मुझे न्याय चाहिए - भाग 2 Pallavi Saxena द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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मुझे न्याय चाहिए - भाग 2

रेणु ने कहा पर माँ ...! पर वर कुछ नहीं, रख ले. वहाँ तू अकेली जा रही हैं, 'सुना है परदेस में बिना पैसे के कोई पानी भी नहीं पूछता' तो जरूरत तो पड़ेगी ना बेटा. मैंने जोड़कर रखे थे देख आज काम आगए। कहकर लक्ष्मी मुसकुरा दी ताकि रेणु को हिम्मत मिल सके. रेणु गाँव से बस में बैठकर मुंबई आ पहुंची. डरी डरी सी, सहमी सहमी सी रेणु, अपना झोला अपने सीने से लगाए जब वहाँ उतरी तो उसे ऐसा लगा मानो वह कोई दूसरी ही दुनिया में आ पहुंची है. उसने पहले रेडियो पर सुन रखा था कि मुंबई को सपनों की नगरी भी कहते हैं. लेकिन लोगों की भीड़ देखते हुए उसे यह सपनों की नगरी तो दूर तक दिखायी नहीं दी. भागदौड़ भरी जीवन शैली के बीच भागते दौड़ते लोग, जहां कोई किसी को सुनने के लिए तैयार नहीं, किसी के पास सांस लेने की फुर्सत नहीं इतनी आपाधापी देख रेणु का दिल घबरा गया. उसे कुछ समझ नहीं आरहा है कि वह क्या करे, क्या ना करे. उस समय उससे चक्कर आरहा है सुबह से उसने कुछ खाया नहीं है, पैसा बचाने के चक्कर में पानी तक नहीं पिया है.

भीड़भाड़ से उसका जी घबरा रहा है. उसे ऐसा लग रहा है कि वह अभी बेहोश हो जाएगी. वह अपने झोले को अपने सीने से लगाये एक दीवार के पास खड़ी पानी मांग रही हैं पर कोई उसे पानी देना तो दूर, उसकी तरफ ध्यान भी नहीं दे रहा है. वह पानी -पानी कहते हुए आखिर कार बेहोश हो ही जाती है. पर उसे कोई पानी नहीं देता. कुछ सुबह से रात होने को आयी, साफ सफाई करने वाले एक कर्मचारी ने जब रेणु को बेहोश देखा तो उसके चेहरे पर पानी का छिड़काव किया. जिससे रेणु को एकदम से होश आया. वह सफाई कर्मचारी उससे पूछा रहा था तुम कौन हो ? कहाँ से आयी हो ? कहाँ जाना है ? पर प्यासी रेणु को उस समय सिर्फ शोर सुनाई दे रहा है शब्द नहीं. उसने फिर कहा पानी तो उस कर्मचारी ने उसे पीने के लिए पानी दिया. जिसे पीकर रेणु की जान में जान आयी और फिर उसने उस कर्मचारी को ठीक से देखा उसने फिर पूछा तुम कौन हो ? क्या नाम है तुम्हारा ? कहाँ से आयी हो, कहाँ जाना है ? रेणु एकदम से घबरा गयी उसे कुछ समझ नहीं आया कि क्या कहे क्या ना कहे. वह हड्बड़ा उठी तभी उसको अपने झोले का ख्याल आया और वह बदहवास सी अपना झोला यहाँ वहाँ ढूँढने लगी. मेरा झोला, मेरा झोला कहाँ गया...? आपने देखा क्या मेरा झोला ? उसने रोते हुए कर्मचारी से पूछा. झोला...! कौन सा झोला ? वही जो मेरे पास था. उसमें मेरा समान था कहाँ चला गया ? कुछ कीमती समान था क्या उसमें ? कीमती मतलब रेणु बुदबुदाते हुए बोली, नहीं पर मेरे कपड़े और कुछ जरूरत का सामान था उसमें ...! अब क्या...अब वो नहीं मिलने वाला बिटिया. यह मुंबई है मुंबई, यहाँ परदेसियों का स्वागत ऐसे ही किया जाता है.

