मुझे न्याय चाहिए - भाग 16 Pallavi Saxena द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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मुझे न्याय चाहिए - भाग 16

भाग -16

काशी ने बहुत कोशिश की, लक्ष्मी को समझाने कि कहा ‘आप रेणु के साथ ऐसा कैसे कर सकती हो काकी, आपको पता है ना उस दिन क्या किया था उस जानवर ने रेणु के साथ और आप फिर भी....’ काशी...! लक्ष्मी ने काशी की बात बीच में से काटते हुए ही कहा, ‘जानवर नहीं है वह, तमीज से बात करो’ क्या सही सिखाया है तुम्हारे माँ -बाप ने तुम्हें ? यह मत भूलो कि अब वह तुम्हारी सहेली का होने वाला पति हैं. लक्ष्मी की माँ -बाप वाली बात एकदम से काशी को लग गयी क्यूंकि काशी बचपन से ही अनथा है और एक अनथा आश्रम में ही पली बढ़ी हैं. लक्ष्मी की बातें सुनकर उसकी आँखों से आँसू टपक गए और उनसे लक्ष्मी से कहा काकी सही कहा आपने, मुझे तमीज कहाँ से आएगा मेरे तो माँ-बाप ही नहीं है. मुझे भला कौन सिखाता कि तमीज किसी कहते हैं. काकी तमीज का शायद भले ही मुझे ज्ञान ना हो, ‘लेकिन सही और गलत में फर्क समझ आता है मुझे’ क्यूंकि मैंने ज़िंदगी के धक्के खाये हैं और उसी ने मुझे यह पाठ पढ़ाया है कि मैं कम से कम सही और गलत का फैसला तो खुद कर ही सकती हूँ और उसी के आधार पर मैं आप से यह कह रही हूँ कि आप अपनी बेटी के साथ गलत कर रहे हो. कहते हुए काशी अपनी आँखों में आँसू लिए वहाँ से चली गयी.

रेणु ने उसे रोकना चाह, पर वह नहीं रुकी. यह देख रेणु को भी बहुत गुस्सा आया, वह सीधे अपनी माँ के पास गयी और पूछने लगी माँ...? लक्ष्मी भी काशी की बातों से पहले ही भरी बैठी थी उसने भी गुस्से में ही रेणु से कहा क्या है...? क्या है ? यह तो अब तुम बताओ, क्या कहा आपने काशी से रोती हुई गयी है वो यहाँ से माँ ...! क्या हो गया है तुमको ...? तुम्हें जरा सा भी अंदाजा है कि इन दिनों तुम्हारा व्यवहार कितनों को दुख पहुंचा रहा है, दिल दुखा रहा है. मैंने कुछ गलत नहीं कहा उससे, जो भी कहा ठीक ही कहा. अरे बात करने की तमीज नहीं है उस लड़की को और एक तू है कि जबरन ही जान दिये देती है उसके पीछे. मैं तो कहूँगी दूर ही रहे उस से तो अच्छा होगा तेरे लिए. लक्ष्मी की ऐसी बातों से हैरान थी रेणु. जो माँ आज तक उसे सदव्यवहार का ज्ञान देती आयी थी. जिसकी मीठी बोली और सदव्यवहार की वजह से गाँव वालों के दिलों में राज किया करता था उनका परिवार, आज उसकी वही माँ खुद दूसरों से दुर्व्यवहार करने में जरा नहीं हिचकिचा रही है. इससे तो अच्छा होता कि रेणु ने उन्हें अपने बाबा के इलाज के बाहने यहाँ रोका ही नहीं होता और वह लोग गाँव लौट गए होते.

