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प्रेमी-आत्मा मरीचिका - 2

प्रेमी-आत्मा मरीचिका - 02

“तो तुम चाहते हो की वो बच्चा तुम्हें दे दिया जाए जिससे की तुम्हें और तुम्हारी पत्नी को बच्चे का सुख मिल सके और बुढ़ापे की एक उम्मीद, सही कहा मैंने” तेम्बू कुमार की बात पूरी सुने बिना ही बोल पड़ा।

अब आगे,

“जी सरदार, अगर आप हाँ करें तो” कुमार सिर्फ इतना ही कह पाया।

तेम्बू ने अपने मंत्री को उस लड़के को सभा में लेकर आने को कहा, कुछ ही समय बाद वो लड़का सभा के बीचों-बीच खड़ा था।

“क्या ये वही लड़का है कुमार?” तेम्बू ने कुमार की ओर देखते हुए पूछा।

“ जी सरकार यही है” कुमार इतना कह कर सर झुका कर खड़ा हो गया।

तेम्बू ने अपने मंत्री को उस लड़के को सभा में लेकर आने को कहा, कुछ ही समय बाद वो लड़का सभा के बीचों-बीच खड़ा था।

“क्या ये वही लड़का है कुमार?” तेम्बू ने कुमार की ओर देखते हुए पूछा।

“ जी सरकार यही है” कुमार इतना कह कर सर झुका कर खड़ा हो गया।

तेम्बू ने उसी पल अपने मंत्री सुकैत को कुछ इशारा किया और सुकैत ने उस लड़के की पीठ पर जोर से लात मारी, वो पेट के बल जमीन पर गिर पड़ा, तब तेम्बू खड़ा हुआ और उस लड़के की गर्दन को पैर से दबाने लगा, इतने में सुकैत एक जलती हुई छड़ जिसके एक ओर पकड़ने के लिए लकड़ी का हत्था लगा था और दूसरी तरफ लोहे की जाली से कोई निशान बना था मुहर जैसा। सुकैत ने वो मुहर वाली छड़ तेम्बू होरा को पकड़ा दी, उस बेरहम इंसान ने वो मुहर उस सात साल के बच्चे की पीठ पर लगा दी, जिससे वो बेहोश हो गया।

कुमार ये नज़ारा देख कर सहम गया उसे लगा की अब सरदार उसकी जान ले लेगा और ये सोच कर वो कांपने लगा, कुछ देर तक सभा में शांति रही फिर तेम्बू बोला “कुमार तुम हमारे वफादार हो और तुमने आज तक हमसे कुछ नहीं माँगा, इसलिए हमने फैसला किया है की ये लड़का तुम्हें दे दिया जाए, परन्तु एक बात का ख्याल रखना की अगर इसने भागने की कोशिश की या भविष्य में कभी इसकी वजह से नागोनी होरा के लोगों को किसी भी प्रकार की समस्या हुई तो इसका अपराधी तुम्हें भी माना जायेगा, क्या तुम्हें मंजूर है?”

कुमार की ख़ुशी की कोई सीमा ही नहीं थी वो हाँ में जोर-जोर से गर्दन हिलाते हुए बोला “सरदार आप दयालु हैं आप अपने दासों पर कृपा करने वाले हैं आपकी जय हो- आपकी जय हो, मुझे आपके हर शब्द याद रहेंगे में आज से पुरे तरीके से इसकी जिम्मेदारी लेता हूँ, आपकी बार-बार जय हो”

तेम्बू ,कुमार से अपनी प्रशंसा सुनकर बहुत खुश हुआ, वो बोला “कुमार मुझे पूरा विश्वास है की तुम मुझे निराश नहीं करोगे, और में इस लड़के से भी खुश हूँ जिस तरह से इसे इतने समय तक यातनाएं दी गईं पर फिर भी ये जिंदा रहा और हर यातना को बहुत ही बहादुरी के साथ इसने झेला इस बात में कोई शक नहीं है की ये बहादुर है इसलिए में आज से इसका नाम “सुभ्रत” रखता हूँ”

वहां मौजूद सभी लोगों ने राज्य की प्रथा के हिसाब से बार-बार सुभ्रत के साथ कुमार का नाम लेकर “सुभ्रत कुमार-सुभ्रत कुमार” कह कर उसे मान्यता प्रदान की और फिर सभा खत्म हो गई। इस तरह से कुमार को अपना बेटा मिला, आज भी कुमार इस बात को नहीं भुला है और इस घटना के बाद वो राजा तेम्बू का और भी अधिक विश्वासपात्र बन गया।

