बीज - क्या हम ऐसे नहीं है ? संदीप सिंह (ईशू) द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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बीज - क्या हम ऐसे नहीं है ?

बीज - क्या हम ऐसे नहीं है ?

लेख का अंश
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"जिस प्रकार बीज-वृक्ष का सम्पूर्ण जीवन पृथ्वी, जल, प्रकाश -ऊष्मा (तेज), वायु और आकाश की प्रक्रिया है, वही बात मानव-जीवन के संबंध में भी कही जा सकती है।"
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बीज - क्या हम ऐसे नहीं है ?

हर एक बीज को वृक्ष बनाना यह प्रकृति का सास्वत प्रक्रिया है। सहज शब्दों मे बीज को वृक्ष बनाना जीवन प्रदान करने वाले ईश्वर का सतत जीवन चक्र है।
कठोर जमीन मे बोया हुआ नन्हा सा बीज धड़कते दिल के साथ अंकुरित हो कर नयी जिंदगी मे खड़ा होने की शुरुवात करता है।
धूप, हवा, किसान के भारी पैरों का दाब कीड़े, घास फूस सभी का सामना करते हुए किसी तरह खड़े होने को उद्धत। नमी मे भीगा सा बीज पहले अपनी खोल से जद्दोजहद कर निकलते हुए खुद को कोसता है।
सामने मिट्टी का भार, जिसे देख उसकी हिम्मत टूट सी जाती है किन्तु फिर भी हिम्मत करके अपने अंकुरण कर अंकुरित नुकीले तने से मिट्टी को चीरता धरती से बाहर आता है।
खुली हवा, तेज धूप, पानी की नमी, छोटे कीड़ों के आने की आहट मात्र से सहम जाता वो बीज। खैर आँखों को मिंचते आंखें खोलते ही चौक जाता है।
गर्दन घुमा कर आश्चर्य से देखते हुए बुदबुदाता है - अरे मेरे जैसे तो यहां और भी कई है, कुछ बड़े कुछ छोटे पर सब बढ़ने को संघर्षरत है।
उसे एक अजीब सा सुखद एहसास होता है। वह अकेला ही नहीं है और भी कई है उसके जैसे।
उसकी उलझने काफी हद तक सुलह जाती है, मानसिक सुख का सहज बोध होता है।
उस पनपते नन्हें पौधे मे स्वयं पर विश्वास होता है और यह आत्मविश्वास का बीजारोपण है। जब हम खुद पर विश्वास करते है, तभी आत्मविश्वास का जन्म होता है।
उसका आत्मविश्वास सबसे पास वाले पौधे से अधिक बढ़ता है, पूरे खेत के पौधों से नहीं। एक कारण यह भी है कि वह दूर तक देखने मे असमर्थ होता है।
पड़ोसी पौधे से तालमेल रखते हुए वह पूरे आत्मविश्वास के साथ लक्ष्य की ओर बढ़ने को संघर्षशील होता है। यही वह समय होता है जब उसे मित्रता और शत्रुता की प्रथम अनुभूति होती है।
पास के कुछ पौधों से घनिष्ठ लगाव होता है तो कुछ पौधों से जिनके विचार भिन्न होते है उनसे खटपट।
असल मे "खटपट पौधों" की संगत समीप मे स्थित बुराई रूपी खर पतवारो सरीखे होते है। जो अपने लक्ष्य से भटक ईर्ष्या पूर्ण संगत मे लिप्त रहता है।
परिणाम स्वरुप उसके फूल कमजोर और बीज सूखे से, मरियल से होते है। यह जीता तो फसल की पूरी समयावधि तक है किन्तु उपयोगी पैदावार मे क्षीणता से ग्रस्त होता है।
लिहाजा फसल की पैदावार मे उसका कोई योगदान नहीं होता। अर्थात अर्थहीन हो जाते है ऐसे पौधे।
वहीं उस नहीं पौध के विचार जिनसे मिलते हैं, उनसे स्वस्थ प्रतियोगिता का अनुभव होता है। और मज़बूती से जड़ें स्थिर किए उत्तम पैदावार मे सहायक होते है।
यह सत्य है कि इन पौधों मे कई पौधे साहसी तो होते है किन्तु पैदावार (लक्ष्य की अपेक्षाओं) मे हल्के होते है, कारण आत्मविश्वास की कमी।
कटाई मड़ाई के पश्चात जो बीज स्वस्थ होते है उन्हें बीज के रूप मे पुनः उभरने का अवसर प्राप्त होता है।
दूसरी ओर, खराब, कमजोर बीज पहली धुलाई मे तैरने लगते है, और फिर छाँट कर बाहर फेंक दिए जाते हैं।
इनमे से स्थिरता से नीचे बैठे बीज कई बार धुलाई के बाद पिसते पकते रहते हैं बिल्कुल दुनिया और दुनियादारी की तरह।
जो कठिन, संघर्षमय जीवन मे जनहित मे उपयुक्त हो अपने लक्ष्य को प्राप्त करते है।
जिस प्रकार बीज-वृक्ष का सम्पूर्ण जीवन पृथ्वी, जल, प्रकाश -ऊष्मा (तेज), वायु और आकाश की प्रक्रिया है, वही बात मानव-जीवन के संबंध में भी कही जा सकती है।
बीज-वृक्ष जिन तत्त्वों को संचित करते हैं, वे तत्त्व भोजन के माध्यम से मानव-शरीर में पहुँच जाते हैं।
बीज से वृक्ष और वृक्ष से बीज-इस चक्राकार जीवन-गति के साथ बीज की एक दूसरी गति भी है।
यही बीज अन्न के रुप में प्राणियों के शरीर में पहुँचकर प्राण बन जाता है।अन्न के बिना प्राणों की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
अन्न भोजन है और भोजन सम्पूर्ण प्राणियों की आधारभूत आवश्यकता है।
ठीक इसी प्रकार तो मनुष्यों का भी जीवन होता है। कुछ स्वस्थ्य बीज भावी भविष्य की आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रतिबद्ध होते है और कसौटी पर खरे उतरने मे कामयाब होते है तो दूसरे खाद्यान्न के रूप मे स्थान प्राप्त करते हैं।
क्या हम सभी ऐसे नहीं हैं ?

✍🏻 संदीप सिंह (ईशू)