सत्यनिष्ठा ईमानदारी समर्पण
डायरी के पन्नों से एक सामाजिक लेख कोरोना काल 1.0 के दौरान लिखे लेख को प्रतिलिपि पर प्रस्तुत करना चाहूँगा
उत्तर प्रदेश में आए दिन वारदातों का सिलसला सा चल पड़ा है, आम जनता हर समय दहशत में जीने को मजबूर है, महिलाएं बच्चियां सुरक्षित नहीं हैं, जघन्य हत्या, हत्या, छेड़खानी, दुराचार, लूट समेत सभी अपराधों में बेहद तेजी दिख रही है ।
पुलिस से जनता का विश्वास उठ गया ।
कोराना संकट के दौर से गुजरते समय में भी यह भयावह स्थिति बेहद चिंताजनक है । आप सभी से अनुरोध है कि पूरा लेख पढ़े बिना आप उतावले हो कर टिपपणीकर्ताओं के रूप में ना उपस्थिति मत दर्ज करियेगा , यहां मेरे शब्दों को राजनीति, धर्म, के रूप में मत लीजिए ।
पुलिस एक तरफ इस कोराना काल में जिस तरह देवदूतों की भांति उभरी जनमानस के मन मस्तिष्क में बसी उनकी छवि में बदलाव होने लगा, भरोसा और सुरक्षा भावना का परिवर्तन महसूस करने लगे थे लोग ।
किन्तु बीच बीच में जहां एक तरफ लोग कर्मवीर, कर्मयोद्धा, देवदूत आदि उपाधियों से सम्मानित कर रही थी वहीं दूसरी ओर पुलिस की ज्यादतियों की खबरें भी सुर्खी में रही।
उत्तर प्रदेश में इन जघन्य अपराधों की आने वाली तस्वीरें विचलित करती है ।
आज मेरा सवाल पक्ष विपक्ष, राजनेता, सरकार आदि से नहीं है, माफी चहूंगा की आज राजनैतिक बात नहीं होगी ,आज मै अपने शब्द पुलिस (All India Police) तक पहुंचाना चाहता हूं ।
शायद मेरी बात कहने का यह उचित समय है, इस समय मेरे समझ से आप का(आप सभी ने) जनता के अथाह भरोसे और प्रेम को भी महसूस किए ज्यादा समय भी नहीं गुजरा होगा , क्या उस सम्मान से आपने गौरवान्वित महसूस नहीं किया ।
जनता ने जो सम्मान आप सभी (पुलिस) को दिया था, क्या आपने उसे महसूस किया ? यदि आपने महसूस किया है तो आपको अहसास और आभास जरूर हो रहा होगा कि जनता आपको विश्वसनीय सजग रक्षक के रूप में चाहती है।
परन्तु दुर्भाग्य है यह कि आपसे जिन्हें खौफ होना चाहिए, वे बेखौफ है और जिस जनता , समाज की रक्षा के लिए आप राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा के सम्मुख शपथ ग्रहण करते है, वही आमजन वर्दी से खौफ खाते हैं।
भारत में रहने वाले सभी आम नागरिक हमारे देश की सीमाओं (सरहदों/बार्डर) पर पूरी निष्ठा , ईमानदारी, समर्पण भाव से ओत प्रोत हो अपने दायित्वों का निर्वहन करने वाले भारतीय सेना के जवान हो या आला अधिकारियों को गौरान्वित भाव से सम्मान देते हैं।
जब की वो उनके (जनता के) पास होकर नहीं बल्कि हजारों किमी दूर भारतीय सीमाओं की सुरक्षा पूरी तत्परता से करते हैं और आप (पुलिस) तो जनता के पास हो, फिर इतनी दूरी क्यों ? इतना अंतर क्यों ?