सुभ्रत आज भी बचपन में उसके सामने हुए नरसंहार को सपने देखता है और जब भी उसे ये सपना आता है तब वो बहुत परेशान हो जाता है और फिर कई-कई दिनों तक सो नहीं पाता, इस बात के बारे में उसने आज तक कुमार को या कुमार की पत्नी को नहीं बताया।

ऐसी ही एक रात एक बार फिर सुभ्रत को वही सपना दिखाई देता है और वो बेचैन होकर उठ जाता है, कुछ देर बिस्तर पर बैठने के बाद फिर टहलने के इरादे से घर से बाहर निकल जाता है कुछ दूर चलते-चलते वो उस जगह पहुँच जाता है जहाँ बचपन में उसे घोड़े और बैल के साथ बांधा जाता था। अकसर जब भी उसे रात को नींद नहीं आती या वो बहुत बेचैन महसूस करता है तब इस जगह आ जाता है, यहाँ कुछ देर बैठने से उसे असीम शांति का अनुभव होता है। यहाँ से कुछ दूरी पर ही राजा तेम्बू होरा का महल है और उस महल से लगा हुआ एक खण्डहर के जैसा घर है जो वहां के ओझा हरेन का तांत्रिक गिरी का अड्डा है।

महल में आज रौनक है क्योंकि आज शाम को ही तेम्बू अपने मंत्री और कुछ लड़ाकों के साथ तीन दिन बाद एक तीर्थ यात्रियों के जत्थे को लूट कर आया है। वो अपने साथ बहुत सा सामान, सोना-चाँदी, कुछ दुर्लभ मूर्तियाँ और आठ लड़कियों को भी लेकर आया है, आज पूरी रात महल में जश्न होगा जिसकी तैयारी उसके बाबा कुमार ने ही की है, रात भर नाच गाने का शोर होगा और बीच-बीच में उन लड़कियों की चीखें भी आती रहेंगी जिन्हें ये आज लूट के सामान के साथ लेकर आये हैं।

महल का जश्न अपने पुरे जोरों पर था की तभी सुभ्रत को हरेन के घर से एक बेहद ही भयानक चीख सुनाई पड़ती है जो की आम बात नहीं थी क्योंकि इस तरह के जश्न में लड़कियों की चीख सुनाई देना एक आम बात है पर इस तरह से किसी पुरुष की चीख वो भी इतनी भयानक उसने आज तक नहीं सुनी और बैसे भी महल में अगर जश्न है तो हरेन को भी वहाँ होना चाहिए वो इस वक़्त घर पर ऐसा क्या कर रहा है। सुभ्रत के मन में अंदेशा आते ही सहसा उसके कदम हरेन के खंडहरनुमा घर की ओर चल पड़े।

सुभ्रत सदे क़दमों से बिना कोई आवाज किये हरेन के घर के पास मौजूद एक पेड़ पर चढ़ गया, क्योंकि वो खंडहर ऊपर से कई जगहों से टूटा हुआ था तो पेड़ पर चढ़ कर आसानी से उसके अंदर देखा जा सकता था, सुभ्रत आधे से अधिक दूरी तक पेड़ पर चढ़ कर एक ऐसी डाली पर धीरे-धीरे आगे की ओर सरकने लगा जो सीधे हरेन के घर के ऊपर तक जाती थी, कुछ ही समय में वो डाली के छोर तक पहुँच गया, अब आसानी से घर के अंदर देखा जा सकता था।

उसने देखा की हरेन पूरी तरह से निर्वस्त्र होकर अपनी दोनों टांगो को सामने की तरफ फैलाए हुए है  और अपने दोनों हाथों को पीछे की तरफ जमीन पर संतुलन बनाने के लिए टेके हुए है, उसका पूरा शरीर पसीने से भीगा हुआ है, हरेन एक मांसल शरीर का स्वामी है और उसका रंग बिल्कुल काला है, चेहरे  पर नाक बहुत ही बड़ी है ऐसा लगता है की उसे अलग से लगाया गया हो उसकी आँखें हमेशा लाल रहती हैं, उसके शरीर की बनावट, उसका रंग, चेहरे पर अजीब सी नाक और लाल आँखों की वजह से वो बैसे ही बहुत भयानक दिखता है उस पर वो इस समय अपने घर पर नंगा, पसीने से नहाया जिस बेढंगी मुद्रा में बैठा है उसे देख कर सुभ्रत भय से कांप गया।

क्रमशः प्रेमी-आत्मा मरीचिका - 03

लेखक : सतीश ठाकुर

 

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