मुझे न्याय चाहिए - भाग 11 Pallavi Saxena द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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मुझे न्याय चाहिए - भाग 11

भाग-11

बाहर आते ही रेणु ने काशी से कहा ‘पता नहीं यार माँ को क्या हुआ है, कल जब से काम से लौटी है बहुत आनमनी सी है, ना कुछ कहती है ना बताती है. काशी ने पूछा ‘कुछ झगड़ा वगड़ा हुआ है क्या वहाँ किसी से’? रेणु ने कहा पता नहीं, लेकिन माँ का झगड़ा किसी से हो ऐसा बहुत कम ही होता है बहन, और तो और आज माँ काम पर भी नहीं गयी और जब मैंने पूछा तो कहने लगी मैं एक दिन की छुट्टी नहीं ले सकती क्या जो इतने सवाल पूछ रही है. बेटी है बेटी ही रह, मेरी माँ बनने की कोशिश ना कर. हुम्म....! इसका मतलब है ज़रूर कुछ हुआ है. हाँ वही तो मैं भी कह रही हूँ. वहाँ जाकर पता करें क्या कि क्या हुआ है ? नहीं रेणु यह सही नहीं होगा क्यूंकि एक आद दिन की छुट्टी तो कोई भी ले सकता है ना...! हम क्या ही पूछेंगे वहाँ जाकर. हाँ काशी मगर जब से माँ ने वो काम पकड़ा है न तब से उन्हें मुझसे अधिक प्यार उस बच्चे से हो गया है. उसके बिना उनसे रहा ही नहीं जाता है और आज अचानक यूं इस तरह छुट्टी ले लेना, तुझे कुछ अजीब नहीं लगता.

लग तो रहा है प्रिय, पर अब किया ही क्या जा सकता है. कुछ दिन और देखते हैं फिर कुछ सोचेंगे कि आगे क्या करना है क्या नहीं ...चल ठीक है, तेरे लिए एक काम मिला है खाना बनाने का बोल करेगी...? हाँ हाँ क्यूँ नहीं करूंगी लड़के ही लड़के हैं, जिनके लिए खाना बनान होगा तुझे बोल मंजूर है ? अरे तू तो ऐसे कह रही है जैसे लड़के इंसान नहीं होते या उन्हें भूख ही नहीं लगती. अच्छा तो चल फिर बात करते हैं चलकर, चल ना कहते हुए दोनों आगे निकल गयी. इधर लक्ष्मी के मन में लगातार नरेश की कही हुई बातें घूम रही थी कि अक्कू के नाम इतन पैसा हैं कि जो भी लड़की उससे शादी करेगी रानी बनकर रहेगी. वगैरह -वगैरह ...लक्ष्मी ने यह बात दीनदयाल जी से कही कि यदि अपनी रेणु की शादी अक्कू से हो जाय तो कैसा रहेगा.? रेणु को ऐसे लोगों को संभालने का अनुभव भी है वह बहुत ही आसानी से अक्कू को संभाल लेगी.

यूं भी हमारी तो किसी तरह कट गयी किन्तु पैसा पास होगा तो उसका जीवन संवर जाएगा. फिर चाहे तो वह खुद भी किसी को उसकी देखभाल के लिए रख सकती है. इससे अच्छा मौका उनकी लड़की को फिर कभी नहीं मिलेगा. लक्ष्मी दीनदयाल जी से यह सब कह तो रही है पर उसकी आँखों से आँसू झर्झर बह रहे हैं क्यूंकि यह वो खुद भी भली भांति जानती है कि वह जो कह रही है, वह सही नहीं है. इससे तो अच्छा होगा कि वह अपनी लड़की को जहर दे कर मार डाले. लेकिन फिर भी कहीं ना कहीं उसके दिल में एक छोटी सी आशा की किरण भी थी कि हो सकता है कि इस एक कदम से उसकी बच्ची का जीवन सुधार जाय, सँवर जाय. दीनदयाल जी मुंह से तो कुछ कह ना सके. लेकिन उनके हाव भाव बता रहे हैं कि वह इस फैसले से बिलकुल भी खुश नहीं है. उनकी आँखों में असीम पीड़ा है वह अपनी आँखों और थोड़े बहुत हाथ पैर को बा मुश्किल हिलाते हुए अपनी पत्नी से यह याचना कर रहे थे कि ऐसा मत करो बल्कि ऐसा सोचो भी मत.

