हॉंटेल होन्टेड - भाग - 55 Prem Rathod द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हॉंटेल होन्टेड - भाग - 55

अंधेरा होने के साथ ही सब students रिजॉर्ट मैं वापस आ गए थे,थोड़ी देर बाद मिस भी रिजॉर्ट आ गईं,सब लोग हॉल मैं खड़े होकर वही बातें करने मैं व्यस्त थे पर उन्हे पता नही था कि उनके पीछे इस रिजॉर्ट मैं क्या घट चुका है जिसकी गवाह यह दीवार बन चुकी है पर इस वक्त वहा पर सब कुछ ठीक था ना दीवार मैं कोई दर्रारे और ना ही चीज़ जमीन पर बिखरी हुई थी, सब चीज ठीक से वही रखी हुई थी,"Relax कर यार,ज्यादा मत सोच उसके बारे मैं" अविनाश हर्ष को समझा रहा था पर पता नही वो अपने की किसी ख्याल मैं खोया हुआ था।


अंगड़ाई लेते हुए विवेक ने निशा के कंधे पे अपना हाथ रखते हुए कहा,"I'm very tired now चल यार आराम करने चलते है" निशा ने अपना कंधा उचककर उसका सर हटा दिया,"शकल देखी है अपनी तेरे साथ कोन रहना चाहेगा" attitude दिखाये हुए निशा उप्पर जाने लगी,जिसे विवेक बुरी सी शकल बनकर देखता रहा और निशा उपर चली गई।
"वैसे आर्यन तुमने कहा था कि तुम्हें यहां किसी काम की वजह से आए थे तो क्या वो हो गया? "अचानक से यह सवाल करने पर ट्रिश ने आर्यन की तरफ देखकर मिस से पूछा, "कैसा काम मिस?"ट्रिश के सवाल पूछने पर वो उसे ही देख रहा था वो कुछ कहता उससे पहले उपर से अविनाश के चिल्लाने की आवाज सुनाई दी," मिस. सब लोग जल्दी उपर आइए" यह आवाज़ सुनकर सब लोग डर गए और जल्दी से दौड़ते हुए उपर पहुंचे जहा अविनाश निशा के कमरे के बाहर खड़ा था और निशा बिना कुछ बोले अपने कमरे को देख रही थी,"What The Hell??!"पीछे से कमरे को देखकर विवेक के मुंह से निकल गया क्योंकि पूरा कमरा तहस नहस हो चुका था,सब सामान बिखरा हुआ था,वहा का Furniture टूटा हुआ था, बिस्तर को बीच मैं से पूरा चीर दिया था और उस गद्दे की रुई पुर्रे कमरे में बिखरी हुई थी,"ये सब किसने किया होगा? "हैरानी से देखते हुए मिस ने पूछा।



"ये...ये तो कुछ नहीं है मिस. हमारे कमरे में तो इससे भी ज्यादा...."कांपते होठों के साथ अविनाश बोलते हुए रुक गया
"क्यो ऐसा क्या हुआ है?" मिस ने भी सहमे हुए कहा।
"आप सब खुद चल कर देख लीजिये" अविनाश तेज़ कदमो से आगे बढ़ा तो सब उसके पीछे चल दिए पर निशा वही खड़ी रही क्योंकि वो यह सब देखने मैं इतना खो चुकी थी कि उसे पता ही नही चला की कब सब लोग उसके पीछे से चले गए,उसने अपना एक टॉप उठाया जो फटा हुआ था वो भी ऐसे मानो किसी ने जान बूझ के इसे फाड़ दिया हो,"I will kill those basterd जिसने भी यह किया है,कितना expensive था।" निशा मायूसी भरे लफ्जों से बोल पड़ी,"विवेक तुम्हे मुझे एक ओर खरीद के देना होगा...विवेक?!!"कहते हुए वो मुड़ी पर उसे कोई नहीं दिखा तो वो एक पल के लिए डर गई, "विवेक!!.. आर्यन??!" आवाज लगती हुई वो अपने कमरे से बाहर निकली जहा थोड़ी दूर के कमरे से सब लोगो की आवाजे आ रही थी वो उस तरफ बढ़ी थी तभी कॉरिडोर की खिड़की से आती रोशनी मैं उसे किसी की परछाई नजर आई जिससे देखकर लग रहा था की वहा पर कोई लड़की खड़ी है पर उसके साथ की किसी के फुसफुसाने आवाज की आई जो बेहद भारी आवाज़ थी जैसें कोई आदमी बोल रहा है पर उसके तुरंत बाद वो आवाज बदलकर किसी लड़की जैसी हो गई,उसके साथ ही उसे कुछ धुआं उड़ता हुआ दिखाई दिया जिसकी smell से पता लगा रहा था कि कोई वहा खड़ा Cigrette पी रहा हो,डरते हुए निशा ने जैसे ही वहा जाकर देखा तो कोई नही खड़ा था,हैरानी से उसने कॉरिडोर के आसपास के कमरों मैं भी देखा पर उसे कोई नजर नहीं आया,यह देखकर वो बहुत घबरा गई और दौड़ते हुए अविनाश के कमरे के पास चल गई, जब सभी के पास पहुंचकर देखा तो वहां का हाल देख के उसका चेहरा भी वैसा ही हो गया जैसा सबका था।
इस कमरे का हाल तो पहले भी बत्तर था जहा पूरा कमरा बिखरे होने के अलावा दीवारों पर बड़े बड़े अक्षरों से एक ही चीज़ लिखी हुई थी,'तुम...ही हो...वो' पर सभी के दिल को डराने वाली बात ये थी कि वो लाल रंग नही बल्कि किसी का खून था,इस वक्त हर्ष को बस एक ही डर सता रहा था कि कही आंशिका ने कुछ कर ना लिया हो"



"कुछ तो गड़बड़ जरूर है मिस" निशा ने डरते हुए कहा जिससे उसके हाथ कांप रहे थे और सबके मन मैं बस यही सवाल चल रहा था और विवेक ने उससे पूछ लिया "तू इतनी डरी हुई क्यों है?" विवेक के पूछते ही निशी उसे देखते हुए बोली,"वो अभी-अभी मैंने...." निशा अभी इतना ही कह पाई की तभी किसी चीज़ के ज़ोर से गिरने की आवाज़ आई, जिसके सबके कान खड़े हो गए, सबसे पहले हर्ष वो आवाज सुनते ही कमरे से दौड़ता हुआ बहार निकला,अब उसके दिमाग में ये डर आ गया था की अगर आंशिका को कुछ हो गया तो वो सबको क्या जवाब देगा,वो आगे कॉरिडोर मैं देख रहा था पर डर की वजह से उसकी आगे बढ़ने की हिम्मत नही हो रही थी।
"क्या हुआ, कौन था?" अविनाश ने बाहर आते हुए पूछा।
"कोई है जो हमारे साथ मजाक कर रहा है" विवेक ने इस बात को दूसरी तरफ घूमते हुए कहा।



"दोस्तों क्या हुआ तुम सब यहां क्यों खड़े हो?" तभी मिलन ने उपर आते हुए सबकी ओर देखकर पूछा।
"कोई है मिलन यहां जिसने हमारे कमरे को बिगाड़ दिया है, जब हम आये तो पूरा कमरा बिखरा हुआ था “अविनाश ने घबराते हुए कहा।
"और मैंने अभी अभी एक अजीब से साये को वहाँ सामने की ओर देखा" निशा की ये बात सुनकर मिलन,प्राची, श्रुति और प्रिया के साथ सब लोग हैरान होकर उसे ही देख रहे थे क्योंकि यह बात वो कब से कहना चाहती थी,निशा की यह बात सुनकर विवेक उससे घूरने लगा।
"साया!..किसका साया?" अविनाश ने बड़ी मुश्किल से अपनी बात कहीं।
"पता नही, कोई लड़की थी या कोई आदमी, बहुत अजीब लग रहा है और साथ ही किसी के बोलने आवाज भी आ रही थी,कुछ तो है दोस्तो जो इस जगह पर सही नहीं है।" निशा ने अपनी बात रुकते - रुकते कहि मानो अपनी सांसों को काबू कर रही हो। निशा की बात सुनते ही सबका बुरा हाल हो गया।
"श्रेयस कहाँ है?" मिलन ने सभी की तरफ देखा और जब उसने श्रेयस नहीं दिखा तो उसने फिर अपना सवाल उठाया किया।
"वो तो तुम्हारे साथ गया था ना" तेज़ चलती सांसों से ट्रिश ने कहा।
"हां पर बिच में ही वो कहीं गायब हो गया,हमने सोचा कि वो वापस चला गया होगा "मिलन ने ट्रिश की तरफ देखते हुए जवाब दिया।
"गायब हो गया मतलब" ट्रिश ने हल्के गुस्से में कहा लेकिन मिलन कुछ कहता है उसे पहले "और आंशिका भी यह नही है" हर्ष की बात से सबके दिमाग मैं भी यह बात आई की वो भी शाम से गायब है।
"मुझे नहीं पता, वो हमारे साथ नहीं आई थी।" मिलन के कहते ही हर्ष के साथ सभी के चेहरों का रंग उड़ गया, ये सब देख और सुनने के बाद उससे लगने लगा कि जो वो सोच रहा है कहीं वो सच ना हो जाए, सिर्फ हर्ष ही नहीं बल्की सब सिर्फ अपने बारे मैं सोच रहे थे की कही उन्हे कुछ ना हो जाए।



कुछ पल सोचने के बाद मिलन की आंखें खुल गई मानो उसने कुछ ऐसा याद आ गया हो जिसकी उसकी रूह कांप उठी "यह सब तो वैसे ही घट रहा है जैसा मैने इंटरनेट पर पढ़ा था" मिलन की बातें सुन सब उसे घूरने लगें, "और अगर वो सच बात सच है तो कहीं श्रेयस और आंशिका को...." मिलन ने अपने मन का डर बताते हुए कहा की फिर किसी चीज के टूटने की आवाज उनके कानो मैं पड़ी जैसे किसी ने कोई चीज़ उठा कर फैली हो जिससे सबकी सांस उपर हो गई और डर की वजह से सब चीख पड़े।
"ये कैसी आवाज थी?" श्रुति ने मिलन का हाथ पकड़कर डरते हुए पूछा पर वहा खड़े सब लोगो मैं से कोई नही बोला और सब उस आवाज की दिशा मैं बढ़ गए।


कॉरिडोर के ख़तम होते ही सब लोग एक कमरे के सामने पहुंच गए जहा बहुत कम रोशनी पहुंच रही थी और कमरे के पास पहुंचकर सब लोगो अंदर देखा तो सबके कदम वही रुक गए,सब लोग अपनी पलके झपकाए बिना सामने का मंजर देख रहे थे,कमरे की हल्की सी रोशनी मैं आंशिक एक लंबे टेबल पर अपना सर जुकाए वही बैठी थी और उसके सामने उस टेबल पर किसी का कटा हुआ सर रख हुआ था,जो बीच मैं से फटा हुआ था और जिसके ऊपर मक्खियां भिनभिना रही थी जिससे उसकी तेज़ बदबू चारो और फैली हुई थी।आंशिका ने उसके सर को थोड़ा फाड़ते हुए उसके अंदर अपना हाथ डाल दिया और उसे अंदर से मांस और कुछ नसे खींचकर बाहर निकालकर उस सड़े हुए मांस को चबाने लगी जिसकी वजह से उसके खाने की आवाज पूरे कमरे मैं गूंज रही थी,जैसे ही उस कटे हुए सर का चेहरा सब के सामने आया सबके मुंह से चीख निकल गई क्योंकि यह मुकेश का चेहरा था जो 2 दिनो से गायब था।यह दिल दहलाने वाला पल देखकर लड़किया पीछे हटने लगी,उनकी आंखें हल्की सी भीगने लगी थी,सबकी आवाज सुनकर आंशिकाने खाना बंध कर दिया और छलांग लगाते हुए टेबल के कोने पर आ गई जिसे उसका चेहरा सबके सामने आ गया,यह चेहरा उस भयानक सपने की तरह था जिसे कोई इंसान नही देखना चाहता है।

खून से सना हुआ चेहरा,शरीर पे कई जगह पर घाव के निशान,उसके बालो से रिसता हुआ खून टेबल पर गिर रहा था,चेहरे पर काली नसे उभर आई थी और आंखें कांच जैसी सफेद,उसके मुंह से निकलते खून के साथ मांस के कुछ टुकड़े भी बाहर गिर रहे थे,उसने मुकेश के सर से दिमाग को उखाड़ कर पकड़ा हुआ था और उसे सबकी और बढ़ाते हुए मुस्कुराने लगी,हर्ष तो आंशिका को देखकर बुत बनकर खड़ा हुआ था।



सब लोगो को ऐसे हैरान देखकर वो टेबल पर चलती हुई मुस्कुरा रही थी और उस दिमाग को अपने दातों तले दबा दिया यह देख सबको उबकाई सी आ गई और सबने अपने हाथ अपने मुह पे रख लिए,आंशिका अपनी जगह पर ही खड़ी हो गई और छलांग लगा के सर के ऊपर जा कूदी और उसने इतनी जोर से उस पर पैर रखे की वो चेहरा टेबल पर पिचक के फूट गया,वो काला ख़ून और मांस के टुकड़े टेबल पर फैल गए, दांत दिखाते हुए आंशिका ने अपने बाल अपनी उंगली से घूमते हुए सबकी तरफ देखा तो सब लोग इस मौत के मंजर को बस देखे जा रहे थे।आंशिका ने सर का बचा हुआ कुछ हिस्सा उठाया और हंसते हुए हर्ष के सामने खड़ी हो गई।


तेज़ कदमों से चलता हुआ,पेडों के बीच मैं से गुजरते हुए मैं उस रास्ते पर आगे बढ़ रहा था,थोड़ी देर चलने के बाद मैं एक खुल्ले हिस्से मैं आ गया जहा मुझे एक रास्ता दिखा कुछ पल सामने देखने के बाद मैं दौड़ते हुए उस रास्ते की और बढ़ गया। सब लोग ऐसे खड़े थे मानो किसी के पास सांसें ना बची हो,यह पल देखकर सबके हाथ पैरो में वहा से जाने की ताकत नहीं बची थी, किसी के मुंह से कोई आवाज नहीं निकल रही थी तभी मिलन को होश आया और उसे समझ आया की ये सब क्या हो रहा है वो तुरंत वहां से भागा और तभी नीचे श्रेयस को देखकर उसे शांति पहुंची, श्रेयस भी हांफता हुआ अभी रिसोर्ट के अंदर घुसा था, मिलन सीढ़िया उतरते हुए तुरंत उसके पास पहुंच गया,श्रेयस कुछ बोलता उसके पहले मिलन बोल पड़ा।
"श्रेयस...जल्दी चल" मिलन को ऐसे घबराए हुए देखकर श्रेयस भी हैरान हो गया।
"क्या हुआ?"
"वो ऊपर..आंशिका..." मिलन की बात सुनकर उसकी सांसे तेज़ हो गई वो कुछ पूछता उससे पहले ऊपर से किसी के चिल्लाने की आवाज़ आई और दोनो की नजरें ऊपर की तरफ थम गई।
"लगता है फिर कुछ हुआ है" मिलन ने कांपती आवाज़ में कहा और वो दोनो उपर की तरफ भागे,जैसे ही वो उस कमरे मैं पहुंचा तो वो भूल गया की यह हकीकत है या फिर एक सपना?



आंशिका और हर्ष एक दूसरे के सामने खड़े थे,हर्ष वहा से भागना चाहता था पर उसके पैर काम ही नहीं कर रहे थे,आंशिका ने वो मांस का टुकड़ा हर्ष की ओर बढ़ाते हुए कहा,"ले...." पर उसका सारा शरीर जम गया था,आंशिका के मुंह से निकलती आवाज ने हर्ष के शरीर मैं कंपन छोड़ दी,बहुत ही कठोर आवाज थी और उसकी आंखो मैं गुस्सा साफ झलक रहा था,आंशिका बोल रही थी पर उसके साथ अंदर से किसी आदमी की भी आवाज सुनाई दे रही थी,इस बार आंशिका ने वो टुकड़ा हर्ष के मुंह के पास लाते हुए कहा,"ले खा ना..." इतनी तेज़ बदबू उसके नाक मैं पड़ते ही उसने अपने मुंह को दोनो हाथो से दबा दिया क्योंकि उसे उबकाई सी आ रही थी,इससे देख आंशिका जोरो से हंसने लगी।


"मैं तुझसे कितना प्यार करती हूं, मेरे प्यार के लिए इतना भी नहीं कर सकता?'' आंशिका ने मायूस होते हुए कहा।
"नहीं तुम अंशिका नहीं हो सकती" हर्ष ने सख्त लफ्जे से उसकी ओर घूरते हुए कहा और सबके साथ जाकर खड़ा हो गया।
"मैं आंशिका ही हूं, इस चेहरे को ठीक से देख"आंशिका ने उंगली से अपने चेहरे की तरफ इशारा किया,"तू इस चेहरे को कैसे भुल सकता है?यही तो वो चेहरा और वो बदन है जिसे देखकर तूने इसे अपने प्यार के जाल मैं फसाया था ताकि तू इसके साथ सोने की अपनी ख्वाहिश पूरी कर सके,तूने भी मेरी तरह बदले के लिए तो यह सब किया है।" हर्ष की सच्चाई सुनकर सभी की आंखें खुली रह गईं और सब लोग उसकी तरफ देखने लगें, अपनी तरफ सबको ऐसा देख हर्ष हड़बड़ाते हुए बोला,'' ये....ये जुठ बोल रही है मिस. आप खुद देख सकती हैं ये हमारी आंशिका नहीं बल्की कोई और है, कौ....कौन हो तुम...कौन हो?'' हर्ष ने तेज़ चलती सांसों से पूछा।
"मैं कौन हूँ??!" आंशिका ने अपने सर पर उंगली रखी और उससे खुजाने लगी, " कौन हूं में?"और अपनी आंखें ऊपर उठा के सोचने लगी और फिर अचानक से हंसने लगी, "मैं हूं कौन... मैं हूं कौन..." गाते हुए आंशिका गोल - गोल घूमकर टेबल पर चलने लगी,उसकी यह हरकते देख सब लोग परेशान से खड़े थे, किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे? "आंशिका..." ट्रिश ने बड़ी मुश्किल से नाम पुकारा लेकिन आंशिका फिर भी नहीं रुकी बल्की अजीब तरह से उछलते हुए चल रही थी, जिसे देख अभिनव अपना चेहरा छुपा के हल्का सा हंस पड़ा जैसे ही वो हंसा आंशिका रुक गई,अपने खून से भीगे बालो के बीच मैं से उन भयानक आंखो से अभिनव को देखने लगी,उसने पास पड़ा एक Flower Pot उठाकर पूरी ताक़त से फैंका,वो इतनी तेज़ था कि सब लोगो के बीच से गुजरते हुए सीधा अभिनव की छाती से टकराया।



जिसके साथ ही उस जातक से अभिनव हवा मैं उड़ता हुआ पीछे की दीवार से जा टकराया और कंधों के बल ज़मीन पे जा गिरा और उसके सर से खून निकालने लगा,"आआआआआ" उसके साथ अभिनव के मुंह से चीख निकल गई, अनमोल भागता हुआ अभिनव के पास गया और उसे उठने लगा पर अभिनव बेहोश हो चूका था,वहा खड़े सभी लोग कभी अभिनव को देखते तो कभी आंशिका को,जो टेबल पर खड़ी गहरी सांसें ले रही थी।
"सारा मूड ख़राब कर दिया" कहते हुए उसने अपनी नज़र उठाई और हर्ष की तरफ देखने लगी, जैसे ही हर्ष और आंशिका की नज़र एक बार फिर मिली हर्ष की सांसें अटक गईं, उसका दिल इतना जोर से धड़कने लगा जैसे वो बाहर आ जाएगा।
"प्यार करता है ना इसे?" आंशिका के सवाल करते ही सब हर्ष को देखने लगें, उसने सभी की तरफ देखा और pressure मैं हां में अपना सर हिला दिया।
"तो फिर एक खेल खेलेगा अपने प्यार के साथ?"
"कैसा खेल?"
"मेरा सबसे पसंदीदा खून से भरा खेल..." यह बोलते हुए आंशिका के चेहरे की मुस्कान बढ़ गई, आंशिका अपनी जीभ निकालकर अपने होठों पर घुमाया मानो वो खून के लिए बहुत प्यासी हो, उसकी बात सुन के सभी घबरा गए, तो हर्ष कैसे ना घबराता, आंशिका ने अपनी आंखों से इशारा किया किया मानो अपनी तरफ कुछ बुला रही हो कि तभी कोने मैं पड़ा चाकू उड़ता हुआ आकर टेबल पर हर्ष के सामने गिरा।



"अब तेरा खून ही इसकी जिंदगी को बचा सकता है" आंशिका ने इतना कहा तो यह सुनकर हर्ष की सांसें अटक गई,यह सब हो रहा था,मैं और मिलन पीछे खड़े यह मंजर देख रहे थे, आंशिका की यह हालत को देखकर मैं अंदर तक टूट चुका था मानो अब दिल मैं कोई उम्मीद ही ना बची हो।
"चल उठा इसे" आंशिका की बात सुनकर हर्ष ने अपने कदम पीछे हटा दिए।
"छी...छी... छी....क्या यही तेरा प्यार है?" आंशिका ने अपनी गर्दन हिलाते हुए कहा, "देख रही है कैसा प्यार करता है ये,जो दो बूंद खून नही दे सकता वो क्या प्यार करेगा,पर तू चिंता मत कर तुझे प्यार करने की सजा मिलेगी और पता है कैसी सजा?खून के बदले खून तब जाकर हिसाब बराबर होगा।"आंशिका अपने आप से ही बाते कर रही थी।


इतना कहकर आंशिका ने अपना हाथ उठाया और अपने बढ़े हुए नाखून अपने दाएं हाथ मैं घुसा दिए,जिससे उसके हाथ की चमड़ी फट गई और हाथ को चीरते हुए पीछे तक ले जाने लगी,जैसे जैसे वो अपने हाथ पीछे ले जा रही थी उसका खून हाथ से फैलता हुआ टेबल पर गिरने लगा था और उसकी दर्द भरी चीखे पूरे रिजॉर्ट मैं गूंज रही थी जिसे सुनने की ताक़त वहा खड़े लोगो मैं नही थी इसलिए भीगी आंखों के साथ सबने अपने कान पर हाथ रख दिए थे,यह चीखे सुनकर मैं दौड़कर टेबल के पास पहुंच गया,"आंशिका रुक जाओ" मेरी आवाज सुनकर उसने मेरी आंखो मैं देखा तो मुझे उसके दर्द का ऐहसास हो गया की वो कितनी तकलीफ मैं होगी।उसके अगले ही पल उसका चेहरा बदल गया और पूरे कमरे मैं वही हंसने की आवाज फेल गई।
"रुक जाओ प्लीज़,कुछ मत करो आंशिका को,आंशिका......आंशिका तुम मेरी बात सुन रही हो?"
"श्श्श्शश्....चुप हों जा,मैं आंशिका नही हूं"
"तो फिर कौन हो तुम?"
"क्यो मेरे बारे मैं जानकर मरना चाहता है?"
"पर आंशिका ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?"
“बहुत सवाल करता है....अगर इसकी इतनी ही फिक्र है तो खेल मेरे साथ और बचा ले इसे" आंशिका ने अपनी गार्डन टेढ़ी करते हुए कहा।यह सुनकर मैं सामने पड़े चाकू को देखने लगा।
"तू मुझे अपना खून दे और मैं इसे कुछ नहीं करुंगी"



"बताओ क्या करना है?"
"वही जो मैंने इस ठरकी को करने बोला था" आंशिका ने हंसते हुए हर्ष की तरफ देखा तो मैं समझ गया कि वो क्या कहना चाहती थी इसलिए मैंने हाथ बढ़ाकर जमीन पे पड़े चाकू को उठाया,"शाबाश..चल अब शुरू हो जा'' कहते हुए आंशिका पालखी मारकर बैठ गई।
"श्रेयस नही प्लीज.....रुक जाओ" पीछे से ट्रिश के चिल्लाने की आवाज पड़ी,मैने जब पीछे मुड़कर देखा तो उसकी आंखो मैं दर्द के साथ आंसु भी थे पर मैं इस वक्त उस असमंजस मैं फंस चुका था जहा मैं कोई भी फैसला लूं पर दर्द तो मेरे अपने को ही होगा पर मैने ज्यादा ना सोचकर उस चाकू को अपने हाथ पर रखा और हिम्मत करके अपने हाथ मैं उतार दिया,उसकी धार की वजह से मेरे हाथ को चीरते हुए अंदर चला गया और उसके साथ दर्द की एक तेज़ लहर मेरे शरीर मैं फैल गई,यह देखकर ट्रिश दौड़ते हुए आगे बढ़ी पर सबने उसे वही रोक लिया,दर्द की वजह से मेरी आंखे वही बंध हो गई और मेरे हाथ से खून निकलकर जमीन पर गिरने लगा।
"इससे कहते है प्यार" मेरे खून को देखकर आंशिका हंसते हुए बोली,"देख... देख....देख तुझे कितना प्यार करता है पर तुझे इस बात की भनक तक नहीं थी?" इतना कहकर वो तेज़ सांसे लेने लगी और एक झटके से जैसे वो किसी कैद से आजाद हो गई हो, दौड़ते हुए मेरे पास आकर मुझसे लिपट गई,"श्रेयस प्लीज रुक जाओ....रुक जाओ" इतना कहते हुए जैसे उसका पूरा गला भर गया हो,वो बोलते हुए रोने लगी,कुछ देर ऐसे ही बैठने के बाद वो अपने सांसे संभालने लगी,"मेरी वजह से अब खुद को तकलीफ देना बंध करो,अगर अब तुम्हे भी कुछ हो गया तो मैं...." वो आगे कुछ कहती उसके पहले मैने उसे रोक दिया,"कुछ नही होगा मुझे और मैं किसी को ऐसे ही तुम्हे तकलीफ नहीं पहुंचाने दुंगा" इतना कहकर मैंने उसके चेहरे को देखा जिस पर आंसुओ के साथ कई निशान थे,जिसे देखकर श्रेयस समझ गया की उसके बहुत दर्द सहा होगा पर उसके साथ चेहरे पर एक सुकून भी था,जो किसी अपने के प्यार और विश्वास की वजह से मिला था,यह देखकर श्रेयस आंखों से आंसू गिरने लगे और उसने आंशिका को कसकर अपनी बाहों मैं भर लिया,जैसे वो अपनी जिंदगी भर का प्यार,उसका हर हिस्सा उस एक पल मैं रखकर आंशिका के साथ जी लेना चाहता हो क्योंकि साथ ही दिल मैं एक डर भी था कि शायद ये लम्हा मुझे वापस ना मिले,मेरी बाहों मैं आंशिका ने अपनी आंखें बंद करली और कहा,"प्लीज श्रेयस मुझे बचा लो,इससे पहले जो वक्त मैने तुम्हारे बिना गुजारा है वो हर पल,अपनी जिंदगी मैं तुम्हारे साथ जीना चाहती हूं" आंशिका के रोने की आवाज उन दीवारों पर भी पड़ रही थी जो पहले भी इस दर्द को महसूस कर चुकी थी,उसके साथ वहा खड़े हर इंसान की आंखो मैं आंसू थे।



मैं अपनी आंखें बंद करके उस खुशी को महसूस कर रहा था तभी आंशिका की गर्म सांसे मेरे गर्दन पर पड़ी और उसके अगले ही पल अपने काले नाखूनों को उसने मेरे सीने मैं उतार दिया,यह सब इतनी जल्दी हुआ की मुझे कुछ सोचने का वक्त नहीं मिला,मेरे सीने से अलग होकर मैंने जब उसका चेहरा देखा तो उसके चेहरे पर वही दहशत फिर लौट आई थी जिसमे इंसानों के खून की प्यास थी।
"तुम जैसे लोगो को बेवकूफ बनाना कितना आसान होता है,तुम्हे सच मैं लगा की मैं ऐसे ही इसे जाने दूंगी,मैने इसलिए उसे कुछ देर के लिए आजाद किया की वो तेरे प्यार को जानकर तुझसे दूर रहने का दर्द महसूस करे।"
"तुमने जो कहा वो मैने कर दिया अब तो उसे जाने दो" इतना कहते हुए श्रेयस के मुंह से खून निकल आया।
"इतनी जल्दी क्या है? अभी तो इस खेल मैं मजा आ रहा है, तुझे तो अभी ओर दर्द सहना होगा।"कहकर उसने अपनी सारी उंगलियां मेरे सीने मैं उतार दी और उसे बाहर खींच लिया,जिसकी वजह से मेरे सीने मैं 5-6 inch लंबा घाव बन गया,मैं नीचे ज़मीन पर बिलखते हुए तड़प रहा था क्योंकि यह दर्द इतना ज्यादा था जिसकी वजह से मैं बेहोश होने लगा था,ऐसा लग रहा था मानो मेरा शरीर ठंडा पड़ रहा हो।



ट्रिश यह सब ज्यादा देर नहीं देख पाई और उन सभी के बीच से दौड़ती हुई मेरे पास आकर बैठ गई,उसने मेरे सर को अपनी गोद मैं रख दिया और मेरे खून को रोकने की कोशिश करने लगी।
"बचा सकती है तो बचा ले इसे और जब यह ठीक हो जाए तो कह देना कि अपने प्यार को ढूंढ ले" आंशिका इतना बोलकर उस टेबल के ऊपर से दौड़ती हुई सामने की खिड़की से जा टकराई,जिससे उस खिड़की के टुकड़े हो गए और वो रिजॉर्ट की उपर के मंजिल से कूदकर नीचे चली गई,यह देखकर श्रेयस अपने घाव पर हाथ रखकर खिड़की के पास पहुंचा पर वहा घने अंधेरे मैं डूबे हुए जंगल के अलावा कुछ नही दिखाई दिया,वो इस वक्त बेबस खड़ा उपर से देख रहा था जहा पर बाहर से आती हुई ठंडी हवाएं उसके शरीर पर पड़ रहीं थी।



To be Continued......