मुझे न्याय चाहिए - भाग 9 Pallavi Saxena द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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मुझे न्याय चाहिए - भाग 9

भाग-9

देखिये मैं जानती हूँ आपको यह सब सुनकर बहुत अजीब लग रहा होगा. लेकिन ऐसा होता है, हमारे गाँव में भी एक ऐसा ही लड़का था जब उसकी शादी कर दी गयी तो वह बहुत हद तक ठीक हो गया था. ‘छह ....सब झूठ है, ऐसा नहीं होता’. ‘होता है मालकिन, होता है’. मैं नहीं मानती तुम गाँव वाले भी ना, नजाने किस तरह की मानसिकता पालते हो और फिर तुमने खुद अपनी आँखों से देखा है अक्कू को, उससे भला कौन भली लड़की शादी करेगी. तुम भी ना नजाने क्या क्या सोचती हो. भूल जाओ इस विचार को, मैं इस सब में जरा भी यकीन नहीं रखती, समझी खबरदार....! जो आज के बाद फिर कभी तुमने ऐसी उलटी सीधी बातें की तो मैं तुम्हें नौकरी से निकाल बाहर करूंगी. तुम्हारा काम छोटा बच्चा संभालना है, बस वही करो. बड़े को मैं खुद देख लूँगी. कहकर रुक्मणी जी अपने कमरे में चली गयी. पर उनके बड़े बेटे ‘नरेश’ ने उनकी और लक्ष्मी की बातें अंजाने में सुन ली थी. उसके मन में एक विचार आने लगा. उसने सोचा माँ के जाने के बाद अक्कू की ज़िम्मेदारी उसी के सर आने वाली है और अभी तो उसका अपना बेटा भी बहुत छोटा है. बल्कि अभी अभी तो वह इस संसार में ही आया है. ऐसे में यदि माँ किसी भी दिन देवलोक को गमन कर गयी तो उसके पीछे उसकी पत्नी और बच्चे का खयाल कौन रखेगा।?

उसको अपनी पत्नी और बच्चे की चिंता सताने लगी. ऐसे में उसे लक्ष्मी की बातें सही लगने लगी. उसे लगा यदि अक्कू की बीवी आ जाएगी तो कहीं ना कहीं फिर अक्कू से उसकी जान छूट जाएगी और अक्कू की पूरी ज़िम्मेदारी उसकी पत्नी की होगी. वह ही उसका ध्यान रखते हुए उसकी सारी ज़िम्मेदारी भी उठाएगी. उसके साथ रहते यदि अक्कू को कुछ हुआ तो उसका जिम्मेदार भी उसकी पत्नी को ही ठहराया जाएगा. नरेश को यह प्लान बहुत अच्छा लगा, उसने सोचा यदि इतने से प्रयास से अक्कू के लालन पालन से उसका पीछा छूट सकता है तो फिर इससे अच्छा और कोई तरीका हो ही नहीं सकता, अक्कू की परवरिश से अपनी जान छुड़ाने का. उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान उभर आयी. उसने अपनी पत्नी से बात किए बिना ही सीधा अपनी माँ से इस विषय में बात करना उचित समझा.

इधर अकेले रहते रहते अब दीनदयाल जी अपनी ज़िंदगी से तंग आ चूके हैं. पहले जब वह गाँव में रहा करते थे, तब आते जाते गाँव वालों से थोड़ी बहुत दुआ सलाम हो जाया करती थी. गाँव के समाचार मिल जाया करते थे और इतने सालों से गाँव में रहने के कारण गाँव वाले भी अपने मास्टर जी की बात बिन कहे ही समझने लगे थे. तो वहाँ उनको इतना अकेलापन महसूस नहीं हुआ करता था. फिर बचे हुए समय में लक्ष्मी तो थी ही, जो अपना काम करते करते भी पूरे समय उनसे कुछ न कुछ कहती ही रहती थी. भले ही प्यार से बोले या गुस्से में बड़बड़ करती रहे, किन्तु यहाँ आने के बाद से तो अब कोई है ही नहीं, जो उनसे कुछ बोले बतियाये. लक्ष्मी भी सुबह से काम पर निकल जाती है. उस छोटे से बच्चे की देखभाल के लिए और रेणु जो लक्ष्मी के घर आने तक अपने बाबा के साथ रहती है तो घर के कामों और बाबा की देखभाल से उसे फुर्सत ही नहीं मिल पाती कि जरा देर बैठकर बाबा से बोल बतिया ले.