लेकिन लक्ष्मी के मुख मण्डल पर अश्रु के साथ साथ एक दृणनिश्चय के भाव भी हैं. मानो उसने यह तय कर लिया है कि वह किसी भी कीमत पर यह रिश्ता जुड़वाकर ही रहेगी. लेकिन उसकी समझ में अभी यह नहीं आरहा है कि वह यह बात रुक्मणी जी के समक्ष रखेगी कैसे और किसी तरह रख भी दिया तो उन्हें इस रिश्ते के लिए मनाएगी कैसे क्यूंकि वह उसकी मालकिन है और वह उनके घर की मात्र एक कर्मचारी, रात दिन अब लक्ष्मी का दिमाग यही सोचने विचारें में लगा रहना लगा कि वह ऐसा क्या करे कि यह रिश्ता हो जाय यही सोचने के लिए उसने कुछ दिनों की छुट्टी ले डाली थी. यूं भी, ‘पैसा एक ऐसा मोह है जिसे कभी भी कोई भी मनुष्य अछूता नहीं रह सकता’ और फिर जिसने जन्म से ही अत्याधिक गरीबी भरा, लाचारी से भरा जीवन देखा हो, जिया हो, उसे अधिक तो कोई भी ओर पैसे के महत्व और अवश्यकता को समझ ही नहीं सकता. ऐसा ही तो अब तक जीती आयी थी लक्ष्मी अपने परिवार के साथ, इसलिए अब जब किस्मत ने एक मौका दिया है उसकी बेटी को ऐसे दुख, गरीबी और लाचारी से भरे जीवन से ऊपर उठने का, सपने देखने का और उन्हें पूरा करने का तो वह पीछे क्यूंकि हटे. यूं भी बड़े बुजुर्ग कह गए हैं आयी लक्ष्मी नहीं ठुकराना चाहिए.

ऐसे मैं लक्ष्मी कैसे ठुकरा सकती थी. लक्ष्मी ने तो अपना मन बना ही लिया था लेकिन दीनदयाल जी और रेणु इस बात के लिए कैसे राजी होंगे यह भी लक्ष्मी के लिए अभी एक बड़ी समस्या थी. मन ही मन वह बहुत सोचती विचारती फिर किसी वजह से उस विचार को त्याग देती. उसके दिल और दिमाग में एक भयंकर जंग छिड़ चुकी थी. कभी दिल एक माँ की तरह सोचता, तो कभी एक सौदागर की तरह, ‘दिल कहता यह गलत बात है, दिमाग कहता यही सही बात है’. इसी में रेणु का भला है क्यूंकि पैसे में बहुत ताकत होती. पैसा हो तो इंसान की समाज में एक अलग ही प्रकार की इज्ज़त होती है, मान होता है, सम्मान होता है, और वो यह सब अपनी बेटी के कदमों में देखना चाहती है इसलिए ही तो वह यह रिश्ता करना चाहती है.

