एक अजीब सी आवाज आई और उसके साथ होटल का दरवाजा खुल गया। यह देख कर निकुंज की सांस गले में अटक गई।वह कुछ देर तक बस ऐसे ही खड़ा रहा, उसे देखकर पीछे खड़ा पाटिल घबरा गया, उसने सिगरेट नीचे फेंकी और उसे पैरों से बुझा दिया।वह चलते हुए निकुंज के पास आया और आते ही उसने अपना सवाल किया।
'तुमने तो कहा था कि होटल बंद है,फिर यह दरवाजा कैसे खुल गया?'
पर निकुंज ने पाटिल को सुना नहीं,जैसे वह अपने ही ख्यालों में खोया हुआ हो। उसे इस तरह से देखकर पाटिल ने उसके कंधे को पकड़कर उसे हिलाया,' हेलो निकुंज...'
'हं..... हां..... क्या?!?....'
'कहां खो गए थे तुम?'
'कहीं पर नहीं पर मेरी समझ में यह नहीं आ रहा है कि यह दरवाजा ऐसे कैसे खुल गया? जबकि मैंने खुद अपने हाथों से इसको बंद किया था।'
'शायद उस आत्मा ने मेरी बात सुन ली और इस दरवाजे को खोल दिया....'पाटिल गंभीर चेहरा बनाते हुए बोला और उसे सुनकर निकुंज उसके चेहरे को देखता ही रह गया,उसे इस तरह से देखकर पाटिल मुस्कुराने लगा।
'जरा अपना चेहरा तो देखो,अरे मैं पुलिस वाला हूं तो क्या....मैं मजाक भी नहीं कर सकता।' पाटिल इतना बोल कर ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा।
'शायद वह दोनों गाड़ी अंदर हो....उन्होंने किसी तरह दरवाजा खोला होगा....।' निकुंज ने पाटिल की तरफ देखते हुए बोला, जो अभी भी अंदर अंधेरे में देख रहा था।
'हां पर.... अगर वह अंदर होते तो अभी तक अंदर क्यों रहते?किसी ना किसी को तो फोन करके वह बता देते या...., किसी को अपनी मदद के लिए बुलाते,हमें अंदर चल कर देखना चाहिए' पाटिल की बात सुनकर निकुंज सोच में पड़ गया। उसने अपनी गर्दन हां में हिलाई और सामने की तरफ देखा। उन दोनों को अंदर बस काला अंधेरा ही दिख रहा था,वहां गिरती बारिश के अलावा चारों तरफ शांति थी। वह दोनों अंदर की तरफ चलने लगे,जैसे ही वह अंदर गए...पाटिल की बुझाई गई सिगरेट फिर जल उठी और जलकर वही राख हो गई।
दोनों अंदर पहुंच गए। अंदर चारों तरफ अंधेरा था। दोनों के चलने की वजह से अजीब सी आवाज आ रही थी। पाटिल ने जेब में से अपना फोन निकाला और फ्लैशलाइट ऑन की,जिससे वहां पर थोड़ा उजाला हो गया। दोनों इस वक्त Main Hall में खड़े थे, जो काफी बड़ा था। पाटिल अपने लाइट से इधर-उधर देख रहा था। इस वक्त होटल की दीवारों पर लगी पेंटिंग्स इस माहौल को ओर भी डरावना बना रही थी।निकुंज को इस वक्त कुछ अजीब सा लग रहा था। पता नहीं क्यों पर उसे इस वक्त कुछ घुटन सी महसूस हो रही थी, बाहर गिरती बारिश के अलावा चारों तरफ बिल्कुल सन्नाटा था। बाहर अब धीरे-धीरे अंधेरा हो रहा था, पर बारिश की रफ्तार अभी भी वैसी ही थी। बाहर बिजली कड़कने की वजह से होटल की बनी बड़ी खिड़कियों में से रोशनी अंदर आती थी।