रेणु ने गुस्से में चिढ़ते हुए अपनी माँ से कहा, ‘यदि ऐसा ही है, तो फिर मुझ में भी तमीज नहीं है. मैं यह शादी नहीं करूंगी चाहे कुछ भी हो जाय. सुना आपने ...? मैं यह शादी नहीं करूंगी. रेणु चीखते हुए वहाँ से बाहर चली गयी. उसके बाबा उसे देखते रहे, उन्होने रेणु को रोकने का नाकाम प्रयास किया. लेकिन वह नहीं रुकी. फिर उन्होने अपनी पत्नी की तरफ गुस्से से देखा, लक्ष्मी ने उन्हें देखकर मुंह बनाया और वह भी वहाँ से चली गयी और बड़ - बाड़ने लगी, ‘यह सब उस काशी का किया धरा है, जरूर उसी ने रेणु के कान भरे होंगे. आए तो दुबारा इस घर में ...हुम्म, मैं भी देखती हूँ कैसे नहीं करेगी रेणु यह शादी...! मैंने भी अगर यह शादी ना करवा दी तो मेरा नाम भी लक्ष्मी नहीं. कितना समझाया मैंने रेणु को पर वो उस काशी के चक्कर में कुछ सोचने समझने को तैयार ही नहीं है. अगर “घी सीधी उंगली से ना निकले, तो उंगली टेढ़ी करनी ही पड़ती है”.

अगले दिन जब लक्ष्मी काम पर पहुंची तो वहाँ सभी लोगों ने उससे घेर लिया और रेणु के विषय में पूछने लगे. सबसे पहले रुक्मणी जी ने पूछा, ‘क्या हुआ लक्ष्मी, रेणु मान गयी ना इस शादी के लिए’ ? हाँ आप इस बात की चिंता ना करें मालकिन, मैं हूँ ना. तभी नरेश ने कहा इसका मतलब उसने अभी तक हाँ नहीं किया है ? देखिये आपको भी पता है, हमारे पास लड़कियों की कमी नहीं है. हम केवल रेणु के लिए रुके है तो सिर्फ आपकी वजह से समझ रही है न आप, मैं क्या कहना चाहता हूँ...? हाँ जी, मैं जानती हूँ. देखो सीधे-सीधे मनालो तो अच्छा है. वरना मुझे ओर भी तरीके आते हैं. नरेश ने लक्ष्मी को धमकाते हुए कहा. लक्ष्मी  कुछ नहीं बोली और सीधा बच्चे के कमरे में चली गयी. मन ही मन उसने तय कर लिया कि कैसे भी कर के जल्द से जल्द वह यह शादी करवा के ही रहेगी. उस दिन जाते जाते लक्ष्मी ने रुक्मणी जी से कहा, ‘आप तारीख निकल वा लीजिये. अब यह शादी होकर ही रहेगी’.

इतने में अक्कू ने पीछे से आकर लक्ष्मी का आँचल पकड़कर उसे झटकना शुरू कर दिया और बोलने लगा मुझे शादी करनी है, मुझे शादी करनी है, काकी काकी....! कब होगी मेरी शादी ? आप ही मुझसे शादी कर लो ना. कहते कहते उसने लक्ष्मी का पल्लू इतनी ज़ोर से झटक दिया कि उसका पल्लू नीचे आगिरा उसे ऐसे देख अक्कू की आंखे बड़ी हो गयी और धीरे- धीरे उसे फिर एक बार पहले सा दौरा सा पड़ने लगा. उसके मुंह से लार गिरने लगी और धीरे धीरे उसका शरीर अकड़ने लगा. उसके हाव भाव बदलने लगे जैसे मानो स्त्री का शरीर देखते ही उसके अंदर का जानवर जाग जाता है लक्ष्मी ने झट से अपना पल्लू उठाया और खुद को उसमें लपटे लिया और घर के बाहर निकल गयी. रमेश ने किसी तरह अक्कू को काबू में कर लिया और अंदर ले गया.

इधर लक्ष्मी ने शादी की तैयारियां तो पहले ही शुरू कर दी थी. वह सब सामान इकट्ठा कर एक अलग स्थान पर रखने लगी. जैसे ही उसे शादी की तारीख का पता चला, पहले तो उसने सोचा रेणु को बता दे. फिर उसे लगा कहीं ऐसा ना हो की रेणु शादी की बात सुनकर घर छोड़कर भाग जाय. इसलिए उसने किसी से कुछ नहीं कहा और शादी वाले दिन रेणु को हल्की बेहोशी वाली दवा खाने में मिलाकर खिला दी. अब रेणु को बेहोशी की हालत में ही दुल्हन की तरह तैयार कर उसने मंदिर में ले जाकर अपनी बेटी की शादी अक्कू के साथ करवा दी और शादी के लिए तैयार किए गए पंजीकृत कागजों पर भी बेहोशी की हालात में ही अंगूठा लग वा दिया गया. इस तरह बेहोशी की हालात में ही अब रेणु कानूनी रूप से भी अक्कू की बिहाता पत्नी बन चुकी है.

