मुझे न्याय चाहिए - भाग 15 Pallavi Saxena द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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मुझे न्याय चाहिए - भाग 15

भाग -15  

रेणु चुप सुन रही है. लेकिन उसकी समझ में कुछ नहीं आरहा है कि क्या करे क्या ना करे, उसकी आँखों से बस नीर बह रहा है और वह मौन स्तब्ध सी खड़ी अपनी माँ को देख रही है.

इसी सब में कब रात से सुबह हो गयी पता ही नहीं चला. अगली सुबह लक्ष्मी ने रेणु से पूछा तो फिर क्या सोचा है तूने बेटा, रेणु अब भी चुप है. उसने अपनी माँ से कहा आज आपको काम पर नहीं जाना ? जाना तो है, पर तेरी हाँ सुनने के बाद. रेणु ने कुछ नहीं कहा और सीधा अपने काम  पर निकल गयी. पीछे से लक्ष्मी कहती रह गयी रेणु ...रेणु... बेटा सुन तो सही ....! पर रेणु ने उस रोज पीछे मुड़कर भी नहीं देखा. इधर जब लक्ष्मी डरते -डरते काम पर पहुंची तो उसे रोका तो किसी ने नहीं, लेकिन बात भी किसी ने नहीं की उसने अपना काम किया और जब जाने को हुई तो रुक्मणी जी ने पीछे से आवाज देते हुए कहा लक्ष्मी...! लक्ष्मी ने पीछे मुड़कर देखा तो रुक्मणी जी ने कहा, ‘जरा मेरे कमरे में आना तो सही’ लक्ष्मी डरते हुए रुक्मणी जी के कमरे में पहुंची ‘जी मालकिन, वो कल के लिए मैं आपसे माफी मांगती हूँ, मेरे कारण वो सब हुआ जो नहीं होना चाहिए था. मुझे माफ कर दीजिये मालकिन, परंतु मुझे काम से ना निकालिए’.

किसने कहा कि मैंने तुम्हें यहाँ काम से निकालने के लिए यहाँ बुलाया है ...? जी ...! तो फिर ...? ‘मैंने तो उस बात के लिए बुलाया है जो कल मेरे और तुम्हारे बीच अधूरी रह गयी थी’. यह बात सुनकर लक्ष्मी की आँखें बड़ी हो गयी. कौन सी बात मालकिन ....? वह रेणु और अक्कू की शादी की बात. यह सुनते ही मानो लक्ष्मी के पैरों तले ज़मीन निकल गयी जी ...! क्या जी, कल तुम यही कह रही थी ना कि यदि मेरे मन में अक्कू की शादी का कोई विचार है तो मैंने एक बार तुम्हारी बेटी के बारे में सोचूँ, तो मैंने सोच लिया. ‘मुझे मजूर हैं’ पर क्या रेणु इस रिश्ते के लिए राजी है ? क्या तुमने उससे बात की है ? यदि वह राजी हुई तभी यह रिश्ता हो पाएगा अन्यथा नहीं, क्यूंकि उसने अक्कू को देख लिया है. वह जानती है कि वह कैसा है, इसलिए दुराओ छिपाओ वाली कोई बात नहीं है और फिर वह उसे संभालने में भी कामयाब रही थी उस दिन, तो तुम उससे बात कर लो बाकी तो इस रिश्ते के क्या फायदे और नुकसान है, यह मुझे बताने की जरूरत नहीं है. फिर भी तुम दोनों माँ बेटी एक बार इस बारे में अच्छे से सोचलो. मुझे कोई जल्दी नहीं है. पर हाँ यदि रेणु ने इस रिश्ते के लिए हाँ कह दिया ना तो मैं तुम्हें इतना पैसा दूँगी कि रेणु के साथ साथ तुम सब की जिंदगी हमेशा के लिए बदल जाएगी और फिर कभी तुम्हें और तुम्हारी बेटी को इन छोटे मोटे कामों की कोई जरूरत नहीं रह जाएगी. बल्कि मैं तो कहूँगी काम करने की ही जरूरत नहीं रह जाएगी. ‘हाँ जी, मैंने बात की है उससे, उसने अभी तक हाँ में जवाब तो नहीं दिया है पर आप चिंता मत करो, मैं उसे कैसे भी कर के माना लूँगी. आप बस इस बात का आश्वासन दो कि आप उसके अलावा किसी और लड़की के विषय में नहीं सोचोगे. रुक्मणी जी ने सिर्फ हुम्म कहा और लक्ष्मी खुशी के मारे पागल हो गयी और खुशी से बोराइ हुई सी घर पहुंची और रेणु ....रेणु.....रेणु....अरे कहाँ गयी कहती हुई उसे घर में ढूँढने लगी.

