कालवाची-प्रेतनी रहस्य--सीजन-२-भाग(१४) Saroj Verma द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कालवाची-प्रेतनी रहस्य--सीजन-२-भाग(१४)

वो युवती भी भोजनालय में भोजन करने हेतु आई थी,ऐसा प्रतीत होता था कि वो उस राज्य की रहने वाली नहीं थी,किसी विशेष उद्देश्य हेतु वो वैतालिक राज्य में आई थी,क्योंकि इतनी रात्रि को भले परिवार की युवतियाँ भोजनालय में भोजन करने हेतु नहीं आती,यशवर्धन उसकी ओर ध्यान से देख रहा था,वो युवती भी यशवर्धन से बात करना चाहती थी,इसलिए वो यशवर्धन के समीप आकर बोली....
"कहीं आप राजकुमार यशवर्धन तो नहीं",
"जी! मैं यशवर्धन ही हूँ किन्तु आपने मुझे कैंसे पहचाना",यशवर्धन ने उससे पूछा...
"जी! आप वैतालिक राज्य के पूर्व राजा अचलराज और उनकी पत्नी भैरवी को जानते हैं,वे रानी चारुचित्रा के माता पिता हैं",युवती ने कहा...
"जी! हाँ! मैं उन्हें जानता हूँ,वे ही रानी चारुचित्रा के माता पिता है ,मैं ये भी जानता हूँ,",यशवर्धन ने उत्तर दिया...
"वे दोनों चामुण्डा पर्वत पर गए हैं,कदाचित ये बात आपको ज्ञात नहीं होगी",वो युवती बोली...
"पहले आप अपना परिचय दीजिए कि आप कौन हैं,उनके चामुण्डा पर्वत पर जाने का कारण आप मुझे बाद में बताइएगा",यशवर्धन बोला...
"जी! मैं तंत्र विद्या में निपुण और सिद्धियाँ प्राप्त महातन्त्रेश्वर जी की शिष्या हूँ,मेरा नाम मान्धात्री है ,मेरे गुरु चामुण्डा पर्वत पर रहते हैं,मैंने उनसे ही तंत्र विद्या और सिद्धियाँ प्राप्त की हैं,मुझे अपनी शक्तियों द्वारा ज्ञात हो चुका है कि इस राज्य में एक प्रेतनी का वास है",वो युवती बोली...
"ओह... तो आपका नाम मान्धात्री है,किन्तु आपको यहाँ आने के लिए किसने कहा?",यशवर्धन ने उससे पूछा...
"जी! यहाँ के पूर्व महाराज अचलराज ने,क्योंकि उन्हें भी कुछ ऐसा ही अंदेशा था,तब मुझे मेरे गुरुदेव महातंत्रेश्वर जी ने यहाँ आने की आज्ञा दी,मैं आपको विस्तारपूर्वक यहाँ अधिक बातें नहीं बता सकती, क्योंकि मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि कहीं उस प्रेतनी के गुप्तचर यहाँ भी उपस्थित ना हों",मान्धात्री बोली...
"जी! जैसा आप उचित समझें,भोजन करने के पश्चात् हम दोनों किसी ऐसे स्थान पर चलते हैं,जहाँ केवल एकान्त हो",यशवर्धन बोला...
"जी! यही उचित रहेगा",मान्धात्री बोली....
उस वार्तालाप के पश्चात् दोनों ने भोजनालय में भोजन किया और वहाँ से किसी एकान्त स्थान पर चले गए,तब यशवर्धन मान्धात्री से बोला....
"जी! अब आप मुझे विस्तार से सारी बातें बताएँ"
तब मान्धात्री बोली....
"मैं तान्त्रिक दयालरासू की पुत्री हूँ,मेरी माता भी तान्त्रिक हैं,मेरे पूर्वज पीढ़ियों से यही कार्य करते चले आ रहे हैं,जब वैतालिक राज्य के पूर्व राजा अचलराज और उनकी पत्नी भैरवी चामुण्डा पर्वत पहुँचे तो उन्होंने मेरे गुरू महातंत्रेश्वर जी से समस्त घटना का वर्णन किया और उन्होंने उनसे पूछा कि क्या सच में आपने कालवाची को मानव रुप दिया था,कहीं ऐसा तो नहीं कि कालवाची ही समस्त हत्याओं का कारण है"
"यहाँ पर कालवाची का तात्पर्य है उनकी मित्र कालवाची,मैं तो उन्हें अच्छी तरह से जानता हूँ,बाल्यकाल से मैं उन्हें देखता आया हूँ,क्या वे प्रेतनी हैं",यशवर्धन ने मान्धात्री से पूछा...
"हाँ! कालवाची पहले प्रेतनी थी,मेरे गुरुदेव महातंत्रेश्वर ने उसे अपनी शक्तियों द्वारा मानव रुप दिया था",मान्धात्री बोली...
"तो इसका तात्पर्य है कि कालवाची काकी उन सभी हत्याओं का कारण नहीं है",यशवर्धन बोला...
"हाँ! वे नहीं हैं उन हत्याओं का कारण, किन्तु उनकी पुत्री उन हत्याओं का कारण हो सकती है",मान्धात्री बोली....
"पुत्री....किन्तु उनकी तो कोई पुत्री नहीं है,वे तो निःसन्तान थीं",यशवर्धन बोला...
तब मान्धात्री बोली...
