुनीता पाठक - कोर्नर वाले अंकल

कॉर्नर वाले अंकल जी के बहाने सुनीता पाठक  

                 

                                               रामगोपाल भावुक

                                                         मो0- 09425715707

        

       सुनीता पाठक के उपन्यास ‘इक्कीस फेरों का फरेब’ को किस्सा कोताह पत्रिका ने सम्मानित किया था। प्रेमचन्द्र सृजनपीठ के पूर्व निदेशक आदरणीय श्री जगदीश तोमर जी ने इसकी भूमिका में लिखा है-‘वह नारी मन की मूल उपेक्षाओं और सपनों की सूक्ष्म पड़ताल करता प्रतीत होता है ,किन्तु वह पिछले दो-तीन दशकों से नारी विमर्श के नाम पर चली आ रही लेखन धारा से बहुत भिन्न है।’

     इसके आत्म कथ्य में सुनीता पाठक स्वीकार करतीं हैं कि बहरहाल इस नायिका को मैंने गढ़़ा हैं.... किसी जीती जागती रियाको अपने आसपास से अनुभव कर.... भूचाल को थामे हुए मधुर मुस्कान, आत्म विष्वास और सौमयता की धनी रिया मेरे दिलो-दिमांग में ना जाने कितनी उथल-पुथल मचाए रही..।

                जब कोई पात्र लेखक के चित्त में इतना समा जाता है तभी किसी रचना का प्रादुर्भाव होता है। हम किसी पात्र को नहीं लिखते वल्कि कलम हम पकड़े होते हैं पात्र अपना सर्जन स्वयम् करते चले जाते हैं। हम तो द्रष्टा भर बने रहते हैं।

                इस समय सुनीता पाठक का कहानी संग्रह ‘कॉर्नर वाले अंकल जी’ सामने है। इसमें अठारह कहानियां पंख फैलाये उड़ने का प्रयास कर रहीं हैं।

               संग्रह के नाम करण के सम्बन्ध में मेरी एक अवधारणा है कि वह नाम संकलन की हर कहानी से अपना समन्वय बैठा रहा हो। हर कहानी में वह नाम ध्वनित हो तो नामकरण की सार्थकता बढ़ जाती हैं।

               कॉर्नर वाले अंकल जी’ कहानी एक लघुकथा सा आनन्द देने में सफल रही। भ्रम बस हम किसी को गलत समझने लगते हैं जबकि वह गलत नहीं होता। ऐसी घटनायें जीवन भर पग- पग पर  हमें देखने को मिलतीं रहतीं हैं।

               तौड़ियों के तोड़े हुए दिल में कहानी की उठान बहुत अच्छी लगी, लेकिन यह कहानी झूठ सच के फेर में उलझकर रह गई।

                इसी तरह चाबी का गुच्छा कहानी भी अपने मन में बुनी शंका- समाधान के फेर में उलझकर सीमित हो गई लेकिन लधुकथा सा पूरा आनन्द देने में सफल रही।

               अधिकार से परे कहानी घर- घर की कहानी है। भाई बहनों में आज घर की जायदाद को लेकर दूरी बढ़ती जा रही हैं। इस समस्या से समाज को कैसे निजात मिले,एक सकारात्मक सोच सामने रखी है, जो पाठक को पूरी तरह बांध कर रखने में सफल रही है।

               लिव इन रिलेशनशिप में पुत्र और पति के मरने के वाद नेहा अपनी पुत्र और नाती को खोने के समान दुःख में सास बहू लिव इन रिलेशनशिप में रहकर अपने दुःख को अपनी तरह से सहन कर रही है। इस नया संदेश देने वाली लधुकथा के लिये बधाई।

               काश मां ब्रेकअप कर पातीं,में मां की मृत्यु की कसक पाठक को बांध रहती हैं। डाल नहीं गुडिया कहिए में एक पोलियें में विकलांग हुई सहासी बच्ची की कहानी है। जो प्रथम श्रेणी में एम ए करके अपना मुकाम बनाती है। उसका स्वाथ्य उसे फिर से तोडता है तो वह  व्हील चियर पर रहते हुए एक नया कार्य बच्चों के डोल को सजाने के लिये शुरू कर देती है जिससे पाठकों में नई उर्जा भरने का काम करती है।

               खुसियों की खरपतवार में ऐसा प्रश्न लेकर लेखिका उपस्थित है जहां बच्चों के पिता बच्चों से दूर हो जाते है पिता की अनुपस्थिति में बच्चों को अच्छा नहीं लगता। हम है कैसे भी अपने मन को समझाने का प्रयास करते रहते हैं।

          अचार पराठे वाला टिफिन में शासकीय विद्यालयों में मध्यान भोजन और अपने घर से टिफिन लेकर आई बालिका की मनोदाशा से तुलना करके जो बालिकाओं में हीनता का बोध उपज रहा था उसका सुन्दर हल, उनकी मनोदशा में बदलाव लाकार किया है। इस कहानी को मुझे लेखिका के मुख से सुनने का अवसर भी मिला है, बधाई।

