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हॉंटेल होन्टेड - भाग - 3

लाश का नाम सुनकर राजीव कुछ देर के लिए सन्न हो गया।वह बस कुछ देर तक अजय के सामने सवालिया नजरों से देखता रहा।पूरे हॉल में एक अजीब सा सन्नाटा छा गया।बाहर से बस तेज हवाएं चलने की आवाज आ रही थी आखिर कार राजीव ने उस सन्नाटे को तोड़ते हुए कहा,' यह क्या कह रहे हो तुम इन सब मजदूरों ने तो कहा था कि लाश अब तक नहीं मिली है।'
'उन सब को कुछ पता नहीं है,अगर पता चल जाता तो अभी तक बहुत बड़ा बवाल मचा देते और वैसे भी मुझे जिस हालत में वह लाश मिली है ऐसी लाश ना तो मैंने देखी और ना ही उनके बारे में सुना है।'

'कैसे मिली तुम्हें वह लाश?'
'आप सत्य को तो जानते ही हैं जो थोड़ी देर पहले मजदूरों के साथ आपसे बात कर रहा था।'

आखिरकार उसने कहना शुरू किया.......

अजय एक कमरे में कुर्सी पर बैठा था,उसके सामने बहुत सारे चार्टस पड़े थे और वह उन चार्टस को देख रहा था,तभी अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई। 'कौन है?'अजय बोला।
बाहर से आवाज आई 'मैं हूं साहब सत्या'
अजय ने जाकर दरवाजा खोला, सत्या अंदर आया उसके चेहरे पर घबराहट दिखाई दे रही थी ,उसका चेहरा पसीने से तरबतर था जैसे वह भाग कर आया हो, उसे इस तरह देखकर अजय चौक गया।
'अरे सत्या क्या हुआ इतना घबराया हुआ क्यों लग रहा है?'
'साहब जल्दी मेरे साथ चलिए 'वह हांफते हुआ बोला।
'पर बताओ तो सही हुआ क्या है?'
'साहब पता है कल कालू गायब हो गया'
'क्या........' अजय ने चौकते हुए कहा।
'हां साहब और भी बहुत ही अजीब सी घटनाएं हुई है और सब बड़े साहब के पास जाने का सोच रहे हैं।'
'पर कल तक तो सब ठीक था किसने बताया उन्हे?' अजय ने पूछा।
'साहब रघु ने सबको बताया है और उसके चेहरे का भी बहुत बुरा हाल है'
'पर यह सब कैसे हुआ कालू मिला या नहीं?'
'मिल गया है साहब पर.......'सत्या बस इतना बोल कर चुप हो गया।
'पर........ पर क्या सत्या?कहां है वो?'
'जंगल में' सत्या ने यह बात इतने दिनों से कहीं जिसे सुनकर अजय को समझ आ गया कि कुछ बहुत बड़ी गड़बड़ हुई है और वह दोनों वहां से निकलकर जंगल की तरफ पड़ गए।

दोनों जंगल में अंदर चलते जा रहे थे,अजय के चेहरे पर चिंता छाई हुई थी वहां का वातावरण बिल्कुल शांत था, हवा में जबरदस्त ठंड थी और जंगल में घना कोहरा छाया हुआ था जैसे कोई आसमान से बादल नीचे आ गया हो और कुछ भी साफ-साफ दिखाई नहीं दे रहा था।
'ओर कितनी दूर है' आखिरकार अजय ने पूछा।

'बस साहब पहुंच गए लेकिन मेरी बात मानीए साहब उसको ना देखना ही आपके लिए अच्छा रहेगा 'सत्या ने अजय की तरफ देखते हुए कहा जिसे सुनकर उसने सत्या को आगे चलते रहने का इशारा किया। कुछ ही मिनट चले थे दोनों कि तभी सत्या चलते चलते रुक गया। उसके सामने इतना घना कोहरा था की वहां पर सफेद रोशनी के अलावा और कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।

'क्या हम पहुंच गए?' अजय ने सत्या की तरफ देख कर कहा और उसके जवाब में सत्या ने अपनी गर्दन सिर्फ हमें हिलाई।

