प्रेमी-आत्मा मरीचिका - 4 Satish Thakur द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्रेमी-आत्मा मरीचिका - 4

प्रेमी-आत्मा मारीचिका 04 

सुभ्रत का शरीर एक रोमांच से भरा हुआ था, उसके अंदरूनी अंगों में खून का संचार बहुत तेज गति से हो रहा था, इस हालत में कस्तूरी का उसे छोड़ कर चले जाना उसे सही नहीं लगा, पर करता भी तो क्या? अपने मन को मसोस कर वो वहां से चला जाता है।

अब आगे...

सूरज देवता अपनी रौशनी की छटा को समेट कर रात की चाँदनी के आगोस में आने को बेताब हो कर अस्त होने की कोशिश में थे और उधर दूसरी तरफ सुभ्रत शाम से ही रेत के एक टीले पर बैठा है जहाँ से नागोनी होरा बस्ती में आने-जाने का रास्ता है, वो ये सोच कर यहाँ बैठा था की सरदार तेम्बू होरा इसी रास्ते से बापस आएगा और वो यहीं से उसके पीछे-पीछे लग जायेगा।

पर आज पता नहीं क्यों इतनी देर लग गई, सरदार इतने बजे तक आ जाया करता था पर आज आने में बहुत समय लग रहा है, कुछ देर बाद सुभ्रत को रेत का एक गुबार उड़ता हुआ दिखाई दिया जो धीरे-धीरे बस्ती की तरफ ही आ रहा था। 

सुभ्रत सावधान हो कर वहीँ रेत के टीले पर खड़ा हो गया, अब रेत के गुबार में से कुछ-कुछ दिखाई देना भी चालू हो गया, किसी गाड़ी के मोटर जैसी आवाज उसे सुने दी, सुभ्रत इस आवाज को बहुत अच्छे से जानता था ये एक पुरानी जीप की आवाज थी जिसे सरदार तेम्बू होरा ने उस यात्रियों के जत्थे से लुटा था जिसमे सुभ्रत भी अपने माँ बाप के साथ आया था।

अब तक काफिले में मौजूद घोड़े और ऊँटों की आवाज भी आने लगी, जैसे- जैसे काफिला नजदीक आता जा रहा था वैसे-वैसे काफिले में लूट कर लाई गई लड़कियों की भी आवाजें आने लगी और कुछ ही देर में काफिला सुभ्रत के पास से निकलता हुआ उस नागों की बस्ती नागोनी होरा में दाखिल हो गया।

सुभ्रत उन लड़कियों की चीख पुकार सुन कर कुछ देर तक जड़ बन कर वहीँ खड़ा रहा, उसके पैर तेम्बू होरा के उस खेमे में जाने के लिए उठ ही नहीं रहे थे जहाँ वो अभी-अभी कुछ देर पहले लूट का माल और लूट कर लाई गई तीन लड़कियों को लेकर गया था। 

सुभ्रत को पता है की उस वहाँ क्या होने वाला है, अब उन लड़कियों को अलग-अलग तरह से प्रताड़ित किया जायेगा फिर सभी शराब पियेंगे और जब जश्न अपने पुरे शबाब पर होगा तब उन तीनो लड़कियों को अग्निस्नान कराया जायेगा जो तांत्रिक हरेन की एक बीभत्स क्रिया है। सुभ्रत बहुत ही कड़ा दिल करके तेम्बू होरा के घर के पास बने बड़े से टेंट के पास पहुँचता है।

सरदार के घर के पास पहुँचते ही उसे खिड़की पर कड़ी हुई कस्तूरी दिखाई देती है जो हाँथ हिलाकर मुस्कुराती हुई सुभ्रत को प्रोत्साहित कर रही थी, आज दिन में कस्तूरी के साथ जिस तरह से वो मिला था उसको याद करते ही उसे कस्तूरी के मादक, मखमली, यौवन की महक और उसका स्पर्श अन्दर तक हिला गया।

सुभ्रत अपने अन्दर की पूरी ताकत को समेट कर खेमे के अन्दर पहुँच जाता है, अपने बचपन में सिर्फ एक बार वो इस जगह पर आया था पर तब से आज तक उसके मूंह बोले माँ बाप ने उसे इस जगह से दूर ही रखा था पर आज वो अपने आप को यहाँ आने से नहीं रोक पाया।

अन्दर का माहौल बिलकुल उसकी उम्मीद की तरह ही घिनोना और बदबूदार था, एक तरफ जहाँ सब लोग लूट कर लाये गए माल को बाँट रहे थे और दूसरी तरफ उन तीन लड़कियों में से दो लड़कियां जिनके कपडे न के बराबर ही अब उनके बदन को ढक रहे थे वो मिटटी की सुराही से वहाँ मौजूद तीस से पैंतीस उन हैवानों को शराब दे रही थीं।

