मुझे न्याय चाहिए - भाग 14 Pallavi Saxena द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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मुझे न्याय चाहिए - भाग 14

भाग -14

कुछ दिन बाद जब लक्ष्मी को कुछ समझ नहीं आया तो उसने मन बना लिया कि आज चाहे जो हो जाय, वह  रुक्मणी जी से बात कर के ही दम लेगी. इसलिए अगली सुबह जल्दी उठकर नहा धोकर काम के लिए निकल गयी. वहाँ पहुंची, तो वहाँ भी सभी ने उसे देखकर यही कहा कि ‘अरे लक्ष्मी काकी, आज सुबह सुबह इतनी जल्दी ?’ लक्ष्मी ने कुछ भी बहाना बना दिया कि शाम को घर जल्दी जाना है, बेटी को देखने वाले आरहे हैं. वगैरा -वगैरा. रुक्मणी जी की बहू जब से माँ बनी है तब से अब जल्दी उठने लगी थी. उसे अब यह बात अच्छे  से समझ में आ गयी थी कि नवजात शिशु की माँ को अपना स्वयं का काम बच्चे के सोते हुए ही निपटा लेना चाहिए. वरना एक बार यदि वह जाग गया तो फिर माँ का सारा दिन निकल जाता है और खुद के निजी कामों के लिए समय ही नहीं बचता और यह बात उसे लक्ष्मी काकी ने ही समझायी थी. तब से वह जल्दी उठकर अपने सारे काम निपटा लिया करती थी.

आज भी वह नहाने ही जा रही थी कि काकी का आगमन हो गया. उसने काकी के लिए चाय नाश्ते का प्रबंध किया और काकी के ही भरोसे निश्चिंत होकर बच्चे को सोता हुआ छोड़कर नहाने चली गयी. इधर लक्ष्मी ने जब देखा, कि बच्चा अभी सो रहा है तो वह भी अपनी चाय और नाश्ता लेकर रुक्मणी जी के कमरे में चली आयी. रुक्मणी जी भी जाग ही चुकी थी. उन्होने भी लक्ष्मी को देखकर वही सवाल किया ‘अरे लक्ष्मी तुम इतनी सुबह -सुबह, आओ आओ बैठो. आज इतनी सुबह सुबह कैसे आना हुआ ? सब ठीक तो है ? देख रही हूँ पिछले  कुछ समय तुम भी मेरी तरह कुछ परेशान सी चल रही हो. क्या बात है, सब ठीक है ना ?’ ‘हाँ मालकिन, अब क्या बताऊँ जवान लड़की की माँ और बूढ़ा बाप जो कि अपंग हो उसे तो चिंता होगी ही ना ...! वैसे मैं बहुत दिनों से आप से एक बात कहना चाह रही थी पर समझ नहीं आता कैसे कहूँ....! जाने आप मेरे बारे में क्या सोचेंगी. डर लगता है, इसलिए कह नहीं पाती हूँ.