क्या मतलब ? चोरी हो गया तुम्हारा सामना और क्या. अब मैं क्या करूंगी उसमें तो माँ ने खाना भी दिया था और कुछ पैसे भी, अब ना मेरे पास खाना है और ना ही पैसे हैं. हे भगवान, अब मैं क्या करूँ कहाँ जाऊँ. मैं तो यहाँ किसी को जानती भी नहीं काका, बिटिया जब तुम यहाँ किसी को जानती ही नहीं हो तो यहाँ क्यों आयी. वह भी अकेली मेरी मानो तो वापस लौट जाओ. तुम्हारे जैसे बहुत से लोग हैं यहाँ जो रोज आते हैं और फिर एक दिन यहाँ की भीड़ में खोकर रह जाते हैं. यह यदि सपनों की नगरी है ना बेटा तो इसका दूसरा नाम माया नगरी भी है. यहाँ सब माया ही माया है और कुछ नहीं...मैं वापस नहीं जा सकती काका, कुछ भी करके कैसे भी मुझे यहीं रहना होगा. आप मेरे बाबा की उम्र के हैं इसलिए आप से कह रही हूँ. मुझे कहीं कोई काम दिलवा दीजिये. काका, मुझे काम की बहुत जरूरत हैं. मैं कोई भी काम कर लूँगी. झाड़ू पौंछा, कपड़े बर्तन, साफ सफाई, खाना बनाना कुछ भी...! हुम्म ...तुम्हारा कोई भाई नहीं है क्या ? मेरे पास मर्दों वाले दो एक काम तो हैं, पर तुम्हारे लायक कहते कहते वह चुप हो गया.

फिर कुछ देर बाद बोला यदि मुझे तुम्हारे लायक कोई काम मिला तो बता दूंगा, फिलहाल मैं चलता हूँ .कहकर वह जाने लगा तभी रुककर उसने फिर पूछा तुमने अपना नाम क्या बताया ? जी रेणु ,रेणु अच्छा ठीक है। कहकर वह चला गया. अब रेणु को और भी अधिक डर ने घेर लिया. नयी जगह, अंजान शहर और उस पर अंधेरी रात किन्तु वो कहते हैं ना जब सारी दुनिया सो रही होती है तब भी यह शहर जाग रहा होता हैं .मुंबई की सड़कों पर वाहनों की आवा जाही सबूत हैं इस बात का कि यह शहर कभी नहीं सोता. बस स्टैंड के पास कुछ पियक्कड़ लोग घूम रहे हैं जो भूखे कुत्तों की भाँति रेणु को घूर घूरकर देख रहे हैं, मानो मौका मिलते ही उसे भभोड़ डालेंगे. रेणु का दिल ज़ोर -ज़ोर से धड़क रहा है. वह उन नशे में चूर आदमियों को देखकर डर से थरथराई काँप रही हैं. उसका चेहरा पीला पड़ गया है. धीरे-धीरे वह नशे में धुत आदमी उसकी और बड़ रहे हैं. रेणु ने मारे डर के वहाँ से भागना शुरू किया और उन लोगों ने उसका पीछा करना शुरू कर दिया. किसी तरह रेणु अपनी जान बचाकर एक बन रही इमारत में जा छिपी. कुछ देर खुद को संभालती हुई, जब उसकी सांस में सांस वापस आयी. तब उसने अपने दुपट्टे से अपना चेहरे का पसीना पौंछते हुए पीछे देखा कि कहीं वह नशे में धुत लोग उसका पीछा करते करते यहाँ तक तो नहीं आ पहुंचे.