'पर मुझे तो वहां पर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा 'बोलकर वह कुछ कदम आगे चला की तभी सामने छाया हुआ कोरा धीरे-धीरे हटने लगा और अगले ही पल उसके सामने जो नजारा आया उसे देख कर उसकी आंखें फटी की फटी रह गई उसके कदम पीछे हटने लगे और चेहरे पर पसीना आने लगा
सामने का नजरा सच में बहुत ही खौफनाक था यह एक ऐसा नजारा था जिसे कोई इंसान शायद ही भूल पाए।

सामने पेड़ पर कालू की लाश लटकी हुई थी, उसकी लाश ऐसे लटका ही हुई थी कि पेड़ की एक डाली उसके छाती के आर पार निकली हुई थी उसके शरीर में बड़े-बड़े छेद किए गए थे जैसे कोई पाइप बहुत ताकत से उसकी छाती में बार-बार घोंपा गया हो उसकी आंखें निकाल दी थी और उसकी जगह सिर्फ काले छेद दिखाई दे रहे थे उसके चेहरे पर अजीब से नाखून के निशान थे और उसके पेट से उसकी आंते बाहर निकली हुई थी उसके शरीर से खून लगातार टपकते हुए नीचे गिर रहा था।

'यह.... यह सब कैसे?' अजय बस इतना ही बोल पाया।
'यह तो नहीं जानता साहब पर बहुत दर्दनाक मौत मिली है इसको।'
'किसी जानवर का काम?'
'मुश्किल है साहब कोई जानवर इतनी बुरी तरह से कैसे मार सकता है इसके शरीर में कुछ बचा ही नहीं है और इसके शरीर में छेद ही छेद दिखाई दे रहे हैं यह बात बोलते हुए सत्या एक तक जमीन को ही देख रहा था जहां खून ही खून बिखरा हुआ था।
यह बात सुनकर राजीव गहरी सोच में पड़ गया वह कुछ बोल नहीं रहा था और बस अजय कोई देखे जा रहा था।

'अभी तक मैं उसको खोफ नाक मंजर को नहीं भूल पाया हूं और वह सब अभी भी मेरे आंखों के सामने घूम रहा है।'
'क्या आपको नहीं लगता साहब की उस जगह पर कुछ बदला बदला सा है,कोई है जो नहीं चाहता कि हम वहां रहे, कुछ दिनों से वहां कुछ अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ है जो हमसे कुछ कहना चाहता हो ,कोई है जिसे आप देख नहीं सकते और वह आपकी जिंदगी से खेल सकता है'अजय ने यह बात इस तरह से कहीं कि राजीव बस उसको देखता ही रह गया।
'यह तुम्हें क्या हो गया है अजय कैसी बातें कर रहे हो तुम?'
'राजीव सर बात इतनी छोटी नहीं है जितनी दिख रही है सत्या को तो पैसे का लालच था इसलिए उसने यह बात किसी को नहीं बताई और वह लाश उसने जमीन में ही दफन कर दी पर सर हम लोगों को जल्द ही किसके बारे में कुछ करना पड़ेगा।'

'मैं जानता हूं अजय ,पर तुम तो यह जानते ही हो कि यह काम हमारे लिए कितना जरूरी है, इस काम को किसी भी तरह करवाओ और पुलिस की चिंता बिल्कुल मत करो उन सबको मैं संभाल लूंगा।'
'आप बेफिक्र रहो सर आज रात को मैं वहां जाऊंगा और जान कर रहूंगा की इस राज के पीछे क्या असलियत छुपी हुई है?'बोलकर अजय खड़ा हुआ और वहां से निकल गया।

बारिश अब बंद हो चुकी थी पर वातावरण में ठंड बहुत थी, अजय रोड पर धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था उसके दिल और दिमाग में बस वही मंजर घूम रहा था, ऐसा खौफनाक मंजर किसी भी इंसान को डरने पर मजबूर कर ही देता है पर कहते हैं कि विश्वास डर को खत्म कर देता है पर इस वक्त अजय के दिल में विश्वास से ज्यादा डर छाया हुआ था,उसको भी लग रहा था कि मजदूरों की बातों में कुछ तो सच्चाई है परंतु उसका दिमाग यह सब बातें मानने के लिए तैयार नहीं था ,वह धीरे धीरे चलता हुआ आखिरकार वहां पहुंच गया।

