मुझे न्याय चाहिए - भाग 10 Pallavi Saxena द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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मुझे न्याय चाहिए - भाग 10

भाग-10  

छी ....! नरेश मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी कि तुम अपने ही भाई के विषय में ऐसी गंदी सोच रखते हो. आज मुझे तुम्हें अपना बेटा कहते हुए भी शर्म आरही है, चले जाओ यहाँ से....! अभी इसी वक्त कहीं ऐसा न हो कि मैं तुम्हें तुम्हारी इन्हीं हरकतों की वजह से घर के बाहर निकल दूँ. गुस्से में भुनभुनाता हुआ नरेश कमरे से बाहर निकल गया. इतने में बाहर से आती हुई लक्ष्मी ने उनकी सारी बातें सुनली. वह अंदर पहुँचकर अपने रोज के काम में लग गयी. अभी इस समय उसने रुक्मणी जी से इस विषय में बात करना उचित नहीं समझा. लेकिन कहीं ना कहीं यह बात रुक्मणी जी के दिमाग में भी जड़ें जमा चुकी थी और वह भी अब अकू के विवाह को लेकर सोचने लगी थी. खासकर नरेश की कही गयी बातों के बाद उन्हें अक्कू की चिंता पहले से अधिक सताने लगी थी और उन्हें इस बात का विश्वास हो चला था कि उनके मरने के बाद उनका बड़ा बेटा नरेश अपने छोटे भाई का ख्याल नहीं रखने वाला है. निश्चित ही वह उसे उसके जैसे बच्चों की संस्था में भरती करा के उसे भूल जाएगा और फिर कभी उससे मिलने तक नहीं जाएगा.

आज जब उनके जीते जी वह उनके समाने इतनी कड़वी बातें बोल गया तो फिर उनके जाने के बाद वह क्या ही ख्याल रखेगा उसका सोचते-सोचते और अक्कू की चिंता में अब रुक्मणी जी का स्वस्थ भी धीरे-धीरे गिरने लगा था. उन्हें समझ नहीं आरहा था कि उन्हें क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए .कौन देगा उनके अक्कू को अपनी लड़की. कोई अनाथ ही होगी, जो उनके अक्कू से अपनी मन मर्जी से ब्याह करेगी. लेकिन उसमें भी उसका पैसों के प्रति लोभ छिपा होगा .कोई भी लड़की कभी उनके बेटे अक्कू को ना तो दिल से प्यार करेगी, न ख्याल रखेगी. फिर ऐसे में उनके बेटे का क्या होगा. इसी चिंता में रुक्मणी जी घुली जा रही थी. दिन प्रतिदिन उनका स्वस्थ गिरता ही जा रहा था.

उधर अक्कू की सेहत या व्यवहार या हरकतों में कोई परिवर्तन नहीं आया था. लक्ष्मी ने एक बार रमेश से वह सारी बातें कहीं भी जो रेणु ने उन्हें भूमिजा को लेकर बताई थी. लेकिन रमेश ने उन्हें हमेशा कि तरह डांटकर वहाँ से भागा दिया और कहा, ‘आपका जो काम है, आप केवल वही करें’ ‘उसके काम में किसी तरह का दखल ना दे तो ही उनके लिए बेहतर होगा’.उस दिन तो लक्ष्मी ने रुक्मणी से इस विषय में कोई बात नहीं की, सोचा अभी पहले ही उनकी तबीयत ठीक नहीं है. ऐसे में कहीं वह और अधिक नाराज ना हो जाये. पहले ही वह कह चुकी हैं कि उसे उनके बेटे की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. कहीं ऐसा ना हो कि लक्ष्मी की बातें खुद उसके लिए अर्थात उसके काम के लिए हानिकारक बन जाये और रुक्मणी जी उसे काम से ही निकाल बाहर करें. इसलिय इस सिलसिले में फिलहाल लक्ष्मी ने मौन रहना ही उचित समझा. वह बस रोज की तरह आती अपना काम करती और चुपचाप चली जाती.

