प्रेमी-आत्मा मरीचिका - 6 Satish Thakur द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्रेमी-आत्मा मरीचिका - 6

अगर सुभ्रत पहले से उसके इस वार को पहचान नहीं लेता तो इस बार उसकी हड्डियों का चूरमा बन गया होता, हरेन के वार करते ही सुभ्रत दूसरी दिशा में उछल गया इससे उसे चोट तो लगी पर उससे से कम जो उसे हरेन के उस लोहे के बैंत से लग हरेन थी।

“कौन.....कौन...मधुलिका? हरेन” अपनी पूरी ताकत से लगभग चिल्लाते हुए सुभ्रत ने हरेन से पुछा।

अब आगे ...........प्रेमी आत्मा मरीचिका - ०६ 

“हरामी साले, उसका लहजा कहर भरा था वो नथुने फूला-फुलाकर हवा में किसी जानी-पहचानी बूं को सूंघने लगा था।

सुबह के धुंधले में सुभ्रत की मुंहबोली माँ हमेशा की तरह बेसुध पड़ी हुई थी। सुभ्रत ने हरेन की बात न समझते हुए हरेन की तरफ उलझन से देखा था। मगर फिर एकदम उसके दिमाग में जैसे बत्ती जल उठी। कहीं वो उस हसीन शहजादी के बारे में तो नहीं पूछ रहा था जो उसकी व्याकुल बाहों से थोड़ी दूर ही रह गई थी? उसने ख्वाब में खुद को नील की बेटी कहकर अपना परिचय दिया था।

"तुम नील की बेटी की बात तो नहीं कर रहे हो हरेन बाबा?" सुभ्रत ने सरसराती हुई आवाज में उससे पूछा ।

"हां, में उसी लड़की के बारे में पूछ रहा हूं। मधुलिका... वो मेरे खेमें में से गायब है।" वो झल्लाकर दहाड़ा था,

"में उसकी बू का पीछा करते हुए यहां तक आया हूं। मुझे यकीन है वो काफी देर यहां रही है।"

"मैंने उसे ख्वाब में देखा था हरेन बाबा । " सुभ्रत ने बेबसी से हथियार डालते हुए कह दिया।

"तेरी यह मजाल... ?" बुड्ढा उछलकर सुभ्रत पर आ पड़ा और सुभ्रत उस चालाक चीते की लपेट से बच नहीं सका था, "तू हरेन की दासी के खाब देखता हे कुत्ते ?"

"आज मुझे अपने लगे-बंधे रास्ते से हटकर तेरे इस नापाक झोंपड़े में आना पड़ा है।" हरेन हांफते हुए गुर्रा रहा था, "तू मधुलिका को घर लाना चाहता है? लेकिन याद रख मेरी अदृश्य शक्तियां नागोनी के हर वासी के सिर पर सवार रहती हैं। मैं तुझे जलाकर रख कर दूंगा । तेरा दिमाग उलट दूंगा और तू खुजली वाले कुत्ते की तरह इस सहरा के एक सिरे से दूसरे सिर तक मारा-मारा फिरता रहेगा।"

"इसमें मेरा क्या कसूर है बाबा ?" सुभ्रत उसके खूंखार और जहरीले शब्दों को सुनकर चीख उठा था, "बो खुद ही मेरे ख्वाबों में आई थी।"

"खामोश बेलगाम आदमी!" हरेन ने पूरी ताकत से सुभ्रत के मुंह पर झापड़ मारकर कहा, "हरेन के सामने ऊंची आवाज में बोलने वालों को नागोनी में जिदा रहने का हक नहीं होता।"

सुभ्रत ने अपने कटे हुए होंठ से अपने मुह में ताजा खून की लकीरें बहती हुई महसूस कीं । गुस्से में आकर उसने उस बूढ़े को पछाड़ने की कोशिश कर डाली। मगर बूढ़ा उस पर बुरी तरह हावी हो चुका था।

उससे पहली बार मुकाबला करके ही सुभ्रत को अंदाजा हो गया था कि बूढ़े के मरियल से जिस्म में किसी शैतान गैंडे की रूह घुसी हुई है।

"मैं जा रहा हूं।" आखिर हरेन उसे फर्श पर दूर धकेलता हुआ बोला, "अगर मधुलिका मेरे खेमें में न हुई तो मैं तुझे जिंदा दफन कर दूंगा।"

