छू लो आसमान संदीप सिंह (ईशू) द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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छू लो आसमान

रागिनी के बारहवीं के एग्जाम हो चुके थे।अब इंतजार था तो परिक्षा फल का।
घर मे दादा दादी, माँ पिता जी, चाचा लोग, सब की इच्छा थी कि अबकी रागिनी के हाथ पीले कर दिए जाए।
रागिनी आगे पढ़ना चाहती थी, कुछ करना चाहती थी ताकि जीवन को उद्देश्य और माता पिता को गर्व और सम्मान मिले।
किन्तु अपने मन की व्यथा वो किसी से व्यक्त नहीं कर पा रही थी।
वह अभी शादी नहीं करना चाहती थी।
रिश्ते देखे जा रहे थे, कहीं लड़का नहीं जंचता था, तो कहीं कुल का तालमेल नहीं मिल रहा था।
खैर दिन बीतते जा रहे थे।
आज ही तो दिल्ली वाली बुआ का फोन आया था माँ से बाते हो रही थी।
'भाभी एक लड़का है अभी कुछ दिन पहले ही उसका चयन शिक्षक पद पर हुआ है, खाता पीता घर है, घर से भी पचास किलो मीटर दूरी है।' बुआ शालिनी ने सावित्री ( रागिनी की माँ) से कहा था।
' ठीक तो रहेगा दीदी, मैं फोन रचित के पापा को दे रही हूँ, पता ठिकाना बता दो, समय निकाल कर देख भी आयेंगे और सब ठीक रहा तो रिश्ते की बात भी कर लेंगे। 'सावित्री बोली।
विजयकांत ने फोन पकड़ा, थोड़ी देर औपचारिक वार्तालाप होता रहा।
इधर रागिनी का दिल बैठा जा रहा था।
ऐसा नहीं था कि उसके मन मे कोई और था, आज तक वह अपनी मर्यादा और संस्कारों के साथ आगे बढ़ रही थी।
कोई ऐसा काम नहीं किया था जिससे माँ पिता जी का सिर झुके।
पढ़ने मे भी अव्वल थी और अच्छे अंकों से उत्तीर्ण भी होती आयी थी।
स्कुल कॉलेज के टीचर्स भी कहा करते थे कि जीवन मे कुछ बड़ा करेगी ये लड़की।
पर लड़की सयानी हुई नहीं की माँ बाप को शादी की चिंता हो जाती है, और बेचारी लड़की काठ की पुतली जैसी स्थिति मे हो जाती है।
बुआ ने पिता जी को लड़के का पता दिया।
अब मम्मी पापा के बीच शादी की योजनाओं पर विचार विमर्श होने लगा।
रागिनी अंदर ही अंदर टूटता महसूस कर रही थी।
समय अपनी धुरी पर निर्बाध घूम रहा था।
रागिनी के इंटरमीडिएट की परीक्षा के परिमाण आने का दिन करीब आ रहा था, पर रागिनी परिणाम से ज्यादा घर वालों के थोपे फैसले से परेशान थी।
वह शादी का विरोध नहीं कर रही थी बस ये सोंच रही थी कि कुछ बेहतर करके शादी कर जीवन मे प्रवेश करे पर सुनना कौन चाहता था उसकी।
पिता के खिलाफ जा नहीं सकती थी, माँ थी कि उसको समझने के बजाय वो जोर शोर से शादी की योजना, बजट, दहेज पर विमर्श कर रही थी।
आज उसका परिणाम आने वाला था।
पापा ने हँसते हुए कहा - बेटा मुँह ना लटकावों, मुझे भरोसा है कि अच्छे अंक आयेंगे।'
'जी पापा' ।, इतना ही बोला था रागिनी ने
' अब घर गृहस्थी के कामों और खाना पकाना सीख लो, ताकि शादी के बाद कोई शिकायत ना करे ससुराल से तुम्हारे पापा को। '