               छंट गये भ्रम के बादल कहानी में, हमारे चित्त पर पड़े भ्रम के बादल किसी  प्रेरक घटना के सम्पर्क में आने से छट जाते हैं और हम अपनी भूल को सुधार कर लेते हैं।

               कुल्लू की शाल कहानी में हम जिस बस्तु को जीवन भर बांटते रहते हैं, जीवन के अन्त में यदि वही आकर मिल जायें,सन्देश परक कहानी लगी। कहानी पढ़ते समय पाठक का गला भर आये, यही कहानी की सफलता है।

               मैं शहीद की विधवा में पुलिस वाले की पत्नी को नौकरी में रहते तो कष्ट झेलने ही पड़ते हैं लेकिन पति की डाकुओं से मुटभेंड़ में मृत्यु होने पर वह षहीद की पत्नी बनकर अपना दुखड़ा भी रो नहीं सकती। बच्चे तो मौज उडाने लगते हैं। यह तो उनकी लाटरी ही लग जाती है।लेखका ने पुलिस ओर डाकुओं की मुटभेंड़ का आंखों देखे हालसा सुन्दर बर्णन किया है।

                पिल्लू कहानी में जानवरों के प्रति संवेदना का सटीक चित्रण किया गया है।कार से कुचल कर जब कुतिया के पिल्ले की मृत्यु हो जाती है तो कुतिया करों का पीछा करके अपना आक्रोश व्यक्त करने लगती है। उसी में उसकी भी जान चली जाती है। कहानी पाठक को संवेशनशील बना देती है।

             कहानी तिलांजली में, चरित्रहीन पिता की करतूतें पुत्र सहता रहा, जो विद्रोह उसने उनके मरने पर किया वह विद्रोह उनके सामने ही किया जाना चाहिए था तो कहानी बहुत खुलती और नये रूप में पाठकों के सामने आती।

                खुल गया लॉक डाउन में,  बायरस की विभषिका में लॉक डाउन की स्थितियों का बर्णन हैं। उस स्थिति में आदमी कैसे अपनी संवेदनायें व्यक्त करने में असफल रहा।

               दहेज नहीं दुश्वारियां मिली कहानी, जब देने. लेने में धोखा देकर अपनी लड़की को चालाकी से किसी बड़े अधिकारी से ब्याह देते हैं, उस स्थिति में दोनों ही पक्ष सारी जिन्दगी एक दूसरे का विश्वास नहीं कर पाते। उल्टे ऐसे लोग लड़के वालों को ब्लेक मेल और करते रहते हैं।

               पुरुष सशक्तिकरण कहानी में पुरुष जब पत्नी के हर परामर्श को बुद्धि की तीक्ष्ण कटार से काटता चला जाता है वहाँ चाहे जितने कानून बनें नारी सशक्तिकरण धारासयी होकर ही रहता है।

               संग्रह की अन्तिम कहानी है आपदा में अवसर। इसमें चाहे बात देश की हो अथवा घर गृहस्थी की। कुछ लोग दूसरे की आपदा में अपने लिये लाभ के अवसर ढूढ़ ही लेते हैं। शुभि की सासूमां के बीमारी में सहयोग के लिये जिसे काम पर रखती है, समय आने पर प्रिय सखी नव्या ही अपने घर अपनी सासू मां की सेवा के लिये अधिक लाभ का लोभ देकर उसे चुपचाप बुला लेती है। लेकिन शुभि को अपनी सासूमां के अन्तिम दिनों में सेवा का अवसर मिल जाता हैं इससे वह अपनी सहली की करतूत से दुःखी नहीं होती, लेकिन जान जाती है कि तोग आपदा में भी  अपने स्वार्थ के अवसर तलाश लेते हैं।

                लेखिका ने अपनी कहानियों के ऐसे सभी मुद्दे तलाष किये हैं जो हमारे आसपास बिखरे रहते हैं, हम रचनाकारों की उनपर दृष्टि ही नहीं जाती और ऐसे सार्थक विषयों को हम अपनी कहानियों के विषय बनाने से वंचित रह जाते हैं। इस हेतु लेखिका की इस गहरी दृष्टि को प्रणाम करना ही पड़ेगा।

           आपकी कहानियों की भाषा सहज सरल है जो पाठकों को बांधे रहने सफल रहती हैं। आप अपनी सम्बेदना अपनी बाणी से व्यक्त करने में सफल भी रहतीं हैं। आपके विषयों में नारी चेतना हैं, व्यवस्था पर प्रहार है और कहानी पर नई दृष्टि डालने की सफल प्रक्रिया भी।  कार्नर वाले अंकल जी कहानी संग्रह पठनीय तो है ही साथ में सग्रहणीय भी। बधाई

 कृतिका नाम- कॉर्नर वाले अंकल जी

 रचनाकार- सुनीता पाठक

 प्रकाशक- बोधि प्रकाशन जयपुर-6

 मूल्य- 150

 समीक्षक- रामगोपाल भावुक

पता- कमलेश्वर कॉलोनी (डबरा) भवभूति नगर, जिला ग्वालियर म.प्र. 475110

  tiwariramgopal 5@gmai.com     मो 0 -09425717707