उसके सामने वही जगह थी जहां दिन में जोरों शोरों से काम होता था पर इस वक्त इस जगह बिल्कुल सन्नाटा था और चारों तरफ घना अंधेरा छाया हुआ था और वह खामोशी थी जिसे साफ-साफ सुना जा सकता था।अजय के दिल की धड़कनें इस वक्त सहमी हुई थी।

अजय ने अपने कदम उठाए और धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा ,उसने अपनी जेब में से एक छोटी सी टॉर्च निकाली जिससे उस जगह पर कुछ उजाला हो गया, उसने उसे सामने की तरफ की तो उसे सामने रखी चीज कुछ कुछ दिखाई देने लगी।

वह धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था,उसके रास्ते में कुछ-कुछ बिखरी हुई चीजें आ रही थी ,वह इधर-उधर उधर देखता हुआ आगे बढ़ रहा था कि तभी उसकी नजर सामने की तरफ पड़ी और उसे वह आश्चर्य से देखता ही रह गया उसके सामने एक आदमी ब्लैक कोट पहने जमीन पर पड़ा हुआ था उसकी पीठ अजय के सामने थी। वह एक पल के लिए सोच में पड़ गया कि इस वक्त इस जगह पर यह कौन होगा सोचते हुए वह उस आदमी के पास जाने लगा। उसने जमीन पर बैठकर उस आदमी को हिलाया ,पर वह नहीं हिला।

'हेल्लो... कौन हैं आप?.. आप ठीक तो है?' अगले पल उसके सामने जो नजारा आया उसे देख कर उसके मुंह से चीख निकल गई उस आदमी का कंधा उसके शरीर से अलग होता हुआ कुछ उसके हाथ में आ गया। जैसे किसी गुड़िया का हाथ उसके शरीर से अलग कर दिया हो उसके हाथ से वह हाथ गिर गया और वह हाथ केबल पीछे हट गया।

उसके अगले ही पल उसके शरीर में हलचल होने लगी और उस आदमी का चेहरा अजय के सामने आ गया उस आदमी चेहरा देखकर अजय का गला सूख गया, उसका मुंह खुला का खुला रह गया ,उसके हाथ पैर कांपने लगे और उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था।

उसके सामने पड़े आदमी के चेहरे पर नाखून से खुदरे हुए निशान थे, मानो किसी ने उसे नोच लिया हो उसके मुंह से खून की बहती परत और मुंह की अंदर की हड्डियां साफ साफ दिखाई दे रही थी। उसकी आंखें बिल्कुल सफेद थी ,पर सबसे ज्यादा रूह हिला देने वाली बात यह थी की वह शरीर किसी ओर का नहीं बल्कि वह खुद अजय का था। वह अपने आप को देख रहा था।

वह डर के मारे खड़ा हो गया। वह शरीर उसको देख कर हंसने लगा और बोला 'मेरी मदद करो साहब' यह बोलकर वह उसकी तरफ बढ़ने लगा। डर के मारे अजय के हाथ से टॉर्च छूट गई और बहुत तेजी से दौड़ता हुआ जंगल की तरफ भागने लगा ,इधर-उधर देखे बिना बस पागलों की तरह भागता जा रहा था भागते भागते वह थक कर खड़ा हो गया।

अचानक उसे किसी की खांसने की आवाज आई ,उसने अपना चेहरा उठाकर उस तरफ देखा और उसकी तरफ बढ़ने लगा थोड़ी दूर पर उसे एक आदमी पेड़ के बल बैठा हुआ नजर आया,वह आदमी अपना चेहरा नीचे झुका कर बैठा हुआ था और वह दर्द की वजह से करा रहा था,' मदद करो प्लीज मेरी मदद करो 'बोलते हुए वह कराह रहा था।
'कौन है आप ?ठीक तो है?' अजय ने उससे पूछा पर उस आदमी ने उसका कोई जवाब नहीं दिया।

