प्रेमी-आत्मा मरीचिका - 5 Satish Thakur द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्रेमी-आत्मा मरीचिका - 5

प्रेमी आत्मा मारीचिका - 05

घर पहुँच कर भी उसका गुस्सा कम नहीं हुआ, उसकी मूँह बोली माँ उसे देख कर बहुत प्यार से बोली “आ गया बेटा, कहाँ था अब तक”।

“कहीं नहीं बस अपना हक मांगने गया था” सुभ्रत गुस्से में तमतमाता हुआ बोला।

“हक कैसा हक, माना की तु नागोनी होरा की मिटटी से पैदा नहीं हुआ पर बचपन से लेकर आज तक यहाँ रहते हुए तूने यहाँ के सारे रीत -रिवाज तो देखे ही हैं, तूं बहुत अच्छे से जानता है की सरदार के खिलाफ जाना मतलब मौत के मुंह में हाँथ डालने के बराबर है। (ये कहते समय सुभ्रत की माँ का चेहरा पथरा गया और वो आने बाले किसी खतरे के बारे में सोच कर सिहर गई।)

“मौत” सुभ्रत अपने तमतमाए चेहरे पर गुस्से के भाव लाते हुए बोला “जाओ माँ जरा बाहर जाकर उन बेबस लड़कियों को देखो जो शायद सुबह तक जिन्दा नहीं बचेंगी, सरदार तेम्बू होरा आज जिन लड़कियों को लूट के लेकर आया है उन्हें उसके दरिन्दे रात भर नोच-नोच कर खा जायेंगे। शायद सुबह का सूरज उनकी खून से लथपथ लाशों पर अपनी पहली किरण बिखेरेगा।”

ममता और परम्परा की दो-धारी तलवार पर सवार वो औरत सुभ्रत के इस अजनबी और रूखे अंदाज को देख कर हतप्रभ हो कर बस सुभ्रत को ही देखती रह गई, ना जाने कितने ही विचार उसके मन में आते गए इन सब उलझनों को मन में लिए वो करवट लेकर सुभ्रत की तरफ पीठ करके लेट गई और न जाने कब नींद के आगोश ने उसे आ घेरा।

सुभ्रत की आँखों से तो नींद कोसों दूर थी वो अभी भी बेचैन हो कर करवट बदल रहा था आखिर थक हार कर उसने अपनी इस बैचैनी भरे हालात से सुकून पाने के लिए सरदार की बेटी के गदराये और सुडोल वदन के बारे में सोचने लगा और न जाने कब उसकी आँख लग गई।

आँख लगते ही वही जानी पहचानी मदहोश कर देने वाली खुशबु सुभ्रत के रोम-रोम में तरंगें पैदा कर देती है, वो अनजाने में नींद में ही उस कोमल बदन, तीखे नैन नख्श वाली उस सुन्दरता की मूरत आत्मा मधुलिका के ख्यालों में खो जाता है, सुभ्रत के सपने में ही मधुलिका आकर सुभ्रत के नजदीक बैठ जाती है और उसे निहारने लगती है।

सुभ्रत नींद के आगोश में ही उस हुस्न की मल्लिका को देखता है जिसने पारदर्शी सफ़ेद रंग का एक गाउन पहना हुआ है जिसके अन्दर उसके उन्नत और कठोर बक्ष स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं उसके सर के ऊपर एक तिरछा लगा सोने का ताज उसकी सुन्दरता के सामने फीका लग रहा है, वो आकर्षक और मादक मुस्कान से निमंत्रण देती हुई सुभ्रत की तरफ देख रही है।

“तुम आखिर हो कौन? कहाँ से आई हो और यहाँ हरेन के पास कैसे फंस गई?” सुभ्रत बिना रुके एक साथ कई प्रश्नों की बोछार कर देता है।

“मैं अजरबैजान की एक बदनसीब शहजादी हूँ” अपने चेहरे पर उदासी और मायूसी के भाव लिए हुए बोलते समय उसकी आवाज भर गई।

“बदनसीब...?” सुभ्रत के मुंह से सिर्फ इतना ही निकल पाया, मधुलिका का उदास और बेरंग चेहरा उसके दिल पर जैसे कई छुरियां चला रहा था।

बड़ी गंभीरता से हाँ में अपना सर हिलाते हुए वो बोली “में अपने समय में नील की बेटी के नाम से हर जगह जानी जाती थी मेरे पिता नील पुरे अजरबैजान और आस-पास की कई और रियासतों पर राज करते थे और आज में बदनसीब... हरेन की एक कैदी हूँ”।

“तो तुम हरेन के उस खण्डहर में रहती हो” सुभ्रत हैरानी और प्रश्न भरी निगाहों से मधुलिका की तरफ देखता हुआ बोला।

वो हलके से और सादगी भरे अंदाज में इस तरह हंसी जैसे कोई छोटा बच्चे की मासूम सी बात सुन कर बरबस ही अपने सारे गम भुला कर हंस देता है।

“हाँ उसका वो खंडहर ही मेरा जेल हे और में वहीँ रहती हूँ, आज रात हरेन सरदार के साथ लूट कर लाई गई लड्कियों के अग्नि संस्कार में व्यस्त है इस वजह से में यहाँ आ सकी। तुम एक मात्र मर्द हो जिससे मीलने के लिए मेंने हरेन को धोखा दिया है अगर उसे पता चला तो वो न जाने तुम्हारा और मेरा क्या हाल करेगा”।

“मेरी शहजादी” कह कर अपने दोनों हाँथ उठा कर सुभ्रत मधुलिका को गले से लगाने के लिए जैसे ही आगे बढ़ता है की अचानक ‘धाड़’ के साथ एक मजबूत ठोकर उसके बाएं कंधे पर लगती है जिससे वो करह कर बिस्तर से नीचे गिरा जाता है।

एक तेज दर्द की लहर उसके कंधे से पुरे शरीर में दोड़ गई वो अपना कन्धा सहलाता हुआ उठा और अपने सामने हरेन को पाता है जो की एक लोहे से बना बैंत हाँथ में लिए हुए खड़ा था। वो सपनो की दुनिया से एक ही झटके में बाहर आ गया और अब उसके सामने उसके सपनों की मल्लिका मधुलिका नहीं बल्कि चेहरे पर कई झुर्रियां लिए हाँथ में लोहे की बैंत लिए हरेन खड़ा था, उसके अंदाज से साफ़ दिख रहा था की वो अपना दूसरा बार करने के लिए तैयार ही है।

“बोल मधुलिका कहाँ हैं” पूछते हुए हरेन ने एक और जोरदार वार सुभ्रत पर कर दिया।

अगर सुभ्रत पहले से उसके इस वार को पहचान नहीं लेता तो इस बार उसकी हड्डियों का चूरमा बन गया होता, हरेन के वार करते ही सुभ्रत दूसरी दिशा में उछल गया इससे उसे चोट तो लगी पर उससे से कम जो उसे हरेन के उस लोहे के बैंत से लग हरेन थी।

“कौन.....कौन...मधुलिका? हरेन” अपनी पूरी ताकत से लगभग चिल्लाते हुए सुभ्रत ने हरेन से पुछा।

क्रमशः प्रेमी आत्मा मारीचिका - भाग 06 

लेखक - सतीश ठाकुर