हॉंटेल होन्टेड - भाग - 56 Prem Rathod द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हॉंटेल होन्टेड - भाग - 56

कुछ पल के लिए सब उस खिड़की की तरफ ऐसे देखें रहे थे मानो वक्त ने सबको उसी पल मैं कैद कर दिया हो फिर श्रेयस ने अपने घाव पर हाथ रखते हुए अपने कदम उस खिड़की की तरफ बढ़ाए जिसकी आहट से सब होश मैं आए और उसे देखते रहे,वो जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा था जमीन पर उसके खून की बूंदे गिर रही थी,मैं खिड़की के पास पहुंचा तो ठंडी बहती हवा मेरे शरीर को ठंडा कर रही थी वहा से खड़े होकर उस ऊंचाई से मैने नीचे देखा और एक गर्म सांस छोड़ी जो मेरे घाव तक मेहसूस हुई,इस ऊंचाई से कूदने से क्या हाल होता है यह सोचकर मेरी रूह कांप गई,मेरे कदम पीछे की तरफ हट गए, पैरो के नीचे आते हैं कांच के टुकड़ों के टूटने की आवाज के साथ दिल धड़कनो के भी टूटने लगी।


आख़िर मेरी जिंदगी मैं ओर कितना दर्द सहना लिखा है? क्यों हर बार इस दर्द को झेलने के लिए मैं ही मिलता हूं?मेरे पैरो ने जवाब दे दिया और में घुटनो के बल वही बैठ गया, जो टुकड़े शरीर के अंदर हुए वो आंखें से बाहर उतर आए, शरीर कांपने लगा और गुस्से के साथ मैने एक हीं नाम पुकारा,"आंशिकाआ......"
"श्रेयस..." ट्रिश ने अपने नर्म हाथो से पकड़कर श्रेयस को अपनी तरफ घुमाया, उसकी हालत देख कोई भी रो पड़े तो फिर भी ये तो दिल से उसे चाहती थी, उसके चेहरे की हालत देखकर उसकी आंखें भी नम हो गई लेकिन वो अपने आप को संभालना अच्छी तरह से जानती थी,उसने घाव की तरफ देखकर कहा,"श्रेयस चल ड्रेसिंग करनी है" ट्रिश ने अपने आंसू तो रोक लिए लेकिन अपनी उस तकलीफ को आवाज में नहीं छुपा पाईं,उसने श्रेयस का हाथ पकड़कर उठने की कोशिश की लेकिन श्रेयस ने एक झटके के साथ अपना हाथ छुड़वा लिया।


"प्लीज़ जिद मत कर बहुत खून निकल रहा है" नम आँखों से ट्रिश ने फिर समझाने की कोशिश की लेकिन श्रेयस ने चिल्लाते हुए ट्रिश को धक्का दे दिया,जिससे वो उसे थोड़ी दूर पे गिर पड़ी लेकिन उसने फिर उठकर श्रेयस का चेहरा पकड़ के अपनी तरफ घुमाया," श्रेयस..." इसके आगे कुछ कह पाती उसे पहले वो श्रेयस बोल पड़ा,"वो चली गई ट्रिश,वो चली गई....मेरी आंशिका फिर चली गई..वो ले गई उसे और में कुछ नहीं कर पाया....में कुछ नहीं कर पाया'' वक्त दिए इस दर्द के साथ श्रेयस के पुराने जख्म भी ताजा हो रहे थे, उसकी हालत देखकर ट्रिश कुछ नहीं कह पाई बस उसने उसे अपनी बाहों में ले लिया और उसके बालों को सहलाते हुए उसे शांत करने लगी, वो समझ गई थी कि बाहर लगी चोट को ठीक करने से पहले उसके अंदर लगी चोट को ठीक करना बहुत जरूरी था।
"मैं तेरे साथ हूं,सब कुछ ठीक हो जाएगा" धीरे-धीरे ट्रिश उसे शांत करने मैं कामयाब हो रही थी, श्रेयस की सांसें नॉर्मल हो रही थी उसका सुबकना भी रुक गया था,सब लोग शांत होकर वही कोने मैं खड़े थे,"मैंने कहा था.. हमें बता देना चाहिए, मैंने कहा था...." इस आवाज ने सभी का ध्यान श्रेयस और ट्रिश से हटाकर उस तरफ मोड़ दिया।


