प्रेमी-आत्मा मरीचिका - 3 Satish Thakur द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्रेमी-आत्मा मरीचिका - 3

हरेन एक मांसल शरीर का स्वामी है और उसका रंग बिल्कुल काला है, चेहरे  पर नाक बहुत ही बड़ी है ऐसा लगता है की उसे अलग से लगाया गया हो उसकी आँखें हमेशा लाल रहती हैं, उसके शरीर की बनावट, उसका रंग, चेहरे पर अजीब सी नाक और लाल आँखों की वजह से वो बैसे ही बहुत भयानक दिखता है उस पर वो इस समय अपने घर पर नंगा, पसीने से नहाया जिस बेढंगी मुद्रा में बैठा है उसे देख कर सुभ्रत भय से कांप गया।

अब आगे - 

इतनी सुंदर और मादक स्त्री सुभ्रत ने कभी स्वप्न में भी नहीं देखी थी, वो स्त्री कुछ समय तक अपनी मादक भाव-भंगिमा से हरेन को जोश दिलाती रही और फिर धीरे- धीरे हरेन के पास आने लगी, तभी एक बार फिर वही चीख सुनाई दी जिसे सुनकर सुभ्रत यहाँ तक आया था, उसने देखा की एक राक्षस जैसे आकार का बहुत बड़ा प्राणी जिसके दो दांत बाहर निकले थे वो उस स्त्री और हरेन के बीच में प्रकट होता है और हरेन के उत्तेजित लिंग से उसे पकड़ कर उठा देता है, एक बार फिर वो उसी तरह से चीखता है, पर आश्चर्य था की हरेन जो की सिर्फ अपने लिंग के सहारे ही लटका था वो मुस्करा रहा था उसके चेहरे पर दर्द या पीड़ा का अंश मात्र भी नहीं था।

हरेन अभी भी रुक-रुक कर कुछ मंत्र बुदबुदा रहा था, वो राक्षस जैसा आदमी अभी भी हरेन को उठाये हुए है पर अब वहां वो स्वर्ग की अप्सरा के समान लगने वाली स्त्री नहीं थी शायद डर कर जहाँ से आई थी वहीं चली गई, अब राक्षस हरेन को छोड़ देता है और उसके सामने बैठ जाता है, फिर हरेन मछली और शराब उसके सामने रखता है जिसे वो राक्षस एक बार में ही ख़त्म कर देता है और वहां से चला जाता है, हरेन अब कपडे पहन कर घर से निकल कर राजा के महल की ओर चला जाता है।

सुभ्रत रात भर सो नहीं पाया, रात भर उस मादक हसीना के ख्याल रह-रह कर उसे उत्तेजित कर जाते थे।

जब वो जागा तब उसके सर में दर्द था और उसका पूरा वदन दर्द से टूट रहा था उसकी माँ उसके सिरहाने बैठ कर उसके सर पर हाँथ फेर रही थी।

“मेरा बच्चा...”। सुभ्रत को होश में आते देख कर उसकी माँ ने उसे सीने से लगाया और रोने लगी। रोते-रोते उसकी माँ ने जो कुछ भी कहा उससे सुभ्रत को पता लगा की वो पिछले तीन दिन से बेहोश था और इसी बीच उसके पिता “कुमार” की मौत घोड़े से गिर कर हो गई।

“माँ मुझे मेरे रंग और मेरी चित्रकला का सामान जो हरेन के यहाँ रखा है वो बापस ला दे अब में कभी भी उस हरेन के घर की तरफ नहीं जाऊंगा, कभी नहीं- कभी नहीं जाऊंगा....।” इतना कह कर वो एक बार फिर से बेहोश हो गया और पुरे पाँच दिन बाद होश में आया।

जब वो होश में आया तब उसे उसकी माँ ने बताया की इन दिनों जब वो बेहोश था तब उसे देखने सरदार तेम्बू होरा और उसकी बेटी कस्तूरी आई थी। कस्तूरी का नाम सुनते ही उसका दिल सब कुछ भूल कर तेजी से धडकने लगा उसे याद आया की कुछ समय पहले उसने कस्तूरी की एक बहुत ही खुबसूरत तस्वीर बनाई थी पर हरेन के कहने पर वो उसे रेत में बहुत अन्दर दबा आया था।

सुभ्रत को पूरी तरह से ठीक होने में एक महीने से भी ऊपर का समय लग गया। इस बीच कई बार उसका दिल कस्तूरी से मिलने के लिए तड़प उठता पर वो फिर नहीं आई, वो चाहता था की कस्तूरी उसका सर अपनी फूलों के समान गोद में रख कर, कोमल उँगलियों से उसके बाल सहलाये और वो उसे देखते हुए अपना सारा समय निकाल दे।

जब वो सही हुआ तब उसे पता लगा की हरेन ने उसकी माँ को उसका चित्रकला का सामान देने से साफ़ मना कर दिया था और ये भी कहा की सरदार ने चित्र बनाने की इजाजत मेरे घर के आँगन में ही दी है इसके अलावा कहीं नहीं। सुभ्रत सरदार से बात करने की छोड़ो उससे बात करने की सोच कर ही कांप गया।

एक दिन बस्सती के भी मर्द सरदार की अगुवाई में रेत के मैदान के अंदरुनी तरफ गए थे। उन्हें खबर मिली थी की एक तीर्थ यात्रियों का जत्था वहां से गुजरने बाला है। 