"हाँ! उनकी पुत्री....कदाचित आपको ज्ञात नहीं है,ये बात कालवाची ने सबसे छुपाई है,उन्होंने एक कन्या को जन्म दिया था,किन्तु उसमें सारे लक्षण एक प्रेतनी के थे,इसलिए वे मेरे गुरुदेव महातंत्रेश्वर जी के पास आकर बोलीं कि वे उस शिशु कन्या को मानव में बदल दें,तब मेरे गुरुदेव ने उससे कहा कि ये सम्भव नहीं है,यदि उन्होंने ऐसा कुछ किया तो वे स्वयं भस्म हो जाऐगें,जब तक कन्या व्यस्क नहीं हो जाती तो तब तक मैं उस पर अपनी शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकता",
" इसके पश्चात् क्या हुआ उस कन्या का"?,यशवर्धन ने पूछा...
तब मान्धात्री बोली...
"उसके पश्चात् कालवाची ने मानव हित हेतु उस कन्या की हत्या करना ही उचित समझा और वो उसे एक अँधेरी कन्दरा में छोड़ आईं,कन्दरा के द्वार पर उन्होंने बड़ा सा पत्थर भी रख दिया,जिससे वो शिशु कन्या बाहर ना निकल सके,कालवाची ने सोचा जब कन्या भूखी रहेगी तो स्वतः ही एक दो दिन में अपने प्राण त्याग देगी,किन्तु ऐसा ना हो सका,कदाचित कन्दरा से किसी ने उस शिशु कन्या को निकाल लिया और अब वही कन्या पुनः वैतालिक राज्य में आतंक का कारण बन चुकी है"
"ओह...तो उस कन्या में प्रेतनी का अंश था",यशवर्धन बोला...
"हाँ! कालवाची जन्म से प्रेतनी थी,वो वास्तविकता में प्रेत योनि से थी,मानव रुप तो उसे तन्त्र विद्या द्वारा मिला था,इसलिए उसकी सन्तान में प्रेत का अंश आना स्वाभाविक सी बात थी,इसलिए कालवाची ने उसके पश्चात् सन्तान पैदा ना करने का निर्णय लिया था और सबसे कहा दिया था कि उसने एक मृत शिशु कन्या को जन्म दिया था,ये बात वैतालिक राज्य के पूर्व महाराज अचलराज और रानी भैरवी को भी ज्ञात नहीं थी कि कालवाची की सन्तान जीवित है",मान्धात्री बोली...
"तो तब मुझे कालवाची काकी को खोजकर सच्चाई ज्ञात करनी होगी",यशवर्धन बोला...
"आप ऐसा नहीं कर सकते राजकुमार यशवर्धन!",मान्धात्री बोली...
"परन्तु क्यों? मैं ऐसा क्यूँ नहीं कर सकता"?,यशवर्धन ने मान्धात्री से पूछा...
"क्योंकि कालवाची और उनके पति भूतेश्वर को तो पूर्व महाराज अचलराज पहले ही बंदी बनाकर बंदीगृह में डाल चुके हैं",मान्धात्री बोली...
"ये क्या कह रहीं हैं आप?",यशवर्धन बोला...
"जी! मैं सत्य कह रही हूँ राजकुमार यशवर्धन!"मान्धात्री बोली...
"इसका तात्पर्य है कि राज्य में फैली अराजकता का कारण कालवाची की पुत्री है",यशवर्धन बोला...
"हाँ! वो वही है जो राजमहल में मनोज्ञा बनकर रह रही है,उसका नाम मनोज्ञा नहीं कालबाह्यी है", मान्धात्री बोली...
"ऐसा तो मुझे भी प्रतीत हुआ था मनोज्ञा को देखकर",यशवर्धन बोला...
"तो क्या आप मनोज्ञा से मिल चुके हैं",मान्धात्री ने पूछा...
"हाँ! मैं उससे राजमहल में मिला था",यशवर्धन बोला...
"हाँ! उसने उचित स्थान चुना है अपने रहने के लिए,जिससे कोई उस पर संदेह ना कर सके"मान्धात्री बोली...
इस प्रकार यशवर्धन और मान्धात्री के मध्य वार्तालाप चलता रहा और इधर आज पुनः रात्रि के समय विराटज्योति राज्य के भ्रमण हेतु राजमहल से बाहर गया है और चारुचित्रा अपने बिछौने पर उदास होकर कुछ सोच रही है,तभी उसके कक्ष के द्वार पर आकर मनोज्ञा ने कहा...
"रानी चारुचित्रा! क्या मैं कक्ष के भीतर आ सकती हूँ?"
"हाँ! आओ",चारुचित्रा बोली....
इसके पश्चात् मनोज्ञा कक्ष के भीतर आकर उससे बोली...
"जब सायंकाल आप राजमहल से बाहर गईं थीं तो महाराज मुझसे पूछ रहे थे कि आप कहाँ गईं हैं"
"तो तुमने उन्हें क्या उत्तर दिया?",चारुचित्रा ने मनोज्ञा बनी कालबाह्यी से पूछा....
"मैं ने कहा कि आप स्वर्णकार के यहाँ आभूषण खरीदने गईं हैं,शीघ्र ही लौंट आऐगी,ठीक किया ना मैंने" मनोज्ञा बनी कालबाह्यी बोली...
"हाँ! ठीक किया तुमने",चारुचित्रा बोली....
"आप चिन्ता मत कीजिए,मैं किसी से ना कहूँगी कि आप राजकुमार यशवर्धन से भेंट करने गईं थीं",मनोज्ञा बोली...
अब मनोज्ञा का वाक्य सुनकर चारुचित्रा स्तब्ध थी...

क्रमशः...
सरोज वर्मा...