अविनाश दीवार का सहारा लिए खड़ा था और सभी की तरफ आँखें बड़ी करके देख रहा था,"कैसी बात?" मिलन ने उसकी हालत को समझते हुए पूछा।
"वो टॉर्च....उस दिन जब हम टॉर्च ढूंढने गए थे तब वो खुद हमारे पास आई थी।"
प्रिया :- "क्या मतलब?"
“मतलब ये कि उस दिन जब में और हर्ष टॉर्च ढूंढते हुए कॉरिडोर मैं आगे बढ़ रहे थे तो वो खुद फिसलती हुई हमारी तरफ आई थी मानो किसी ने अँधेरे में हमारी तरफ धकेल दी हो।"अविनाश ने डरती हुई आवाज़ में कहा,जिसकी बात सुनकर सभी के चेहरे का रंग उड़ गया, "पर ये बात तूने पहले क्यों नहीं बताई?"मिलन ने गुस्से में चिल्लाते हुए पूछा।
"मैंने कहा था पर हर्ष ने मुझे किसी को बताने से मना कर दिया था क्योंकि यह बात पता चलने से सबके मन मैं डर बैठ जाएगा और कही मिस यह ट्रिश cancel ना कर पर दे।" अविनाश इतना कहते ही चुप हो गया और सब हर्ष को घुरने लगें जो अभी भी श्रेयस की तरफ़ देख रहा था, किसी ने उसे कुछ नहीं कहा और फिर सामने अविनाश की तरफ देखने लगें मानो सबको उससे कुछ सुनने की उम्मीद ही ना हो,"कोई ओर बात भी है जो आपने सबसे छुपाई हो "मिलन ने सबकी तरफ देखते हुए पुछा।

"हां मेने" उसके पूछते ही निशा बोल पड़ी और सब उसकी तरफ देखने लगें, "याद है उस दिन जब हम यहां आए थे और मैं अचानक से चिल्ला पड़ी थी, उस दिन....."कहते हुए निशा ने अपने हाथ पे लगा घाव दिखाया, जिसे देख सभी की आंखें खुली रह गई,"उस वक्त तो मुझे लगा सिर्फ हवा होगी पर अब ये सब देख के नहीं लगता कि वो सिर्फ हवा थी।"
"What the hell was that,she wasn't Aanshika मैं एक पल के लिए भी अब इस जगह पर नहीं रुकूंगी, मैं घर जाना चाहती हूँ"प्राची ने अपने दिल के डर को बहार निकलते हुए प्रिया को पकड़ते हुए कहा।
"यानी कि इंटरनेट पर लिखा हुआ सब कुछ सच है, This place is really Haunted"श्रुति ने मिस का हाथ पकड़ते हुए कहा,डर की वजह से उसका हाथ कांप रहा था. मिस क्या कहती वो तो खुद इस वक्त इतनी शॉक्ड थी कि वो समझ ही नहीं पा रही थी की क्या कहे और क्या नहीं।

"यह सब हमारी वजह से हुआ है, अगर हमने पहले से ही इन सब छोटी छोटी बातों को नज़र अंदाज़ ना किया होता तो आज यह नहीं होता " मिलन की ये बात अब सबको सही लगने लगी थी और अब सब अपने आप को कोसने लगे जो उन्होंने मिलन और श्रेयस की बातों को नहीं माना, क्यों नहीं यहां से चले गए, "Wo did a huge mistake, बहुत बड़ी गलती हो गई हमसे और इस गलती की सज़ा बेचारी आंशिका को मिली।"
"अब गलती हमसे हुई है तो सुधारेंगे भी हम ही" अचानक से अलग आवाज ने सभी का ध्यान तोड़ा और सभी फिर घूम गए, आवाज किसी और की नहीं बल्की श्रेयस की थी जो इन सबकी तरफ देख रहा था, सब उसे ऐसे देखने लगे मानो पूछ रहे हो कि आखिर कैसे ढूंढेंगे आंशिका को?



कुछ देर बाद....

"ठीक से देख.....वो तो यहां नहीं है ना?" अभिनव अपनी नजरों से इधर उधर देख रहा था, हर मिनट मुझे लगता है कि वो यहीं है और आस पास उसे देख रही है,"कोई नहीं है भाई....तू आराम कर" अनमोल उसके पास बैठा उसे समझा रहा था।
“तू कहीं जाना मत...कहीं भी नहीं वरना वो कुछ भी कर सकती है।'' अभिनव काफी डरा हुआ था उसकी शकल पे डर छा चूका था और सर पे पट्टी बंधी हुई थी,"मैं कही नहीं जाऊंगा....तू चिंता मत कर" अनमोल उसके पास बैठा सब तरफ नजर रखते हुए सबकी ओर देखने लगा।सब लोग एक कमरे मैं खुद को बंध करके बैठे हुए थे पर वो नहीं जानते थे कि उसको अपना खेल खेलना होता है तो उसे ये दीवारे भी नहीं रोक सकती पर फिलहाल पूरा माहौल शांत था।

