में और मेरे अहसास - 98 Darshita Babubhai Shah द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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में और मेरे अहसास - 98

मन्नत के धागों से ख़ुदा को मनाना छोड़ दिया l

अपने और अपनों के लिए सताना छोड़ दिया ll

 

अँधेरों से न घबराना, किसीसे आश भी नहीं रखते l

छोटी छोटी बातों को दिलसे लगाना छोड़ दिया ll

 

बेवजह सोच के परेशान नहीं रहना ओ करना l

रूठे हुए को मनाके प्यार को जताना छोड़ दिया ll

 

एकतरफ़ा बेनामी रिश्तों को निभाते नहीं रहेना l 

हर लम्हा हर पल की खबरें बताना छोड़ दिया ll

 

लोगों को खुश रखने की नाकाम कोशिश करके l

आज़माके समझाने के साथ ज़माना छोड़ दिया ll

१-३-२०२४ 

 

फागुन 

 

रंगबिरंगी रगों की बौछारें लाया फागुन l

केसरिया वाघा पहन कर आया फागुन ll

 

लाल पीले रंगों से भरी पिचकारियाँ संग l

बच्चों ने हर्षो उल्लाससे मनाया फागुन ll

 

भूली बिसरी मीठी यादों के कच्चे पक्के रंग l

दिलों में प्रीत महोत्सव का साया फागुन ll

 

रोम रोम केसर घुली, चंदन महके संग l

क़ायनात को खूबसूरत बनाया फागुन ll

 

डाल डाल पर झूमे पलाश के फूल और l

अलबेली बसंत पंचमी सजाया फागुन ll

 २-४-२०२४ 

 

एकांत ख़ुद में है तो यादों के सहारे काफ़ी है l

मुकम्मल वक्त में दिल की धड़कन साक़ी है ll

 

सोई हुई आँखों को जगाया रातभर इंतजार में l

जज़्बातों की कहानियों को सुनाना बाकी है ll

 

चल रही है साँसें दिल की धड़कन थम सी गई l

सालों से नजरों को अधूरी ख्वाइश फाकी है ll

 

मासूम सा चेहरा देख खामोश हो गई जुबान l

उम्मीदों के सहारो से तरसती यादें पाकी है ll

 

प्यार भरी आवाज़ से एक बार पुकारा तो l

सब कुछ मिल गया जब सामने साफी है ll

 ३ -४-२०२४

 

 

याद है कि सोचों से जाती नहीं है l

वो मिन्नतों के बाद आती नहीं है ll

 

न आने वालों के रातभर इंतजार में l

कहीं चैन और सुकून पाती नहीं है ll

 

 

लाती नहीं है ll

 

 

भाती नहीं है ll

 

बाती नहीं है ll

 

 

बसंत की बेला आई साथ अपने मधुमास लाई l

पलाशों के आने की खुशी में मधुर रागिनी गाई ll

 

पीला प्रेम आसव छाया हुआ है फिझाओ में देखो l

सुसंगत मीठी गुँजती हवाकी प्यारी सौगातें पाई ll

 

वसु वसुधा पुलकित अंग अंग है नीखरा हरकही l

कोकिला के मधुर गान से प्रियतमा की याद सताई  ll

 

टूटी है नीद वृक्षो की नई पत्तों के आगमन से l

खेत खलियानो में खिल खिल प्रतीक्षा उड़ाई ll

 

भँवरो के गीत रीझाए और पपीहे की गुंजन से तो l

कोयल के कंठ में आशा की किरणो ने आश दिल में जगाई  ll

४-३-२०२४ 

 

माँ की ममता के दरख़्तों में पतझड़ नहीं होती  l

माँ की छाव में नन्हीमुन्नी बच्ची कभी नहीं रोती   ll

 

बेस्वार्थ होकर प्यारा दुलार ताउम्र दिये जाती l

क़ायनात में प्यार औ करुणा के बीज है बोती  ll

 

माँ को खुदा औ संपूर्ण सृष्टि का पर्याय बनाया है l

होठों पे हसी सजाने माँ चैन संग सुकून खोती  ll

 

बच्चों की आँखों में छुपे हुए ख्वाब पहचान कर l

उसी ख्वाइशों के ख्वाब पूरे करके ही वो सोती  ll

 

जिन्दगी की जिम्मेदारीयों को मुस्करा कर निभाने l

बिना गिला किए बिना शिकायतों के जीवन ढोती  ll

४-३-२०२४ 

 

संग परिंदों के व्योम में उड़ना चाहते हैं l

गुब्बारों के साथ हवामें झुमना चाहते हैं ll

 

परवाज़ की उड़ान के साथ मिले पंख l

फिझाओ में दूर तल्ख चढ़ना चाहते हैं ll

 

एक आरज़ू लेकर इस जहाँ से वहाँ उस l

बादलों की आरज़ू को पढ़ना चाहते हैं ll

 