ऊपर से काम ना मिलने के कारण परेशान अलग रहती है. एक दिन उसने काशी से कहा, देख यार बहुत समय हो गया है, अब तक तो भूमिजा लौटी नहीं और अब मुझे कोई उम्मीद भी नहीं है कि वह लोग लौटकर फिर कभी आएंगे और मैं भी अब उस बिल्डिंग में दुबारा जाना नहीं चाहती. तो तू ऐसा कर जैसे तूने माँ के लिए काम बताया ना ऐसा ही कुछ काम मेरे लिए भी ढूंढ दे बहन. काशी ने कहा...! हाँ मैं कोशिश कर रही हूँ. जैसे ही कोई काम मिलेगा मैं तुझे खबर कर दूँगी. एक दिन लक्ष्मी ने रेणु को अकू का सारा हाल सुनाया तो रेणु को भी उसका हाल जानकार बहुत दुख हुआ. फिर उसे भूमिजा की डॉक्टर की कही बातें याद आने लगी और उसने अक्षर्क्ष भूमिजा के डॉक्टर की सारी बातें अपनी माँ से कह डाली. माँ ऐसे लोगों में ना, शक्ति और ऊर्जा बहुत होती है और यदि उनकी इस ऊर्जा का सही उपयोग ना किया जाये तो यह लोग बहुत विचलित रहते हैं. और इसी कारण इन्हें गुस्सा बहुत ज्यादा तेज और बहुत जल्दी आता है. इसलिए ऐसे लोगों का खान- पान भी बहुत अलग होता है. अब रेणु को तो खुद डॉक्टर ने यह सब समझाया था इसलिए उसे पता था लेकिन लक्ष्मी को रेणु की कितनी बात समझ आयी यह कहना मुश्किल था फिर भी फिर भी लक्ष्मी ने ऐसे उत्तर दिया माओ सब समझ गयी हो की अच्छा ....! तुझे कैसे पता ?

तब रेणु ने भूमिजा की सारी कहानी अपनी माँ को सुनादी और कहा आप कल जाकर बोलना उस रमेश से कि वह अखिलेश को नीचे लेकर घुमाया करे, पैदल चलवाये, दौड़ लगवाए या घर में ही नृत्य करवाये. जिसे उसकी ऊर्जा खर्च हो और वह बुरी तरह थक जाये. तब फिर आप देखना उसमें, मेरा मतलब है उसके व्यवहार में नित नये परिवर्तन कितने शीघ्र आते हैं. रेणु कि ऐसी समझदारी भरी बातें जानकार उसकी माँ उसे आश्चर्य से देखने लगी और बोली अरे वाह...! तुझे तो बहुत कुछ पता है रे, 'हाँ सो तो हैं'. अच्छा चलो अब सो भी जाओ बहुत रात हो चुकी है. कहते हुए रेणु ने लाइट बंद कर दी. अगले दिन सुबह दीनदयाल जी ने रेणु को इशारे से अपने पास बैठने के लिए कहा और उसके सर पर हाथ रख दिया.

रेणु ने पूछा क्या हुआ बाबा, क्या आपको कोई तकलीफ है ? उन्होंने का नहीं पर उनकी आँखों में बेबसी और दीनता के भाव देखकर रेणु की आँखें भी छलछला गयी. उस रोज वो बहुत देर तक उनका हाथ अपने हाथों में लेकर बैठी रही और उनसे घंटों बतियाती रही. कभी-कभी जब कभी काशी जल्दी आजाती तो दोनों मिलकर उन्हें अपने कंधों का सहारा देकर चला फिर दिया करते, पर रोज रोज ऐसा कहाँ हो पता था. दीनदयाल जी को अपनी बेटी की चिंता सताने लगी है. ब्याह की उम्र हो चली है उसकी पर कोई नहीं है उनसे उसकी जिम्मेदारियाँ बाटने वाला. यदि समय रहते उसका विवाह ना हुआ तो उसका क्या होगा. वो और लक्ष्मी भी अब बहुत बूढ़े हो चले हैं, उनके जाने के बाद तो इस संसार में ऐसा कोई भी नहीं है, जो रेणु का खयाल रख सके. अगर उनके रहते किसी तरह लक्ष्मी का विवाह हो जाता, तो वह कम से कम चिंता मुक्त होकर इस संसार से विदा ले सकते थे. यही सोच सोचकर उनका स्वस्थ दिन प्रति दिन गिरता जा रहा था. यूं भी वो कहते है ना “चिंता चिता समान होती है" बस वही हाल दीनदयाल जी का भी था.