जैसे ही रेणु, एक कौने में गुमसुम सी बैठी हुई मिली लक्ष्मी ने आकर उसे हिला हिलाकर कहना शुरू कर दिया ‘अरे बेटी तेरे तो भाग खुल गए भगवान ने हमारी सुन ली, रुक्मणी जी इस रिश्ते के लिए मान गयी हैं’. सुना तूने वह मान गयी है. कहती हुई लक्ष्मी गोल गोल घूमने लगी और बोली हे भगवान तेरा लाख लाख शुक्र है. अपनी माँ को खुशी से पागल देख रेणु ने अपनी आँखों में आँसू भरकर अपनी माँ से पूछा, ‘माँ यदि मैंने इस शादी से इस रिश्ते से इंकार कर दिया तो क्या होगा ? क्या तुम मुझे मार डालो गी ? यदि हाँ तो इस रिश्ते से पहले ही तुम मेरा गला घोट दो ...या फिर मुझे जहर दे दो, तुम्हारा भी झंझट खत्म और मेरा भी...’ लक्ष्मी ने कुछ नहीं कहा. फिर उसने दुबारा पूछा, माँ मैं तुम्हारी अपनी ही बेटी हूँ ना ? कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम मेरी सौतेली माँ हो, इसलिए मेरे साथ ऐसा सब कर रही हो...?

यह सुनकर लक्ष्मी को गुस्सा आगया और उसने रेणु को एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया. ‘पागल हो गयी हो क्या ? मैं ही तुम्हारी असली माँ हूँ इसलिए तुम्हारे भविष्य के बारे में वो सोच रही हूँ जो एक सौतेली माँ कभी सपने में भी नहीं सोच सकती है. मैं तेरी जिंदगी बनाने की सोच रही हूँ मूर्ख लड़की बिगाने की नहीं ...!  पर तू क्या मुझे समझेगी, तू अभी एक माँ नहीं है ना इसलिए तुझे अभी यह सब गलत लग रहा है. लेकिन एक बार जब तेरी शादी हो जाएगी न और फिर जब तू गहने और नोटों में खेलगी, तब तुझे इस बात का एहसास होगा कि मैं कितना सही थी और तू कितना गलत. अरे तू समझती क्यों नहीं है रे, कैसे तुझे समझाऊँ ?? ऐसे मौके जिंदगी में बार बार नहीं आते बेटा. आज तो खुद उन्होने सामने से इस रिश्ते के लिए मुझसे तेरा हाथ मांगा है. तू खुद ही सोच कि एक गरीब तेरे जैसे घर घर काम करने वाले लड़के से तेरी शादी हुई तो तेरा जीवन कैसा होगा ...? मेरा जीवन देखा है ना तूने ? मैंने कैसे अपनी आत्मा को, अपने सपनों को, अपनी इच्छाओं, को मार मार के अपना जीवन जिया है. मैं नहीं चाहती कि मेरी बेटी को भी ऐसा ही जीवन मिले.

