वो बिल्ली - 7 Vaidehi Vaishnav द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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वो बिल्ली - 7

(भाग 7)

अब तक आपने पढ़ा कि रघुनाथ घर में अजीबोगरीब घटनाओं को देखता है। उसे छत से किसी महिला के गुनगुनाने की आवाज़ सुनाई देती है। वह अपने कदम छत की ओर बढ़ा देता है।

अब आगें...

रघुनाथ दबे पांव ऊपर की ओर बढ़ते चले जाते हैं। छत की सीढ़ी के दरवाजे की ओट से झाँककर देखने पर रघुनाथ को छत की मुँडेर पर बैठी हुई एक महिला देखती है। उस महिला की पीठ रघुनाथ की ओर थी अतः उसका चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था। दूर से देखने पर तो वह शोभना की तरह ही लग रहीं थीं।

महिला अब भी वहीं गीत गुनगुना रहीं थीं।

"पहले तो होश छीन लिए ज़ुल्म....."

जैसे ही रघुनाथ ने छत पर अपना कदम रखा, महिला ने गीत गुनगुनाना बन्द कर दिया।

"शोभना ..."

रघुनाथ ने प्यार से पुकारा ; लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला।

रघुनाथ महिला के नजदीक गए और जैसे ही उसके कंधे पर हाथ रखा..महिला की गर्दन 360° घूम गई। उसका चेहरा बड़ा भयानक था।

रघुनाथ डर से पीछे हटे। वह महिला वहीं मुँडेर पर बैठी हुई हँसते हुए बोली - " यह मेरा घर है। मैं यहाँ की मालकिन हूँ।"

इतना कहने के बाद उस महिला ने अपना एक हाथ आगें बढ़ाया। रघुनाथ पीछे हटता जाता और हाथ की लम्बाई भी बढ़ती जाती। डरावनी हँसी हँसते हुए उस भयानक चेहरे वाली महिला ने रघुनाथ का गला पकड़ लिया। रघुनाथ पीछे हुआ तो किसी से टकरा गया।

"क्या हुआ रघु..? इतनी रात को यहाँ छत पर क्या कर रहे हो ?" - शोभना ने चिंतित होकर पूछा।

रघुनाथ का चेहरा डर के कारण फीका पड़ गया था। वह हड़बड़ाते हुए छत की मुँडेर की ओर उंगली से ईशारा करते हुए बोला - " वो..वो...वहां वह औरत !"

शोभना ने उस ओर देखते हुए कहा - " वहाँ तो कोई नहीं है।"

जब रघुनाथ ने जब उस तरफ़ देखा तो वहाँ उसे बिल्ली बैठी हुई दिखाई दी।

शोभना ने रघुनाथ को अहसास दिलाने के उद्देश्य से कहा - " जरूर, आपकों कोई वहम हुआ होगा। अब, सारा दिन आपसे मैं इसी तरह की बातें किया करती हूँ, तो आपकों भी अब वहीं सब दिखाई देने लगा है।"

रघुनाथ शर्मिंदा होकर - " तुम ठीक कहती थी शोभना ! यहाँ इस घर में बुरा साया है। यह घर उस औरत का ही है और यहाँ किसी और कि दखलंदाजी उसे पसन्द नहीं है। वह बार-बार यहीं जता रही है कि वह इस घर की मालकिन हैं। अब तक तो वह सिर्फ़ चेतावनी ही दे रही है,पर यदि हमनें यह घर खाली नहीं किया तो वह हमारे साथ कुछ बुरा भी कर सकती हैं।"

शोभना - " आपने बिल्कुल ठीक कहा ! अभी तो यहाँ से चलों। बच्चें अकेले हैं।"

रघुनाथ और शोभना छत से आने के बाद सो नहीं पाते हैं। रघुनाथ को यहीं चिंता सता रही थी कि अचानक यूँ अनजान शहर में दूसरा घर कहाँ से ढूँढू। सारी रात यूँही जागते हुए कटती है।

अगली सुबह रघुनाथ ऑफिस जाने की तैयारी करते हैं।

शोभना टिफिन तैयार करके किचन के प्लेटफॉर्म पर रखकर चली जाती है। वह दोनों बच्चों को स्कूल के लिए जगाने जाती है, तो वहाँ गोलू सोया हुआ रहता है लेक़िन किटी दिखाई नहीं देती है।

शेष अगलें भाग में...

क्या किटी के गायब होने के पीछे उसी महिला का हाथ है ? रघुनाथ ने शोभना की बात न मानकर कही कोई बड़ी भूल तो नहीं कर दी ?