काली बिल्ली संदीप सिंह (ईशू) द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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काली बिल्ली

आज सुबह ही वह जल्दी उठ कर तैयार हो रहा था। पर दिमाग दो राहे पर खड़ा था।

उसका रिज्यूम एक बड़ी कंपनी मे चयनित हो गया था और आज सुबह 10 बजे उसका साक्षात्कार (इन्टरव्यू) था। वह चयनित होगा या नहीं इसी ऊहापोह मे गोते लगा रहा था, दूसरा उसकी पत्नी का प्रसवकाल नजदीक था।

सुबह ही पिता जी का फोन आया था भोर मे वीनू को प्रसव पीड़ा हौले हौले तेज हो रही थी।

उसकी स्थिति इधर कुआं उधर खाई सरीखी थी, एक मन कहता साक्षात्कार छोड़ वह घर चला जाए, मन मे एक अजीब सी छटपटाहट थी, पहली बार पिता बनने वाला था वह।

घर से 40 कि मी दूर शहर मे ही था, कल रात ही तो साक्षात्कार के लिये पहुंचा था। मस्तिष्क मे घुमड़ते विचारों के सरपट दौड़ते घोड़े पर संयम रखें सोच रहा था कि साक्षात्कार के पश्चात वह सीधे घर पहुँच जाएगा।

लगभग तैयार हो गया था वह, आईने के सामने बाल संवार रहा था।

जरूरी कागजातों की फाइल उठा कर लॉज के कमरे से बाहर निकला तेजी से ताला बंद कर, फुर्ती से नीचे जाने वालीं सीढ़ियों की तरफ लपका।

नीचे आकर तिपहिया (टैंपों) पकड़ने के लिए सामने चौक की ओर उसके कदम बढ़ चले। निगाहें रह रह कर मोबाईल की चमक उठती स्क्रीन पर टिक जाती, आदतन नोटीफिकेशन (अधिसूचना) के लिए, और समय पर बार बार उलझ रही थी ।

दूर से ही खड़ी तिपहिया को हाथ से रुकने का इशारा कर वह लपका ही था कि, तेजी से दौड़ कर आती काली बिल्ली ने उसका रास्ता काट दिया!
बड़ी फुर्ती से ठिठका था वह।

मस्तिष्क मे बिजली सा विचार कौंधता चला गया... आज का दिन अनहोनी भरा होगा, काली बिल्ली का रास्ता काटना अशुभ का संकेत होता है।

मन विचलित हो गया, रुमाल निकाल माथे पर छलकी पसीने की नन्ही बूँदों को साफ कर पल भर सोचा, फिर कदम तिपहिया की ओर बढ़ चले।

टैंपो (तिपहिया) मे बैठते ही चालक को गंतव्य स्थल का पता बताते हुए विवरण दिया। टैंपो (तिपहिया)चल चुका था, पर उसकी धड़कने अनहोनी की आशंका से बौराये बैल सी कुलाचें मार रही थी।

खैर बिना किसी अनहोनी के वह साक्षात्कार स्थल पर पहुंच गया, मोबाइल मे देखा अभी समय शेष था, किराया चुका कर वह तेजी से साक्षात्कार प्रांगण मे पहुँचा, कुछ आवेदक वहां पहले से ही उपस्थित थे।

तय समय यानि ठीक 10 बजे साक्षात्कार (इन्टरव्यू) आरंभ हुआ। आवेदकों के नाम पुकारे जा रहे थे, वे क्रमशः आ जा रहे थे अपना नाम सुन कर। करीब 11 बजे उसका नंबर (क्रम) आया। खुद को व्यवस्थित करके साक्षात्कार कक्ष मे प्रवेश किया उसने। वह, करीब 15 मिनट पश्चात बाहर निकला था।

उसे भी अन्य उम्मीदवारों की तरह रुकने को कहा गया था ताकि भोजनावकाश के पहले तक परिणाम घोषित किए जा सकें।
प्रतीक्षा के पल उसे बेहद भारी लग रहे थे, पल पल घंटे भर के समान।

मन रह रह कर परिणाम और पत्नी दोनों की ओर भाग रहा था। रुक रुक कर दिमाग मे गूंजता " काली बिल्ली रास्ता काट गई थी ", कहीं कुछ अनहोनी ना हो जाए।
साक्षात्कार समाप्त हो गया था।