जाने क्या सोचकर रिहाई दे दी आज l

उड़ती हुई तमन्ना से लड़ना चाहते हैं ll 

 

मोहब्बत के एहसास को उड़ाकर सखी l

आसमान का चैन सुकूं हरना चाहते हैं ll

 

ज़मीं पे घुटन सी महसूस हो रही है तो l

खुले बेखौफ नजारों में पलना चाहते हैं ll

५-३-२०२४ 

 

 

अजीज है परछाईं क्यूँकी कभी साथ न छोड़ें ll

चाहें क़ायनात मुँह फेरे पर वो हाथ न छोड़ें ll

 

कोई जिद नहीं ख़ुद को रोशन करने की और l

उजियालो में जाने का कहकर दिल न तोड़े ll

 

आदत हो गई सुख दुःख में साथ रहने की l

जहां भी जाए बिना सोचे साथ साथ दोड़े ll 

 

उम्रभर एकसाथ चलने का वादा जो किया l

मंजिल की राह देख रास्ता कभी नहीं मोडें ll  

 

खुद की परछाईं से ख़ुद ही बातेँ करते हुए l

जहा जाए दौड़ते ही रहते हैं अँधेरों के घोड़े ll  

६-३-२०२४ 

 

बेटियाँ पिता की जान होती है l

घर परिवार की शान होती है ll

 

बिंदिया, चूडी, कंगन, झुमके l

वो कुटुंब की पहचान होती है ll

 

बहती नदी, पँछी के कलरव जैसी l

माँ के होंठों की मुस्कान होती है ll

 

वृक्ष की छाँव आँगन की तुलसी  l

माँ के संस्कारों की आन होती है ll

 

मन में हलचल ओ चहेरे पर सुकून l

रीति रिवाजों से अनजान होती है ll

 

ममता ओ दुलार से पाली पली कि l

भाई के घर की मेहमान होती है ll 

७-३-२०२४ 

सखी

दर्शिता बाबूभाई शाह

गंगा की निर्मल धारा बहती अविरत l

जीवन में आगे बढ़ो सिखाती अविरत ll

 

तन मन समर्पित करके चलती रहती l

शंकर की जटाओं से आती अविरत ll

 

छितिज पर गुलाबी आभा मिलती हुई l

तेरी धाराएं रुक नहीं पाती अविरत ll

 

पावन गरिमामय स्वर में,अपने राग l

लहरे सदा कुछ गुनगुनाती अविरत ll

 

हर सुबह ममता का पसरा आँगन l

आज भी पदनख की याद दिलाती हैं ll

७-३-२०२४ 

ख्वाबों की तामीर होनी चाहिये l

मुकम्मल ताबीर होनी चाहिये ll

 

पलकों के पीछे इच्छा का पहरा है l

जिंन्दगी की तासीर होनी चाहिये ll

 

खुले आसमान में उड़ान भले भरो l

हकीकत से वाकिफ होनी चाहिये ll

 

शम्मा जलादों पूरी सिद्दत से आज l

साथ जलने में माहिर होनी चाहिये ll

 

मंझिल तक पहुचने की ठान लिया l

किश्तियाँ भी साबित होनी चाहिये ll

८-३-२०२४ 

 

जब भी ख्वाब में आते हैं जी को तड़पा जाते हैं l

फिर एक और मुलाकात के लिए तरसा जाते हैं ll

 

खुले आसमान के तले,  रंगीन नजारों में मिलेंगे l

जूठी कसमें खाके बावरे मन को बहका जाते हैं ll

 

कई दिनों से आँख मिचोली खेल रहे थे निगोड़े l

अँधेरो से उजाले की बातेँ जिगर छलका जाते हैं ll

 

एक झलक गुनगुनाती हुईं ज़िंन्दगी को देखा तो l

रात के वाकिए प्यारी खुशबु से महका जाते हैं ll

 

खो गये थे ज़िंन्दगी की तेज़ रफ़्तार में कहीं l

हसीन प्यारे सपनें आंखों को चमका जाते हैं ll

 

अरसे बाद नींद में सहलाने आ गये अपनेआप l

रोज अरमानों की चिड़िया को चहका जाते हैं l

९-३-२०२४ 

 

 

 

मन परिंदा उड़ जाता है कभी कभी l

जग में खुद को खोता है कभी कभी ll

 

पुरानी बातों दिल में टिश उठती उसे l

याद करके वो रोता है कभी कभी ll

 

ज़मीं से लेकर आसमाँ तक परवाज़l 

रूह से जोड़ता नाता है कभी कभी ll

 

मंज़िल को हसीं खूबसूरत बनाने को l

हमनवाज को चुनता है कभी कभी ll

 

ज़िंदगी का सफ़र सजाने के लिए l

अरमानों को बोता है कभी कभी ll

१०-३-२०२४ 

 