"श्रेयस...." हाथ पर ड्रेसिंग करते हुए ट्रिश के पुकारने पर में गहरी सोच से बहार आया।
"ज्यादा दर्द तो नहीं हो रहा ना?"
"मैं जानता हूँ ट्रिश तू क्या पूछना चाहती है?" मेने हमसे अपनी नज़रें हटा ली।
"अब हम क्या करेंगे?" ट्रिश ने मेरी बात को समझा हुए सीधा अपना सवाल किया।
"वो जहां भी होगी उसे ढूंढूंगा"
“पर श्रेयस हमने जो देखा उसे तो नही लगता की यह मुमकिन है।" ट्रिश की बात का जवाब दिए बिना मेने उसी खिड़की से आसमान में चांद की तरफ देखा जो उन काले बादलों के बीच से निकलते हुए अपनी रोशनी बिखेर रहा था।
मैंने अपनी नजरें ट्रिश से नज़र हटाई और अपनी जगह से खड़ा हो गया, मुझे खड़ा होता देख बाकी सब भी अपनी जगह से खड़े हुए और मुझे घूरने लगें। मैं कुछ कहता पहले ही मिलन ने अपना सवाल किया, "श्रेयस,What to do now? कैसे बचाएंगे आंशिका को?"
"तुम पागल हो, वो कोई इंसान नहीं है Dammit,एक शैतान है, जिसे हम नहीं जीत सकते, अगर तुझे अपनी जिंदगी प्यारी नहीं है तभी उसे ढूंढने का सोचो।"अविनाश की बात का बुरा नहीं लगा क्योंकि मुझे उसकी आवाज में गुस्से से ज्यादा डर दिखाई दे रहा था।
"मैं जानता हूं कि आंशिका की क्या हालात है और हम सबको पता है कि उसके साथ क्या हुआ है पर उसके अलावा मैं यह भी जानता हूं की आंशिका भी उसी शरीर मैं कही है जिसे हमारी मदद की जरूरत है।" मेरी बात सुन के अविनाश ने अपने सर पे हाथ रखा और एक कोने में बैठ गया।
"अविनाश सही कह रहा हैं श्रेयस, मैंने ऐसी डरावनी चीज़ अपनी जिंदगी में कहीं नहीं देखी, सिर्फ कहानियां और फिल्मों में देखी है पर ये सब एक रियल है,हमारे अंदर इतनी ताक़त नहीं है कि हम उन चीज़ों से लड़ सके।" - मिस ने भी अभी गंभीरता मुझे दिखाई,"सच है, हमें अभी निकलना होगा, यहां अब और रुकना अपनी जिंदगी को मौत में बदलना होगा।" - प्राची ने भी डरती आवाज में कहा, वो आज अपनी सबसे बेस्ट फ्रेंड को छोड़कर जाना चाहती थी। “हमे फिर अपना सामान जल्दी से पैक करके यहां से निकल जाना चाहिए, पता नहीं क्या क्या राज़ छुपे हैं यहां पर" विवेक की बात सुनकर मैं उसके करीब पहुचा।



"तुझे रुकना है रुक, लेकिन हम नहीं रुकेंगे, हमें मरने का शौक नहीं है," अनमोल ने गुस्से भरी आवाज में मुझे घूरते हुए कहा। "He Is Right , We Need To Leave Right Now, एक की जिंदगी के पीछे हम सभी की लाइफ को खतरे में नहीं डाल सकते हैं, मिस आपको भी पता है कि हम सभी ठीक कह रहे हैं, हमारी सबकी लाइफ डेंजर में है,We need to leave...." प्राची ने मिस का हाथ पकड़ते हुए कहा, उसकी बात सही थी इसलिए सब लोगों ने उसकी बात पर सहमति जताई।
"आप सभी क्या बात कर रहे हैं..." कोई कुछ कहता है उससे पहले ट्रिश गुस्से में आगे बढ़ी और सबको घुरने लगी, "क्या हो गया है आप सभी को, प्राची तू, आंशिका आपकी सबसे अच्छी दोस्त है, तुझे उसकी कोई चिंता नहीं है, मैं और तुम सभी सिर्फ अपनी जिंदगी के बारे में सोच रहे हो, क्या उस लड़की की जिंदगी तुम्हारे लिए कोई मायने नहीं रखती, अगर उसकी जगह तुम में से कोई होता तो सोचो क्या होता?" ट्रिश की ऊंची आवाज ने सब को एक पल के लिए शांत कर दिया।
"मैं वही कह रहा हूँ ट्रिश,आज आंशिका है कुछ पल बाद हम में से कोई ओर होगा और एक-एक कर के सब उस शैतान का शिकार बन जायेंगे, तुम इस बात को क्यों नहीं समझ रही हो" अविनाश ने ट्रिश की तरफ घुरते हुए भारी आवाज में कहा, अविनाश की बात सुन कर ट्रिश गुस्से से भर गई, "क्योंकि तू फट्टू है...फट्टू,जो अपने एक दोस्त की जान नही बचा सकता वो मुझे समझाने चला है,जा अपने उस टट्टू हर्ष के पीछे छुप जा कही....वही बचाएगा तुझे, Bloody Idiot"
"शांत ट्रिश,शांत हो जाओ" मैंने उसे शांत रहने की कोशिश की तो वह मुझ पर भी बरस पड़ी।


