में और मेरे अहसास - 99 Darshita Babubhai Shah द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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में और मेरे अहसास - 99

पिंजरा 

 

सोने का पिंजरा हैं फिर भी पंछी उदास हो रहा है l

खुले आसमाँ की तरह मुकम्मल आज़ादी कहा है ll

 

सुना सुना लम्हा लम्हा सुने सुने रात और दिन कि l

अभी तक दरिया जीतना पानी निगाहों से बहा है ll

 

बड़े से आलीशान बंगले में कई विचित्र प्राणी की l

भीड़ में रहते हुए उसने अकेलेपन का दर्द सहा है ll

 

उड़ने की मज़ा कब ले सकेंगा वहीं सोचता है 

वो l

सुकून ए साँस जंगलों की हवा बहती हो वहा है ll

 

बैगानो की बस्ती में आ बसा है वो जीना न हुआ l

ज़िंदगी की खुशीयाँ ओ जीवन संग साथी जहा है ll

१६-३-२०२४ 

 

मुहब्बत की हिफाज़त में हूँ l

खुदा की हर इनायत में हूँ ll

 

नादानियों में की हुईं हर l

बाकपन की शरारत में हूँ ll

 

आर्किड के सुहाने मौसम में l

मिलन की हरारत में हूँ ll

 

नटखट प्यारे नादां बच्चें की l

आँखों की सदाक़त में हूँ ll

 

खुदा की निगहबानी में रहता l

पाक बन्दे की सआदत में हूँ ll

१७-३-२०२४ 

 

अच्छा बच्चा, सच्चा बच्चा जान के न सताना l

गर रूठ जाए प्यार और अपनेआप से मनाना ll

१७-३-२०२४ 

 

हुश्न की निगाहों से ज़ज्बात बह रहे हैं l

अनकही दास्तान खुले आम कह रहे हैं ll

 

नसीब का लेखा जिंन्दगी भर चुपचाप l

अपनों की रुसवाइयों को सह रहे हैं ll

 

जो मिला शायद वहीं मुकद्दर है समज के l

खामोशी से भीतर ही भीतर दह रहे हैं ll

 

अपनों को खुश रखने के लिए बार बार l

वो मुस्कराकर उदासियों को तह रहे हैं ll

 

एतबार है ख़ुदा पर इंसाफ जरूर करेगा l

ग़मगीनियाँ को छुपाने घूंघट पह रहे हैं ll 

१८-३-२०२४ 

 

दरिया

दिल का दरिया छलक रहा है l

महफ़िल में इश्क़ बहक रहा है ll

 

रूहानी रिश्ता बना दिया है तो l

मुलाकात के लिये तड़प रहा है ll

 

सूरजमुखी के पुष्प की मानिंद l

जी भर देखने को तड़प रहा है ll

 

प्यास ने दरिया ही बना दिया l

प्यारी मीठी नज़र तरस रहा है ll

 

मिलने का एक और वादा किया l

बहाने बाजी को समज रहा है ll

 

मज़ा डूबने का मजेदार है कि l

कशमकश में सरक रहा है ll

 

दिल की कश्ती खुली छोड़ के l

साहिल को छूने गरज़ रहा है ll

 

फ़िर बहाव में बहते जा यूँही l

खुदा के नाम से पनप रहा है ll

 

इश्क की नाव को पार लगाके l

वो नेकी करके खनक रहा है ll

१९-३-२०२४ 

सखी

दर्शिता बाबूभाई शाह

 

घर

चार दीवारों से घर नहीं बनते l

आपसी भाइचारे से है सजते ll

 

जो भी मिले मिल बाँटकर खाएं l

एकदूसरे से अटूट प्यार करते ll

 

माँ की शीतलता में आँगन को l

बच्चों की किलकारियाँ भरते ll

 

गुंजाइश होती अरमान पलने की l

माँ बाप की ममता से संभलते ll

 

खुशियों से घर गूंजेगा जरूर l

विश्वास से है दिन रात सरते ll

 

छुट्टी होते ही मामा के घर जाना l

बच्चों की किलकारी आँगन गूँजते ll

२०-३-२०२४ 

सखी

दर्शिता बाबूभाई शाह

 

 

गौरेया को खुली फ़िझाओ उड़ जाने दो l 

सब को उड़ने की चाह होती है छोड़ दो ll

 

सोच का पंछी उड़ चला है बादलों के उस पार l

याद का पंछी उड़ चला है बादलों के उस पार ll

 

मुहब्बत का असर तो देखो हुश्न और इश्क़ के l

साथ का पंछी उड़ चला है बादलों के उस पार ll

 

महफिलों में यार दोस्तों के संग सुराही पीकर l

जाम का पंछी उड़ चला है बादलों के उस पार ll

 