अब धीरे-धीरे समय के साथ बच्चा भी बड़ा हो रहा था. इधर दिन रात नरेश के मन में उसकी माँ के स्वर्गवास होने के बाद को लेकर प्लानिंग चलने लगी थी. एक दिन उसने खुद आगे आकार लक्ष्मी से कहा काकी आज आप थोड़ी देर से जाना मुझे आप से कुछ बात करनी हैं. लक्ष्मी समझ तो गयी थी कि नरेश को उससे क्या बात करनी होगी, फिर भी उसने हाँ में सिर हिला दिया. नरेश यह बात बखूबी जनता था कि यदि वह लक्ष्मी काकी को मोहरा बनाकर चाल चलेगा तो उसकी माँ रुक्मणी आज नहीं तो कल अक्कू की शादी के लिए मान ही जाएगी. क्यूंकि पिछले कुछ एक महीनो से वह यह देख रहा था कि लक्ष्मी काकी जब यहाँ आती हैं तो वह ना केवल उसके बच्चे का बल्कि लगभग घर के सारे सदस्यों का ही ध्यान रख लेती हैं. जिसकी वजह से सभी उन्हें बहुत चाहते हैं, उनका सम्मान करते हैं, उनसे प्यार करते हैं.

यहाँ तक के अक्कू भी उन्हीं के आस-पास अधिक रहना चाहता है, रमेश के पास नहीं. इस पूरे घर में यदि कोई ऐसा है जो लक्ष्मी काकी को पसंद नहीं करता तो वह केवल रमेश ही है क्यूंकि उसे ऐसा लगता है कि जो काम वो कई सालों में नहीं कर पाया, कहीं काकी अपने प्यार से उस असंभव कार्य को संभव ना बना दे’ क्यूंकि यदि ऐसा हुआ तो उसकी नौकरी जाना तय था. इसलिए वह किसी भी कीमत पर लक्ष्मी काकी को अक्कू के आस-पास भी फटकने नहीं देता था. और यह सब नरेश ने नोट किया था. इसलिए उसने अपना उल्लू सीधा करवाने के लिए लक्ष्मी काकी को चुना. काकी के घर जाने के कुछ ही समय पूर्व नरेश उनके पास आया और उन्हें बैठने के लिए कहा. काकी नीचे बैठने लगी तो उसने कहा अरे यहाँ नहीं ऊपर बैठिए ना, काकी थोड़ा हिचकिचाती हुई बोली नहीं यहीं ठीक है. नरेश ने कहा अरे संकोच कैसा काकी, इसे अपना ही घर समझो ना आप, कितने समय से यहाँ काम कर रही हो. यह कोई औपचारिकता थोड़ी ही ना है, आप ऊपर बैठो.

लक्ष्मी किसी तरह डरी सहमी, सकुचाते हुये सोफ़े पर बैठ गयी. तब रमेश ने उनकी असहजता को भाँपते हुये उनकी तरफ पानी बढ़ाया तो उन्होने मनाकर दिया. फिर नरेश ने बोलना शुरू किया देखिये ऐसा है कि घूमा फिरकर बात करनी तो मुझे आती नहीं है इसलिए मैं आपसे साफ-साफ बात करना चाहता हूँ. उस दिन मैंने आपके और माँ के बीच की सारी बातें सुन ली थी और मुझे भी यह बात ठीक लगी कि हमें अक्कू की शादी कर देनी चाहिए और कुछ नहीं तो कम से कम सोचना तो शुरू कर ही देना चाहिए. आखिर उसका भी कोई भविष्य है, उसके भी अपने कुछ अरमान होंगे और बाकी तो आप से कुछ छिपा नहीं है. आपने तो खुद अपनी आँखों से देखा ही है, कि लड़कियों के प्रति क्या प्रतिकृया होती हैं उसकी, तो उसे भी न्याय मिलना चाहिए है कि नहीं ? लेकिन माँ है ना, कुछ समझती ही नहीं हैं. उन्हें लगता है मैं लालची हूँ ‘जबकि ऐसा है नहीं काकी, मैं तो वो सारा पैसा जो माँ ने अक्कू की देख रेख के लिए जमा किया हुआ है, उसी को देना चाहता हूँ’.

