मन्नत के धागों से ख़ुदा को मनाना छोड़ दिया l
अपने और अपनों के लिए सताना छोड़ दिया ll
अँधेरों से न घबराना, किसीसे आश भी नहीं रखते l
छोटी छोटी बातों को दिलसे लगाना छोड़ दिया ll
बेवजह सोच के परेशान नहीं रहना ओ करना l
रूठे हुए को मनाके प्यार को जताना छोड़ दिया ll
एकतरफ़ा बेनामी रिश्तों को निभाते नहीं रहेना l
हर लम्हा हर पल की खबरें बताना छोड़ दिया ll
लोगों को खुश रखने की नाकाम कोशिश करके l
आज़माके समझाने के साथ ज़माना छोड़ दिया ll
१-३-२०२४
फागुन
रंगबिरंगी रगों की बौछारें लाया फागुन l
केसरिया वाघा पहन कर आया फागुन ll
लाल पीले रंगों से भरी पिचकारियाँ संग l
बच्चों ने हर्षो उल्लाससे मनाया फागुन ll
भूली बिसरी मीठी यादों के कच्चे पक्के रंग l
दिलों में प्रीत महोत्सव का साया फागुन ll
रोम रोम केसर घुली, चंदन महके संग l
क़ायनात को खूबसूरत बनाया फागुन ll
डाल डाल पर झूमे पलाश के फूल और l
अलबेली बसंत पंचमी सजाया फागुन ll
२-४-२०२४
एकांत ख़ुद में है तो यादों के सहारे काफ़ी है l
मुकम्मल वक्त में दिल की धड़कन साक़ी है ll
सोई हुई आँखों को जगाया रातभर इंतजार में l
जज़्बातों की कहानियों को सुनाना बाकी है ll
चल रही है साँसें दिल की धड़कन थम सी गई l
सालों से नजरों को अधूरी ख्वाइश फाकी है ll
मासूम सा चेहरा देख खामोश हो गई जुबान l
उम्मीदों के सहारो से तरसती यादें पाकी है ll
प्यार भरी आवाज़ से एक बार पुकारा तो l
सब कुछ मिल गया जब सामने साफी है ll
३ -४-२०२४
याद है कि सोचों से जाती नहीं है l
वो मिन्नतों के बाद आती नहीं है ll
न आने वालों के रातभर इंतजार में l
कहीं चैन और सुकून पाती नहीं है ll
लाती नहीं है ll
भाती नहीं है ll
बाती नहीं है ll
बसंत की बेला आई साथ अपने मधुमास लाई l
पलाशों के आने की खुशी में मधुर रागिनी गाई ll
पीला प्रेम आसव छाया हुआ है फिझाओ में देखो l
सुसंगत मीठी गुँजती हवाकी प्यारी सौगातें पाई ll
वसु वसुधा पुलकित अंग अंग है नीखरा हरकही l
कोकिला के मधुर गान से प्रियतमा की याद सताई ll
टूटी है नीद वृक्षो की नई पत्तों के आगमन से l
खेत खलियानो में खिल खिल प्रतीक्षा उड़ाई ll
भँवरो के गीत रीझाए और पपीहे की गुंजन से तो l
कोयल के कंठ में आशा की किरणो ने आश दिल में जगाई ll
४-३-२०२४
माँ की ममता के दरख़्तों में पतझड़ नहीं होती l
माँ की छाव में नन्हीमुन्नी बच्ची कभी नहीं रोती ll
बेस्वार्थ होकर प्यारा दुलार ताउम्र दिये जाती l
क़ायनात में प्यार औ करुणा के बीज है बोती ll
माँ को खुदा औ संपूर्ण सृष्टि का पर्याय बनाया है l
होठों पे हसी सजाने माँ चैन संग सुकून खोती ll
बच्चों की आँखों में छुपे हुए ख्वाब पहचान कर l
उसी ख्वाइशों के ख्वाब पूरे करके ही वो सोती ll
जिन्दगी की जिम्मेदारीयों को मुस्करा कर निभाने l
बिना गिला किए बिना शिकायतों के जीवन ढोती ll
४-३-२०२४
संग परिंदों के व्योम में उड़ना चाहते हैं l
गुब्बारों के साथ हवामें झुमना चाहते हैं ll
परवाज़ की उड़ान के साथ मिले पंख l
फिझाओ में दूर तल्ख चढ़ना चाहते हैं ll
एक आरज़ू लेकर इस जहाँ से वहाँ उस l
बादलों की आरज़ू को पढ़ना चाहते हैं ll