‘कहें तो किस से कहें, कौन सुनेगा उनकी सिवाय ईश्वर के,’ वह दिन रात मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना किया करते कि कोई अच्छा सा लड़का उनकी बेटी के जीवन में भेज दे. इधर नरेश ने एक दिन मौका पाकर अपनी माँ से कहा, माँ उस दिन मैंने गलती से आपकी और लक्ष्मी काकी के बीच की बात सुन ली थी. ‘हाँ तो, कैसी फालतू की बातें कर रही थी वो उस दिन, जाने क्या हो गया था उसे...! पागल कहीं की’, माँ मैं एक बात कहूँ यदि आप बुरा न माने तो ? हाँ ...हाँ...! बेटा बोलना क्या बात है ? तू कुछ परेशान सा दिखायी देता है. नहीं माँ, ऐसी कोई बात नहीं है, पर मैं यह कह रहा था कि यदि हम एक बार लक्ष्मी काकी की बातों पर गौर कर के देखें तो उसमें कोई बुराई नहीं है ना माँ, ‘इस बहाने अक्कू को भी जीवन भर के लिए एक साथ मिल जाएगा और मेरी और आपकी परेशानी भी बहुत हद तक काम हो जाएगी...नहीं ? यह तू क्या कह रहा है नरेश ...! होश में तो है ...? और तुझे जो चिंता हो रही है, उसके लिए रमेश है ना और रही पैसों की बात तो उसके नाम इतना पैसा है कि उसका रख रखवा करने में तुम्हें और तुम्हारी पत्नी को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए.

कहीं ऐसा तो नहीं कि अब तुझे और तेरी बीवी को तेरा भाई बोझ लगने लगा है ? माँ इसमें आप मेरी पत्नी को बीच में क्यूँ ला रही है. वह बेचारी तो इस विषय में कुछ जानती तक नहीं है. तो फिर क्या बात है ? फिर तेरे दिमाग में यह ख्याल भी कैसे आया कि मैं इस औछी हरकत के लिए मान जाऊँगी. माँ ...! आप  मुझे गलत समझ रही हैं. मैं तो बस इतना चाह रहा था कि आपके जाने के बाद मैं और मेरा परिवार सुरक्षित रहे बस इसलिए मेरे मन में यह खाला आया. सुरक्षित ? ‘ओह....! तू यह कहना चाहता है कि अक्कू के रहते तू और तेरी पत्नी यहाँ सुरक्षित नहीं है ...?’ ‘माँ आप समझ क्यूँ नहीं रही है ??’ क्या समझु मैं नरेश ...? जो व्यक्ति दिमागी रूप से ठीक ना होने के कारण खुद किसी और पर निर्भर है, अपने उस भाई से तेरा अपना परिवार सुरक्षित नहीं है ? अगर आपको साफ साफ शब्दों में ही सुनना है तो, हाँ यही सच है. आपने खुद देखा है अपनी आँखों से औरतों के प्रति कैसी हैवानियत आती है उसकी आँखों में, यदि आपके ना रहने के बाद उसने कहीं मेरी बीवी पर अपनी गंदी नज़र डाली तो उसका क्या होगा, मेरे ऑफिस चले जाने के बाद तो वह बिचारी अकेले ही छोटे से बच्चे के साथ यहाँ कैसे रहेगी. मेरा क्या होगा माँ ....? ....क्या नरेश के समझाने के बाद रुक्मणी जी अक्कू की शादी के लिए राजी हो जाएगी जानने के लिए जुड़े रहिए ...!