वो बिल्ली - 20 Vaidehi Vaishnav द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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वो बिल्ली - 20

(भाग 20)

अब तक आपने पढ़ा कि शोभना की बातों के कारण उस डरावने चेहरे वाली औरत ने यह महसूस किया कि वह अब तक व्यर्थ ही लोगों से बदला लेकर अकेली घर में भटक रही है। वह अपने अतीत के बारे में शोभना को बताती है।

अब आगें...

अस्पताल में दिन बीत रहे थे। मैं जीना नहीं चाहती थीं। अंदर से पूरी तरह टूट कर बिखर चूंकि थी। जीवन को लेकर मन में कोई उत्साह ही नहीं था। मैं स्वस्थ्य होकर अपने घर लौटना नहीं चाहती थी। रोज़ यहीं प्रार्थना किया करती थी कि भगवान मुझें भी अपने पास बुला लो। डॉक्टर मुझें समझाते। जीवन को नए तरीक़े से जीना सिखाते, पर मुझ पर न ही उनकी बात असर करती न ही उनके द्वारा दी जा रही दवा ही असर करती।

एक दिन मैं बेड पर लेटी हुई खिड़की से बाहर शाम के सूने सिंदूरी आकाश की ओर टकटकी लगाए हुए तांक रहीं थीं। सहसा एक अजनबी लड़का मेरे सामने आकर बैठ गया। मेरी आँखों में जितनी अधिक मायूसी थी उतनी ही चमक उसकी आँखों में थी।

मुस्कुराकर उसने कहा - " हेलो ! मेरा नाम प्रेम है। प्रेम से सभी मुझें प्रेम ही बुलाते है।"

उस लड़के पर मैंने कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। उसकी बातों को अनसुना करते हुए मैं करवट बदलकर लेट गई।

वह उठकर चला गया होगा। इस उम्मीद से जब मैंने फ़िर से करवट बदली तो मैं चौंक गई। वह अब भी वहीं बैठा हुआ मेरी ओर देखकर मुस्कुरा रहा था।

मुझें उसकी यह बात न जाने क्यों बहुत अच्छी लगीं थीं । बहुत अपना सा लगने लगा था वह अजनबी।

उस दिन से वह रोज़ आने लगा था। उसका आना मुझें सुकून देने लगा था। मैं उसका इंतजार किया करती थी। धीरें-धीरें मेरे स्वास्थ्य में सुधार होने लगा था।

एक दिन जब डॉक्टर को लगा कि मैं पूरी तरह से स्वस्थ हूँ तो उन्होंने मुझें हॉस्पिटल से डिस्चार्ज दे दिया।

मैं अपने घर प्रेम के साथ ही आई। बहुत समय बाद घर के दरवाज़े खुले थे। घर में धूल छा गई थीं। प्रेम ने पहले मेरा कमरा साफ़ किया और वहाँ मुझें आराम करने की सख्ती से नसीहत देकर घर की साफ़-सफाई में जूट गया। वह इतने से भी नहीं रुका और उसने दलिया भी बना दिया।

उसकी ऐसी निस्वार्थ सेवा को देखकर मेरा मन उसकी ओर आकर्षित होने लगा। मैं उसके प्रेमजाल में फंसती चली गई। मैंने उसके बारे में कभी कुछ जानने की कोशिश भी नहीं की। अब वह मेरे साथ घर में ही रहने लगा था। मैं उसका साथ पाकर बहुत खुश थीं। सोचती थी कि मम्मी-पापा होते तो कितना खुश होते प्रेम से मिलकर।

समय सुख से गुज़र रहा था। एक दिन प्रेम कही भी दिखाई नहीं दिया। मैं उसे ढूंढते हुए स्टोर रूम की ओर गई थीं।

तभी मुझें किसी के फुसफुसाने की आवाज सुनाई दी। मैं दीवार से सटकर कान लगाकर बातों को सुनने की कोशिश कर रही थीं। मुझे स्पष्ट रूप से स्टोर रूम के अंदर हो रही बातचीत सुनाई देने लगीं। एक लड़की रोष प्रदर्शन करते हुए बोली...

" और कितने दिनों तक यहाँ रखकर यह सब नाटक करते रहोगें..? कही सचमुच उस लड़की पर तुम्हारा दिल तो नहीं आ गया। याद रखना मैं तुम्हारी बीवी हूँ, यदि मुझें धोखा देने के बारे में सोचा भी न तो कहीं का नहीं छोडूंगी। बर्बाद कर दूंगी तुम्हें औऱ उस लड़की को .."

प्रेम ने दबी हुई आवाज़ में कहा - " अरे..! ज़रा धीरें बोलों ! अगर उस लड़की को हमारी योजना के बारें ज़रा सी भी भनक लग गई तो सारे किए कराए पर पानी फिर जाएगा। अभी तुम यहाँ से जाओ। मैं आज ही सारे कागज़ातों पर उस लड़की के दस्तखत करवा लूंगा।"

शेष अगलें भाग में....

इस धोखे पर प्रेमलता की क्या प्रतिक्रिया होंगी ? जानने के लिए कहानी के साथ बनें रहें।