Muje Nyay Chahiye - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

मुझे न्याय चाहिए - भाग 7

भाग -7

लक्ष्मी अपनी बेटी के कहे के आगे और क्या कहती, वह चुप हो गयी और घर रहकर ही अपने पति की देखभाल करने लगी. लेकिन मुंबई जैसी जगह में तीन लोगों का बिना किसी काम को किए रहना आसान नहीं होता. कुछ दिन, कुछ महीने तो जमा पैसों के आधार पर निकल गए. इस बीच रेणु को अब तक कहीं कोई काम नहीं मिला है. पिता के इलाज के लिए मोटी रकम की जरूरत है. इसलिए रेणु को फिर किसी ऐसे ही काम की तलाश है जहां से एक बार में ही वह मोटी रकम कमा सके. इधर रेणु की माँ को अब लगने लगा है मानो वो और उसके पिता ने यहाँ आकर गलती करी. उन्हें वहाँ गाँव में ही रहना चाहिए था. यहाँ आकार वह अपनी ही बेटी पर बोझ बन गए हैं. जब तक वह वहाँ रह रहे थे, तब तक तो सब ठीक ही था. किन्तु अब उनसे रोज रोज अपनी बेटी की काम ना मिल पाने की निराशा देखी नहीं जाती.

एक दिन लक्ष्मी ने रेणु से कहा, ‘बेटी तू नाहक ही परेशान हो रही है. हम लोग वापस गाँव चले जाते हैं. वैसे भी यहाँ क्या रखा है, इसे भली तो गाँव की जिंदगी ही थी. कम से कम मन का चैन तो था वहाँ. यहाँ की भागदौड़ भरी ज़िंदगी देखकर तो मेरा मन घबराता है. रही बात तेरे बाबा के इलाज की, तो अब क्या फर्क पड़ता है उनकी भी उम्र निकल गयी और मेरी भी, अब जब इतना समय ठीक से कट गया तो थोड़ा और समय ही तो शेष है जीवन का, वह  भी कट ही जाएगा.’ माँ यह तुम कैसी बातें कर रही हो...? ठीक ही तो कह रही हैं आंटी जी, पीछे से अंदर आती हुई काशी ने कहा. काशी...! क्या काशी ...? सही तो बात है, मुंबई जैसे शहर में अकेले रहना ही ठीक है. परिवार बड़ा हो तो समस्या ज्यादा होती हैं. वैसे भी यह समय भावुक होकर सोचने का नहीं बल्कि समझदारी से काम लेने का है. तू पागल तो नहीं हो गयी है काशी ...? जो मुंह में आरहा है, बस कहे जा रही है.

देख रेणु, यदि तुझे यहाँ सब के साथ रहना है तो सब को काम करने दे. नहीं तो इन्हें गाँव जाने दे यार, आंटी के लायक तो बहुत से काम है यहाँ, जैसे छोटे बच्चों को मेरा मतलब है, नवजात शिशुओं को मालिश करना, नहलाना, धुलना, उनकी देखभाल करना इत्यादि. पर तेरे लिए अब भी हम काम की तलाश में ही है. है ना...! तो यदि चार पैसे घर में आते रहेंगे तो अच्छा ही रहेगा ना ...? कम से कम आने वाले कल में रोटी कपड़ा और मकान का टेंशन तो कम होगा. देख मुझे जो सही लगा मैंने कह दिया. आगे तेरी मर्जी. कहकर काशी आंटी के कंधे पर हाथ रखती हुई वहाँ से चली गयी. बहुत सोचने पर रेणु को भी काशी की बात सही लगी. लेकिन सवाल यह था कि जितनी देर माँ घर से बाहर रहेंगी, उतनी देर बाबा का खयाल कौन रखेगा. ? तभी थोड़ी देर बाद काशी वापस आयी और रेणु को एक फोन देते हुए बोली, यह ले. यह क्या ...और क्यों ? और तूने इतने पैसे खर्च क्यूँ किए,मेरे लिए. अरे पगली तू और मैं अलग हैं क्या ? तेरी सारी परेशानियों का हल है यह, अब जितनी देर आंटी बाहर काम पर रहेंगी तू अंकल के पास रहना और जहां भी काम के लिए बोलकर आएगी उन्हें अपना फोन नंबर दे आना, बस समस्या सॉल्व....जब भी उन्हें तेरी जरूरत होगी वो तुझे फोन कर के बुला लेंगे. है कि नहीं...? रेणु के चेहरे पर मुस्कान और बड़ी हो गयी और उसने काशी को अपने गले से लगा लिया. रेणु की माँ ने भी दोनों को अपने गले से लगा लिया.