परिणाम आए प्रथम स्थान मिला था रागिनी को।
पापा खुशी से मिठाइयाँ बांट रहे थे, दादा जी अपनी मंडली मे रागिनी की तारीफों के कसीदे पढ़ रहे थे।
माँ तो फूली नहीं समा रही थी रचित भी बहन की सफलता से खुश था, पढ़ने मे वह भी बढ़िया था।
पापा पास आए और खुशी से कलाकंद का एक टुकड़ा रागिनी के मुख मे रखा और बोले - 'मुझे अपनी बिटिया पर बहुत गर्व है।'
पता नहीं क्यों मिठाई का टुकड़ा चबाते हुए आँखों मे आंसू आ गए रागिनी के।
पापा ने देखा, तो हंस पड़े, 'अरे रो मत पगली'
कहते हुए सीने से लगा कर पीठ प्यार से थपथपाई - अभी रोए जा रही है तो विदाई के समय आंसू कहाँ से लाएगी।
पर रुकने के बजाय वह फफक पडी, आंखों से मोटी धार फट पड़ी।
सब अचंभित थे।
'क्या हुआ बेटा... बोलो तो सही.. किसी ने कुछ कहा क्या।' , पापा ने पूछा था
पर रागिनी कुछ बोल ना सकीं।
बहुत कुरेदने पर बोली - 'पापा मुझे अभी शादी नहीं करनी'।
धमाका सा हुआ।
घर मे सब स्तब्ध रह गए। पापा गुस्से मे बाहर चले गए।
सब मुँह फुला अपने कामों मे व्यस्त हो गए।
रागिनी भी कमरे मे चली गई, बस रोये जा रही थी।
शाम हो गई।
पापा आँगन मे दादा दादी और माँ के साथ चाय पी रहे थे।
सभी गम्भीर से बैठे थे।
' रागिनी ने खाना खाया था', विजयकांत ने सावित्री से पूछा।
'नहीं तब से कमरे मे ही है, रो रही है। ' सावित्री ने बताया
'जाओ उसे बुलाओ हाँ उसके लिए भी चाय लाना।'
'जी ' ।कहते हुए सावित्री रागिनी के कमरे की ओर बढ़ गई।
थोड़ी देर मे मुँह धोकर रागिनी पापा के पास आई।
आंखे सूज आई थी रोते रोते।
'पापा मुझे माफ कर दो, मेरी वज़ह से आपको तकलीफ हुई।' सिर झुकाए रागिनी ने कहा था।
'अरे बेटा कोई बात नहीं, चलो चाय पियो फिर बात करते है।'
चाय खत्म हुई।
घर के सभी सदस्य उपस्थित थे।
'बताओ बेटा शादी क्यों नहीं करोगी? पापा ने पूछा था
बुझे स्वर मे रागिनी बोली -, 'पापा मैं शादी करूंगी आप रिश्ता देख लीजिए।
' नहीं बेटा, बात क्या है बताओ डरो मत खुल कर बोलो, शादी तो बाद मे हो जाएगी, क्या किसी को पसंद करती हो?'
'नहीं पापा '
'फिर'
पापा मैं पढ़ना चाहती हूँ और तैयारी करना चाहती हूँ,।
विजयकांत थोड़ी देर चुप रहे, कुछ सोच रहे थे।
'अब इतनी बड़ी हो गई कि पापा से ज़बान लड़ाती हो', माँ ने घुड़कते शब्दों मे कहा
' नहीं मम्मी... '
' सावित्री तुम चुप रहो, मेरी बेटी ने कोई गलती नहीं की ना ही जवाब दिया है, सच तो यह है कि शादी इसकी होगी और हमने इसकी राय तक नहीं जानी, कुछ करना चाहती है तो बुराई क्या है, पल भर को गुस्सा आया पर जब सोचा तो लगा इससे बात करनी चाहिए इसकी राय जाननी चाहिए । '

रागिनी समझ नहीं पा रही थी, पापा क्या कहना चाहते है।

' ठीक है बेटा तुम्हें चार वर्ष दिए किंतु इसके बाद तुम हमारी बात मानोगी।'
रागिनी ने खुशी से हाँ मे सिर हिलाया।
घर के सभी अब अचंभित नहीं बल्कि संतुष्ट थे।

रागिनी भी मिले अवसर से खुश थी तो एक बोझ भी था कि इतने समय मे ही उसे खुद को साबित भी करना है
रागिनी ने आगे पढ़ाई जारी कर दी।
समय बीतता रहा ग्रेजुएशन के साथ साथ वह UPSC की तैयारी भी जी जान से करने लगी।
ग्रेजुएशन (स्नातक) अंतिम वर्ष मे उसने यूपीएससी की परीक्षा मे भाग लिया पर सफलता नहीं मिली।
पापा ने उसे प्रेरित किया कि हताश ना हो।
और अगले वर्ष पुनः प्रयास किया, और इस बार वह सफल हुई।
जिस दिन अंतिम परिणाम के बाद उसका चयन जिलाधिकारी रायबरेली के रूप मे हुआ तो उसके पिता वा परिवार के सदस्य ही नहीं पूरा गांव और क्षेत्र खुशिया मना रहा था।
उसने कर दिखाया, कठिन परिश्रम से अपने सपनों को साकार कर लिया था रागिनी ने।
अपने जैसी कई लड़कियों के लिए प्रेरणा बन चुकी थी वह।
क्षेत्र से पहली लड़की थी वह इस यूपीएससी मे चयनित होने वाली।
जिस दिन पद भार ग्रहण करना था, पूरा परिवार उपस्थित था।
जब पापा मम्मी के पैर छू आशिर्वाद लेने लगी तो उसने पापा से कहा - 'पापा अब आप मेरी शादी कर दो। '
पापा ने मुस्कुराते हुए कहा, ' बेटा गर्व है तुम पर अब तुम्हें तीन वर्ष का समय बोनस मे देता हूं आखिर तुमने अपने परिश्रम से सफलता का आसमान छू लिया और हमे गर्व से कहने का मौका जो दिया कि जिलाधिकारी मैडम के पापा है।'
इतना कह कर हंस पड़े मम्मी पापा।
अब सभी खुश थे।

✍🏼संदीप सिंह (ईशू)


(समाप्त )

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"प्रस्तुत कहानी का किसी भी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है यह मात्र मनोरंजन और बेटियों को प्रेरित करने के उद्देश्य से लिखी गई है l सामाजिक मुद्दों को विषय के रूप में लिखने का उद्देश्य मात्र इतना है कि हम इनसे अवगत हो, ये वहीं बातें होती है जिन्हें हम अपने इर्द गिर्द देखते महसूस करते है। "
©संदीप सिंह (ईशू)