'मैं लाइट्स ऑन करता हूं....' इतना कहकर निकुंज ने तीन चार बार स्विच ऑन ऑफ की, पर लाइट ऑन नहीं हुई,'लगता है M.C डाउन है, नीचे बेसमेंट में जाना पड़ेगा...' इतना कहकर वह दोनों होटल के पीछे की तरफ चलने लगते हैं। जहां से नीचे की तरफ जाने की सीढ़ियां होती है,दोनों सीढ़ियां उतर कर नीचे उतरने लगते हैं।निकुंज को अपने गले के पास कुछ गर्मी महसूस होती है। जैसे कोई उसके गले के बिल्कुल पास खड़ा हो और गहरी-गहरी सांसे ले रहा हो। वह पीछे मुड़कर देखता है, तो उसे कोई दिखाई नहीं देता,वह दोनों चलती हुई पावर रूम तक पहुंचते हैं।
निकुंज पावर रूम का दरवाजा खोलता है और दोनों अंदर चले जाते हैं,'यही कही होना चाहिए था बोर्ड, मिस्टर पाटिल मोबाइल दीजिए।' पाटिल उसे अपना फोन देता है, तभी निकुंज को लगता है कि कोने में कुछ है इसलिए वह फोन उस तरफ घूमाता है,जैसे ही वह फोन उस तरफ करता है,उसके चेहरे का रंग बिल्कुल फीका पड़ जाता है,जैसे उसके शरीर में खून ही ना हो। वह बहुत मेहनत करके बस इतना ही बोल पाता है,'इंस...इंन्सपेक्टर....'
निकुंज की आवाज सुनकर पाटिल उसके पास पहुंचता है और दीवार की तरफ देखता है, तो वह भी घबरा जाता है, उसकी हालत भी बिल्कुल निकुंज जैसी हो जाती है। क्योंकि सामने दोनों गार्ड्स की लाशे दीवार पर टंगी हुई थी। दोनों के सर में से लोहे का सलिया आर-पार करके दीवार में घुसा के दोनों को टांग रखा था। दोनों की आंखें बिल्कुल सफेद थी और उनके शरीर में से बहता खून दीवार से होकर नीचे जमीन पर गिर रहा था और सामने दीवार पर लिखा था "अंदर आना मना है" यह नजारा देखकर दोनों बस ऐसे ही खड़े रहे। पाटिल की नजर बार-बार उन्ही शब्दों पर जाती थी "अंदर आना मना है"
'यह...यह सब....आखिर यह सब किसने किया होगा?'निकुंज के मुंह से बस इतना ही निकला।
'पता नहीं पर बहुत दर्दनाक तरीके से मारा है इन्हें....मैंने अपनी पूरी service में ऐसी लाशे नहीं देखी।'
इतना कहकर कुछ सोचते हुए पाटिल दीवार के पास पहुंचा।वो उन शब्दों को ध्यान से देखने लगा, उसने उन शब्दों को अपने हाथ से छुआ और अपने हाथों को देखने लगा। उसने अपने हाथों को देखा तो चौंक गया, उसके माथे पर पसीने की कुछ बूंदें छलक आई 'यह कैसे हो सकता है उसके मुंह से बस यही शब्द निकल रहे थे' पाटिल को इस तरह से बडबडाते हुए देखकर निकुंज ने पाटिल से पूछा।
'क्या हुआ इंस्पेक्टर क्या बात है?' निकुंज की बात सुनकर पाटिल उसके पास पहुंचा और अपना हाथ दिखाया।
'यह देखो निकुंज यह खून बिल्कुल ताजा है, जैसे कि अभी-अभी ही किसी ने लिखा हो। पाटिल की बात सुनकर निकुंज उसके चेहरे को देखता ही रह गया,
'पर ऐसा कैसे हो सकता है?हम दोनों तो कब से यहीं पर है, पर ना तो हमने कोई आवाज सुनी और ना ही कोई हमें दिखाई दिया तो फिर यह सब....'