अगले दिन काशी रेणु की माँ को अपने साथ लेकर एक घर के दरवाजे पर पहुंची. घर देखकर लग रहा था पैसे वाले लोग हैं. काशी ने दरवाजे पर लगी घंटी बजाई तो एक महिला निकल कर बाहर आयी और बोली जी कहिए क्या काम था. ? ‘जी वो हमने सुना है इस घर में खुशियाँ आई हैं और बच्चे की मालिश के लिए जरूरत है.’ हाँ जी, है तो सही, आप अंदर आइये मैं माँ जी को बुलाकर लाती हूँ. वह दोनों घर के अंदर गयी तो घर देखते ही बन रहा था. बड़ा सा वातानुकूलित हाल था, जिसमें आलीशान कालीन के ऊपर बहुत ही बड़े और बहुत ही सुंदर चार से पाँच सोफ़े सजे हुए थे. चारों तरफ बहुत ही सुंदर सजावट के साथ साथ पारिवारिक फोटो से दिवाले शोभायमान थी. जाली और मोटे मखमली कपड़े से बने पर्दों से महल जैसा प्रतीत हो रहा था घर, अभी यह लोग घर की शोभा और सजावट को देख ही रहे थे कि अंदर से एक वृद्ध महिला निकल कर आयी और बोली अरे बैठो ना खड़ी क्यूँ हो ? पास में रखी केन की कुर्सियों की तरफ इशारा करते हुये बोली, मेरी बहू के बेटा हुआ है...यानि की मेरा पोता. उसी की मालिश के लिए कोई वृद्ध महिला की तलाश थी मुझे, वैसे तो मैं खुद ही कर लेती. लेकिन वो क्या है ना कि मेरे घुटनो का ऑपरेशन हुआ है ना, तो मैं नीचे नहीं बैठ सकती.

जी कोई बात नहीं, हम लोग है ना. यह हैं लक्ष्मी आंटी वैसे तो यह मेरी सहेली की माँ है पर आप इन्हें मेरी माँ ही समझ लीजिये. इन्हें सब पता है और सब आता भी है, यह कर देंगी आपके पोते की मालिश और क्या -क्या करना होगा. ?? बस वही सब पहले मालिश, धूनी और स्नान करना, नज़र उतारना, वगैरह वगैरा...! जो छोटे बच्चों का होता है. वही सब, इनके भी तो अपने बच्चे होंगे, इन्हें तो पता ही होगा सब कुछ, क्यूँ पता है न ? हाँ जी पता है. ठीक है तो फिर, पैसा कितना लोगी वह बताओ और हाँ साथ ही बच्चे के कपड़े भी धोने होंगे, जितनी बार वो गंदा करेगा उतनी बार. जी 5 पाँच हजार. पाँच हजार....! वह भी इतने छोटे से बच्चे के ...! लूट मची है क्या ? नहीं नहीं....! यह तो बहुत ज्यादा हैं. इतना तो हम नहीं दे पाएंगे. पाँच हजार का नाम सुनकर लक्ष्मी ने भी काशी की तरफ आश्चर्य से देखा था एक बार, पर काशी ने इशारे से उन्हें चुप रहने को कह दिया था.

अरे आंटी जी....! एक ही तो पहला पहला पोता है आपका, ऊपर से ईश्वर ने सम्पन्न बनाया है आपको, आप किन्नरों को दो तीन पाँच हजार ऐसे ही दे सकती हो, तो फिर बच्चे की माँ या नानी दादी जैसी औरत को उसकी देखभाल के लिए पाँच हजार नहीं दे सकती क्या ? फिर आप तो कर नहीं सकती तो उनकी उम्र का खयाल भी तो कीजिये. फिर उन्हें तो रोज ही आना है और आपको तो कुछ ही महीनों की जरूरत हैं. केवल महीने में एक बार ही तो देना है. जरा उनकी मजबूरी के विषय में भी सोचिए कि कितनी मजबूरी होगी वो, जो उनको इस उम्र में भी काम करना पड़ रहा है. अभी यह सब सवाल जवाब हो ही रहे थे कि अचानक एक विकलांग वयस्क लड़का कमरे से बाहर निकल कर आया और काशी को बहुत ही अजीब ढंग से देखने लगा. बिलकुल किसी भूखे भेड़िये की तरह, अचानक उसके हाव भाव बदलने लगे. उसके शरीर में तनाव आने लगा और मुंह से लार गिरने लगी. और बहुत ही अजीब सी आवाज में उसने पूछा, माँ यह कौन है. वो बूढ़ी औरत एकदम से घबरा गयी और कहने लगी तुम बाहर क्यूँ आए...अखिलेश...जाओ अपने कमरे में जाओ...!

परंतु वह जाने को तैयार ही नहीं हो रहा है. बूढ़ी दादी ने नौकर को आवाज दी ‘रमेश, रमेश अक्कू को अंदर लेकर जाओ. नौकर भागता हुआ आया और किसी तरह उसे अंदर ले गया. वह बूढ़ी औरत पीछे से रमेश के लिए कहती रही. कितनी बार कहा है, इसे बाहर मत आने दिया करो. पर एक तुम हो न जाने कहाँ दिमाग रहता है तुम्हारा....! अक्कू  को देखकर काशी और लक्ष्मी दोनों ही बहुत डर गयी थी. इतने में उन्होंने अपनी रमा को आवाज लगाकर कहा, ‘रमा’ पानी तो लाना जरा.’ रमा पानी ले आयी. उन्होंने काशी और लक्ष्मी को पानी देने के लिए कहा. उन दोनों ने पानी पिया, तब दादी बोली ‘अरे आप लोग डरिए मत. यह मेरा छोटा बेटा है ‘अखिलेश’ मानसिक रूप से जरा ठीक नहीं है इसलिए ....अब क्या बताऊँ आपको, इसी के कारण लोग हमारे यहाँ आने से डरते हैं. लेकिन डरने वाली कोई बात नहीं है. मैंने ‘रमेश’ को इसकी देखभाल करने के लिए पहले से ही नियुक्त किया हुआ है. आप लोग निश्चिंत रहें’.

जी तो फिर हम चलें...! हाँ ठीक है. तो काम पर कितने बजे आना है कल, पहले तो बूढ़ी दादी चुप रहीं. फिर बोली ‘कल दस ग्यारह बजे तक आ जाना. तब तक बहु भी नहा धोकर निपट लेगी और बच्चा भी उठ जाएगा’. जी ठीक है, कहकर वह दोनों वहाँ से लिफ्ट की ओर बढ़ गयी. अखिलेश की आँखों की दहशत अब भी दोनों के दिलो दिमाग पर छाई थी. कुछ देर बाद जब घर पहुँचकर दोनों सामान्य हुई तो लक्ष्मी ने काशी से कहा इतने छोटे बच्चे की कुछ घंटों की देखभाल के लिए तूने कुछ अत्यधिक पैसे नहीं बोले ? काशी बोली अरे आंटी, यह मुंबई है मुंबई, यहाँ किसी की जेब से आसानी से पैसा नहीं निकलता. खासकर जिनके पास पैसा अधिक हो उनकी जब से तो बिलकुल ही नहीं, इसलिए मुझे ऐसा कहना पड़ा. वरना वह तो आप को एक दो हजार भी बा मुश्किल ही देती. हाँ ऐसा ...? हाँ तो और क्या ? ‘अब आप खुद ही सोचो, नवजात शिशु कितना कोमल होता हैं, एकदम फ़्र्जइल जैसा उसकी देखभाल कोई आसान काम थोड़ी है’ हाँ वो तो है. क्या रेणु की माँ उस अखिलेश के रहते उस घर में शांति और सुरक्षा के साथ काम कर पायेगी जानने के लिए जुड़े रहें....

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