नींद में बादलों की परी से मिलने की चाहत में l

ख्वाब का पंछी उड़ चला है बादलों के उस पार ll

 

चांद सितारों से मुलाकात और गुफ़्तगू करने को l

रात का पंछी उड़ चला है बादलों के उस पार ll

२१-३-२०२४ 

 

समाज की बंदिशों को हटा दो l

आप सी रंजिशों को भुला दो ll

 

एकदूसरे के साथ प्यारसे रहे l

नफ़रत की दीवार को मिटा दो ll

 

भेड़िया बनता जा रहा है उस l

इंसान में इंसानियत जगा दो ll

 

सलाखों से निकलकर गुलाबों से l

क़ायनात को खुशीसे सजा दो ll

 

जफागरों की बद नजरों से बचा के l

आज धरती को ही स्वर्ग बना दो ll

२२-३-२०२४ 

 

अबकी बार प्यार के रंगो से खेलेगे  होली l  इश्क के मीठे स्पर्श के रंगो से खेलेगे होली ll

 

कृष्णा के रंग में रंग के राधा रानी बिरज में l

केसरिया पलाश के रंगो से खेलेगे होली ll

 

लाल गुलाल अमोल तरु तरु से तन खोले l

मुहब्बत की बात के रंगो से खेलेगे होली ll

 

महबूब के नशे में खुम शीश ए जाम छलकेगे l  

भूली बिसरी याद के रंगो से खेलेगे होली ll

 

भीगी ताने होली की नाज़-ओ -अदा के ढ़ंग l

गुलजार फिझाओ के रंगो से खेलेगे होली ll

 

पूनमकी शीतल चांदनी में सैया के संग l

सितारों भरी रात के रंगो से खेलेगे होली ll

२३-३-२०२४ 

सखी

दर्शिता बाबूभाई शाह

 

अश्कों के जाम पीने की आदत हो गई है l

मुहब्बत में ये बीमारी इबादत हो गई है ll

 

मुस्कराकर सारा गम छिपा रहे देखो तो l

मनचाहे मुसाफ़िर की इनायत हो गई है ll

 

निगाहों की दहलीज को पार करके एक l

दो बूंद पानी बहा तो कयामत हो गई है ll

 

दिल के हालात चहरे पर नज़र आ रहे हैं l

ख़ामोशियाँ आँखों की बग़ावत हो गई है ll  

 

संग दिल से अरमान लगाएं बैठे तो फ़िर l

आज हसीन ख्वाबों से शरारत हो गई है ll

२३-३-२०२४ 

सखी

दर्शिता बाबूभाई शाह

 

दिल को भा गई ग़ज़लों की बंदिश l

बखूबी छलकती प्यार की कशिश ll

 

चीखकर, चिल्लाकर हाथ जोड़ कर l

कहती हैं मिटा दो आपसी रंजिश ll

 

बहुत ही कम शब्दों और वाक्यों में l

बोलती है दिल की हर एक ख्वाईश ll

 

दिल में दबाकर न चल देना अब के l

गर कुछ कहना है बताइएगा हरगिश ll

 

कल हो ना हो साथ साथ इस लिए l

आज से छोड़ दो करनी साजिश ll

गर्दिश - संकट 

२४-३-२०२४ 

 

होली है तो रंगों की नदियाँ बहनी चाहिए l

दिलों दिमाग पर तो खिली होनी चाहिए ll

 

बच्चों के गुब्बारों और पिचकारियाँ में l

लाल, पीले, नीले रंगों का पानी चाहिए ll

 

गुलाबी फूलों ने होली को फूलों से खेली l

खुशी उमंगों से छलकती रहनी चाहिए ll

 

कपड़ों पर रंग के छीटों से खुश रंग अजीब l 

केसरिया से चहरे की रंगत कहनी चाहिए ll

 

भीगी ताने होली की, हुश्न की नाजो अदा l

चूनरी भी महबूब के नशे में रंगनी चाहिए ll

२५-३-२०२४ 

आध्यात्म

चल पड़े हैं आध्यात्म के पथ पर शांति के लिए आज l

जा रहे हैं हिमालय के पथ पर शांति के लिए आज ll

 

भावनाओ का झोंका अन्तर्मन आता जाता रहता है l

आओ सत्य की खोज के पथ पर शांति के लिए आज ll

 

थाम के छोर आसक्ति की आगे बढ़ के जाना हैं फ़िर l

निकले चिर विश्रांति के पथ पर शांति के लिए आज ll

२६-३-२०२४ 

 

 

जब से प्यार की गहराई में उतरी l

मुहब्बत की सुंदरता में औ निखरी ll

 

मुद्दतों के बाद कोई हमनवा मिला l

निगाहें चार होते सुध बुद्ध बिसरी ll

 

मिरे अरमानो की डॉली छलक गई l

जब मयखाने की गली से निकली ll

 