यकीन मानिए, इसका उत्तर आपकी अंतरात्मा ने दे दिया होगा और आप सहज निरुत्तर भी हो गए होंगे। बस वही कमी कि जो भारतीय सैनिकों में है,वह पुलिस में नहीं - सत्यनिष्ठा, ईमानदारी और समर्पण ।
यही अजारकता, अपराधों की वृद्धि का मूल कारण है , हाल में घटित अपराधों को देख लीजिए।
यकीन मानिए,मै यह सब पुलिस को कोसने, लताड़ने, छवि धूमिल करने के लिए नहीं लिख रहा,मात्र उस को जागृत करने के उद्देश्य से कह रहा हूं।
वर्तमान की विघटित चंद दिनों पूर्व की घटना में पुलिस वालो का अपराधियों द्वारा खुलेआम शहीद हो गए।कारण वही अपनों (पुलिस) ने अपनों (पुलिस) को दूसरी दुनिया में पहुंचा दिया ,आदतन निष्ठा, ईमानदारी, समर्पण का गला घोंट कर ।
लिहाजा पुलिस विभाग की साख पर बट्टा लग गया ।
पुलिस व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न (?)लग गया।
विगत दो दिन पूर्व के घटनाक्रम में लगभग सभी ने पड़ोसी द्वारा पिता की धारदार हथियार से हत्या के बाद बिलखते भारतीय सेना के जवान को तो देखा होगा यह कहते कि - "जब पिता की रक्षा ना कर सका तो देश की रक्षा क्या करूंगा। " ये शब्द आप और आपकी व्यवस्था पर तमाचे जैसा नहीं महसूस होते ।
जानकारी के बावजूद फौजी के पिता की और मनचलों द्वारा सिर में गोली मार कर हत्या कर दी गई ।
ये उचित समय है सत्यनिष्ठा, ईमानदारी, समर्पण को धारण करिए और उस शपथ का स्मरण करिए बजाय आमजन को प्रताड़ित करने के ,शामत बन कर टूट पड़िए अपराधियों पर ।
जब सभी पुलिसकर्मी दायित्वों का निर्वहन सम्पूर्ण निष्ठा के साथ करेंगे तो खौफ महसूस होगा अपराधियों में,सभी पानी मांगते फिरेंगे। किन्तु यह भी एक कटु सत्य है कि चंद पुलिस जवानों की वजह से कई बेकसूर आज अपराधी है ।
नेतानगरी के महारथियों के दाब में मत आइए, यदि आला अधिकारी भी दबाव बनाए तब भी अपनी निष्ठा,और दायित्वों का गला मत घोंटिए।
आप भी पुलिस विभाग में जुड़ने से पहले इसी समाज का हिस्सा थे ,तब भी आमजन के दर्द को नहीं समझ रहे।
सच कहूं तो हम सभी को फिल्मों में सिंघम की भांति पुलिस की निष्ठा देखकर जोश आता है, उसे यथार्थ में बदलिए, ईमानदारी से जनता की सेवा करिए ।
अपराधों में कमी और आपकी साख मे वृद्धि दिखने लगेगी। और आप सभी पुलिस वाले भारतीय सेना के सिपाही की तरह समर्पित बन जाइए, जनता आपको भी सम्मान से हृदय में स्थान देगी और भरोसा करेगी।
यह आप सभी कर सकते हो एक बार सोचिए और चाह तो पैदा करिए।
मात्र एक छोटा सा निवेदन है राजनेताओं, नेताओं, रसूखदारों से की स्वहित के लिए पुलिस पर दाब बना कर अपराधियों को संरक्षण प्रदान कर मनोबल को ना बढ़ाइए, जिस जनता से उनके हितों की रक्षा के नाम पर वोट मांगते है, उन्हीं के हितों और कानून व्यवस्था को स्वहित सिद्धि के लिए स्वाहा मत करिए,प्रजापालक बनिए अपराधी संरक्षक नहीं ।
जयहिंद। 🇮🇳
✍🏼 संदीप सिंह (ईशू)