एक लड़की नाच रही थी और बार-बार उन दरिंदों से उन्हें छोड़ देने की गुहार लगा रही थी। सरदार तेम्बू होरा एक बड़े से तख़्त पर ऊपर की ओर बैठा था, उसके बाजू में उसका मंत्री सुकेत और वही दरिंदा राक्षस हरेन बैठा था। पुरे खेमे में देशी शराब का भभका उमड़ रहा था, सुभ्रत चाहते हुए भी वहां रुक नहीं पाया और दोड़ते हुए वहां से वाहर आ गया।

कुछ देर तक बाहर इंतजार करने के बाद सुभ्रत एक बार फिर से हिम्मत करके अन्दर जाता है तब तक सभी लोग शराब के आगोश में आ चुके थे, सरदार तेम्बू उस नाचने बाली लड़की के बचे कुछे कपडे खींच रहा था और बाकी उन दो लड़कियों को वासना की नज़रों से घूर रहे थे और नोचने की तैयारी में थे।

यहाँ इतने सभी लोगों में सिर्फ हरेन ही था जिसे शराब या उन लड़कियों के जिस्म से कोई मतलब नहीं था उसे तो किसी और चीज का इन्तजार था। इतने में सरदार जोर से चीख कर उस लड़की से कहता है “मैं पूरी रात तेरा इन्तेजार नहीं करूँगा, आखिरी बार कहता हूँ सीधे से बात मान जा”।

वो लड़की डर से कांपती हुई सरदार, सुकैत और हरेन की तरफ हाँथ जोडती हुई बोली “तुम जिस भी भगवान् को पूजते हो तुम्हे उसका वास्ता मुझे जाने, में अब सहन नहीं कर पाऊँगी”। पर उन रेत की तरह जड़ और दरिंदों पर उसका क्या असर पड़ने बाला था।

हरेन अपने पास लगी मसाल को उठाता है और कुछ मंत्र बुदबुदाता हुआ उस लड़की पास जाने लगता है, हरेन को आता हुआ देखा कर वो लड़की पीछे हटने लगती है उसी समय तेम्बू का वो खूंखार मंत्री सुकैत आता है और उस लड़की को पीछे से पकड़ लेता है, इतने में हरेन उस लड़की के पेट पर वो जलती हुई मसाल लगा देता है, माहौल में माँस के जलने की गंध पूरी तरह फ़ैल जाती है।

सुभ्रत जानता है की अब यहाँ क्या होने वाला था, अब एक-एक करके यही सब उन दो बची हुई लड़कियों के साथ भी होगा और फिर सब उन्हें लेकर मैदान में जायेंगे जहाँ सभी अपनी-अपनी मसालों से उन्हें दागेंगे और बलात्कार करेंगे। पता नहीं कैसे पर इसी बीच सुभ्रत को बस्ती में चित्रकारी करने और हरेन के यहाँ से सामान लाने की इजाजत सरदार से मिल जाती है और वो इस नरक से बाहर निकलता है।

सरदार के खेमे से घर जाते समय सुभ्रत मैदान से होकर गुजरता है जहाँ अग्निस्नान के बहाने उन लड़कियों को मसालों से दागा जा रहा था। वो ये सब देख कर उसे अभी-अभी सरदार से मिली चित्रकारी की इजाजत और कस्तूरी के प्रेम की ख़ुशी भूल जाता है। वो दर्द से तड़प रही उन लड़कियों को देख कर अपने दांत पीस लेता है और फिर उसके कदम अचानक उन लड़कियों की सहायता के लिए उठने लगते हैं।

पर तभी कुछ सोचकर वो रुक जाता है उसे याद आ जाता है की उसका मूंह बोला बाप कुमार मर चूका है और अगर उसे भी कुछ हो गया तो बस्ती के रिवाज के हिसाब से उसकी माँ के बाल जलाकर उसे नंगा करके चौराहे पर बैठा दिया जायेगा और फिर चौपाल पर बैठा देंगे, वहां जो जब जैसा चाहेगा उसकी माँ के साथ करेगा क्यों की बस्ती के रिवाज के हिसाब से जो भी औरत अकेली हो जाती है जिसके घर में कोई मर्द नहीं बचता उसके साथ यही किया जाता है।

यही सब सोच कर वो अपने कदम वापस ले लेता है और अपने घर की तरफ चल पड़ता है पर उसके मन अभी भी उस सब के लिए बहुत गुस्सा और नफरत है।

 

क्रमशः प्रेमी- आत्मा मरीचिका 05 

लेखक : सतीश ठाकुर