"कैसा काम डाउन.....इन सबको नही दिख रहा है की तू अपनी जान की परवाह किए बिना अकेले लड़ रहा है और ये सब...''
"हाँ, क्यों नहीं करेगा, प्यार करता है ये, तो क्या उसके लिए इतना नहीं कर सकता?" विवेक ने ट्रिश को देखते हुए ताव मैं कहा और उसकी बात सुनकर ट्रिश फिर से आग बबूला हो गई। "हाँ, करता है ये प्यार, और हिम्मत रखता है अपने प्यार को बचाने की, तुम कर सकते हो अपने प्यार के लिए, बोलो.. कर सकते हो..." ट्रिश चिल्लाते हुए उसकी ओर बढ़ी लेकिन मैंने उसका हाथ पकड़ लिया,"रुक जा ट्रिश,वैसे भी सब लोग ठीक कह रहे है।"
"क्या?"
"हां ट्रिश, इसमे इन सबकी क्या गलती है, ये सब भी अपनी जगह सही है, मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से किसी को कुछ हो। मैं बस यह चाहता हूं कि मैं आंशिका को जल्दी से ढूंढ कर यहाँ से ले जाऊं,उसे किसी अपने के मदद की जरूरत है, और मैं जब तक जिंदा हूं,मैं उसकी तकलीफ को नहीं देख सकता इसलिए मैं जा रहा हूं उसे ढूंढ़ने,बाकी आप सब जो ठीक समझें वो कर सकते हैं।"


मैंने बेहद सरल लहजे मे शांति से अपनी बात कही, और सबकी तरफ देखने लगा,"ट्रिश ये जगह बहुत बड़ी है आंशिका कहीं भी हो सकती है, इसलिए मैं उसे आज रात रिजॉर्ट के अंदर ही ढूंढूंगा, और पता नहीं कितना टाइम लगेगा।"
"तू अकेला नहीं जाएगा, मैं भी चलूंगी तेरे साथ"
"मैं भी चलूंगा श्रेयस, मैं उस चीज़ से लड़ूंगा,मैं उस चीज के सामने जीत तो नही सकता पर मैं अपनी पूरी कोशिश करुंगा की तुम्हारे कुछ काम आ सकूं।" मिलन की बात सुनकर दिल भर आया, मैंने उसे गले लगाया, और उसने अपने से अलग किया और दोनों की तरफ देखने लगा। दुनिया में चाहे मुझे कितने ही गम मिले हों लेकिन उस गम को दूर करने के लिए हमेशा कोई ना कोई अपना दोस्त साथ रहता है, और आज भी ये दोनों मेरे साथ थे। "यही विश्वास लेकर जा रहा हूं मैं, तुम दोनों को आने की जरुरत नहीं है....फिलहाल तो नहीं।"
"पर..." ट्रिश इसके आगे कुछ कहती उसके पहले मैंने उसे रोक दिया, "पर वर कुछ नहीं ट्रिश, जैसा मैं कह रहा हूं वैसा ही करो।"


"मेरा इंतजार करना, मैं जरूर वापस आऊंगा।" दोनो ने काफी ज़िद की लेकिन मैंने उन्हें नहीं आने दिया। सभी की तरफ एक बार देखा जो मुझे देख रहे थे, पता नहीं क्या सोच रहे थे, पर कुछ उम्मीद बांधी थी मुझसे, नज़रों के इस खेल के दौर को ख़त्म कर के मैं हॉल से निकल गया। हॉल से निकलते ही मेरी नज़र भाई पर पड़ी जो रेलिंग का सहारा लिए खड़ा था, कुछ कहना चाहता था उससे लेकिन ना कहना ही बेहतर होगा यह समझ कर मैं उसकी तरफ देखे बिना आगे बढ़ गया। "कब से प्यार करता है तू आंशिका से?" भाई की कही बात ने कदम रोक दिए, सोचा बिना कुछ कहे चला जाऊं लेकिन दिल ने ऐसा करने से रोक दिया और मैं घूम के उसे देखने लगा, वो मुझे ही घूर रहा था,"कब से प्यार करता है?" उसने फिर से सवाल किया और मेरे पास चलते हुए आया। "हमेशा से..." मेरे पास आते ही मैंने जवाब दिया और हम दोनों एक दूसरे को देखने लगे,"सब के पास जाओ भाई, अकेला रहना ठीक नहीं है।" मैंने इतना कहा और फिर वहां से चल दिया क्योंकि ये वक्त इन सभी बातों में निकलने का नहीं था,आंशिका की जिंदगी के लिए हर एक मिनट जरूरी था।


