प्रेम का पूर्वाभास - भाग 15 Rakesh Rakesh द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम का पूर्वाभास - भाग 15

शीतला मासानी माता का बहुत बड़ा भक्त रणविजय छोटी मां अरुणा के साथ शीतला मां के दर्शन करने के लिए मंदिर की चौखट पर जैसे ही पहला कदम रखता है उसके रोंगटे खड़े होने लगते हैं और उसके हल्का-हल्का कलेजे में दर्द होने लगता है, रणविजय अपने को पापी समझ कर मंदिर के अंदर घुसने की जगह पीपल के पेड़ के नीचे बैठ जाता है और अचानक उसके सीने में ऐसा दर्द होने लगता है जैसे दिल का दौरा पड़ने वाला हो और दर्द के साथ उसका दम घुटने लगता है, उस समय रणविजय के सामने उसका पूरा जीवन घूम जाता है।

उस समय शीतला माता रणविजय को उसका पूरा जीवन इसलिए दिखती है क्योंकि उसने अपने जीवन में बहुत अच्छे-अच्छे काम भी किए थे और अब वह 50 वर्ष की आयु में अपनी बेटी समान लड़की अरुणा से शादी करके उसका जीवन बर्बाद करने जा रहा था और जब रणविजय के प्राण शरीर से निकलने लगते हैं तो वह शीतला मां मसानी मां को पुकारने लगता है "मेरी मां मेरी गलती क्षमा कर दे, मैं तेरा बच्चा दुनिया के मोहजाल में फंस कर भटक गया था और तभी रणविजय को अपनी तरफ अरुणा पानी का गिलास लिए दौड़ती हुई दिखाई देती है और अरुणा के पीछे-पीछे दौड़ती हुई छोटी मां दिखाई देती है। दोनों कि दिल लगा कर देखभाल से तुरंत रणविजय को आराम मिल जाता है।

और फिर पूरी तरह ठीक होकर राणविजय शीतला मां के दर्शन करने अपने पापा की क्षमा मांगने मंदिर के अंदर जाता है और शीतला माता के मंदिर में माथा टेकने के बाद मंदिर की सीढ़ियो पर बैठकर रोने लगता है और फिर अपनी आंखों से आंसू पोंछ कर अरुणा को अपने पास बुलाकर कहता है "बेटी मैं तेरी मां के प्यार में इतना पागल हो गया था कि अगर मेरी बेटी होती तो तेरी आयु कि होती।" फिर दोबारा अपने आंसू पोंछ कर कहता है "लेकिन जब तक तुम मेरी कैद में रहोगी जब तक कि मैं तेरी किसी अच्छे लड़के से तेरी शादी नहीं करवा देता हूं।
अरुणा रणविजय के गले लगा कर कहती है "हुकुम मुझे आदित्य बहुत पसंद है।"
"लेकिन मुझे पसंद नहीं तेरा मुझे हुकुम कहना (क्योंकि अरुणा और छोटी मां उसे हुकुम कहते थे) हां आदित्य तो तेरे लिए मेरी भी पहली पसंद है।" और फिर हंस कर कहता है "तेरी छोटी मां को तो आदित्य मुझसे भी ज्यादा पसंद है।"फिर रुपाली उर्फ छोटी मां कि तरफ देखकर कहता है "क्यों रूपली जी।"

लेकिन कुछ ही सेकंड में सबके चेहरे से खुशी गायब हो जाती है जब दीपाली रोती हुई सबको एक चिट्ठी दिखाकर कहती है कि "प्रेम को कुछ गुंडे अपने साथ अपनी गाड़ी से उठा कर ले गए हैं और यह चिट्ठी मेरे सामने फेंक कर गए हैं।" चिट्ठी में लिखा था कि शीतला माता के मंदिर से जो बर्फ के पहाड़ दिखाई दे रहे हैं, उन पहाड़ों के पास पहुंचने के बाद तुम्हें छोटा सा प्राचीन शिवलिंग दिखेगा वही एक छोटा सा मैदान है, ऊंची ऊंची पहाड़ियों से घिरा हुआ वहां सिर्फ अरुणा को अकेले पहुंचा दो वरना हम प्रेम को हजारों फीट गहरी खाई में नीचे फेंक कर सबूत के तौर पर प्रेम का एक हाथ तुम्हारे पास भेज देंगे।

जब सब लोग रणविजय की तरफ शक भारी नज़रों से देखते हैं तो रणविजय कहता है "मेरी तरफ ऐसे मत देखो मुझे नहीं पता यह कौन लोग हैं, लेकिन बहुत शातिर है इन्हें पता है अरुणा आदित्य बहुत भावुक है यह अपने दोस्त की लाश पर अपनी खुशियों का महल नहीं बनाएंगे और ना यही चाहेंगे कि प्रेम के माता-पिता अपने जवान बेटे की मौत का दुख बर्दाश्त करें और प्रेम की मौत के बाद दीपावली तो यूं ही रो रो कर मर जाएगी।"
"आप इस बात को इतनी गंभीरता से ना लें प्रेम को मैं अच्छी तरह जानता हूं और यह कोई और नहीं आपके भतीजो ने प्रेम की मदद से यह सारा षड्यंत्र रचा है, क्योंकि अरुणा की मौत से उन्हें ही फायदा होने वाला है, उन्हें डर है अगर अरुणा या किसी और लड़की से आप शादी करके पिता बन गए तो सारी जमीन जायदाद उनके हाथ से निकल जाएगी।" आदित्य कहता है

आदित्य की यह बात सुनकर रणविजय खुश होकर कहता है "बेटा तुम तो वकील जैसे सोचते हो चाहे कितना भी खर्चा हो तुम्हारी वकालत की पढ़ाई पर मैं करूंगा।" आदित्य की यह बात सुनकर वहां खड़े सभी लोग और दीपाली को थोड़ी तसल्ली मिल जाती है।

और जब प्रेम बहुत देर तक शीतला माता के मंदिर वापस नहीं पहुंचाता है तो दीपावली प्रेम को याद करके दोबारा रोने लगती है, इसलिए दीपावली की वजह से सब लोग अरुणा को साथ लेकर उस जगह जाते हैं जहां उन्हें दीपाली को अकेले भेजने के लिए कहा गया था और रणविजय अपने अधेड़ आयु के गुंडो को थोड़ी देर में आने के लिए कह कर जाता है।

सब को एक साथ आता हुआ देख कर रणविजय के दोनों भतीजे और प्रेम अपने गुंडो के साथ सब पर हमला कर देते हैं और रणविजय के दोनों भतीजे मौका देखकर हजारों फीट गहरी खाई में जान से मार ने के लिए अरूणा को फेंकने लगते हैं और जब आदित्य अरुणा को बचाने की कोशिश करता है, तो तब आदित्य को उस भयानक शक्ल सूरत के गुंडे जो अरूणा को अपने सपने में पांच वर्ष की आयु से दिखाई दे देते थे वह उसके सपने जैसे ही आदित्य को घसीटते हुए हजारों फीट गहरी खाई में फेंकने लगते हैं तो अरूणा अपनी जान की परवाह किए बिना अपने सपने जैसे दुल्हन का लिवाज पहने चिल्लाने लगती है "मेरे पति आदित्य को छोड़ दो मेरे पति तो छोड़।"

तभी गुंडो की हिरासत में छोटी मां दीपावली के साथ फंसा रणविजय चिल्ला चिल्ला कर कहता है "मेरी बेटी दामाद को छोड़ दो मैं अपनी सारी दौलत तुम दोनों के नाम कर दूंगा, मेरा दामाद अपनी मेहनत से सब कुछ कमाने का दम रखता है, उसे मेरा ₹1 भी नहीं चाहिए।"
और जब रणविजय अरुणा को बेटी और आदित्य को दामाद कहता है तो उसके दोनों भतीजे खुश हो जाते हैं और अरुणा को छोड़ने के बाद अपने गुंडो को आदित्य को छोड़ने के लिए कहते हैं लेकिन उनके कहने से पहले ही दोनों भतीजो के गुंडे आदित्य को गहरी खाई में फेंक देते हैं और आदित्य से प्रेम अपनी गलती से टकरा जाता है इस वजह से प्रेम भी आदित्य के साथ गहरी खाई में गिर जाता है।

और उसी समय वहां पुलिस पहुंच जाती है क्योंकि खतरे को भांप कर आदित्य ने पुलिस को फोन कर दिया था और पुलिस वाले भी तब चकित रह जाते हैं जब आदित्य अपने साथ प्रेम को भी गहरी खाई से सुरक्षित निकालकर लाता है।

प्रेम गहरी खाई से निकलते ही आदित्य के पैरों में गिरकर माफी मांग कर कहता है "आदित्य मुझे तेरे जैसा सच्चा और अच्छा इंसान बनना है।"

रणविजय अपने दोनों भतीजे को पुलिस से गिरफ़्तार करवाने कि जगह उनको उनके पिता की सारी जमीन जायदाद वापस लौटा देता है और अपनी तरफ से भी बहुत से रुपए देता है और वहां खड़े सब लोग शीतला मासानी मां का जोर से जयकारा लगाते हैं।

13 फरवरी को अरुणा बालिग को जाती है और 14 फरवरी को एक नहीं चार शादियां होती हैं, पहली आदित्य अरुणा की दूसरी प्रेम दीपावली की तीसरी 25वीं सालगिरह पर आदित्य के माता-पिता की चौथी छोटी मां और रणविजय की रीति रिवाज के साथ दोबारा शादी होती है।