अरे ऐसी भी क्या बात है, कहो ना क्या कहना है. और हाँ आज तुम्हारी बेटी नहीं आयी तुम्हारे साथ ? हाँ ...जी ...वो अलग काम पर जाती है ना इसलिए रोज रोज नहीं आ सकती. वह तो मैंने कल उससे कहा था कि मुझे थोड़ी सहायता की जरूरत है तो कल वो अपने काम से छुट्टी लेकर चली आयी थी. ओह अच्छा...अच्छा...! वैसे बहुत समझदार है तुम्हारी बेटी, कल देखा मैंने कैसे उसने अक्कू को संभाल लिया था. यह बात सुनकर लक्ष्मी की आँखें बड़ी हो गयी और उसने अपनी चाय का कप एक तरफ रखते हुए कहा ‘यही तो मैं कहना चाह रही थी मालकिन, छोटा मुंह बड़ी बात, मेरी बेटी इन सभी कामों में निपुण है. आपने भी देख ही लिया कल.’ हाँ सो तो है ...! पर तुम कहना क्या चाहती हो मैं समझी नहीं ..! जी वो मैं यह कहना चाह रही थी कि यदि आपके मन में अक्कू की शादी का जरा भी विचार है तो उसके लिए आप मेरी बेटी...अभी लक्ष्मी अपनी बात पूरी कर भी नहीं पायी थी कि छोटे बच्चे के रोने की आवाज बहुत ज़ोरों से आने लगी. जो चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा था. रुक्मणी जी के कानो में जब अपने पोते के रुदन की आवाज पहुंची तो वह घबरा गयी और तेजी से कमरे की ओर बढ़ी. वहाँ पहुंची तो उन्होने देखा बच्चा बिस्तर से गिर पड़ा है और जमीन पर पड़े पड़े बिलख रहा है. उन्होने ऊंची आवाज़ में लक्ष्मी को पुकारा लक्ष्मी....! और भागकर उन्होने अपने पोते को गोद में उठा लिया और चुप कराने की नाकाम कोशिश करने लगी. लक्ष्मी उनकी आवाज सुनकर दौड़कर आयी तब तक रुक्मणी जी ने बच्चे को उठा लिया था. वह घबरायी हुई लक्ष्मी के पास आकर बोली, ‘देख तो सही कहीं इसे चोट तो नहीं आयी कितनी ज़ोर ज़ोर से रोय जा रहा है, चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा है’.

लक्ष्मी ने तुरंत जमीन पर बैठकर बच्चे का निरीक्षण परीक्षण किया, कहीं कुछ नहीं हुआ था. लक्ष्मी की जान में जान आयी और उसने बच्चे को बहलाना शुरू कर दिया. कुछ ही देर में बच्चा पहले से शांत तो हुआ पर अभी तक बिलकुल चुप नहीं हो पाया था. इतने में बच्चे की माँ घबरायी हुई कमरे में दाखिल हुई, क्या हुआ ...? क्या हुआ ? मेरे बच्चे को, यह इतना रो क्यूँ रहा है काकी और माँ ने इतनी ज़ोर से आपको क्यों पुकारा कहती हुई बच्चे को अपनी गोद में लेकर चुप कराने लगी. लक्ष्मी ने उसे आँखों के इशारे से बच्चे को स्तनपान कराने को कहा और वह कराने लगी. बच्चा कुछ ही क्षणों में शांत होगया और थोड़ी ही देर में फिर से हंसने खेलने लगा फिर भी, ‘माँ तो माँ ही होती हैं’ उसने तुरंत डॉक्टर को फोन कर घर पर ही बुला लिया. डॉक्टर ने भी बच्चे का सम्पूर्ण निरीक्षण परीक्षण किया और बोला कुछ नहीं हुआ है, बच्चा बिलकुल ठीक है. तब कहीं जाकर उसकी माँ और दादी अर्थात रुक्मणी जी की जान में जान आयी.

लक्ष्मी को लगा कि अब इस घटना के बाद उसका काम गया. उसने बच्चे की माँ को समझने का प्रयास किया कि बच्चे तो गिर-गिरकर ही बड़े होते हैं. जब तक गिरेंगे नहीं, तब तक सीखेंगे नहीं और अभी तो पहली बार है अभी तो वह जैसे जैसे बड़ा होगा बहुत बार गिरेगा, चोट भी लगेगी. लेकिन अगर वह इतनी कमजोर रहेगी तो उसका बच्चा मजबूत नहीं बन पाएगा. उस समय तो उसने कुछ नहीं कहा, लेकिन लक्ष्मी को समझ आ गया कि वह इस घटना के लिए लक्ष्मी को ही जिम्म्रेदार समझती है और क्यूँ ना समझे वह लक्ष्मी के भरोसे ही तो अपने बच्चे को अकेला सोता छोड़कर गयी थी और फिर यही तो लक्ष्मी का काम है और उसने ही इतनी बड़ी लापरवाही कैसे कर दी. उस दिन लक्ष्मी उदास मन से घर को लौट गयी. लेकिन घर जाने के बाद भी उसे यही लगता रहा कि वह जिस काम के लिए रुक्मणी जी से मिलने गयी थी, वह तो हुआ नहीं ऊपर से यह घटना और घट गयी. अब तो वह भी उसे ही इस घटना का जिम्मेदार समझ रही होंगी.