श्रेयस धीरे-धीरे कॉरिडोर में आगे बढ़ रहा था, हर बढ़ते कदम के साथ उस आहट को महसूस करना चाहता था इसलिए बड़ी सावधानी से इधर उधर देखते हुए चल रहा था तभी एक साया श्रेयस की पीछे से इतनी तेजी से निकला की वो देखने से पहले ही गायब हो गया।मैं उस तरफ बढ़ा जहां से वो साया गया था तभी मुझे आवाज़ सुनाई दी,"हिहिहिहिहिही...." आवाज़ मेरे पीछे से आई थी जिसे सुनते ही में पीछे मुड़ा और मेरी आंखें सामने ही टिकी रही।


सामने का पल मेरे लिए जान लेवा जैसा था, सच में एक पल तो यकीन नहीं हुआ कि कहीं मेरी आंखें फिर से धोखा तो नहीं दे रहीं, पर यकीन करना ही था, क्योंकि हाथ में पकड़ी टॉर्च की रोशनी सामने एक ही जगह पर पढ़ रही थी और वो था आंशिका का बेहद भयावह हंसता हुआ चेहरा जो नीचे जमीन से आरपार होते हुए बाहर आ रहा था पर उसका शरीर कही दिखाई नही दे रहा था,मैने कांपते हाथ ने धीरे-धीरे टॉर्च को ऊपर उठाना शुरू किया, तो मेरे कदम पीछे की तरफ हो गए, रोशनी में आंशिका का पूरा शरीर मेरे सामने आ गया जो उपर छत से चिपका हुआ था,"आंशिका..." मेने उसका नाम पुकारा, तो उसकी मुस्कान बिगड़ गई, उसे साथ ही उसका मुंह खुल गया और उसके अंदर से खून निकलते हुए ज़मीन पर गिरने लगा।मेरे पुकारने पर वो चेहरा जमीन मैं समा गया और छत से चिपके हुए उसने मेरी तरफ देखा और दीवार पर रेंगती हुई उपर भागने लगी मैं दौड़ते हुए उसके पीछे भागा,कुछ पल दौड़ने के बाद मैं दीवार के सामने रुक गया क्योंकि उसके आगे रास्ता नहीं था तभी उस कॉरिडोर मैं आंशिका की हंसी गूंजी और वो दीवार मैं कही गायब हो गई। आगे जाने का कोई रास्ता नहीं था, यह खेल मेरी समझ से बिल्कुल बाहर हो रहा था।


आंशिका को बचाने के लिए मुझे पहले उसके खेल को समझना होगा, वरना मैं उसे कभी ढूंढ नहीं पाऊंगा कुछ देर यूं ही धीरे-धीरे हर जगह देखने के बाद थककर एक जगह खड़ा हो गया, पता नहीं कहां खड़ा था, अंधेरा इतना था कि समझ नहीं आ रहा था कि मैं कहां पहुंच चुका हूं,"कैसे ढूंढू आंशिका को, एक मौका हाथ से छूट गया लेकिन अब ऐसा नहीं करूंगा, आगे जाकर देखता हूं।" सामने कॉरिडोर की तरफ बढ़ने का सोचा तभी कानों में बेहद साफ आवाज सुनाई दी,"आओ ढूंढो मुझे, ढूंढ़ो...यहां हूं मैं....इधर.. देखो इधर.. हूं मैं...."


कुछ देर तक चारो तरफ से आवाजे गूंज रही थी,आवाज सुनने के बाद मैंने कोई रिएक्शन नहीं दिया क्योंकी आवाज बेहद करीब से आ रही थी और में नहीं चाहता था कि इस बार में इस मौके को हाथ से गवा दूं इसलिए मैंने बिना हरकत किए टॉर्च की रोशनी अपने लेफ्ट में डाली क्योंकी आवाज कहीं उस तरफ से ही आ रही थी, टॉर्च की रोशनी उस तरफ पड़ रही थी।
मेने अपनी नजरों को तिरछी करके उस तरफ देखा तो सामने मुझसे कुछ दूरी पे दीवार के ऊपरी हिस्से पे आंशिका की परछाई दिखी जो कि बेहद धीरे-धीरे अपने कदमों से आगे बढ़ रही थी यानी कि जहां में खड़ा था वो उसके पास से गुज़र रही थी, उसकी हरकत का पता चलते ही में उस दीवार की तरफ दौड़ा और जैसे ही वहां पहुचा मेने इधर उधर रोशनी से देखा लेकिन मुझे वहां कोई नहीं दिखा,"ऐसा कैसा हो सकता है, इस दीवार पर परछाई देखी थी आंशिका की फिर कैसे..." मैं अभी अपने दिमाग से इस सवाल का जवाब पाने की कोशिश कर रहा था कि तभी समझ आया की मैं फिर उसकी चाल मैं फंस चुका था।