'यही तो सबसे अजीब बात है कि आखिर यह सब किया किसने? पाटिल गहरी सोच में डूबा हुआ था ,तभी उसे लगा कि कोई उसके पास से गुजरा है और वह चौक गया। उसने उस तरफ टोर्च की तो वहां पर कोई नहीं था।
'क्या हुआ मिस्टर पाटिल?' पाटिल को इस तरह से चौक ते हुए देखकर निकुंज बोला।
'मुझे लगा कि शायद कोई है....' पाटिल की बात सुनकर निकुंज इधर-उधर देखने लगा,पर वहां पर कोई नहीं था वो बोर्ड के पास गया। जहां पर बहुत सारी स्विच लगी हुई थी,उसने एक-एक करके सब को ऑन कर दिया और उसके बाद वह रूम बंद करके वापस ऊपर की तरफ चले गए।
दोनों ऊपर हॉल में पहुंच गए थे ऊपर उन दोनों में से कोई भी कुछ नहीं बोल रहा था बाहर बारिश कम हो गई थी,पर फिर भी बादलों की गड़गड़ाहट अभी भी सुनाई देती थी। आसमान में चमकती बिजली की वजह से होटल की दीवारें चमक उठती थी और वही पेंटिंग्स एक अलग डर छोड़ जाती थी,पाटिल अभी भी अपने ख्यालों में खोया हुआ था।
'मैं जाकर लाइट ऑन करता हूं' इतना कहकर निकुंज एक स्विच ओन करता है,पर शायद 1 ओर रूह को हिला देने वाला पल उनका इंतजार कर रहा था।जैसे ही निकुंज ने लाइट्स ऑन की और ऊपर की तरफ देखा तो वह डर के मारे जोर से चिल्लाया।उसकी आवाज सुनकर पाटिल अपने ख्यालों में से बाहर आया तो निकुंज जमीन पर गिरा ऊपर की तरफ इशारा कर रहा था। पाटिल ने ऊपर देखा तो वह भी कांप उठा। वह बिना पलक झपकाए बस ऊपर की तरफ ही देखे जा रहा था।
ऊपर की तरफ अलग-अलग कोने में झूमर पे 3 Staff Boys की लाशे लटकी हुई थी,उनके शरीर में से टपकता हुआ खून नीचे फर्श पर गिर रहा था। उन झूमर के कांच उन तीनों शरीर के आरपार किए गए थे, तकरीबन आधा झूमर के कांच उन तीनों के शरीर के आर पार थे, पर सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि उन तीनों झूमर के कांच में एक दरार भी नहीं पड़ी थी, जैसे किसी ने उसे छुआ तक ना हो।
यह नजारा देखकर पाटिल तुरंत निकुंज के पास पहुंचा...जो अभी भी अपनी नजर गड़ाए हुए एक टक बस ऊपर की तरफ ही देखे जा रहा था। पाटिल ने निकुंज को पकड़ा और कहां,
'निकुंज....निकुंज होश में आओ.... हमें यहां से जल्दी से निकलना होगा,क्योंकि यहां पर एक पल रुकना खतरे से खाली नहीं है' पाटिल की आवाज सुनकर वह होश में आया और दोनों दौड़ते हुए होटल के बाहर निकल गए।दोनों दौड़ते हुए जीप के पास पहुंचे।
'निकुंज तुम स्टेरिंग संभालो मैं पीछे से धक्का लगाता हूं...' इतना बोल कर पाटिल ने अपनी पूरी ताकत से जीप को आगे की तरफ धक्का दिया। निकुंज ने दो-तीन बार ट्राई किया और जीप स्टार्ट हो गई।जीप के स्टार्ट होते ही पाटिल तेजी से गाड़ी में बैठ गया और जीप अपनी रफ्तार से चलते हुए वहां से चली गई।जीप के वहां से जाते ही होटल की अंदर की लाइट्स अपने आप ऑफ हो गई और होटल का दरवाजा बंद हो गया,फिर से वहां पर एक अजीब सी खामोशी छा गई।
जीप तेजी से निकुंज के घर के पास पहुंच गई,दोनों चलते हुए घर में एंटर हुए दोनों की सांसें तेज चल रही थी,क्योंकि आज जो उन्होंने देखा था....उसे भुला ना शायद ही मुमकिन था। यह किसी के भी रूह को हिला देने वाला मंजर था।निकुंज में पानी की बोतल पाटिल को दी वह उसे एक सांस में पी गया।उसके चेहरे पर काफी पसीना था।दोनों सोफे पर बैठे हुए थे,कोई कुछ भी नहीं बोल रहा था।
'आखिर यह कैसे हो सकता है?जब मैंने फोन की लाइट से ऊपर देख रहा था तब तो वहां पर कुछ भी नहीं था फिर अचानक.....'पाटिल निकुंज की तरफ देखते हूए बोला।
'मुझे भी कुछ समझ नहीं आ रहा है,अचानक से यह सब यह मौतें....आखिर कौन कर रहा है यह सब?कहीं लोगों का कहना सही तो नहीं.... क्या वाकई मे....' निकुंज इतना बोल कर रुक गया। पाटिल निकुंज के चेहरे को देख रहा था।
उसे भी शायद अब इस बात में सच्चाई नजर आ रही थी क्योंकि आज जो हुआ उसे झूठलया नहीं जा सकता था।
'मुझे राजीव सर से इस बारे में बात करनी होगी....'पाटिल ने निकुंज से कहा।
'मैं भी चलता हूं आपके साथ...'