जाने क्या सोचकर रिहाई दे दी आज l
उड़ती हुई तमन्ना से लड़ना चाहते हैं ll
मोहब्बत के एहसास को उड़ाकर सखी l
आसमान का चैन सुकूं हरना चाहते हैं ll
ज़मीं पे घुटन सी महसूस हो रही है तो l
खुले बेखौफ नजारों में पलना चाहते हैं ll
५-३-२०२४
अजीज है परछाईं क्यूँकी कभी साथ न छोड़ें ll
चाहें क़ायनात मुँह फेरे पर वो हाथ न छोड़ें ll
कोई जिद नहीं ख़ुद को रोशन करने की और l
उजियालो में जाने का कहकर दिल न तोड़े ll
आदत हो गई सुख दुःख में साथ रहने की l
जहां भी जाए बिना सोचे साथ साथ दोड़े ll
उम्रभर एकसाथ चलने का वादा जो किया l
मंजिल की राह देख रास्ता कभी नहीं मोडें ll
खुद की परछाईं से ख़ुद ही बातेँ करते हुए l
जहा जाए दौड़ते ही रहते हैं अँधेरों के घोड़े ll
६-३-२०२४
बेटियाँ पिता की जान होती है l
घर परिवार की शान होती है ll
बिंदिया, चूडी, कंगन, झुमके l
वो कुटुंब की पहचान होती है ll
बहती नदी, पँछी के कलरव जैसी l
माँ के होंठों की मुस्कान होती है ll
वृक्ष की छाँव आँगन की तुलसी l
माँ के संस्कारों की आन होती है ll
मन में हलचल ओ चहेरे पर सुकून l
रीति रिवाजों से अनजान होती है ll
ममता ओ दुलार से पाली पली कि l
भाई के घर की मेहमान होती है ll
७-३-२०२४
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह
गंगा की निर्मल धारा बहती अविरत l
जीवन में आगे बढ़ो सिखाती अविरत ll
तन मन समर्पित करके चलती रहती l
शंकर की जटाओं से आती अविरत ll
छितिज पर गुलाबी आभा मिलती हुई l
तेरी धाराएं रुक नहीं पाती अविरत ll
पावन गरिमामय स्वर में,अपने राग l
लहरे सदा कुछ गुनगुनाती अविरत ll
हर सुबह ममता का पसरा आँगन l
आज भी पदनख की याद दिलाती हैं ll
७-३-२०२४
ख्वाबों की तामीर होनी चाहिये l
मुकम्मल ताबीर होनी चाहिये ll
पलकों के पीछे इच्छा का पहरा है l
जिंन्दगी की तासीर होनी चाहिये ll
खुले आसमान में उड़ान भले भरो l
हकीकत से वाकिफ होनी चाहिये ll
शम्मा जलादों पूरी सिद्दत से आज l
साथ जलने में माहिर होनी चाहिये ll
मंझिल तक पहुचने की ठान लिया l
किश्तियाँ भी साबित होनी चाहिये ll
८-३-२०२४
जब भी ख्वाब में आते हैं जी को तड़पा जाते हैं l
फिर एक और मुलाकात के लिए तरसा जाते हैं ll
खुले आसमान के तले, रंगीन नजारों में मिलेंगे l
जूठी कसमें खाके बावरे मन को बहका जाते हैं ll
कई दिनों से आँख मिचोली खेल रहे थे निगोड़े l
अँधेरो से उजाले की बातेँ जिगर छलका जाते हैं ll
एक झलक गुनगुनाती हुईं ज़िंन्दगी को देखा तो l
रात के वाकिए प्यारी खुशबु से महका जाते हैं ll
खो गये थे ज़िंन्दगी की तेज़ रफ़्तार में कहीं l
हसीन प्यारे सपनें आंखों को चमका जाते हैं ll
अरसे बाद नींद में सहलाने आ गये अपनेआप l
रोज अरमानों की चिड़िया को चहका जाते हैं l
९-३-२०२४
मन परिंदा उड़ जाता है कभी कभी l
जग में खुद को खोता है कभी कभी ll
पुरानी बातों दिल में टिश उठती उसे l
याद करके वो रोता है कभी कभी ll
ज़मीं से लेकर आसमाँ तक परवाज़l
रूह से जोड़ता नाता है कभी कभी ll
मंज़िल को हसीं खूबसूरत बनाने को l
हमनवाज को चुनता है कभी कभी ll
ज़िंदगी का सफ़र सजाने के लिए l
अरमानों को बोता है कभी कभी ll
१०-३-२०२४