लेकिन इस सब में वह यह भूल गयी है कि वह सबसे पहले एक औरत है और फिर एक लड़की की माँ, पर उसे अभी पैसों के आगे कुछ भी ना तो दिखायी ही दे रहा है, ना सुनायी ही दे रहा है, मानो पैसों की मात्र बातों ने ही उसके सोचने समझने की बुद्धि को हर लिया है. ‘जिसके चलते उसे ना सही समझ में आरह है, ना गलत’. इसी उधेड़ बुन में उसका व्यवहार भी अजीब हो चला है. जिसका उसे भान नहीं होता लेकिन उससे बात करने वालों को होता है. इधर रेणु ने उन लड़कों के लिए खाना बनाने के लिए हाँ कह दिया है. अभी चार लड़के हैं तो उसे महीने का 12-15 हजार मिल जाएगा क्यूंकि वह वहाँ खाना बनाने के साथ -साथ वहाँ के बर्तन और रसोई भी रोज साफ करेगी सब मिलकर उसे करीब करीब इतना तो मिल ही जाएगा. रेणु यह बात बिलकुल भी नहीं जानती कि उसकी अपनी माँ के मन में उसके लिए क्या भाव चल रहा है. वह तो केवल यह सोचकर खुश है कि अब एक से दो आमदनी होगी तो वह ज्यादा से ज्यादा पैसा जोड़कर, अपने बाबा का इलाज जल्द से जल्द करवा सकेगी. रेणु बहुत खुश है, लेकिन रेणु की इस खुशी में उसकी अपनी माँ वैसे खुश नहीं जैसा कि उसे होना चाहिए था. उल्टा उसने लक्ष्मी को यह समझाने का प्रयास किया कि अगर उसे ज्यादा पैसे कमाने है तो उसे कुछ बड़ा सोचने के साथ -साथ कुछ बड़ा करना भी होगा. यह छोटे छोटे काम करते हुए उसकी ज़िंदगी अधिक दिनों के लिए बहुत अच्छे से नहीं चल सकती और काम का क्या है, आज है कल नहीं है. ऐसे में कब तक वह इस छोटे छोटे कामों के भरोसे रहेगी. और वैसे भी यदि उसे अपनी थोड़ी सी की हुई पढ़ाई के बल पर कोई सरकारी नौकरी मिल जाती भले ही वहाँ भी ऐसा ही कुछ काम करना पड़ता तो भी बात अलग थी.

लेकिन ऐसा कुछ तो हुआ नहीं तो अब ऐसा कुछ करने की या सोचने की अवश्यकता है, जिसके बल पर यह काम के ऊपर निर्भरता या तो रहे ही ना, या रहे भी तो बहुत कम. फिर कल को शादी होगी, बच्चे होंगे और एक ना एक दिन तुम्हारा भी तो बुढ़ापा आएगा ना ? और तब तुम्हारे हाथ पैर नहीं चलेंगे, फिर जीवन कैसे चेलगा. हम लोगों की तो कट गयी पर तेरे आगे पूरा जीवन पड़ा है इसलिए अब समय आगया है ऐसा कुछ करने का कि भविष्य की जीवन यापन से जुड़ी समस्या तो कम से कम हमेशा के लिए समाप्त हो जाये.

रेणु को अपनी माँ की कोई बात समझ में नहीं आयी. उसने कहा भी तुम क्या कह रही हो माँ, मेरी समझ में कुछ नहीं आरहा है. काम नहीं करेंगे तो ऐसा कौन है यहाँ जो हमें बैठे-बैठे खिलाएगा. तुम भी ना माँ, कभी कभी कैसी अजीब सी बातें करने लगती हो, ‘जाने तुम्हें क्या हो जाता है, कहकर रेणु अंदर चली गयी’ और लक्ष्मी यह सोचने लगी कि कैसे समझाये अपनी बेटी को कैसे बात करे उससे कि उसकी माँ उसका भला चाहती है और इसलिए उसने उसके हित में ही यह फैसला लिया है कि वह अक्कू से शादी कर ले. लक्ष्मी का मन फिर सवालों और जवाबों में डूब गया. फिर उसके दिमाग ने कहा ऐसे बात कर के तो शायद बात ना बने इसलिए उसे किसी बहाने से उसे अपने साथ रुक्मणी जी के घर लेजाना होगा. ताकि एक बार इसी बहाने से कम से कम रेणु एक बार अक्कू को देख ले समझ ले. किन्तु दूसरे ही पल उसे यह विचार आया कि इससे पहले शायद उसका रुक्मणी जी से इस विषय में पहले बात कर लेना ज्यादा उचित होगा. ताकि कहीं ऐसा ना हो जाय कि रुक्मणी जी इस रिश्ते से इंकार कर दें और उसका यह सपना टूट जाय.