महफ़िल में चल रही थी इश्क़ की l

ग़ज़लों ने पाँव में बेड़ियाँ जकड़ी ll 

 

आज आधे रास्ते छोड़ जाते थे तो l

रोकने को नाजुक कलाई पकड़ी ll

२६-३-२०२४

 

 

जीवन जीना सिखाती है गीता l

सच का रास्ता दिखाती है गीता ll

 

आयुष्य काल में करने वाले l

कर्तव्य याद दिलाती है गीता ll

 

नित्य पठन अध्ययन करने से 

अहंकार को मिटाती है गीता ll

 

दुनिया में सभी लोगों के साथ l

जीने का ढंग बताती है गीता ll

 

ज्ञान का भंडार, मोक्ष का सार l

अमृत रस पिलाती है गीता ll

 

हर समस्या का हल, भक्ति से l 

धर्म के भाव जगाती है गीता ll

२७-३-२०२४ 

 

स्त्री

स्त्री का सन्मान करना सीखो l

प्रेम और आदर करना सीखो ll

 

पूर्ण व्यक्तित्व का विकास करके l

भावना का मान करना सीखो ll

 

पूरी सिद्दत से उड़ान कर सके l

आसमान प्रदान करना सीखो ll

 

प्रगति औ पूर्णतम विकास को l

समय योगदान करना सीखो ll

 

अल्फ़ाज़ भी कम पड जाए सखी l

सदा गुण गान करना सीखो ll

२८-३-२०२४ 

 

युवा 

युवा शक्ति को न बरबाद करो l

युवा धन से देश आबाद करो ll

 

"माँ"भौम के लिए मरने वाले l

वीर भगतसिंह को याद करो ll

 

देश को विकास पथ ले जाने l

जागृत करने को साद करो ll

 

उन्नति की और ले जाएगा तो l

शक्ति संचार के लिए नाद करो ll

 

तरक्की की जिम्मेदारी को सौप l

जीवन से आलस को बाद करो ll

२९-३-२०२४

गुस्ताख़ होती है यादें तमीज सीखा दो l

दस्तक दिये बगैर दिल में आ जाती है ll

 

हमसफ़र के साथ गुजारे हुए हसी प्यारे l

वो सुहाने लमहों की तस्वीरें लाती है ll

 

निगाहों को अश्कों से भिगोकर वो कहीं l 

पलभर के लिए थोड़ा सा चैन पाती हैं ll

२९-३-२०२४

 

जीवन में संतुलन जरूरी है बनाए रखना l

सुख और दुख की अनुभूति को चखना ll

 

आलोचक भी मुह में उँगलियाँ डाल दे l

बात सही निशाने पर लगे एसे कहना ll

 

आने वाला समय सवर्णिम बनाना है तो l

निर्मल जल की तरह शांत गंभीर रहना ll

 

हर रोज एक नया आयाम आएगा सामने l

बड़ी से बड़ी विपदा को चुपचाप सहना ll

 

उम्दा नाविक बन संसार सागर पार करने l

सदा समय की रफ़्तार के साथ ही बहना ll

३०-३-२०२४ 

 

टूटी हुई उम्मीदों का घाव सबसे गहरा होता है l

गुज़रा हुआ प्यारा वक़्त वहीं पे ठहरा होता है ll

 

 

बार बार क्यूँ कहते हो कि तू क्या है?

पूछते हो तो जानने की आरज़ू क्या है?

 

बहुत ही कीमती चीज़ की तलाश में हो l

क्या खोया आज फ़िर जुस्तजू क्या है?

 

महफ़िल में पर्दे के पीछे से बातेँ करना l

निगाहों से अंदाज ए गुफ्तगू क्या है? 

 

 

मतलब की दुनिया है कोई उम्मीद न रखना l

मासूमियत में कभी दिल का हाल न कहना ll

 

भाग्य का लेखा जो भी हो सामने आता है l

वक़्त का जुल्मों सितम चुपचाप से सहना ll

 

दुनिया जहां जाती है जो भी करती है बस l

जिस तरह जाती है भीड़ उस तरफ़ बहना ll

 

जिंन्दगी है ऊपर नीचे होती ही रहती है l

जो हो जाए रूह में सुकुनियत को पहना ll

 

ज्यादा बोलने से बिगड़ जाती है बाज़ी तो l

मानो बात सदाकत से खामोशी ही गहना ll

३१-३-२०२४ 

 

 

बार बार क्यूँ कहते हो कि तू क्या है?

पूछते हो तो जानने की आरज़ू क्या है?

 

बहुत ही कीमती चीज़ की तलाश में हो l

क्या खोया आज फ़िर जुस्तजू क्या है?

 

महफ़िल में पर्दे के पीछे से बातेँ करना l

निगाहों से अंदाज ए गुफ्तगू क्या है?