'नहीं तुम यहीं रुको और आराम करो क्योंकि आज जो हुआ उसकी वजह से तुम्हें आराम की सख्त जरूरत है.... मैं पुलिस वाला हूं इसलिए मेरे लिए यह आम बात है,मैं उनसे खुद ही बात कर लूंगा...'
'ठीक है....' निकुंज ने इतना कहा और पाटिल वहां से चला गया, पाटिल तेजी से अपनी जीप दौड़ाएं जा रहा था।आसमान में बिजली चमक रही थी,बादलों के गरजने की आवाजें आ रही थी,ठंडी हवाएं उसके शरीर को कंपकपाती पहुंचा देती थी, उसने तेजी से अपनी जीप राजीव के घर की तरफ मोड़ दी। वह तेजी से चलते हुए घर के अंदर दाखिल हुआ और आवाज लगाई, 'राजीव सर....'
उसकी आवाज सुनकर राजीव एक कमरे में से बाहर आया 'कौन??..... ओह तुम हो पाटिल...आओ...बताओ इस वक्त यहां कैसे आना हुआ?'
राजीव को देखकर पाटिल ने तुरंत अपनी बात कह डाली 'उस होटल को बंद करना होगा सर वरना बहुत लोगों की जाने जाएंगी..'पाटिल की बात सुनकर राजीव को वह रात याद आ गई,जब अजय ने उससे यह बात कही थी,आज फिर से वही पर उसके सामने आ गया था।
'नहीं होटल तो किसी भी हालत में बंद नहीं होगा चाहे कुछ भी हो जाए और ऐसा क्या देख लिया तुमने उस होटल में?' राजीव गुस्से में आकर बोला।
'शायद सभी लोग ठीक कहते हैं,उस जगह पर कुछ तो जरूर है जिसे हम लोग देख नहीं सकते क्योंकि किसी को इस तरह से मारना किसी इंसान के बस की बात नहीं है।'
'मौत किस की मौत...'
'उन दोनों गार्ड्स की लाशें मिली है सर और ऊपर से 3 और स्टाफ Boys मारे जा चुके हैं, आप समझने की कोशिश कीजिए...'पाटिल की बात सुनकर राजीव कुछ देर तक कुछ नहीं बोला।वह थोड़ी देर के लिए सोचता ही रह गया।
'पाटिल तुम्हें दुगनी रकम मिल जाएगी पर होटल तो बंद नहीं होगा,तुम पैसों से खेलोगे....पर कुछ भी करो यह बात बाहर नहीं आनी चाहिए' राजीव ने पाटिल को देखकर कहा।
पाटिल कुछ देर तक सोचता रहा उसके बाद उसने कहा 'ठीक है सर...पर कम से कम यह बात निकुंज को तो बता दीजिए,क्योंकि फिर से उसी तरह से मौतें हो रही है.....शायद वो भी इन सब का शिकार ना हो जाए.....'
'नहीं इस बात के बारे में निकुंज को भी पता नहीं चलना चाहिए'
'पर सर.....' पाटिल कुछ कहता उससे पहले ही राजीव ने उसे चुप करवा दिया।
'नहीं मतलब नहीं और उन बॉडीज को पोस्टमार्टम के लिए भेज दो'
'ठीक है सर....' इतना कहकर पाटिल वहां से चला गया और राजीव बस उसे जाते हुए देखता रहा।
To be continued........