"ये कैसी माया है, कैसा जाल है जो मुझे समझ ही नहीं आया पा रहा हूँ आख़िर एक के बाद एक ये किस तरह का खेल हो रहा है?" में अपनी ही सोच मैंने खोया था कि तभी कानों में एक बार फिर आवाज पडी,"हीहीहीही...होउउउउ....फिर फंस गया बेचारा...आजा आजा इधर ही हूं मैं....." आंशिका की आवाज के साथ मुझे पीछे से किसी के कदमों की आहट सुनाई दी जो धीरे-धीरे मैं फौरन पीछे मुड़ा तो किसी इंसानी आकृति से टकराया इस छूकर समझ गया की यह कोई इंसान ही है पर बेहद अंधेरा होने की वजह से मैं उसे देख नही पाया,अभी मैं कुछ समझ पाता इससे पहले सर पे इतना ज़ोर से हमला हुआ की मुझे संभलने का मौका ही नही मिला मेरी आंखें बेहोशी में बंध होने लगी और सब कुछ हिलता हुआ नज़र आने लगा, सर से खून बहता हुआ हाथ में आया और फिर में ज़मीन पर गिर पड़ा।श्रेयस खून से लथपथ ज़मीन पर पड़ा था और उसका खून फर्श को अपने खून से भीगो रहा था।


रात काफ़ी हो चुकी थी, बढ़ते वक्त के साथ इस भयानक पल ने सबको थका दिया था लेकिन नींद सभी की आँखों से कोसो दूर थी क्योंकि सभी को यहाँ से जल्द से जल्द निकलना था,ट्रिश जिसकी नज़र मिलन पर थी जो दरवाजे के सामने इधर-उधर चक्कर लगा रहा था तभी दरवाजे पर ज़ोर-ज़ोर से किसी ने दस्तक दी। नॉक की आवाज सुनते ही मिलन ने गेट खोला और विवेक तेज कदमों से अंदर घुस गया, उसके अंदर घुसते ही मिलन ने अपना सवाल किया, "इतनी देर कहां लगा दी?"

"हर काम में टाइम लगता है, अब क्या तुझे हर मिनट का हिसाब चाहिए?" विवेक ने रूखी आवाज में जवाब दिया, उसकी सांसें काफी चढ़ी हुई थी जिसे देख के मिलन उसे घुरने लगा फिर उसकी नज़र विवेक के हाथ पर गई,"ये चोट कैसी लगी?" मिलन ने फिर विवेक से सवाल पूछा पर विवेक भड़क गया और उसने मिलन का हाथ पकड़ लिया,“क्या बे चश्मिश, ज्यादा सवाल आ रहे है दिमाग मैं? अपने काम से मतलब रख बस।” इस बात को सुनकर ट्रिश ने अपनी जगह से उठकर विवेक को मिलन से दूर धकेल दिया,"अपना ये गुस्सा कहीं ओर दिखाना, यहाँ नहीं समझे।" ट्रिश ने विवेक को उंगली दिखाते हुए जवाब दिया।

"तेरी तो..." विवेक गुस्से में आगे बढ़ा, लेकिन आर्यन ने उसको पीछे से पकड़ लिया,"क्या तेरी तो... बोल... क्या..." ट्रिश भी गुस्से में आगे बढ़ी, लेकिन मिलन ने पीछे से उसे पकड़ लिया, बाकी सब इस तमाशे को देख रहे थे,"ज्यादा उछल मत, नहीं तो..." विवेक ने अपने आप को छोड़ने की कोशिश करते हुए कहा।


"नहीं तो क्या.. क्या कर लेगा तू...You bloody j*rk..." ट्रिश का गुस्सा ओर भड़क गया और आख़िरकार इस बढ़ते गुस्से को शांत करने के लिए निशा चिल्लाई, "स्टॉप इट गाइज़.. क्या बच्चों की तरह लड़ रहे हो, कुछ तो समझो कि हम इस वक्त कैसी Situation में हैं,विवेक, तू पागल हो गया है क्या? मिलन ने ऐसा क्या गलत पूछ लिया जो तू इतना भड़क रहा है?Are you gonna be mad?"