रेणु ने कुछ नहीं कहा और तीनों यानि दीनदयाल जी लक्ष्मी और रेणु तीनों ही मिलकर अपनी अपनी बेबसी और नसीब पर रोने लगे. इधर जब नरेश की बीवी को यह बात पता चली कि उसकी सास यानि रुक्मणी जी अक्कू का रिश्ता लक्ष्मी काकी की बेटी के साथ करना चाहती हैं तो वह आग बबूला हो उठी. उसने नरेश से कहा मेरी तो समझ में ही नहीं आता कि आजकल माँ को हो क्या गया है. पहली बात तो अक्कू की मानसिक और शारीरिक हालत को देखते हुए भी वह उसकी शादी के विषय में सोच भी कैसे सकती हैं ...? और चलो कुछ सोचकर सोच भी लिया तो एक कर्मचारी की लड़की से रिश्ता ...? मेरी इज्जत का खयाल भी नहीं किया उन्होने ना ही मुझसे इस विषय में बात करना उचित समझा उन्होने आखिर मैं भी इस घर की बहू हूँ मेरे भी कुछ अधिकार हैं ऐसे कैसे माँ किसी के साथ कुछ भी रिश्ता बना सकती है. अब मैं क्या किसी नौकरनी की लड़की को अपना रिश्तेदार बताऊँगी नहीं नहीं ....यह मुझसे नहीं होगा नरेश, तुम्हें माँ से इस विषय में बात करनी ही होगी. ऐसा नहीं हो सकता. आखिर मैं भी इस घर की बहू हूँ. मुझसे भी तो उन्हें राय लेनी चाहिए थी ना, ज्यादा नहीं तो कम से कम एक बार तो पूछ ही सकती थी. पर यहाँ तो उन्होने मुझे बताना भी जरूरी नहीं समझा. यह कहाँ का न्याय है ? नरेश आपको उनसे बात करनी होगी, नहीं तो फिर मैं उनसे बात करती हूँ. नहीं ....! मैं बात करूंगा माँ से पर उससे पहले तुम मेरी बात सुनो ...! कहकर नरेश ने अपनी पत्नी को अपने भविष्य के प्लान के बारे में सब कुछ बताया और समझाया. तब भी बहुत देर तक नरेश की पत्नी का गुस्सा शांत नहीं हुआ परंतु वह चुप हो गयी. तब नरेश ने उससे कहा, ‘एक बार ठंडे दिमाग से सोचो, फिर ही कोई फैसला करना वैसे भी वह गरीब लड़की है ऊपर से उसका पति भी बेकार ही है तो राज तो तुम्हें ही करना है, फिर क्यूँ चिंता करती हो. बस एक बार यह शादी हो जाने दो, फिर अपने माथे से यह ज़िम्मेदारी सदा के लिए खत्म, फिर हम भी सुखी और वह भी सुखी....! क्या मतलब ? अरे मेरे कहने का मतलब है, आगे उसका नसीब...बात को समझो ना यार।

रेणु ने बहुत सोचा कि वह चाहे जो काम कर ले पर ऐसे तो वह अपने माँ बाबा को वो सुख कभी नहीं दे पाएगी जिसकी चाहत और जरूरत दोनों हैं उन्हें, यह तभी संभव है जब वो यह शादी के लिए हाँ बोल दे, पर कैसे ? उसकी समझ में कुछ नहीं आरहा है. इधर नरेश दिन रात रुक्मणी जी के कान भरे जा रहा है और इस शादी के जल्द से जल्द हो जाने के लिए उन पर दबाव भी बना रहा है. इधर उसने अक्कू को भी जाने क्या समझा दिया है कि अब अक्कू भी दिन रात बस एक ही रट लगाने लगा है कि “मुझे शादी करनी है....मुझे शादी करनी है...” रुक्मणी जी लक्ष्मी पर दबाव बना रही है और लक्ष्मी रेणु पर रेणु ने जब यह सारी घटना काशी को बताई तो काशी ने रेणु को उल्टा समझाने का प्रयास किया. बोला तू कुछ भी कर मगर यह शादी मत का कर, तेरी ज़िंदगी नर्क बन जाएगी. इस शादी को करने से अच्छा है, तू मर जा. लेकिन ‘यह शादी ना तो तुझे जीने ही देगी और ना मरने ही देगी’. तू कहे तो मैं बात करती हूँ काकी से, सब कुछ जानने समझने और देखने के बाद वो ऐसा कैसे कर सकती हैं तेरे साथ...?