मुहब्बत की राह में ठोकर मिलतीं है l

दिल की चिड़िया दर्द को झिलती है ll

 

नाकामियों को भुलाकर जिन्दगी में l

जीने के लिए हौसलों को सिलती है ll

 

प्यास की उम्र बढ़ती ही जाती है l

मुकदस आवारगी रश्क हिलती है ll

 

पत्थर दिल से मिली है ठाकरे तो l

जेहन फिरे तो उल्टे पाँव फिरती है ll

 

अब मुस्कुराना सीख लिया जब के l

जिगर पे बिजली बराबर गिरती है ll

११-३-२०२४ 

 

नारी जीने का हौंसला बनाये रखना l

प्यार से सुन्दर घोंसला बसाये रखना ll

 

बड़े बड़े तूफ़ान का डट के सामना कर l

आत्मविश्वास से दिल सजाये रखना ll

 

मनोबल को मजबूत और बुलंद करके l

आश के दिपक को रोज़ जलाये रखना ll

 

संयम व धैर्य से सफलता की सीढ़ी चढ़ l

निर्भय होकर हिम्मत को बनाये रखना ll

 

निराशा के घोर अंधकार के बादल हटा l

आसमाँ को हिलाने की वफ़ाये रखना ll

 

सर उठाकर सतत आगे बढ़ते रहो और ll

जीत हासिल का ज़ज्बा मनाये रखना ll

१२-३-२०२४ 

सखी

दर्शिता बाबूभाई शाह

 

 

नारी नारायणी हैं तू l

नारी स्वाभिमानी है तू l

नारी सृष्टा है तू l

नारी सर्जनहार है तू l

नारी जन्मदात्री है तू l

नारी हौंसला है तू l

नारी भगवान का पर्याय है तू ll

 

आधुनिक नारी हूँ, ना हीं बेचारी हूँ l

ना हीं अबला हूँ,  ना ही लाचारी हूँ ll

 

रुढ़िवादी परंम्पराओ के सामने आज l

हौसलों ओ हिम्मत से पैरों पे खड़ी हूँ ll

 

साधारण से सामन्य दिखने वालीं l

अपने बलबूते पर ऊँचाइयाँ चड़ी हूँ ll

 

गर्व से कर्तव्यों का पालन करते हुए l

बेसहारों और कमजोरो की छड़ी हूँ ll

 

मर्यादाओं में रखकर तकदीर बनाई l

खुद की लड़ाइयाँ ख़ुद ही लड़ी हूँ ll

 

माँ बाप के संस्कारों को उजागर कर l

ज़िंदगी के संघर्षों में तपकर तड़ी हूँ ll

१२-३-२०२४ 

 

दिल की नाव डूबने मत देना l

हौसलों को टूटने मत देना ll

 

दुनिया वाले है कुछ तो कहेगे l

चैन सुकूं को लूटने मत देना ll

 

जानते हैं आसां नहीं जजूमना l

स्वाभिमान झुकने मत देना ll

 

डर आगे जीत लिखीं होती है l

अपनेआप को रूकने मत देना ll

 

गम के बादल जल्द हट जाएंगे l

आश की मटकी फूटने मत देना ll

१३-३-२०२४ 

 

बचपन

सलौने बचपन की मुहब्बत पाक होती है l

नाटकीय नटखट बगावत पाक होती है ll

 

तोहफ़े में काग़ज़ की नाव,हवाई जहाज ओ, 

प्यारे गुब्बारों की इनायत पाक होती है ll

 

प्रार्थना में पूरी ए बी सी डी बोलना उस l

सच्चे दिल से हुईं इबादत पाक होती है ll

 

ना फ़िक्र कल की, ना किसीसे कोई गिला l

उत्सुक आँखों की नजाकत पाक होती है ll

 

कुल्ल्ड की बर्फ खाना, खेलना कूदना कि l

मिट्टी से तन की सजावट पाक होती है ll

१४-३-२०२४ 

 

मसरूफ 

रात दिन मसरूफ - ए - इंतज़ार में हैं दिल l

प्यार के मसरूफ - ए - इंतजाम में हैं दिल ll

 

मिलन की आश लगाएं बेठे है न जाने कब से l

नसीब भी मसरूफ - ए - ख़्वाब में हैं दिल ll

 

नजरों से टपकती रहती है आरज़ू देखो तो l

यार से जुदाई  मसरूफ - ए - गम में हैं दिल ll

 

सुब्ह ने चौका दिया हुश्ना के नामा ने आज कि l

आरईश भी मसरूफ - ए - गुलशन में हैं दिल ll

 

जिंन्दगी के अरमान भी सारे नीलाम हो गये हैं l

फ़िर क्यूँ मसरूफ - ए - मुहब्बत में हैं दिल ll

१५-३-२०२४ 

 

सखी

दर्शिता बाबूभाई शाह