“हां मैं पागल हूं,मैं यह रहकर अपनी life को किसी के लिए spoil नही करूंगा मुझे अबे बस किसी की भी तरह यहां से जाना है," विवेक ने तिलमिलाते हुए कहा।

"मैं तुम्हारी feelings समझ सकती हूँ, विवेक लेकिन आपस में लड़ने से कुछ नहीं होगा," मिस ने विवेक को समझने की कोशिश की,"हम सब को तेरी चिंता हो रही थी, इतनी देर हो गई थी तुझे इसलिए उसने पूछ लिया तो ऐसा क्या गलत किया?" आर्यन ने विवेक को पीछे बिठाते हुए कहा।"मैं जानता हूं यार, मैं सिर्फ इसलिए लेट हुआ क्योंकि मुझे यहां से और आप सबको सही सलामत यह से ले जाना है इसलिए कुछ इंतजाम करने गया था लेकिन हमारी बुरी किस्मत की हम यहां से नहीं जा सकते, बहार इतना कोहरा है कि यह से जाना तो possible ही नहीं है, इस वक्त तो बिलकुल नहीं, We're trap buddy....we all are trap" विवेक की बात सुनते ही कमरे में हलचल सी मच गई, टेंशन भरा माहौल छा गया, सबको अपनी जिंदगी हाथ से फिसलती हुई नजर आने लगी।

"मैं बस घर जाना चाहती हूं" प्राची के ऊपर डर इतना हावी हो गया की उसने पागलों की तरह रोते हुए कहा,मिस ने उसे संभाला और शांत रहने के लिए कहा, लेकिन इतना ही नहीं था, शायद यह तो शुरुआत थी इस डर की क्योंकि तभी...

"आआआआआ....."


श्रुति के चिल्लाते ही सब लोग डर गए,उसे देखकर अविनाश दौड़ते हुए उसके पास पहुंचा और पूछा,"वो कुछ कह रही थी.....कुछ बोल रही थी वो"उसकी आवाज मैं कंपन थी।

"कौन था?....क्या बोल रहा था?"मिलन ने उसे ज़मीन से उठाते हुए खड़ा किया।

"मेरे कान में... कुछ बोल रही थी....कोई और भी था उसके साथ..." श्रुति ने अटकते हुए अपनी बात कही।

"श्रुति शांत हो कुछ नही होगा देख हम सब यह तेरे साथ है तू चुपचाप सो जा।" अविनाश ने बड़ी शांति से अपनी बात कही और उसने अपनी आंखें बंद कर ली। कुछ पल शांति बनी रही। "देखा, मैंने कहा था ना,इस जगह मैं सिर्फ एक वो आत्मा नही है जो हमे परेशान कर रही है पर यह पूरी जगह ही भयानक है,जो हमारे दिमाग के साथ खेलती है इसलिए मैं यह से जाना चाहता हूं.....ट्रिश मैं फट्टू नहीं हूं लेकिन इतना हिम्मतवाला भी नहीं कि यह सब जानते हुए भी अपनी मौत का इंतजार करूं I love my life"अविनाश ने अपनी बात कही और।" हर्ष की तरफ देखते हुए जो बिना कुछ बोले बस ऐसे ही गहरी सोच बैठा हुआ था, अविनाश की बात सुनने के बाद कोई कुछ नहीं बोल पाया, अविनाश की बातों में सच्चाई थी जिसे ट्रिश को ना चाहते हुए भी मानना पड़ा।



कुछ घंटे बाद


आंखें खुलते ही समझ में आया कि काफ़ी देर बाद शरीर ने कोई हरकत की है। शरीर से ताक़त इकट्ठा करके मैंने आसपास देखा तो सब कुछ धुंधला दिखाई दिया और सर में इतना ज़ोर का दर्द हुआ कि मुँह से चीख निकल गई। मैंने सर पर हाथ रखा तो महसूस हुआ कि वहां ढेर सारा खून जमा पड़ा है, दर्द इतना हो रहा था कि सर फट रहा था। कुछ पल में वैसे ही पड़ा रहा, पर अगले ही पल सारी बातें याद आ गई,जिसकी वजह से मैं हिम्मत करके घुटनों के बल बैठ गया, बैठते ही मैंने जब इधर-उधर देखा तो अँधेरे में उस टॉर्च सिवा कुछ दिखाई नहीं दिया। मैंने उसे उठाया और अपनी जगह से धीरे-धीरे खड़ा हुआ, खड़ा होते ही लड़खड़ा गया पर मैंने फ़ौरन साइड में पड़ी एक चीज़ को पकड़ लिया। मैंने रोशनी से टाइम देखा तो सुबह के 5 बजने वाले थे यानी कि यहां लगभग 5 घंटे से ऐसे ही पड़ा था।