‘सच कहूँ तो जो भी लड़की इससे शादी करेगी ना, वो रानी बनकर रहेगी इतना पैसा जमा है अक्कू के नाम पर’  मुझे उसमें से एक पैसा नहीं चाहिए. बल्कि उसकी शादी में तो मैं और अपनी तरफ से भी पैसा लगवाने को तैयार हूँ .बस समय रहते उसकी शादी हो जाए, मुझे और कुछ नहीं चाहिए. ‘जी’ तो आप यह सब मुझे क्यूँ बता रहे हैं ? यह बात तो आपको रुक्मणी जी से जाकर खुद ही कहानी चाहिए ना, ? ‘हाँ’ मैंने यह बात माँ से करने की कोशिश की तो उन्होने मेरे बातों का गलत मतलब निकाल लिया और मुझे भागा दिया. इसलिए अब मैं यह चाहता हूँ कि आप उनसे यह बात करें, ताकि वह मान जाये और मुझे पूरा यकीन है कि यदि आप उनसे यह सब कहेंगी और उन्हें समझने कि कोशिश करेंगी तो वह आपकी बात समझेंगी. आप करेंगी ना उनसे बात ? मेरे लिए प्लीज काकी. लक्ष्मी ने हाँ मैं सिर हिलाते हुए कहा, 'जी मैं कोशिश करूंगी'. तो अब मैं चलूँ ? जी...और लक्ष्मी वहाँ से सीधा अपने घर चली आयी. इधर रेणु को अब तक कोई काम नहीं मिला था इसलिए वह अधिकतर समय घर पर ही रहा करती थी. जब रेणु ने लक्ष्मी को परेशान सा घर के अंदर आते देखा तो बोली क्या हुआ माँ सब ठीक तो है ? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना माँ ? रेणु ने अपनी हथेली से लक्ष्मी का माथा छूते हुए पूछा ? इतनी घबरायी हुई क्यूँ लग रही हो, कुछ हुआ है क्या ? नहीं तो सब ठीक ही है. लग तो नहीं रहा है, आखिर बात क्या है ? कुछ नहीं रेणु के बहुत पूछने पर भी लक्ष्मी ने उससे कुछ नहीं बताया और उस दिन जल्दी खाना खाकर सोने चली गयी. रेणु को कुछ भी समझ नहीं आया. अगले दिन भी लक्ष्मी काम पर नहीं गयी.

रेणु को और भी ज्यादा आश्चर्य हुआ और मन में खटका भी हुआ कि कल कोई ना कोई बात तो जरूर हुई है. तभी तो आज माँ काम पर भी नहीं गयी. उसने पूछा भी माँ क्या बात है आज काम पर नहीं जाना है क्या ? तो माँ ने कहा क्यों एक दिन की छुट्टी नहीं ले सकती क्या मैं ? रेणु को ऐसे रूखे से जवाब की आशा नहीं थी. फिर भी उसने कहा नहीं क्यूँ नहीं ले सकती, तुम्हारा घर है और तुम्हारा ही काम तुम जो चाहे कर सकती हो माँ, मैंने तो बस यूं ही पूछ लिया. इतने में काशी अंदर आगयी माहौल एकदम शांत देखते हुए काशी ने रेणु से पूछा कुछ हुआ है क्या ? मैं गलत समय पर तो नहीं आ गयी ? या फिर माँ बेटी के बीच कबाब में हड्डी तो नहीं बन गयी न मैं ...? कोई कुछ नहीं बोला तो काशी को भी थोड़ा अजीब लगा. उसने इशारे से रेणु से पूछा क्या हुआ ? रेणु ने कंधे उचकाके कहा, पता नहीं फिर दोनों बाहर चली गयी. क्या लक्ष्मी काकी नरेश की बात मानकर रुक्मणी जी को अक्कू की शादी के लिए मना पाएँगी...जानने के लिए जुड़े रहिए ...!