सुभ्रत बस्ती के बाहर बैठ कर रेत पर उँगलियों से कलाकारी कर रहा था की तभी वहां कस्तूरी आ जाती है, सुभ्रत उसे देख कर रेत पर हाँथ फेर कर उस चित्र को मिटा देता है और खड़ा हो जाता है। 

कस्तूरी को इतने करीब देख कर सुभ्रत का दिल जोर- जोर से धडकने लगता है, वो कस्तूरी की कातिलाना मुस्कान, उसके शरीर की मादक खुशबु, उसकी नागिन के जैसी जुल्फें जो खुलेआम उसके सीने को ढकती और फिर उजागर कर देती हैं, उसकी झील जैसी आँखे और ताजगी लिए सुर्ख लाल गलों के योवन जाल फंस सा जाता है।

“क्या तुम बीमार हो गए थे सुभ्रत?” उसने सुभ्रत के बिलकुल करीब आकर अपनी गर्म सांसें उसके ऊपर छोड़ते हुए कहा।  

सुभ्रत एक लम्बी और गहरी साँस लेकर फिर छोड़ते हुए कहता है “हाँ कस्तूरी”, “तुम्हारे बाप की बजह से“ और कह कर नज़र नीची कर लेता हे।

“क्यों” कस्तूरी अपनी हिरन जैसी आँखे सुभ्रत की तरफ उठा कर बोली।

“तुम तो जानती हो कस्तूरी की चित्रकला मेरी जान है पर सरदार कहता है की में उसे सिर्फ उस हरेन के आँगन तक ही सीमित रखूँ, अब तुम ही बताओ क्या कोई कलाकार बंधन में रह कर अपनी कला को सही रंग दे सकता है”

कस्तूरी अपनी आँखों से सुभ्रत को सहमति देते हुए बोली “ हाँ हरेन बताता है की तुम बहुत ही अच्छे कलाकार हो और इस नागोनी होरा में तुम से अच्छी चित्रकारी कोई नहीं कर सकता, पर वो ये भी कहता है की..... जाने दो वो तो बहुत कुछ कहता रहता है”

“क्या तुम मेरा चित्र बनाओगे? “ कस्तूरी एक कदम और सुभ्रत के पास आकर बोली।

सुभ्रत को लगा मानो की उसका दिल सीना चीर कर न आ जाये इतनी जोर से धड़कने लगा था।

“हाँ क्यों नहीं, परर, नहीं- नहीं ये नहीं हो सकता में तुम्हारा चित्र नहीं बना सकता कस्तूरी”

“पर क्यूँ क्या तुम मुझे पसंद नहीं करते, बोलो, क्या में तुम्हे अच्छी नहीं लगती” अपने शरीर को लगभग सुभ्रत से रगड़ते हुए कस्तूरी बोली।

“हाँ कस्तूरी करता हूँ, में तुम्हे बहुत पसंद करता हूँ” लडखडाती हुई आवाज में सुभ्रत ने उत्तर दिया।

“तो फिर मेरा चित्र बनाओ” कस्तूरी ने अपना हाँथ उसके कंधे पर रखते हुए कहा।

सुभ्रत के शरीर का मानो पूरा खून जम गया था, अपने होंठो को जीभ से गीला कर के बोला “बना तो दूं पर तुम्हारा वो बाप उसका क्या करूँगा”

“छुप कर चुपके से बना देना, कोई नहीं देखेगा” कस्तूरी उसी अंदाज में सुभ्रत से विनय करती हुई बोली।

“ठीक है पर मेरे रंग और चित्र बनाने का सारा सामान उस हरेन के यहाँ रखा हुआ है, उसके बिना में कैसे बनाऊंगा” इतना कहते हुए सुभ्रत ने अपना एक हाँथ कस्तूरी की कमर पर रख दिया।

कस्तूरी खुश होते हुए बोली “उसकी चिंता तुम मत करो आज बापू लूटपाट के लिए गया है और पक्का है की वो वहां से लड़कियां भी लेकर आएगा, फिर रात में जलसा होगा जिसमें शराब और शबाब दोनों होंगे, ऐसे समय बापू बहुत खुश रहता है तुम ठीक तभी उससे चित्रकारी की इजाजत मांगना और अपना सामान हरेन से बापस लेने के लिए कहना, तुम देखना वो तब तुम्हे बिलकुल भी मना नहीं करेगा”

“हाँ में आऊंगा आज रात में जरुरु आऊंगा और सरदार से बिना डरे उससे चित्रकारी की इजाजत मांगूंगा, में आऊंगा कस्तूरी” इतना कहते-कहते सुभ्रत अपने दोनों हाँथ कस्तूरी की कमर में लपेट कर उसे अपने शरीर से कस लेता है, और उसकी गर्दन और गाल पर अनगिनत चुम्बन देने लगता है।

कस्तूरी भी सुभ्रत का साथ देने लगती है और उसके चुम्बन का उत्तर चुम्बन से देती है, तभी पास ही में खड़ा एक ऊंट आवाज करता है और बिलबिलाता है, कस्तूरी अपने आप को सुभ्रत से छुड़ा कर दोड लगा देती है।  

 

क्रमशः प्रेमी-आत्मा मारीचिका - 04

लेखक : सतीश ठाकुर