तभी अजय का ध्यान एक चीज पर पड़ा जिसे समझ कर वह डर के मारे कांप गया ।वह इस वक्त गहरे जंगल के बीच था और जंगल इतना गहरा था कि जब वह बोलता था तो उसकी आवाज गूंज रही थी पर जब उसके सामने पड़ा आदमी कुछ बोलता था तो उसकी आवाज गूंजती ही नहीं थी तभी उस आदमी ने अपना चेहरा ऊपर उठाया।
'क्यों सर आप मेरी मदद नहीं करोगे?' बोलते हुए वह अजय की तरफ बढ़ा जिसे देखकर अजय फिर चौक गया क्योंकि वह उसका खुद का शरीर था जिसे वह पीछे छोड़ आया था तो फिर यह अचानक इतनी जल्दी यहां कैसे आ गया?उस आदमी ने अजय का हाथ पकड़ लिया और अपने नाखून अजय के हाथ पर गड़ा दिए जिससे अजय के हाथ में से खून निकलने लगा।

वह दर्द के मारे चिल्लाया।जिसे सुनकर वह आदमी जोर जोर से हंसने लगा, अजय ने अब अपनी पूरी ताकत लगा कर उस आदमी को धक्का मारा और वहां से भागने लगा तभी उसे पीछे से आवाज सुनाई दी," तू मेरी मर्जी के बगैर यहां से बाहर नहीं निकल सकता इसलिए भागना बेकार है" इतना बोल कर वह जोर जोर से हंसने लगा इस तरफ अजय डर के मारे तेजी से भागता जा रहा था ,उसे पता था कि जंगल इतना गहरा नहीं है फिर भी पता नहीं क्यों या खत्म ही नहीं हो रहा है।

आखिरकार वह थक हार कर एक पेड़ के बल अपना हाथ रख कर खड़ा हो गया। जब उसे लगा कि उसके पीछे कोई नहीं है ,तो उसने आगे चलने के लिए अपने पैर बढ़ा दिए पर पता नहीं क्यों उसका हाथ पेड़ से अलग ही नहीं हो रहा था उसने अपने हाथ को बहुत खींचा पर उसका हाथ पेड़ से अलग नहीं हुआ।

अचानक उसके हाथ में बहुत तेज दर्द होने लगा, जैसे कोई खंजर उसके हाथ में घोंप रहा हो उसने अपना हाथ जोर से खींचा पर उसके हाथ की खाल उसके हाथ से अलग हो गई और पेड़ से ही चिपकी रही, उसने अपने हाथ देखा तो उसके हाथ की हड्डियां साफ सफ दिखाई दे रही थी।

वह दर्द के मारे जोर से चिल्लाया और छटपटाने लगा, उसके हाथ से खून किसी पानी की तरह बह रहा था, आज उसे मजदूर की बातों में सच्चाई नजर आ रही थी, अब उसे समझ में आ रहा था कि मजदूर जो कह रहे थे वह सब सच था यहां पर कोई ऐसी चीज है जिस से लड़ना किसी के बस की बात नहीं।

'मुझे यहां से जल्द ही निकलना होगा' बोलते हुए उसने अपने शरीर की बची कुची ताकत इकट्ठी की और खड़े होकर एक हादसे अपने दूसरे हाथ को पकड़ कर चलने लगा।

वह चलते-चलते एक ट्रक के पास पहुंच गया उसने ट्रक स्टार्ट किया और तेजी से चलाने लगा, आखिरकार ड्राइव करते-करते वह जंगल के बाहर निकल गया, वह ट्रक चलाते हुए राजीव सर के कार के पास पहुंच गया आखिरकार उसे एक बात की शांति हुई कि वह इस जगह से निकल पाया ।उसने ट्रक बंद किया और ट्रक के बाहर जैसे ही निकला वह बस चारों तरफ देखता ही रह गया क्योंकि वह उसी जगह पर खड़ा था जहां से उसने ट्रक स्टार्ट किया था और आसपास उसे कोई ट्रक दिखाई नहीं दे रहा था।

'नहींईईईई......' वह जोर से चिल्लाया।
तभी उसे हवा के लहर के साथ किसी के हंसने की आवाज सुनाई दी, उसके शरीर में एक कपकपी सी दौड़ गई।

'कौन है ?..कौन है वहां?.... सामने आ..... आ... सामने' दर्द और गुस्से के मारे, वह जोर से चिल्लाया। उसके पैर खुद-ब-खद जंगल की तरफ बढ़ गए।गीली मिट्टी पर चल रहे जूतों की आवाज भी उसके शरीर में डर के लहर पैदा कर रही थी 'कौन है वहां?सामने आ तू जो भी है' बोलते हुए वह जंगल में चलता जा रहा था कि तभी उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा।

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