करीब साढ़े 12 बजे चपरासी ने नाम की सूची (लिस्ट) सूचनापट्ट पर चस्पा किया। चयनित उम्मीदवारों के नाम के के साथ ही असफल उम्मीदवारों को बिना हताशा पुनः प्रयास करने की प्रेरणा और बेहतर भविष्य की शुभकामनाओं के साथ विदा संदेश भी था।

उसकी निगाहें सफल उम्मीदवारों की सूची पर थी अपने नाम को तलाशती हुई, स्वयं के नाम पर निगाह स्थिर होते ही चेहरे पर हल्की मुस्कान उभरी। वह चयनित किया जा चुका था।

थोड़ी देर मे ही सभी चयनित उम्मीदवारों को शामिल पत्र (जॉइनिंग लेटर) दिया गया। पत्र मे 15 कार्य दिवस के अंदर कार्यालय मे उपस्थिति और वेतन व सुविधाओं का विवरण था।

वह बेहद खुश था, हाँ परिवार और पत्नी के लिए चिंतित भी था। उसने घर पर फोन से घर का नंबर लगाया पर संपर्क स्थापित ना हो सका मन आशंकित हुआ पर वह रुका नहीं, कदम बस अड्डे की ओर चल पड़े।

बस मिल चुकी थी, बैठते ही फिर अनहोनी का डर, वीनू की चिंता, नव आगंतुक नन्ही जान की फिक्र इंटरव्यू से कहीं ज्यादा थी।

सहसा मोबाइल की घंटी बज उठी, पिता जी का फोन था।
पता चला मम्मी-पापा वीनू को अस्पताल लाए है।
अब वह बेचैन हो उठा था।

चौराहे पर उतरते ही फोन किया, घंटी बजती रही पर उठाया नहीं गया।

तेजी से वह लगभग दौड़ते हुए चिकित्सालय पहुँचा, पापा सामने ही खड़े थे, निगाहें मिली, मानो वह पूछ रहा था - पापा क्या हुआ???

पिता जी मुस्करा उठे उसकी बेचैनी और तड़प देख ।
मुस्कान का अर्थ समझ गया था वह, पापा के हाथ मे जॉइनिंग लेटर पकड़ा कर, वीनू के कमरे का रास्ता पूछा, जो सामने ही था।

तेजी से लपकते हुए वह अंदर पहुँचा।
वीनू बेड पर लेटी थी, माँ पास पड़ी कुर्सी पर बैठी बहू (वीनू) के माथे को सहलाते हुए बातें कर रही थी।

उसकी नजरें माँ से मिली फिर प्रसव पीड़ा से मुरझाए पीले पड़े वीनू के चेहरे पर जो सारी पीड़ा बिसरा कर (भूल कर) मंद मंद मुस्करा रही थी। लग रहा था जैसे जिंदगी और मृत्यु की जंग मे मृत्यु को पछाड़ कर, नवजात को जीवन दे कर नौ माह के दर्द से मुक्त, विजय प्राप्त कर चुकी थी वह।

अब वह निश्चिंत था परंतु निगाहें कुछ ढूढ़ (खोज) रही थी, पर जो खोज रहा था वह आसपास दिखा नहीं।

एक दाई (नर्स) पास आई बोली - पहले नेग दीजिए और मिठाई मंगवाए तभी वह दिखेगा जो आप बड़ी बेचैनी से तलाश रहे हैं।
आस्तीन (जेब) मे हाथ डाल उसने पाँच - पाँच सौ रुपये के दो नोट नर्स को खुशी से पकडा दिए, तब नर्स ने मुस्कुराते हुए कहा - बधाई हो, बेटी के रूप मे साक्षात माँ लक्ष्मी आयी हैं।

कहते हुए उसने मासूम सी, बेहद कोमल, नाजुक सी नन्ही जान को उसकी गोद मे थमा दिया। कांपते, लरजते हाथों से थाम कर उसने चेहरा देखा था नन्ही परी का।

उसकी आंखे बरबस खुशी से बरस पड़ी थी, आंसू छलक आए थे, उसे सीने से लगा लिया था उसने।
बेहद खुश और अब तनाव मुक्त था वह।

मन ही मन सोचा - काली बिल्ली के रास्ता काटने से कुछ नहीं होता।
कोई अनहोनी नहीं होती बल्कि उसे तो लक्ष्मी रूपी बिटिया और लक्ष्मी (धन) का बेहतर स्त्रोत मिला।

(समाप्त)
संदीप सिंह "ईशू"
sandeeprajpoot1119@gmail.com