सारी रस्में और कार्यक्रम होने के बाद रेणु को वैसी ही बेहोशी की हालात में अक्कू के कमरे में बिठा दिया गया. रेणु इतनी बेहोश है कि उसकी समझ में कुछ नहीं आरहा है कि वह कहाँ है, किस के साथ हैं, उसे सब धुंधला दिखाई दे रहा है और उसका सिर घूम रहा है. आँखें ठीक से खुल नहीं रही है. उधर अक्कू भी उसे अजीब अजीब बातें कर रहा है. कभी कहता है, खेलो मेरे साथ, अपन चिड़िया उड़ खेलेंगे, कभी कहता है गाना सुनोगी ...? मैं तुम्हें गाना सुनाता हूँ. पर रेणु का कोई जवाब या प्रतिक्रिया ना पाकर, वह उसका भी आँचल पकड़कर उससे खेलने लगता हैं और बेहोशी में उसका भी आँचल गिर जाता है. रेणु का तन बदन देख अक्कू के अंदर का जानवर फिर जाग जाता है. बेहोश रेणु को अब भी होश नहीं है, वह बेहोशी में ही नशे के कारण पलंग पर गिर जाती है और ‘फिर वही होता है, जो नहीं होना चाहिए’ अक्कू किसी पागल कुत्ते की तरह रेणु पर टूट पड़ता है. उसके कपड़े फाड़ देता है, उससे जगह जगह काट लेता है. रेणु पीड़ा से चिल्लाती भी है, लेकिन उसके शरीर में इतना बल नहीं कि वह उसे सबक सिखा सके. रात भर अक्कू एक जानवर बना उसके शरीर के साथ खेलता रहता है. और फिर खुद भी बेहोश जैसा सो जाता है.

अगले दिन सुबह जब रेणु को होशा आता है, तो वह अपना सर पकड़कर किसी तरह उठती है. अपने आस पास के माहौल को देखती हैं. अपने बाजू में सोये हुए अक्कू को देखती हैं, तो हैरान रह जाती है. अपनी खुद की हालत देखते ही उसकी आँखें बड़ी हो जाती हैं....! वह रोते बिलखते हुए अपनी साड़ी समेटते हुए स्नान ग्रह में चली जाती है. वहाँ पहुँचकर खुद को आईने में देख चीख उठती है. उसके गले पर अक्कू के काटे के बड़े बड़े निशान पड़े हुए हैं. उसे अच्छे से समझ में आजाता है कि कल रात उसके साथ किया हुआ था. वह फुट फुटकर रोने लगती हैं. फिर दरवाजे पर दस्तक होती हैं, रुक्मणी जी रेणु को बहू कहते हुए आवाज़ देती हैं. रेणु को और ज़ोर से रोना आजाता है. उससे इस बात का गहरा सदमा पहुँचा है कि उसकी अपनी माँ ने उसके साथ ऐसा किया. फिर भी वह खुद को संभालती है और जाकर दरवाजा खोलती हैं. उसकी आँखों से आँसू बंद होने का नाम नहीं ले रहे है. वह किसी से कुछ नहीं कहती.

रुक्मणी जी अंदर देखती हैं, मानो मुआयना करना चाहती हैं कि अंदर कल रात क्या कुछ हुआ, कुछ हुआ भी कि नहीं, और बिस्तर की हालत देख उनके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान उभर आती हैं और उनकी मुस्कान देख नरेश और उसकी पत्नी भी वैसे ही मुस्कुराने लगते हैं.

अब आगे ऐसा क्या होने वाला है कि रेणु को अपने साथ हुए अन्याय के लिए न्याय की गुहार लगानी होगी जनाने के लिए जुड़े रहे....!