जब उसे कोई दिखाई नहीं दिया तब उसने चैन की सांस ली और जैसे ही उसने अपना चेहरा घुमाया तो उसके सामने एक महिला खड़ी थी जिसका चेहरे का रंग अत्यधिक काला था, माथे पर बड़ी सी लाल सिंदूरी बिंदी और हरे रंग की नौवारी साड़ी पहने एक औरत खड़ी उसे घूर रही थी. रेणु उसे देख बुरी तरह चौंक गयी. उसने रेणु से पूछा कौन हो तुम ? इतनी रात गए यहाँ क्या कर रही हो ? मैं ...मैं वो, वो आदमी....! आदमी...! घबरायी हूँ रेणु के शब्द जैसे उसके गले में ही अटक गए और वह  कुछ ना कह सकी. आदमी कौन उस औरत ने अपनी गर्दन उठकर रेणु के पीछे देखते हुए पूछा, कहाँ है ? यहाँ तो कोई दिखायी नहीं दे रहा है. सच सच बताओ कौन हो तुम और यहाँ क्यों आयी हो ? रेणु ने डर के मारे काँपते हुए कहा, मैं तो परदेसी हूँ यहाँ काम के लिए आयी हूँ पर, परदेसी...? उस औरत ने रेणु की बात बीच में काटते हुए ही कहा और उसे एक नजर ऊपर से नीचे तक देखा. हाँ वो मैं रेणु के मुंह से अब भी शब्द ठीक से निकल नहीं पा रहे हैं. तभी उस औरत ने रेणु से पूछा क्या नाम है तुम्हारा ? जी रेणु, अच्छा देखो, यहाँ कोई जगह नहीं है तुम्हारे लिए. पहले ही यहाँ रहने वाले कम लोग नहीं है इसलिए तुम अपना ठिकाना कहीं और ढूंढ लो. समझी...! यहाँ रहने के विषय में सोचना भी मत. कहते हुए वह औरत वापस मुड़ गयी. तभी रेणु ने उससे पूछा अम्मा ...! वो औरत एकदम से रुक गयी. मैं कल सुबह होते ही यहाँ से चली जाऊँगी. पर आज रात मुझे यहाँ रहने दो. रेणु की बात सुनते ही उस औरत से उसे आंखें बड़ी करके देखा और बोली ठीक है. सिर्फ एक रात...कहते हुए वह वहाँ से अंदर की ओर चली गयी.

रेणु भी वहाँ एक कोने में बैठ गयी और उस औरत को जाते हुए देखने लगी. कुछ दूर जाने के बाद बोरी से बने एक पर्दे के पीछे जाकर वह औरत कहीं गुम हो गयी. देखते ही देखते रेणु की कब आँख लग गयी उसे पता ही नहीं चला. अगले दिन सुबह जब आँख खुली, तो देखा सभी लोग काम पर जा रहे हैं. उस औरत ने रेणु को फिर एक बार बड़ी आँखों से देखा तो रेणु ने कहा अम्मा मुझे भी यहाँ कुछ काम दिला दो ना ...उस औरत ने कोई जवाब नहीं दिया और वहाँ से चली गयी. रेणु ने वहाँ जाकर ठेकेदार से कहा मेरे लायक कोई काम हो तो ... ठेकेदार ने उसे ऊपर से नीचे तक भेड़िये की दृष्टि से देखा और गले पर हाथ फेरते हुए कहा, क्या -क्या काम कर सकती हो तुम...? वैसे भी यह सारे काम तुम्हारे जैसी कोमल लड़की के लिए नहीं है. उसकी मंशा को भाँपते हुए रेणु बिना कुछ कहे ही वहाँ से भाग खड़ी हुई. रेणु ने कल से कुछ नहीं खाया था उसे जोरों की भूख सता रही थी पर उसके पास एक पैसा भी नहीं था कि जिसे देकर वह कुछ खा सके. तभी उसके कानो में मंदिर के घंटे की ध्वनि समाहित हुई और उसकी आँखों में चमक आ गयी.

रेणु उस आवाज़ के माध्यम से मंदिर को ढूंढती हुई वहाँ पहुंची और आरती खतम होने के पश्चात प्रसाद पाने के लिए आग्रह करने लगी. किन्तु प्रसाद के नाम पर चार दाने चना चिरोंजी पाकर उसका मन कुपित हो उठा और आँखें छलछला आयीं. उसे उस वक़्त अपनी माँ की बहुत याद सताने लगी. वह मंदिर की सीढ़ियों पर भगवान के सामने हाथ जोड़ती हुई ज़ोर ज़ोर से रोने लगी…………………………………………

और फिर जो हुआ वह जानने के लिए जुड़े रहिए...!!!