इस तरफ कमरे मैं चेन की नींद जैसे एक सपना बनकर रह गई थी,सब दूसरे से चिपक के बैठे थे मानो अलग हो गए तो जिंदा नहीं बचेंगे। ट्रिश ने अपनी घड़ी में टाइम देखा तो पाँच बज चुके थे और हर बढ़ते मिनट के साथ उसकी आँखों में टेंशन दिखाई देने लगी थी। ऐसी ही बार-बार घड़ी में समय देखते-देखते एक घंटा ओर बीत गया,आखिरकार ट्रिश ने फैसला कर लिया कि वह अब श्रेयस को ढूंढने के लिए निकलेगी लेकिन उसके अगले ही पल मैं वही पर वापस आ गया, जहां से मैंने शुरुआत की थी। वह भी बिल्कुल खाली हाथ लड़खड़ाते पैरो के साथ मैं आगे बढ़ रहा था,में गिरने वाला था तभी मेरा हाथ किसी चीज पर पड़ा और मैने उसे पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया पर वो नीचे गिर गई और उसकी आवाज़ सभी की कानो मैं पड़ी।


आवाज सुनते ही सबके कान खड़े हो गए और सब अपनी अपनी जगह से खड़े हो गए, कोई कुछ कहता उससे पहले ही ट्रिश चिल्लाती हुई कमरे से बाहर निकली,"श्रेयस..." उसको भागता देख बाकी सब उसके पीछे चलने लगे। कॉरिडोर से भागते हुए जैसे ही उसकी नज़र नीचे पड़ी,जहा श्रेयस घुटनो के बल बैठा हुआ था,ट्रिश उसकी हालत को देखकर जैसे सुन्न हो गई पर सभी के आते ही वो होश मैं आई और श्रेयस की ओर दौड़ पड़ी ,"श्रेयस... ये सब कैसे!!?Ohh God.... मिलन... मेरी मदद करो" ट्रिश ने मेरे चेहरे को पकड़ के आवाज लगाई, लेकिन मैं अपना चेहरा उसके हाथ से छुड़ा लिया, आंशिका को वापिस लाने की सभी के दिल में एक छोटी सी उम्मीद थी वो भी टूट गई गई,"श्रेयस किसने किया?...हाथ छोड़ मेरा... देखने दे..." मैंने ट्रिश का हाथ पकड़ लिया क्योंकि वो बार-बार मेरी सर पे लगी चोट को देखना चाहती थी, लेकिन मेरे लिए ये चोट कोई मायने नहीं रखती थी क्योंकी इस घाव से ज्यादा उसको ना ढूंढ पाने का अंदर एक गुस्सा था,"मैंने उसे खो दिया ट्रिश, मैंने आंशिका को खो दिया, नहीं ढूंढा पाया मैं उसे" कहते हुए अंदर की तकलीफ और गुस्सा आंखो से किसी भांप की तरह बाहर आने लगा।


"रोने से कुछ नही होगा shrey....Let me see this please" उसने रोते हुए कहा, लेकिन मेने उसकी नहीं सुनी और उसकी गोद में अपना सर रख दिया,

"मेरा प्यार हार गया ट्रिश, हार गया, नहीं बचा पाया मैं उसे क्या करूं अब?" इतना कहते ही आंसू आंख से निकल आया और में, "उसकी गोद में सर रखकर मैं रोता गया, वो मेरे बालों को सहलते हुए दिलासा देने लगी लेकिन इस वक्त मुझे दिलासे की नहीं बल्कि बल्कि उसकी जरूरत सबसे ज्यादा थी जो मुझसे इस वक्त दूर थी।

"श्रेयस... ये किसने किया?.....कहीं आंशिका ने तो नहीं.." ट्रिश ने श्रेयस से पूछा, लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिला उसने श्रेयस का चेहरा ऊपर उठा के देखा, तो उसकी आंखें बंद थी, वो बेहोशी की हालत मैं पहुंच चुका था,"श्रेयस...." ट्रिश के चिल्लाते ही हर्ष, मिलन और अविनाश तीनो उसकी और भागे, हर्ष ने श्रेयस का गाल थपथपाया लेकिन वो नहीं उठा,"इस First-aid की सख्त जरूरत है क्योंकि खून बहुत निकल गया है।" अविनाश ने उसकी चोट देखते हुए कहा, तो हर्ष और मिलन ने फ़ौरन उसे उठाया और ऊपर कमरे की ओर ले गए।



To be Continued.....