मुहब्बत की राह में ठोकर मिलतीं है l
दिल की चिड़िया दर्द को झिलती है ll
नाकामियों को भुलाकर जिन्दगी में l
जीने के लिए हौसलों को सिलती है ll
प्यास की उम्र बढ़ती ही जाती है l
मुकदस आवारगी रश्क हिलती है ll
पत्थर दिल से मिली है ठाकरे तो l
जेहन फिरे तो उल्टे पाँव फिरती है ll
अब मुस्कुराना सीख लिया जब के l
जिगर पे बिजली बराबर गिरती है ll
११-३-२०२४
नारी जीने का हौंसला बनाये रखना l
प्यार से सुन्दर घोंसला बसाये रखना ll
बड़े बड़े तूफ़ान का डट के सामना कर l
आत्मविश्वास से दिल सजाये रखना ll
मनोबल को मजबूत और बुलंद करके l
आश के दिपक को रोज़ जलाये रखना ll
संयम व धैर्य से सफलता की सीढ़ी चढ़ l
निर्भय होकर हिम्मत को बनाये रखना ll
निराशा के घोर अंधकार के बादल हटा l
आसमाँ को हिलाने की वफ़ाये रखना ll
सर उठाकर सतत आगे बढ़ते रहो और ll
जीत हासिल का ज़ज्बा मनाये रखना ll
१२-३-२०२४
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह
नारी नारायणी हैं तू l
नारी स्वाभिमानी है तू l
नारी सृष्टा है तू l
नारी सर्जनहार है तू l
नारी जन्मदात्री है तू l
नारी हौंसला है तू l
नारी भगवान का पर्याय है तू ll
आधुनिक नारी हूँ, ना हीं बेचारी हूँ l
ना हीं अबला हूँ, ना ही लाचारी हूँ ll
रुढ़िवादी परंम्पराओ के सामने आज l
हौसलों ओ हिम्मत से पैरों पे खड़ी हूँ ll
साधारण से सामन्य दिखने वालीं l
अपने बलबूते पर ऊँचाइयाँ चड़ी हूँ ll
गर्व से कर्तव्यों का पालन करते हुए l
बेसहारों और कमजोरो की छड़ी हूँ ll
मर्यादाओं में रखकर तकदीर बनाई l
खुद की लड़ाइयाँ ख़ुद ही लड़ी हूँ ll
माँ बाप के संस्कारों को उजागर कर l
ज़िंदगी के संघर्षों में तपकर तड़ी हूँ ll
१२-३-२०२४
दिल की नाव डूबने मत देना l
हौसलों को टूटने मत देना ll
दुनिया वाले है कुछ तो कहेगे l
चैन सुकूं को लूटने मत देना ll
जानते हैं आसां नहीं जजूमना l
स्वाभिमान झुकने मत देना ll
डर आगे जीत लिखीं होती है l
अपनेआप को रूकने मत देना ll
गम के बादल जल्द हट जाएंगे l
आश की मटकी फूटने मत देना ll
१३-३-२०२४
बचपन
सलौने बचपन की मुहब्बत पाक होती है l
नाटकीय नटखट बगावत पाक होती है ll
तोहफ़े में काग़ज़ की नाव,हवाई जहाज ओ,
प्यारे गुब्बारों की इनायत पाक होती है ll
प्रार्थना में पूरी ए बी सी डी बोलना उस l
सच्चे दिल से हुईं इबादत पाक होती है ll
ना फ़िक्र कल की, ना किसीसे कोई गिला l
उत्सुक आँखों की नजाकत पाक होती है ll
कुल्ल्ड की बर्फ खाना, खेलना कूदना कि l
मिट्टी से तन की सजावट पाक होती है ll
१४-३-२०२४
मसरूफ
रात दिन मसरूफ - ए - इंतज़ार में हैं दिल l
प्यार के मसरूफ - ए - इंतजाम में हैं दिल ll
मिलन की आश लगाएं बेठे है न जाने कब से l
नसीब भी मसरूफ - ए - ख़्वाब में हैं दिल ll
नजरों से टपकती रहती है आरज़ू देखो तो l
यार से जुदाई मसरूफ - ए - गम में हैं दिल ll
सुब्ह ने चौका दिया हुश्ना के नामा ने आज कि l
आरईश भी मसरूफ - ए - गुलशन में हैं दिल ll
जिंन्दगी के अरमान भी सारे नीलाम हो गये हैं l
फ़िर क्यूँ मसरूफ - ए - मुहब्बत में हैं दिल ll
१५-३-२०२४
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह