शायरी - 16 pradeep Kumar Tripathi द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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शायरी - 16

अब लगता है कि मेरे दिन भी भर गए।
महफील सूनी और बंद कमरे भर गए।।
आप मिले थे हमको वो एक दौर था मेरा।
अब, अब की क्या कहें वो वक्त भी तो गुजर गए।।
आप चाहते तो हम आपको आईना भी बना लेते।
आप तो, आप हैं पत्थर पर मर गए।।


अजीब रास्ता है अभी तक कोई मोड़ नही आया।
कहानी अच्छी थी लेकिन दोस्त मजा नहीं आया।।

वाह क्या जिंदगी है, कितना जीते हैं।
हां जब तक मर नहीं रहे, तब तक जीते हैं।।

चेहरे ने क्या धोखा दिया नया चेहरा लगा कर
आइना भी हैरान है ये करिश्मा देख कर

हमने कहा दिया था मशवरा आप को मोहब्बत का
हम खुद बीमारे इश्क का इलाज ढूंढ रहे हैं

चलो तुमको भी सुना देते हैं हालए बीमारे दिल का
जो इश्क करने वाले थे वो लोग चले गए

जाओ हम आप को मांगने की खता नहीं करते
जो आपके आईने के पीछे छुपा है वो शक्स चाहिए

आप आ गए तो ज़िंदगी सस्ती लगी
महंगे तो सारे ख्वाब थे जो उम्र भर सोने नहीं दिया


इतनी बेवफाई के बाद जिंदा है क्या कम नहीं
अब तुम ये भी चाहते हो जिएं भी, पर हम नहीं

हमारी भी कहनी थी कभी तुमको सुनाएं गें
हमारी भी दीवानी थी कभी तुमको सुनाएं गें
ये महफिल है बेवफाओ की यहां हर राज मत खोलो
जहां हम रोज मिलते थे वो टीले पे सुनाएं गें
यहां जो बन बेहरा जो बैठा है दिलों के राज सुनने को
वहां पर सब बेजुबानी है वहां तुमको सुनाएं गें
यहां पर रोने से देखो सभी तुम पर हीं हंसते हैं
वहां रोने को सोचो भी तो फिजाएं मिल हंसाएं गीं

ज़िंदगी भर की कमाई का मुआवजा है वो
न जाने लोग कफ़न कह कर बदनाम क्यों करते हैं

डरता रहा मैं उम्र भर अपने साए से ही जनाब
तुमने असलियत दिखा कर हैरान कर दिया

ये पते की बात है कभी प्यार मत करना
धड़कते हुए दिल का कभी एतबार मत करना

एक बड़े पते की बात हो सी गई
मोहब्बत होनी थी लेकिन हो सी गई

आप मेरी ज़िंदगी का मजाक यूं न बनाए
नीचे उतर कर देखिए तो समझ में आए
ये उड़न तश्तरी पर बैठने से कुछ नही होता
ज़िंदगी को अपने हाथों से चलाएं तो समझ आए

आप के कहानी का वो किरदार हूं मैं
जो दिल में था लेकीन आखिरी में आया मैं


आप हमें अपनी जिन्दगी की पूरी कमाई का,मुआवजा समझ कर रख लो।
नहीं तो वो मुझे अपनी यादों की दौलत समझ कर, चुरा कर ले जायेगा एक दिन।।

तुम आना कभी मेरे खेतों में बने फसल के बीच उस मचान पर कभी।
वहां से देखने पर सब कुछ अपना और हरा भरा दिखाई देता है।।


आप आए महफिल में हमारे तो हम शम्मा जलाना तक भूल गए।
वो दिन भी थे कभी जब हम दोनो होते थे और दुनिया को भूल जाते थे।।


आप के नजर अंदाज करने का तरीका पसंद आया हमें।
गलती हमारी है हमने दिल्लगी को प्रेम समझ लिया था।।


आप को तो हमारी पहली मुलाकात की तारीख भी याद है।
हम तो उस दिन से खुद को ही भूल गए हैं।।


जो भी अपनी ओर आते दिखते हैं मोहब्बत सी हो जाती है।
दोस्त दवा रहने दो मुझे तो कुछ दोस्त ले आओ पुराने दवा की तरह है।।