हो सकता है कल को मुझे काम से निकाल दें. काम जाएगा सो तो जाएगा ही, लेकिन इस के साथ साथ उसका रेणु को उस घर में बहू के रूप में सेट कर देने का सपना भी खत्म हो जाएगा. अगले दिन लक्ष्मी ने रेणु से साफ साफ शब्दों में बात की ‘देख रेणु, अभी तक तो मैंने बहुत सोचा कि पहले सब सेट कर लूँगी तब ही तेरे से बात करूंगी. लेकिन अब मुझे लग नहीं रहा है कि जैसा मैंने सोचा था वैसा हो पाएगा.’ क्या हो पाएगा ? और क्या सोचा था तुमने ? किस बारे में बात कर रही हो माँ ..? .आजकल मुझे तुम्हारी बातें ठीक से समझ ही नहीं आती हैं, साफ साफ कहो न. अच्छा ...! साफ साफ ही सुनना है न तुझे ? तो चल आज मैं तुझसे साफ साफ ही कहती हूँ. मैं चाहती हूँ, तू अखिलेश से शादी कर ले. क्या ...? कौन अखिलेश ? वही जिसने तुझे वो कंधे पर चोट ....रेणु की आंखे बड़ी हो गयी. ‘माँ ...! उस दिन तुमने देखा था न सब कुछ अपनी आँखों से ....! उसके बाद भी तुम मुझसे कह रही हो मैं उससे शादी कर लूँ, उस पागल से ...! रेणु ...! पागल नहीं है वो. समझदार भी नहीं है. माँ ...देखा नहीं तुमने उस दिन, वो इंसान नहीं है जानवर है, जानवर. तुम अपनी बेटी के लिए ऐसा सोच भी कैसे सकती हो माँ ...! यह तुम कैसी बातें कर रही हो माँ....क्या मैं तुम्हारे लिए बोझ बन गयी हूँ, जो तुम मुझे बस ऐसे ही किसी के भी गले बांध देना चाहती हो...! कहते कहते रेणु का गला रुँध गया था और आँखों से पानी बह निकला था. इस वक्त वह खुद को बहुत ही अकेला महसूस कर रही थी. उसे तड़पकर आदि की याद आ गयी मगर अब वह भी कहाँ था उसके लिए. जो उसका साथ निभाता. आज उसे ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे वह दुनिया में एकदम अकेली है. उसका इतनी बड़ी दुनिया में और कोई है ही नहीं.

लक्ष्मी के पास अब अपनी बेटी को उसके बाबा का हवाला देने के अतिरिक्त और कोई उपाय शेष नहीं रह गया था. उसने रेणु से कहा ‘देख बेटा, अपने बाबा की ओर देख, क्या तू चाहती हैं इनकी यह हालत सदा ऐसी ही रहे. यह कभी ठीक ना हो सकें. माँ ...! मैं भला ऐसा क्यूँ चाहूंगी ? नहीं चाहेगी. यह मैं जानती हूँ. इसलिए तो मैं चाहती हूँ कि तू उससे शादी कर ले. वह पैसे वाले लोग हैं, बेटी एक बार तेरी शादी वहाँ हो गयी तो फिर हमें पैसों की कोई दिक्कत परेशानी नहीं होगी. तू भी रानी बनकर राज करेगी वहाँ, रुक्मणी जी का स्वभाव भी बहुत ही अच्छा है. तू वहाँ खुश रहेगी और हम लोग भी तेरे सहारे अपनी बची खुची जिंदगी शांति और चैन से काट लेंगे. तेरे बाबा का इलाज भी आराम से हो जाएगा और बुढ़ापे में मुझे भी अपनी हड्डियाँ रगड़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

क्या लक्ष्मी रेणु को अक्कू से शादी करने के लिए मना लेगी ?? आगे क्या हुआ जानने के लिए जुड़े रहे ...!