सुभ्रत नफरत और हिकारत से उसकी तरफ देखता रह गया। दरवाजे तक पहुचकर वो एक बार फिर सुभ्रत की तरफ पलटा था।

"अगर तेरे सिवा किसी को भी मधुलिका की कहानी के बारे में भनक लगी, तो वो तेरी जिंदगी का आखिरी दिन होगा।" फिर वो तेजी के साथ बाहर निकल गया था।

सुभ्रत गुस्से की हालत में कई मिनट तक रेतीली जमीन पर पड़ा रहा था। फिर उसने उठकर अपने आप का जायजा लिया तो उसे पता चला था कि वो कई जगह से जख्मी हो चुका है। वो बेबसी से अपने होंठ चबाता बेध्यानी में घर से बाहर निकल आया।

नागोनी की प्रथा के खिलाफ, क्योंकि वहां के वासी सूरज डूबने से लेकर सूरज उदय होने तक घरों से बाहर नहीं निकलते थे। बाहर आते ही सुभ्रत की नजर एक तरफ पड़े अपने चित्रकारी के सामान पर पड़ी। उसके चित्रकारी के सब सामान कीचड़ में लिथडे जमीन पर पड़े हुए थे।

 उन्हें देखते ही सुभ्रत अपनी सारी तकलीफें भूल गया था। गुस्से की लहर खुशी में बदल गई थी। उसकी जिदगी बदल चुकी थी। सरदार तेम्बू ने सूरज उगने से पहले ही अपना वादा पूरा कर दिया था। सुभ्रत ने वो सामान उठाकर बेसब्री के साथ सीने से लगा लिए थे और बेबसी की उस हालत में भी उसकी आंखें खुशी से भीग गई थीं।

सामान मिल जाने के बाद सुभ्रत अपनी जिंदगी में एक नया सूरज उदय होते देख रहा था। जिसकी किरणों में उसकी कला की संतुष्टि का संदेश नजर आ रहा था उसे। उसने बड़ी श्रद्धा, प्यार और आदर के साथ वो तमाम सामान साफ करके अपने घर में एक तरफ रख दिए थे।

फिर उसका ध्यान उसकी मुंहबोली मां की तरफ गया था, वो अब तक बेसुध बिस्तर पर पड़ी हुई थी। सुभ्रत ने उसे आवाजें दीं, लेकिन जवाब नहीं मिला। फिर उसे हिलाया तो उसका जिस्म किसी बेजान लाश की तरह हिलकर रह गया था। सुभ्रत के दिल में एक आशंका ने सिर मारा तो उसने अपनी मां के दिल की धड़कनें महसूस करने की कोशिश की। लेकिन बेकार।

वहां मौत का भयानक सन्नाटा छाया हुआ था। सुभ्रत ने अपनी मां के ठण्डे बेजान गाल पर एक लम्बा चुम्बन लिया और टूटे हुए दिल के साथ लाल रंग का एक गोल झण्डा संदूक से निकालकर घर के ऊपर लगा दिया। जो इस बात का एलान था कि घर में किसी की मौत हो गई है।

सूरज की पहली किरणों के साथ ही बस्ती जिंदगी के शोर से गूंज उठी थी और थोड़ी ही देर में बस्ती के लोग चेहरों पर शोकाकुल भाव लिए सुभ्रत के छोटे से झोंपड़े जैसे घर पहुचने लगे थे। हर आने वाला एक चुटकी रेत सुभ्रत के सिर में डालकर अपने शोक और हमदर्दी को परम्परागत ढंग से प्रकट कर रहा था और सुभ्रत खोए-खोए से अंदाज में शून्य में घूरता रहा था।

इस वक्त मधुलिका का हसीन वजूद उसके अहसासों पर छाता जा रहा था। मुंहबोली प्यारी मां की मौत का सदमा अनजाने में कहीं गहराइयों में जा सोया था।

फिर अचानक उसे मधुलिका नजर आ गई थी अपने शाही अदाज में होंठों पर अजीब-सी मुस्कान लिए। घर में जमा भीड़ के पीछे वो कुछ ऊंची नजर आ रही थी, जैसे किसी पत्थर वगैरह पर खड़ी हुई हो। उसको देखते ही सुभ्रत के होंठ सिकुड़ गए। खून का दौरा उसके बदन में सनसनाहट पैदा करने लगा था और वो बेचैन होकर अपनी जगह से उठ गया था।

 

क्रमशः - प्रेमी आत्मा मरीचिका - भाग 07

लेखक 

सतीश ठाकुर